पवित्र कबीर सागर में अद्धभुत रहस्य

‘‘अनुराग सागर’’:- यह अध्याय कबीर सागर का ही अंग है।

वर्तमान कबीर सागर के संशोधन कर्ता श्री युगलानन्द बिहारी (प्रकाशक एवं मुद्रक-खेमराज श्री कृष्ण दास, श्री वेंकेटेश्वर प्रैस मुंबई) द्वारा अपने प्रस्तावना में लिखा है कि मेरे पास अनुराग सागर की 46 (छियालिस) प्रतियाँ हैं। जिनमें हस्त लिखित तथा प्रिन्टिड हैं। सभी की व्याख्या एक दूसरे से भिन्न हैं। अब मैंने (श्री युगलानन्द जी ने) शुद्ध करके सत्य विवरण लिखा है।

विवेचनः- श्री युगलानन्द जी ने अनुराग सागर पृष्ठ 110 पर लिखा है कि धर्मदास साहेब जी नीरू का अवतार अर्थात् नीरू वाली आत्मा ही धर्मदास रूप में जन्मी थी तथा नीमा वाली आत्मा ही आमनी रूप में जन्मी थी। वाणी बना कर लिखी है, कबीर वचन:-

चलेहु हम तब सीस नवाई, धर्मदास अब तुम लग आई।
धर्मदास तुम नीरू अवतारा, आमिनि नीमा प्रगट बिचारा।।

तथा ‘‘ज्ञान सागर’’ पृष्ठ नं. 72 पर धर्मदास को नीरू अवतार नहीं लिखा है तथा नीरू के स्थान पर नूरी लिखा है।

विशेष:- पुस्तक ‘‘धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय’’ दामाखेड़ा से प्रकाशित पृष्ठ नं. 9 पर लिखा है। धर्मदास जी का जन्म संवत् 1452 (सन् 1395) तथा कबीर सागर ‘‘कबीर चरित्र बोध’’ पृष्ठ-1790 पर कबीर जी के जन्म के विषय में लिखा है कि संवत् 1455 (सन् 1398) ज्येष्ठ शुद्धि पूर्णिमा सोमवार के दिन सतपुरूष का तेज काशी के लहरतारा तालाब पर उतरा अर्थात् कबीर जी बालक रूप में प्रकट हुए।

पृष्ठ नं. 1791, 1792 (कबीर चरित्र बोध) पर लिखा है कि नीरू जुलाहा तथा उसकी पत्नी नीमा चले आ रहे थे। उन्हें एक बालक देखा उसे उठा लिया।

पृष्ठ नं. 1794 से 1818 तक आदरणीय गरीबदास जी महाराज (छुड़ानी-हरियाणा वाले) की वाणी के द्वारा महिमा समझाई है। सन्त गरीबदास जी महाराज की वाणी लिखी है (यह भी कबीर सागर में प्रक्षेप अर्थात् मिलावट का प्रत्यक्ष प्रमाण है)

उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि:-

(1) संत धर्मदास साहेब का जन्म सन् 1395 में तथा परमेश्वर कबीर जी का अवतरण सन् 1398 में तथा नीरू व नीमा को मिलन सन् 1398 में तो धर्मदास जी व परमेश्वर कबीर जी तथा नीरू व नीमा समकालीन हुए। यह वाणी की धर्मदास जी नीरू वाली आत्मा थी, गलत सिद्ध हुई। इससे सिद्ध हुआ कि कबीर सागर में मिलावट (प्रक्षेप) है जो दामाखेड़ा वालो द्वारा जान बूझ कर किया गया। सन्त गरीबदास जी (छुडानी-हरियाणा वाले) का जन्म सन् 1717 (सम्वत् 1774) में हुआ। जो कबीर जी के अन्तध्र्यान के 199 वर्ष बाद की गरीबदास जी की वाणी भी कबीर सागर में कबीर चरित्र बोध में लिखी है। जो प्रत्यक्ष प्रमाण करती है कि कबीर सागर में मिलावट है।

स्वसम वेद बोध (बोध सागर) पृष्ठ नं. 137 (1499) पर साखी लिखी है की काशी में भण्डारे के समय कबीर जी तो घर छोड़ कर चले गए तथा विष्णु ने भण्डारा कियाः-

भीर भई साधुन की भारी, गृह तजि सत्य कबीर सिधारी।
आये विष्णु भये भण्डारी, साधुन को आदर करि भारी।।

इससे सिद्ध है कि कोई नकली कबीर पंथी मिलावट कर्ता श्री कृष्ण का भी पुजारी है तथा सत् कबीर जी की महिमा से अपरिचित है।

विशेष विवरण - कबीर सागर ‘‘कबीर चरित्र बोध’’ पृष्ठ नं. 1862 से 1865 तक लिखा है कि कलयुग में कबीर साहेब ने चार गुरू नियत किये हैं।

(1) धर्मदास जी जिस के बयालिश वंश है तथा ‘‘उत्तर’’ में गुरूवाई सौंपी है। (2) दूसरे चतुर्भुज ‘‘दक्षिण’’ में गुरूवाई करेगें। (3) तीसरे बंक जी ‘‘पूर्व’’ में गुरूवाई करेगें। (4) चैथे सहती जी ‘‘पश्चिम’’ में गुरूवाई करेगें।

जिस समय कबीर सागर लिखा गया सन् 1505 (सम्वत् 1562) में उस समय तक केवल एक धर्मदास जी ही प्रकट हुए थे। जब ये चारों गुरू प्रकट हो जाऐगें तब पूरी पृथ्वी पर केवल कबीर साहेब जी का ही ज्ञान चलेगा।

यही प्रमाण ‘‘अनुराग सागर’’ पृष्ठ नं. 104-105 पर है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि कलयुग में धर्मदास जी के अतिरिक्त तीन गुरू और पृथ्वी पर प्रकट होगें, उनके द्वारा भी जीव उद्धार होगा। दामा खेड़ा वालों द्वारा बनाई दन्त कथा गलत सिद्ध हुई कि कलयुग में केवल धर्मदास जी के वंशजो द्वारा ही जीव उद्धार सम्भव है अन्य द्वारा नहीं। यह उल्लेख कबीर सागर में कबीर वाणी पृष्ठ 160 पर लिखा है जो स्पष्ट मिलावट दिखाई देती है।

संत रामपाल दास जी महाराज को एक 450 वर्ष पुराना कबीर सागर प्राप्त हुआ है। जो बहुत ही जीरण-सीरण है। उसके आधार पर कबीर सागर का संशोधन किया जाएगा। इसकी पूर्ति के लिए परमेश्वर कबीर जी ने कहा था जो कबीर सागर में ‘‘कबीर बानी‘‘ अध्याय के पृष्ठ 137 (1001) पर लिखा है। 12 वां पंथ गरीबदास पंथ होगा। उस गरीबदास जी द्वारा मेरी यथार्थ महिमा की वाणी प्रकट होगी। उस को कोई समझ नहीं सकेगा। उस वाणी को यथार्थ रूप में समझाने तथा सर्व पंथों को मिटाकर एक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ‘‘ बनाने के लिए मैं स्वयं उसी गरीबदास वाले बारहवें पंथ में आऊंगा।

पाठकगण परमेश्वर कबीर अवतार सन्त रामपाल दास जी महाराज आ चुके हैं। इसी विषय में जन्म साखी भाई बाले वाली तथा जय गुरूदेव पंथ मथुरा वाले ने सन् 1971 में स्पष्ट कहा था कि जगत के तारणहार का जन्म हो चुका है। वह 20 वर्ष का हो चुका है। ‘‘वर्तमान कबीर सागर’’ के संशोधन कर्ता श्री युगलानन्द जी ने ज्ञान प्रकाश- बोध सागर पृष्ठ नं. 37 के नीचे टिप्पणी की है कि इस ज्ञान प्रकाश की कई लीपी मेरे पास हैं परन्तु कोई भी एक दूसरे से मेल नहीं खाती तथा ‘‘अनुराग सागर‘‘ की प्रस्तावना पृष्ठ 5 (117) तथा 6 (118) में भी स्पष्ट किया है तथा कहा है कि लेखक महात्माओं की कृपा से पक्षपात और अविद्यावश कबीर पंथके ग्रन्थोंकी दुर्दशा हुई है। कृपया देखें फोटोकापी ‘‘ज्ञान प्रकाश‘‘ के पृष्ठ 37 तथा ‘‘अनुराग सागर‘‘ की प्रस्तावना के पृष्ठ 5 (117) तथा 6 (118) की फोटोकापी।

विशेष:- भक्त जन विचार करें कि काल ने कैसा जाल फैलाया है। अपने दूतों द्वारा परमेश्वर के सत् ग्रन्थों को ही बदलवा डाला। फिर भी सत्य को छुपा नहीं सके।

कबीर: चोर चुराई तूम्बड़ी, गाढै पानी मांही।
वो गाढे वह उपर आवै, सच्चाई छयानी नाहिं।।

इसकी पूर्ति परमेश्वर ने संत गरीबदास जी (छुड़ानी-हरियाणा वाले) द्वारा करवाई है। गरीबदास जी द्वारा भी संस्ययुक्त वाणी युक्त करवाई है जिस में श्री विष्णु जी की महिमा भी अधिक वर्णित है तथा सारज्ञान (तत्वज्ञान) भी गुप्त ढ़ंग से लिखा हैं संत गरीबदास जी की वाणी में निर्णायक ज्ञान नहीं है। कबीर जी की शक्ति से ही आदरणीय गरीबदास जी ने वाणी बोली है। कबीर जी ने जो बुलवाना था वही बुलवाया ताकि अब तक(मुझ दास रामपाल तक) भेद छुपा रहे। अब उसी बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर जी ने वह पूर्ण ज्ञान (तत्वज्ञान) मुझ दास(रामपाल दास) तेरहवां वंश द्वारा प्रकट कराया है।

कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ के पृष्ठ 134 (998):-

‘‘वंश प्रकार’’

प्रथम वंश उत्तम।1। दूसरा वंश अहंकारी।2। तीसरा वंश प्रचंड।3। चैथे वंश बीरहे।4। पाँचवें वंश निद्रा।5। छटे वंश उदास।6। सांतवें वंश ज्ञानचतुराई।7। आठे द्वादश पन्थ विरोध।8। नौवं वंश पंथ पूजा।9। दसवें वंश प्रकाश।10। ग्यारहवें वंश प्रकट पसारा।11। बारहवें वंश प्रगट होय उजियारा।12। तेरहवें वंश मिटे सकल अँधियारा।13।

भावार्थ:- उपरोक्त विवरण में प्रथम वंश जो उत्तम लिखा है वह चूड़ामणी साहेब के विषय में है, दूसरा वंश अहंकारी लिखा है ‘‘यागौदास’’ पंथ है, तीसरा वंश प्रचण्ड लिखा है, यह सूरत गोपाल पंथ है, चैथा वंश बीरहे लिखा है, यह ‘‘मूल निरंजन पंथ’’ है। पांचवाँ वंश ‘‘पूजा टकसार पंथ’’ है। छठा वंश ‘‘उदास’’ यह ‘‘भगवान दास पंथ’’ सातवां वंश ‘‘ज्ञान चतुराई’’ यह सत्यनामी पंथ है। आठवाँ वंश‘‘द्वादश पंथ विरोद्ध’’ यह कमाल का पंथ है। नौवाँ वंश ‘‘पंथ पूजा’’ यह राम कबीर पंथ है। दशवाँ वंश प्रकाश यह प्रेमधाम (परम धाम) की वाणी पंथ है। ग्यारहवाँ वंश ‘‘प्रकट पसारा’’ यह जीवा पंथ है। बारहवाँ वंश ‘‘गरीबदास पंथ’’ है। तेरहवाँ वंश यह यथार्थ कबीर पंथ है जो मुझ दास (सन्त रामपाल दास) द्वारा बिचली पीढ़ी के उद्धार के लिए प्रारम्भ कराया है। कबीर परमेश्वर ने अपनी वाणी में काल से कहा था कि तेरे बारह पंथ चल चुके होगें तब मैं अपना नाद (वचन-शिष्य परम्परा वाला) वंश अथार्त् अंस भेजेगें उसी आधार पर यह विवरण लिखा है। बारहवां वंश (अंश) सन्त गरीबदास जी से कबीर वाणी तथा परमेश्वर कबीर जी की महिमा का कुछ-कुछ संस्य युक्त ज्ञान विस्तार होगा। जैसे सन्त गरीबदास जी की परम्परा में परमेश्वर कबीर जी को विष्णु अवतार मान कर साधना तथा प्रचार करते हैं। संत गरीबदास जी ने ‘‘असुर निकन्दन रमैणी’’ में कहा है ‘‘साहेब तख्त कबीर खवासा। दिल्ली मण्डल लीजै वासा। सतगुरू दिल्ली मण्डल आयसी, सूती धरणी सूम जगायसी’’ भावार्थ है कि सन्त गरीबदास जी वाला बारहवाँ पंथ (अंश) तो काल तक साधना बताने वाला कहा है। इसलिए केवल कबीर महिमा की वाणी ही संत गरीबदास जी द्वारा प्रकट की गई है। उसमें कहा है कि कबीर परमात्मा के तख्त अर्थात् सिंहासन का ख्वास अर्थात् नौकर दिल्ली के आस-पास के क्षेत्र में आएगा वह उस क्षेत्र के कृपण अर्थात् कंजूस व्यक्तियों को परमात्मा की महिमा बता कर जगाएगा अर्थात् दान-धर्म में उनकी रूची बढ़ाएगा। वह तेरहवाँ अंश कबीर परमात्मा के दरबार का उच्चतम् सेवक होगा। वह कबीर परमेश्वर का अत्यंत कृपा पात्र होगा। ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मन्त्र 7 में उप अग्ने अर्थात् उप परमेश्वर कहा है। इसलिए पूर्ण परमात्मा अपना भेद छुपा कर दास रूप में प्रकट होकर अपनी महिमा करता है। इसलिए उसी परमेश्वर को ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 4 मन्त्र 6 में तस्करा अर्थात् आँखों मे धूल झोंक का कार्य करने वाला तस्कर कहा है। श्री नानक जी ने उसे ठगवाड़ा कहा है। इसलिए तेरहवें अंश को (सन्त रामपाल दास को) उनका दास जाने चाहे स्वयं पूर्ण प्रभु का उपशक्तिरूप (उप अग्ने्) समझें। इसलिए लिखा है कि बारहवें अंश की परम्परा में हम ही चलकर तेरहवें अंश रूप में आऐंगे। वह तेरहवां वंश (अंस) पूर्ण रूप से अज्ञान अंधेरा समाप्त करके परमेश्वर कबीर जी की वास्तविक महिमा तथा नाम का ज्ञान करा कर सभी पंथों को समाप्त करके एक ही पंथ चलाएगा, वह तेरहवां वंश हम (परमेश्वर कबीर) ही होंगे।

कबीर वाणी (कबीर सागर) पृष्ठ 136 पर:-

बारह पंथों का विवरण दिया है। बारहवें पंथ (गरीबदास पंथ, बारहवां पंथ लिखा है कबीर सागर, कबीर चरित्र बोध पृष्ठ 1870 पर) के विषय में कबीर सागर कबीर वाणी पृष्ठ नं. 136-137 पर वाणी लिखी है कि:-

द्वादश पंथ चलो सो भेद

द्वादश पंथ काल फुरमाना। भुले जीव न जाय ठिकाना।।
(प्रथम) आगम कहि हम राखा। वंश हमार चूरामणि शाखा।
दूसर जग में जागू भ्रमावै। बिना भेद ओ ग्रन्थ चुरावे।।
तीसरा सुरति गोपालहि होई। अक्षर जो जोग ²ढ़ावे सोई।।
चैथा मूल निरज्न बानी। लोकवेद की निर्णय ठानी।।
पंचम पंथ टकसार भेद लै आवै। नीर पवन को सन्धि बतावै।।
सो ब्रह्म अभिमानी जानी। सो बहुत जीवनकीकरी है हानी।।
छठवाँ पंथ बीज को लेखा। लोक प्रलोक कहें हममें देखा।।
पांच तत्व का मर्म ²ढ़ावै। सो बीजक शुक्ल ले आवै।।
सातवाँ पंथ सत्यनामि प्रकाशा।घटके माहीं मार्ग निवासा।।
आठवाँ जीव पंथले बोले बानी। भयो प्रतीत मर्म नहिं जानी।।
नौमा राम कबीर कहावै। सतगुरू भ्रमलै जीव ²ढ़ावै।।
दशवां ज्ञानकी काल दिखावै। भई प्रतीत जीव सुख पावै।।
ग्यारहवाँ भेद परमधाम की बानी। साख हमारी निर्णय ठानी।।
साखी भाव प्रेम उपजावै। ब्रह्मज्ञान की राह चलावै।।
तिनमें वंश अंश अधिकारा। तिनमेंसो शब्द होय निरधारा।।
संवत सत्रासै पचहत्तर होई। तादिन प्रेम प्रकटें जग सोई।।
आज्ञा रहै ब्रह्म बोध लावे। कोली चमार सबके घर खावे।।
साखि हमार लै जिव समुझावै। असंख्य जन्म में ठौर ना पावै।।
बारवै पन्थ प्रगट होवै बानी।शब्द हमारे की निर्णय ठानी।।
अस्थिर घर का मरम न पावैं।ये बारा पंथ हमहीको ध्यावैं।।
बारहें पन्थ हमही चलि आवै। सब पंथ मिटा एकहीपंथ चलावै।।
तब लगि बोधो कुरी चमारा। फेरी तुम बोधो राज दर्बारा।।
प्रथम चरन कलजुग नियराना। तब मगहर माडौ मैदाना।।
धर्मराय से मांडौ बाजी। तब धरि बोधो पंडित काजी।।
धर्मदास मोरी लाख दोहाई, मूल (सार) शब्द बाहर नहीं जाई।
मूल (सार) ज्ञान बाहर जो परही,बिचली पीढी हंस नहीं तरहीं।
तेतिस अर्ब ज्ञान हम भाखा, तत्वज्ञान गुप्त हम राखा।

मूलज्ञान (तत्वज्ञान) तब तक छुपाई, जब लग द्वादश पंथ न मिट जाई। कबीर सागर अध्याय जीव धर्म बोध (बोध सागर) पृष्ठ 1937 पर लिखा है:-

पुस्तक = कबीर सागर = अध्याय जीव धर्म बोध (बोध सागर) पृष्ठ 1937 पर प्रमाण:-

धर्मदास तोहि लाख दोहाई। सार शब्द बाहर नहिं जाई।।
सारशब्द बाहर जो परि है।बिचलै पीढी हंस नहीं तरि है।।
युगन-2 तुम सेवा किन्ही। ता पीछे हम इहां पग दीनी।।
कोटिन जन्म भक्ति जब कीन्हा।सारशब्द तब ही पै चीन्हा।।
अंकूरी जीव होय जो कोई। सार शब्द अधिकारी सोई।।
सत्यकबीर प्रमाण बखाना। ऐसो कठिन है पद निर्वाना।।

कबीर सागर ‘‘कबीर बानी’’ नामक अध्याय (बोध सागर) पृष्ठ नं134 से 138 पर लिखे विवरण का भावार्थ है:-

पृष्ठ नं. 134 पर बारह वंशों (अंसों) के बाद तेरहवें वंश (अंस) में सब अज्ञान अंधेरा मिट जाएगा। संत गरीबदास पंथ तक काल के बारह वंश अपनी.2 चतुरता दिखाएगें। पृष्ठ नं. 136-137 पर ‘‘बारह पंथों’’ का विवरण किया है तथा लिखा है कि संवत् 1775 में प्रभु का प्रेम प्रकट होगा तथा हमरी बानी प्रकट होवेगी। (संत गरीबदास जी महाराज छुड़ानी हरियाणा वाले का जन्म 1774 में हुआ है उनको प्रभु कबीर 1784 में मिले थे। यहाँ पर इसी का वर्णन है तथा सम्वत् 1775 के स्थान पर 1774 होना चाहिए, गलती से 1775 लिखा है दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि संत गरीब दास जी का जन्म वैशाख मास की पूर्णमासी को हुआ। संवत् वाला वर्ष चैत्र से प्रारम्भ होता है जो वैसाख मास के साथ वाला है। कई बार तिथीयों के घटने बढ़ने से दो मास बन जाते हैं। उस समय शिक्षा का अभाव था तिथी व संवत् बताने वाले भी अशिक्षित होते थे। जिस कारण से संवत् 1775 के स्थान पर गरीबदास जी का जन्म संवत् 1774 लिखा गया होगा परन्तु यह संकेत संत गरीबदास जी की ओर है।)।

भावार्थ है कि बारहवां पंथ जो गरीबदास जी का चलेगा उस पंथ सहित अर्थात् उपरोक्त बारह पंथों के अनुयाई मेरी महिमा का गुणगान करेगें तथा हमारी साखी लेकर जीव को समझाएगें। परन्तु वास्तविक मन्त्र के अपरिचित होने के कारण साधक असंख्य जन्म सतलोक नहीं जा सकते। उपरोक्त बारह पंथ हमको ही प्रमाण करके भक्ति करेगें परन्तु स्थाई स्थान (सतलोक) प्राप्त नहीं कर सकते। बारहवें पंथ (गरीबदास वाले पंथ) में आगे चलकर हम (कबीर जी) स्वयं ही आऐगें तथा सब बारह पंथों को मिटा एक ही पंथ चलाऐगें। उस समय तक सारशब्द तथा सारज्ञान (तत्वज्ञान) छुपा कर रखना है। यही प्रमाण सन्त गरीबदास जी महाराज ने अपनी अमृतवाणी ‘‘असुर निकंन्दन रमैणी’’ में किया है कि ‘‘सतगुरू दिल्ली मण्डल आयसी, सूती धरती सूम जगायसी’’ पुराना रोहतक जिला (वर्तमान में, सोनीपत, झज्जर तथा रोहतक जो पहले एक ही जिला था) दिल्ली मण्डल कहलाता है। जो पहले अग्रेंजों के शासन काल में केन्द्र के आधीन था। मुझ दास का पैत्रिक गाँव धनाना इसी पुराने रोहतक जिले में है। सन् 1951 में मेरा (संत रामपाल का) जन्म हुआ था। बारह पंथों का विवरण कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) पृष्ठ नं1870 पर भी है जिसमें बारहवां पंथ गरीबदास लिखा है। कबीर साहेब के पंथ में काल द्वारा प्रचलित बारह पंथों का विवरण (कबीर चरित्र बोध (कबीर सागर) पृष्ठ नं. 1870 से):- (1) नारायण दास जी का पंथ (2) यागौदास (जागू) पंथ (3) सूरत गोपाल पंथ (4) मूल निरंजन पंथ (5) टकसार पंथ (6) भगवान दास (ब्रह्म) पंथ (7) सत्यनामी पंथ (8) कमाली (कमाल का) पंथ (9) राम कबीर पंथ (10) प्रेम धाम (परम धाम) की वाणी पंथ (11) जीवा पंथ (12) गरीबदास पंथ। विशेष:- यहाँ पर प्रथम पंथ का संचालक नारायण दास लिखा है जबकी कबीर वाणी (कबीर सागर) पृष्ठ 136 पर प्रथम पंथ का संचालक चूरामणी लिखा है, शेष प्रकरण ठीक है। इसमें भी दामाखेड़ा वाले अनुयाइयों ने चुड़ामणी को हटाने का प्रयत्न किया है। उसके स्थान पर नारायण दास लिख दिया। जबकि नारायण दास तो बिल्कुल विपरित था। उसका तो विनाश हो गया था। इसलिए प्रथम पंथ चुड़ामणी जी का ही मानना चाहिए। दूसरी बात है कि कबीर वाणी (कबीर सागर) पृष्ठ नं. 136 पर लिखी वाणी में चूड़ामणी को मिला कर ही बारह पंथ बनते हैं।

विचार करेंः- अब वही एक पंथ मुझ दास (रामपाल दास) द्वारा परमेश्वर कबीर जी की आज्ञा व शक्ति से चलाया जा रहा है जो सभी पंथों को एक करेगा।

वर्तमान कबीर सागर का संशोधन कर्ता भी दामा खेड़ा वालों का अनुयायी है। कबीर सागर में कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) में लेखक ने लिखा है कि धर्मदास जी के बयालीस वंश का नियम है कि प्रत्येक वंश पच्चीस वर्ष बीस दिन तक गद्दी पर बैठा करे तथा स्वःइच्छा से शरीर छोड़े। इस से अधिक तथा कम समय कोई गद्दी पर न रहे। यह भी लिखा है कि वर्तमान में यही क्रिया चल रही है।

‘‘धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय’’ पुस्तक पृष्ठ नं. 32 से 49 तक विवरण दिया है:-

पहला चुरामणी जी सम्वत् 1570 से 1630 तक 60 वर्ष कुदुरमाल नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
दूसरा सुदर्शन नाम जी सम्वत् 1630 से 1690 तक 60 वर्ष रतनपुर नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
तीसरा कुलपत नाम जी सम्वत् 1690 से 1750 तक 60 वर्ष कुदुरमाल नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
चैथा प्रमोद गुरू बाला पीर जी सम्वत् 1750 से 1804 तक 54 वर्ष मंढला नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
पाँचवां केवल नाम जी सम्वत् 1804 से 1824 तक 20 वर्ष धमधा गद्दी पर रहे।
छठवां अमोल नाम जी सम्वत् 1824 से 1846 तक 22 वर्ष मंडला नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
सातवां सूरत सनेही जी सम्वत् 1846 से 1871 तक 25 वर्ष सिंघाड़ी नामक स्थान की गद्दी पर रहे।
आठवां 1872 से 1890 तक 18 वर्ष कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
नौवां 1890 से 1912 तक 22 वर्ष कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
दसवां 1912 से 1939 तक 27 वर्ष कवर्धा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।
ग्यारहवें को गद्दी ही नहीं हुई। क्योंकि दो वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई।
बारहवां उग्र नाम साहब जी सम्वत् 1953 में गद्दी पर बैठा तथा सम्वत् 1971 में मृत्यु हुई, 18 वर्ष तक कवर्धा स्थान को त्याग कर दामा खेड़ा में स्वयं गद्दी बना कर रहा तथा सम्वत् 1939 से 1953 तक 14 वर्ष तक दामाखेड़ा नामक स्थान की गद्दी के पंथ वंश बिना पंथ रहा।
तेरहवां वंश दयानाम साहेब सम्वत् 1971 से 1984 तक 13 वर्ष दामाखेड़ा नामक स्थान की गद्दी पर रहा।

{शुद्धिकरण:- ग्यारहवें को गद्दी नहीं मिली। इसलिए इसकी गिनती वंश गुरू गद्दीनशीनों में नहीं हुई। उसकी दो वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई थी। ग्यारहवां वंश गुरू उग्रनाम साहेब है। बारहवां वंश गुरू दयानाम साहेब है। तेरहवां उदित नाम साहेब है। चैदहवां प्रकाश मुनि साहेब वर्तमान में है।}

उपरोक्त विवरण से सिद्ध है कि दामाखेड़ा वालों की मनघड़न्त कहानी है कि वंश गद्दी से ही कलयुग में मुक्ति सम्भव है तथा प्रत्येक गद्दी वाला महंत 25 वर्ष 20 दिन तक गद्दी पर रहता है। फिर दूसरे को उत्तराधिकारी बना कर शरीर त्याग जाता है। न अधिक समय, न कम समय अपितु पूरे 25 वर्ष 20 दिन ही रहता है, यह गलत सिद्ध हुआ। क्योंकि उपरोक्त विवरण में किसी भी गद्दी वाले ने 25 वर्ष 20 दिन का समय नहीं रखा कोई 60 वर्ष कोई 54, 22, 27 या पूरे 25 या 18 वर्ष समय गद्दी पर रहे हैं।

शंकाः- अनुराग सागर पृष्ठ नं. 120 से 123 तक बारह दूतों का वर्णन किया है। जिसमें लिखा है कि आठवां दूत जो पंथ चलाएगा वह कुछ कुरान तथा कुछ वेद चुरा कर कुछ कबीर जी का केवल निर्गुण ज्ञान लेकर अपना ज्ञान प्रचार करेगा तथा एक तारतम्य पुस्तक लिखेगा। आप भी वेद व कुरान आदि का वर्णन करके पुस्तक लिख रहे हो। आपका मार्ग कबीर मार्ग ही है क्या प्रमाण है?

समाधानः- यहाँ पर बारह काल पंथों का विवरण है जो दामा खेड़ा वालों के द्वारा मिलावट करके लिखा गया है।

(1) क्योंकि कबीर बानी (बोध सागर) पृष्ठ नं. 134 से 138 तथा कबीर चरित्र बोध पृष्ठ नं. 1870 पर लिखे बारह पंथों के विवरण से नहीं मिलती।

(2) यह विवरण आठवें पंथ के प्रवर्तक का है। उसके बाद राम कबीर पंथ, सतनामी पंथ आदि सर्व बारह पंथ चल चुके हैं।

अब संत रामपाल दास जी महाराज द्वारा तेरहवां अर्थात् एक वास्तविक मार्ग चलाया जा रहा है। जिससे सर्व पंथ मिट कर एक पंथ ही रह जाएगा। जिसका प्रमाण आप पूर्व लिखे विवरण में पढ़ चुके हैं। जो स्वयं कबीर परमेश्वर जी की आज्ञा व कृपा से चल रहा है। यह दास (रामपाल दास) वेदों तथा कुरान व कबीर वाणी आदि को चुरा कर पुस्तक नहीं लिख रहा है अपितु परमेश्वर कबीर साहेब जी की वाणी के आधार से प्रचार किया जा रहा है तथा परमेश्वर की कर्विवाणी (कबीर वाणी) की सत्यता के लिए वेदों तथा कुरान आदि का समर्थन लिया जा रहा है। वाणी चुराने का अर्थ होता है कि वास्तविक ज्ञान को छुपाने के लिए सतग्रन्थों के ज्ञान को मरोड़-तरोड़ कर अपने लोक वेद (दंत कथा) को उजागर करना परन्तु यह दास तो परमेश्वर कबीर जी की वाणी को ही आधार मान कर यथार्थ ज्ञान के आधार से मार्ग दर्शन कर रहा है। इसलिए हमारा मार्ग कबीर मार्ग (पंथ) है। शेष पंथों की साधना शास्त्रा विरूद्ध अर्थात् मनमाना आचरण (पूजा) है जो मोक्षदायक नहीं है।

कबीर सागर- ‘‘अमर मूल’’ पृष्ठ 196 पर साखी लिखी है:

साखीः- नाम भेद जो जान ही, सोई वंश हमार।
नातर दुनियाँ बहुत ही, बूड़ मुआ संसार।।

पृष्ठ 205 पर लिखा हैः-

नाम जाने सो वंश तुम्हारा, बिना नाम बुड़ा संसारा।

पृष्ठ 207 पर लिखा हैः-

सोई वंश सत शब्द समाना, शब्द हि हेत कथा निज ज्ञाना।

पृष्ठ 217 पर लिखा हैः-

बिना नाम मिटे नहीं संशा, नाम जाने सो हमारे वंशा।
नाम जाने सो वंश कहावै, नाम बिना मुक्ति न पावै।
नाम जाने सो वंश हमारा, बिना नाम बुड़ा संसारा।

पृष्ठ 244 पर लिखा हैः-

बिन्द के बालक रहें उरझाई, मान गुमान और प्रभुताई।
साखीः- हमरे बालक नाम के, और सकल सब झूठ।

सत्य शब्द कह जानही, काल गह नहीं खूंठ।।
वंश हमारा शब्द निज जाना, बिना नाम नहिं वंशहि माना।।
धर्मदास निर्मोहि हिय गहेहू। वंश की चिन्ता छाड़ तुम देहू।

कबीर सागर के अध्याय अनुराग सागर पृष्ठ 138 से 141 तक का भावार्थ है किः- तेरे वंश में बिन्द (सन्तान) तो अभिमानी होगें तथा साथ ही अहंकार वश झगड़ा करेगें तथा कहेगें कि हम तो धर्मदास के वंश (सन्तान) से हैं। हम श्रेष्ठ है। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि मेरा वास्तविक वंश वही है जो मेरे निज शब्द अर्थात् सारशब्द से परिचित है जो सारशब्द से परिचित नहीं है वह हमारा वंश नही माना जाएगा। इसलिए बारहवें पंथ अर्थात् गरीबदास जी वाले पंथ तक काल के पंथ ही कहा गया है। इसलिए धर्मदास जी से कबीर जी ने कहा है कि आप अपने वंश की चिन्ता छोड़ कर निर्मोही हो जाओ।

कबीर साहेब ने कहा कि यदि तेरे वंश वाले मेरे वचन अनुसार चलेगें तो उन्हे भी पार कर दूंगा अन्यथा नहीं।

पृष्ठ नं. 139 से:-

वचन गहे सो वंश हमारा, बिना वचन (नाम) नहीं उतरे पारा।
धर्मदास तब बंस तुम्हारा, वचन बंस रोके बटपारा।।
शब्द की चास नाद कह होई, बिन्द तुम्हारा जाय बिगोई।
बिन्द ते होय ना पंथ उजागर। परखि के देखहु धर्मनिनागर।।
चारहु युग देखहु समवादा, पन्थ उजागर किन्हों नादा।
और वंस जो नाद सम्हारै, आप तरें और जीवहीं तारे।
कहां नाद औरबिन्द रै भाई। नाम भक्ति बिनु लोक ना जाई।।

उपरोक्त वाणी का भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा जो मेरी आज्ञा का पालन करेगा। वही हमारा वंश अर्थात् अनुयाई होगा अन्यथा वह पार नहीं होगा तेरे बिन्द वाले अर्थात् शरीर से उत्पन्न सन्तान महंत परम्परा तो अभिमानी हो जाऐगें। वे तो सीधे नरक के भागी होगें। केवल नाद (शिष्य परम्परा) से ही तेरा पंथ चल सकेगा यदि वास्तविक नाम चलता रहेगा तो अन्यथा तेरे दोनों ही नाद (शिष्य) बिन्द (शरीर की संतान) भक्तिहीन हो जाएगें। केवल तेरा वंश फिर भी चलेगा। धर्मदास आप की दोनों परम्परा (नाद व बिन्द) से अन्य कोई मेरे वचन अर्थात् नाद (शिष्य परम्परा) के अनुयायी होगें उनसे मेरा यथार्थ कबीर पंथ उजागर (प्रसिद्ध) होगा। कबीर साहेब कह रहे हैं कि धर्मदास किसी युग में देख ले केवल नाद (वचन) अर्थात् शिष्य परम्परा से ही जीव कल्याण हुआ है तथा बिन्द (शरीर) की सन्तान अर्थात् महंत परम्परा से कोई सत्य मार्ग नहीं चलता, वे तो अभिमानी होते हैं। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि दामाखेड़ा वाली गद्दी वाले महंत जी मनघड़ंत कहानी बना कर श्रद्धालुओं को गुमराह कर रहे हैं। जो वास्तविक सतनाम(जो दो मंत्र का है जिससे एक ओ3म् तथा दूसरा सांकेतिक तत् मन्त्र है) यह दास(रामपाल दास) दान करता है। उसका प्रमाण आदरणीय धर्मदास साहेब जी की वाणी जो कबीर सागर तथा कबीर पंथी शब्दावली में तथा आदरणीय गरीबदास साहेब जी की वाणी में तथा आदरणीय दादू साहेब जी की वाणी में तथा आदरणीय घीसा दास साहेब की वाणी में तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी की वाणी में प्रमाण है। परंतु वर्तमान के सर्व तथा कथित कबीर पंथी तथा उपरोक्त अन्य संतों के पंथी सतनाम से अपरीचित हैं तथा मनमाने नाम जाप दान कर रहे हैं। जो व्यर्थ हैं।

प्रश्न: एक भक्त कह रहा था कि सातवीं पीढ़ी के बाद सुधार कर लिया था?

उत्तर: यदि सुधार कर लिया होता तो उनके पास सतनाम मंत्र होता। यह भी किसी काल के दूत की ही सोच है। यदि अब कोई मुझ दास से नाम प्राप्त करके ढोंग रचे कि मेरे पास भी वही मंत्र हैं तो वह अनअधिकारी होने के कारण व्यर्थ है।

प्रश्न: आप तीन बार नाम देते हो तथा फिर सारशब्द भी प्रदान करके चैथा पद प्राप्त कराते हो। परंतु दामा खेड़ा वाले तथा अन्य कबीर पंथी महंत, संत तो नाम एक ही बार देते हैं। कौन सा सत्य है? इसकी परख कैसे हो ?

कबीर पंथ में दामाखेड़ा वाले महन्तों द्वारा तथा उन्हीं से भिन्न हुए खरसिया गद्दी वालों तथा लहरतारा काशी (बनारस) वालों द्वारा जो उपदेश मन्त्र (नाम) दिया जाता है। वह निम्न है:- ‘‘सत सुकृत की रहनी रहो। अजर अमर गहो सत्य नाम। कह कबीर मूल दीक्षा सत्य शब्द प्रमाण। आदि नाम, अजर नाम, अमी नाम, पाताले सप्त सिंधु नाम, आकाशे अदली निज नाम। यही नाम हंस का काम। खुले कुंजी खुले कपाट पांजी चढ़े मूल के घाट। भर्म भूत का बान्धो गोला कह कबीर यही प्रमाण पांच नाम ले हंसा सत्यलोक समान’’

उत्तर: कबीर सागर में अमर मूल बोध सागर पृष्ठ 265 पर लिखा है:-

तब कबीर अस कहेवे लीन्हा, ज्ञानभेद सकल कह दीन्हा।।
धर्मदास मैं कहो बिचारी, जिहिते निबहै सब संसारी।।
प्रथमहि शिष्य होय जो आई, ता कहैं पान देहु तुम भाई।।1।।
जब देखहु तुम दृढ़ता ज्ञाना, ता कहैं कहु शब्द प्रवाना।।2।।
शब्द मांहिजब निश्चय आवै, ताकहैं ज्ञान अगाध सुनावै।।3।।

दोबारा फिर समझाया है -

बालक सम जाकर है ज्ञाना। तासों कहहू वचन प्रवाना।।1।।
जा कहैं सूक्ष्म ज्ञान है भाई। ता कहें स्मरन देहु लखाई।।2।।
ज्ञान गम्यजाकहैं पुनि होई।सारशब्दजाकहैंकहसोई।।3।।
जा कहैं दिव्य ज्ञान परवेशा, ताकहैं तत्व ज्ञान उपदेशा।।4।।

उपरोक्त वाणी से स्पष्ट है कि कड़िहार गुरु तीन स्थिति में सार नाम तक प्रदान करता है तथा चैथी स्थिति में सार शब्द प्रदान करना होता है। धर्मदास जी के माध्यम से संत रामपाल दास जी महाराज को संकेत है क्योंकि कबीर सागर में तो प्रमाण बाद में देखा था परंतु उपदेश विधि पहले ही पूज्य गुरुदेव तथा परमेश्वर कबीर साहेब जी ने मुझ दास को प्रदान कर दी थी। जो उपदेश मन्त्र (नाम) दामाखेड़ा वाले व खरसीया तथा लहरतारा काशी वाले देते हैं वह मन्त्र व्यर्थ है। उस में तो सत्यनाम तथा निजनाम (सारनाम) तथा पांच नामों की महिमा बताई है जो संत रामपाल दास जी महाराज प्रदान करते हैं। यह उपरोक्त पूरा शब्द (जो दामाखेड़ा व खरसीया व लहरतारा काशी वाले उपदेश में देते हैं) रटने से कुछ लाभ नहीं जो इसमें संकेत है। उस सत्यनाम व निज नाम (सारशब्द) तथा पांच नामों को संत रामपाल दास जी महाराज से प्राप्त करके साधना करने से मोक्ष होगा।

धर्मदास जी को तो परमश्ेवर कबीर साहेब जी ने सार शब्द देने से मना कर दिया था तथा कहा था कि यदि सार शब्द किसी काल के दूत के हाथ पड़ गया तो बिचली पीढ़ी वाले हंस पार नहीं हो पाऐंगे। इसलिए कबीर सागर, जीव धर्म बोध, बोध सागर, पृष्ठ 1937 पर लिखा है:-

धर्मदास तोहि लाख दुहाई, सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई। सार शब्द बाहर जो परि है, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तरि है।

जैसे कलयुग के प्रारम्भ में प्रथम पीढ़ी वाले भक्त अशिक्षित थे तथा कलयुग के अंत में अंतिम पीढ़ी वाले भक्त कृतघनी हो जाऐंगे तथा अब वर्तमान में सन् 1947 से भारत स्वतंत्र होने के पश्चात् बिचली पीढ़ी प्रारम्भ हुई है। सन् 1951 में मुझ दास को भेजा है। अब सर्व भक्तजन शिक्षित हैं। वह बिचली पीढी वाला भक्ति समय प्रारम्भ हो चुका है। मुझ दास के पास सत्यनाम तथा सार शब्द तथा पांच नाम परमेश्वर कबीर दत्त हैं। उपदेश प्राप्त करके अपना कल्याण करायें। मानव जीवन तथा बिचली पीढ़ी वाला समय आप को प्राप्त है। अविलम्ब मुझ दास के पास आऐं अन्यथा पश्चाताप् करना पड़ेगा। यथार्थ कबीर पंथ अर्थात् एक पंथ प्रारम्भ हो चुका है। अब यह सत मार्ग सत साधना पूरे संसार में फैलेगी तथा नकली गुरु तथा संत, महंत छुपते फिरेंगे।

पुस्तक “धनी धर्मदास जीवन दर्शन एवं वंश परिचय” के पृष्ठ 46 पर लिखा है कि ग्यारहवीं पीढ़ी को गद्दी नहीं मिली। जिस महंत जी का नाम “धीरज नाम साहब” कवर्धा में रहता था। उसके बाद बारहवां महंत उग्र नाम साहेब ने दामाखेड़ा में गद्दी की स्थापना की तथा स्वयं ही महंत बन बैठा। इससे पहले दामाखेड़ा में गद्दी नहीं थी।

इससे स्पष्ट है कि पूरे विश्व में मुझ दास के अतिरिक्त वास्तविक भक्ति मार्ग नहीं है। सर्व प्रभु प्रेमी श्रद्धालुओं से प्रार्थना है कि प्रभु का भेजा हुआ दास जान कर अपना कल्याण करवाऐं।

यह संसार समझदा नाहीं, कहन्दा श्याम दोपहरे नूं।
गरीबदास यह वक्त जात है, रोवोगे इस पहरे नूं।।

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