अब्राहिम अधम सुल्तान की परीक्षा

सुल्तान अधम ने एक साधु की कुटिया देखी जो कई वर्षों से उस स्थान पर साधना कर रहा था। अब्राहिम उसके पास गया। वह साधक बोला कि यहाँ पर मत रहना, यहाँ कोई खाना-पानी नहीं है। आप कहीं और जाइये। सुल्तान अब्राहिम बोला कि मैं तेरा मेहमान बनकर नहीं आया। मैं जिसका मेहमान (अल्लाह का मेहमान) हूँ, वह मेरे रिजक (खाने) की व्यवस्था करेगा। इन्सान अपनी किस्मत साथ लेकर आता है। कोई किसी का नहीं खाता है। हे बेइमान! तू तो अच्छा नागरिक भी नहीं है। तू चाहता है अल्लाह से मिलना। नीयत ठीक नहीं है तो इंसान परमार्थ नहीं कर सकता। बिन परमार्थ खुदा नहीं मिलता। जिसने जीवन दिया है, वह रोटी भी देगा। अब्राहिम थोड़ी दूरी पर जाकर बैठ गया।

शाम को आसमान से एक थाल उतरा जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार की सब्जी, हलवा, खीर, रोटी तथा जल का लोटा था। थाली के ऊपर थाल परोस (कपडे़ का रूमाल) ढ़का था। अब्राहिम ने थाली से कपड़ा उठाया और पुराने साधक को दिखाया। उस पुराने साधक के पास आसमान से दो रोटी वे भी जौ के आटे की और एक लोटा पानी आए।

यह देखकर पुराना साधक नाराज हो गया कि हे अल्लाह! मैं तेरा भेजा हुआ भोजन नहीं खाऊँगा। आप तो भेदभाव करते हो। मुझे तो सूखी जौ की रोटी, अब्राहिम को अच्छा खाना पुलाव वाला भेजा है।

अल्लाह ने आकाशवाणी की कि हे भक्त! यह अब्राहिम एक धनी राजा था। इसके पास अरब-खरब खजाना था। इसकी 16 हजार रानियां थी, बच्चे थे। अमीर (मंत्री) तथा दीवान थे। नौकर-नौकरानियां थी। यह मेरे लिए ऐसे ठाठ छोड़कर आया है। इसको तो क्या न दे दूँ। तू अपनी औकात देख, तू एक घसियारा था। सारा दिन घास खोदता था। तब एक टका मिलता था। सिर पर गट्ठे लेकर नित बोझ मरता था। न बीबी (स्त्री) थी, न माता थी, न कोई पिता तेरा सेठ था। तुझको मैं पकी-पकाई रोटियां भेजता हूँ। तू फिर भी नखरे करता है। यदि तू मेरी रजा में राजी नहीं है तो कहीं और जा बैठ। यदि भक्ति से विमुख हो गया तो तेरा घास खोदने का खुरपा और बाँधने की जाली, ये रखी, जा खोद घास और खा। यदि कुछ हासिल करना है तो मेरी रजा से बाहर कदम मत रखना। भक्त में यदि कुब्र (अभिमान) है तो वह परमात्मा से दूर है। यदि भक्त में आधीनी है तो वह हक्क (परमेश्वर) के करीब है।

सुल्तान अधम ने परमेश्वर से अर्ज की कि हे दाता! मैं मेहनत करके निर्वाह करूँगा। आपकी भक्ति भी करूँगा। आप यह भोजन न भेजो। रूखी-सूखी खाकर मैं आपके चरणों में बना रहना चाहता हूँ। यह भोजन आप भेज रहे हो। यह खाकर तो मन में दोष आएंगे, कोई गलती कर बैठूँगा। यह अर्ज वह पुराना भक्त भी सुन रहा था। उसकी गर्दन नीची हो गई। परमात्मा से अर्ज की, प्रभु! मेरी गलती को क्षमा करो। मैं आपकी रजा में प्रसन्न रहूँगा। उस दिन से अब्राहिम जंगल से लकड़ियां तोड़कर लाता, बाजार में बेचकर खाना ले जाता। आठ दिन तक उसी को खाता और भक्ति करता था।

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