विश्व विजेता सन्त
(संत रामपाल जी महाराज की अध्यक्षता में हिन्दुस्तान विश्व धर्मगुरु के रूप में
प्रतिष्ठित होगा)
”संत रामपाल जी के विषय में ’’नास्त्रोदमस‘‘ की भविष्यवाणी“ फ्रैंच (फ्रांस) देश के नास्त्रोदमस नामक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता ने सन् (इ.स.) 1555 में एक हजार श्लोकों में भविष्य की सांकेतिक सत्य भविष्यवाणियां लिखी हैं। सौ-सौ श्लोकों के दस शतक बनाए हैं। जिनमें से अब तक सर्व सिद्ध हो चुकी हैं। हिन्दुस्तान में सत्य हो चुकी भविष्यवाणियों में से:-
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भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्राी बहुत प्रभावशाली व कुशल होगी (यह संकेत स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी की ओर है) तथा उनकी मृत्यु निकटतम रक्षक द्वारा होना लिखा था, जो सत्य हुई।
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उसके पश्चात् उन्हीं का पुत्रा उनका उत्तराधिकारी होगा और वह बहुत कम समय तक राज्य करेगा तथा आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त होगा, जो सत्य सिद्ध हुई। (पूर्व प्रधानमन्त्राी स्व. श्री राजीव गांधी जी के विषय में)।
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संत रामपाल जी महाराज के विषय में भविष्यवाणी नास्त्रोदमस द्वारा जो विस्तार पूर्वक लिखी हैं।
(क) अपनी भविष्यवाणी के शतक पांच के अंत में तथा शतक छः के प्रारम्भ में नास्त्रोदमस जी ने लिखा है कि आज अर्थात् इ.स. (सन्) 1555 से ठीक 450 वर्ष पश्चात् अर्थात् सन् 2006 में एक हिन्दू संत (शायरन) प्रकट होगा अर्थात् सर्व जगत में उसकी चर्चा होगी। उस समय उस हिन्दू धार्मिक संत (शायरन) की आयु 50 व 60 वर्ष के बीच होगी। परमेश्वर ने नास्त्रोदमस को संत रामपाल जी महाराज के अधेड़ उम्र वाले शरीर का साक्षात्कार करवा कर चलचित्रा की भांति सारी घटनाओं को दिखाया और समझाया। श्री नास्त्रोदमस जी ने 16 वीं सदी को प्रथम शतक कहा है इस प्रकार पांचवां शतक 20 वीं सदी हुआ। नास्त्रोदमस जी ने कहा है कि वह धार्मिक हिन्दू नेता अर्थात् संत (ब्भ्ल्त्म्छ.शायरन) पांचवें शतक के अंत के वर्ष में अर्थात् सन् (ई.सं.) 1999 में घर-घर सत्संग करना त्याग कर अर्थात् चैखटों को लांघ कर बाहर आयेगा तथा अपने अनुयायियों को शास्त्राविधि अनुसार भक्तिमार्ग बताएगा। उस महान संत के बताए मार्ग से अनुयायियों को अद्वितीय आध्यात्मिक और भौतिक लाभ होगा। उस तत्वदृष्टा हिन्दू संत के द्वारा बताए शास्त्राप्रमाणित तत्वज्ञान को समझ कर परमात्मा चाहने वाले श्रद्धालु ऐसे अचंभित होगें जैसे कोई गहरी नींद से जागा हो। उस तत्वदृष्टा हिन्दू संत द्वारा सन् 1999 में चलाई आध्यात्मिक क्रांति इ.स. 2006 तक चलेगी। तब तक बहु संख्या में परमात्मा चाहने वाले भक्त तत्व ज्ञान समझ कर अनुयायी बन कर सुखी हो चुके होंगे। उसके पश्चात् उस स्थान की चैखट से भी बाहर लांघेगा। उसके पश्चात् 2006 से स्वर्ण युग का प्रारम्भ होगा।
नोटः प्रिय पाठकजन कृप्या पढ़ें निम्न भविष्यवाणी जो फ्रांस देश के वासी श्री नास्त्रोदमस ने की थी। जिस के विषय में मद्रास के एक ज्योतिशास्त्राी के. एसकृष्णमूर्ति ने कहा है कि श्री नास्त्रोदमस जी द्वारा सन् 1555 में लिखी भविष्यवाणियों का यथार्थ अनुवाद “सन् 1998 में महाराष्ट्र में एक ज्योतिष शास्त्राी करेगा। वह ज्योतिष शास्त्राी नास्त्रोदमस की भविष्यवाणियों का सांकेतिक भाषा का स्पष्टीकरण कर उसमें लिखित भविष्य घटनाओं का अर्थ देकर अपना भविष्य गं्रथ प्रकाशित करेगा।” उसी ज्योतिषशास्त्राी द्वारा यथार्थ अनुवादित की गई पुस्तक से अनुवादकर्ता के शब्दों में पढ़ें।
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(पृष्ठ 32ए 33 पर):-- ठहरो स्वर्ण युग (रामराज्य) आ रहा है। एक अधेड़ उम्र का औदार्य (उदार) अजोड़ महासत्ता अधिकारी भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर स्वर्ण युग लाएगा और अपने सनातन धर्म का पुनरूत्थान करके यथार्थ भक्ति मार्ग बताकर सर्वश्रेष्ठ हिन्दू राष्ट्र बनाएगा। तत्पश्चात् ब्रह्मदेश पाकिस्तान, बांगला, श्रीलंका, नेपाल, तिब्बत (तिबेत), अफगानिस्तान, मलाया आदि देशों में वही सार्वभौम धार्मिक नेता होगा। सत्ताधारी चांडाल चैकड़ियों पर उसकी सत्ता होगी वह नेता (शायरन) दुनिया को अधाप मालूम होना है, बस देखते रहो।
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(पृष्ठ 40 पर फिर लिखा है):-- ठहरो रामराज्य (स्वर्ण युग) आ रहा है। जून इ.स. 1999 से इ.स. 2006 तक चलने वाली उत्क्रांति में स्वर्णयुग का उत्थान होगा। हिन्दुस्तान में उदयन होने वाला तारणहार शायरन दुनिया में सुख समृद्धि व शान्ति प्रदान करेगा। नास्त्रोदमस जी ने निःसंदेह कहा है कि प्रकट होने वाला शायरन (ब्भ्ल्त्म्छ) अभी ज्ञात नहीं है लेकिन वह क्रिश्चियन अथवा मुस्लमान हरगिज नहीं है। वह हिन्दू ही होगा और मैं नास्त्रोदमस उसका अभी छाती ठोक कर गर्व करता हंू क्योंकि उस दिव्य स्वतंत्रा सूर्य शायरन का उदय होते ही सारे पहले वाले विद्वान कहलाने वाले महान नेताओं को निष्प्रभ होकर उसके सामने नम्र बनना पडे़गा। वह हिन्दुस्तानी महान तत्वदृष्टा संत सभी को अभूतपूर्व राज्य प्रदान करेगा। वह समान कायदा, समान नियम बनाएगा, स्त्राी-पुरुष में, अमीर-गरीब में, जाति और धर्म में कोई भेद-भाव नहीं रखेगा, किसी पर अन्याय नहीं होने देगा। उस तत्वदर्शी संत का सर्व जनता विशेष सम्मान करेगी। माता-पिता तो आदरणीय होते ही हैं परन्तु अध्यात्मिकता व पवित्राता के आधार पर उस शायरन (तत्वदर्शी संत) का माता-पिता से भी अलग श्रद्धा स्थान होगा। नास्त्रोदमस स्वयं ज्यू वंश का था तथा फ्रांस देश का नागरिक था। उसने क्रिश्चियन धर्म स्वीकार कर रखा था, फिर भी नास्त्रोदमस ने निःसंदेह कहा है कि प्रगट होने वाला शायरन केवल हिन्दू ही होगा। 3ण् (पृष्ठ 41 पर):-- सभी को समान कायदा, नियम, अनुशासन पालन करवा कर सत्य पथ पर लाएगा। मैं (नास्त्रोदमस) एक बात निर्विवाद सिद्ध करता हूं वह शायरन (धार्मिक नेता) नया ज्ञान आविष्कार करेगा। वह सत्य मार्ग दर्शन करवाने वाला तारणहार एशिया खण्ड में जिस देश के नाम महासागर (हिन्द महासागर) है। उसी नाम वाले (हिन्दुस्तान) देश में जन्म लेगा। वह ना क्रिश्चियन, ना मुस्लमान, ना ज्यू होगा वह निःसंदेह हिन्दू होगा। अन्य भूतपूर्व धार्मिक नेताओं से महतर बुद्धिमान होगा और अजिंकय होगा। (नास्त्रोदमस भविष्यवाणी के शतक 6 श्लोक 70 में महत्वपूर्ण संकेत संदेश बता रहा है) उस से सभी प्रेम करेगें। उसका बोल बाला रहेगा। उसका भय भी रहेगा। कोई भी अपकृत्य करना नहीं सोचेगा। उसका नाम व कीर्ति त्रिखण्ड में गुंजेगी अर्थात् आसमानों के पार उसकी महिमा का बोल-बाला होगा। अब तक अज्ञान निंद्रा में गाढ़े सोए हुए समाज को तत्व ज्ञान की रोशनी से जगाएगा। सर्व मानव समाज हड़बड़ा कर जागेगा। उसके तत्व ज्ञान के आधार से भक्ति साधना करेगा। सर्व समाज से सत्य साधना करवाएगा। जिस कारण सर्व साधकों को अपने आदि अनादि स्थान (सत्यलोक) में अपने पूर्वजों के पास ले जा कर वहां स्थाई स्थान प्राप्त करवाएगा (वारिस बनाएगा)। इस क्रुर भूमि (काल लोक) से मुक्त करवाएगा, यह शब्द बोल उठेगा।
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(पृष्ठ 42, 43):-- यह हिंसक क्रुरचन्द्र (महाकाल) कौन है, कहाँ है, यह बात शायरन (तत्वदर्शी संत) ही बताएगा। उस क्रुरचन्द्र से वह ब्भ्ल्त्म्छ . शायरन ही मुक्त करवाएगा। शायरन (तत्वदर्शी संत) के कारकिर्द में इस भूतल की पवित्रा भूमि पर (हिन्दुस्तान में) स्वर्णयुग का अवतरण होगा, फिर वह पूरे विश्व में फैलेगा। उस विश्व नेता और उसके सद्गुणों की, उसके बाद भी महिमा गाई जाएगी। उसके मन की शालीनता, विनम्रता, उदारता का इतना रेल-पेल बोल बाला होगा कि इससे पहले नमूद किए हुए शतक 6 श्लोक 70 के आखिरी पंक्ति में किया हुआ उल्लेख कि अपना शब्द खुद ही बोल उठता है और शायरन की ही जुबान बोल रही है कि ‘‘शायरन अपने बारे में बस तीन ही शब्द बोलता है ’’ एक विजयी ज्ञाता’’ इसके साथ और विशेषण न चिपकाएं मूझे मंजूर नहीं होगा। (यह पृष्ठ 42 वाला 4 उल्लेख वाणी शतक 6 श्लोक 71 है) हिन्दू शायरन अपने ज्ञान से दैदिप्यमान उतंुग ऊंचा स्वरूप का विधान (तत्वज्ञान) फिर से बिना शर्त उजागर करवाएगा। (ब्ीलतमद ूपसस इम बीपम िव िजीम ूवतसकए स्वअमक मिंतमक ंदक नदबींससमदहमक) और मानवी संस्कृती निर्धोक संवारेगा, इसमें संदेह नहीं। अभी किसी को मालूम नहीं, लेकिन अपने समय पर जैसे नरसिंह अचानक प्रगट हुआ था ऐसे ही वह विश्व महान नेता (ळतमंज ब्ीलतमद) अपने तर्कशुद्ध, अचूक आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति तेज से विख्यात होगा। मैं (नास्त्रोदमस) अचंभित हूँ। मैं ना उसके देश (जहां से अवतरित होगा अर्थात् सतलोक देश) को तथा ना उसको जानता हूँ, मैं उसे सामने देख भी रहा हूँ, उसकी महिमा का शब्द बद्ध में कोई मिसाल नहीं कर सकता। बस उसे ळतमंज ब्ीलतमद (महान धार्मिक नेता) कहता हूँ अपने धर्म बंधुओं की सद्द कालीन समस्या से दयनीय अवस्था से बैचेन होता हुआ स्वतंत्रा ज्ञान सूर्य का उदय करता हुआ अपने भक्ति तेज से जग का तारणहार 5वें शतक (20 वीं सदी के अंतिम वर्ष में) के अंत में ई.स. 1999 अधेड़ उम्र का विश्व का महान नेता जैसे तेजस्वी सिंह मानव (ळतमंज ब्ीलतमद) उदिवग्न अवस्था से चोखट लांघता हुआ मेरे (नास्त्रोदमस के) मन का भेद ले रहा है और मैं उसका स्वागत करता हुआ आश्चर्य चकित हो रहा हूँ, उदास भी हो रहा हूं, क्योंकि उसका दुनिया को ज्ञान न होने से मेरा शायरन (तत्वदर्शी संत) उपेक्षा का पात्रा बन रहा है।
मेरी (नास्त्रोदमस की) चितभेदक भविष्यवाणी की और उस वैश्विक सिंह मानव की उपेक्षा ना करें। उसके प्रकट होने पर तथा उसके तेजस्वी तत्व ज्ञान रूपी सूर्य उदय होने से आदर्शवादी श्रेष्ठ व्यक्तियों का पुनर्उत्थान तथा स्वर्ण युग का प्रभात शतक 6 में आज ई.स. 1555 से 450 वर्ष बाद अर्थात् 2006 में (1555़450त्र2005 के पश्चात् अर्थात् 2006 में) शुरूआत होगी। इस कृतार्थ शुरूवात का मैं (नास्त्रोदमस) दृष्टा हो रहा हूँ।
- (पृष्ठ 44, 45, 46):-- (नास्त्रोदमस शतक 1 श्लोक 50 में फिर प्रमाणित कर रहा है) तीन ओर से सागर से घिरे द्वीप (हिन्दुस्तान देश) में उस महान संत का जन्म होगा उस समय तत्व ज्ञान के अभाव से अज्ञान अंधेरा होगा। नैतिकता का पतन होकर हाहाकार मचा होगा। वह शायरन (धार्मिक नेता) गुरुवर अर्थात् गुरुजी को वर (श्रेष्ठ) मान कर अपनी साधना करेगा तथा करवाएगा। वह धार्मिक नेता (तत्वदर्शी सन्त) अपने धर्म बल अर्थात् भक्ति की शक्ति से तथा तत्वज्ञान द्वारा सर्व राष्ट्रों को नतमस्तक करेगा। एशिया में उसे रोकना अर्थात् उस के प्रचार में बाधा करना पागलपन होगा। (शतक 1 श्लोक 50)
(नोटः- नास्त्रोदमस की भविष्यवाणी फ्रांस देश की भाषा में लिखी गई थी। बाद में एक पाल ब्रन्टन नामक अंग्रेज ने इस नास्त्रोदमस की भविष्यवाणी ‘‘सैन्चयुरी ग्रंथ’’ को फ्रांस में कुछ वर्ष रह कर समझा, फिर इंग्लिश भाषा में लिखा। उसने गुरुवर शब्द को (बृहस्पति) गुरुवार अर्थात् थ्रस्डे जान कर लिख दिया की वह अपनी पूजा का आधार बृहस्पत्तिवार को बनाएगा। वास्तव में गुरुवर शब्द है जिसका अर्थ है सर्व गुरुओं में जो एक तत्वज्ञाता श्रेष्ठ है तथा गुरु को मुख्य मानकर साधना करना होता है। वेद भाषा में बृहस्पति का भावार्थ सर्वोच्च स्वामी अर्थात् परमेश्वर, दूसरा अर्थ बृहस्पति का जगतगुरु भी होता है। जगत गुरु तथा परमेश्वर भी बृहस्पति का बोध है।)
वह अधेड़ उम्र में तत्वज्ञान का ज्ञाता तथा ज्ञेय होकर त्रिखंड में कीर्ति मान होगा। मुझ (नास्त्रोदमस) को उसका नया उपाय साधना मंत्रा ऐसा जालिम मालूम हो रहा है जैसे सर्प को वश करने वाला गारड़ू मंत्रा से महाविषैले सर्प को वश कर लेता है। वह नया उपाय, नया कायदा बनाने वाला तत्ववेता दुनिया के सामने उजागर होगा उसी को मैं (नास्त्रोदमस) अचंभित होकर ’’गे्रट शायरन‘‘ बता रहा हूं उसके ज्ञान के दिव्य तेज के प्रभाव से उस द्वीपकल्प (भारतवर्ष) में आक्रामक तूफान, खलबली मचेगी अर्थात् अज्ञानी संतों द्वारा विद्रोह किया जाएगा। उसको शांत करने का उपाय भी उसी को मालूम होगा। जैसे जालिम सर्पनी को वश किया जाता है। वह सिंह के समान शक्तिशाली व तेजपूंज व्यक्तित्व का होगा। यह मैं नास्त्रोदमस स्पष्ट शब्दों में बता रहा हूं कि वह कुण्डलीनी शक्ति धारण किए हुए है। आगे स्पष्ट शब्द यह है कि जिस समय वह शायरन जिस महासागर में द्वीपकल्प है उसी देश के नाम पर महासागर का भी नाम है (हिन्दमहासागर)। विशेषता यह होगी की उस देश की भुजंग सर्पिनी शक्ति (कुण्डलनी शक्ति) का पूर्ण परिचित ज्तनम डंेजमत होगा। वह ब्ीलतमद(महान धार्मिक नेता) उदारमत वाला, कृपालु,दयालु, दैदिप्यमान, सनातन साम्राज्य अधिकारी, आदि पुरूष (सत्यपुरूष) का अनुयाई होगा। उसकी सत्ता सार्वभौम होगी उसकी महिमा, उपाय गुरु श्रद्धा, गुरु भक्ति अर्थात् गुरु बिना कोई साधना सफल नहीं होती, इस सिद्धांत को दृढ़ करेगा। तत्वज्ञान का सत्संग करके प्रथम अज्ञान निंद्रा में सोए अपने धर्म बंधुओं (हिन्दुओं) को जागृत करके अंधविश्वास के आधार पर साधना कर रहे श्रद्धालुओं को शास्त्राविधि रहित साधना का बुरका फाड़ कर गूढ़ गहरे ज्ञान (तत्वज्ञान) का प्रकाश करेगा। अपने सनातन धर्म का पालन करवा कर समृद्ध शांति का अधिकारी बनाएगा। तत् पश्चात् उसका तत्वज्ञान सम्पूर्ण विश्व में फैलेगा, उस (महान तत्वदर्शी संत) के ज्ञान की कोई भी बराबरी नहीं कर सकेगा अर्थात् उसका कोई भी सानी नहीं होगा। उसके गूढ़ ज्ञान (तत्वज्ञान) के सामने सूर्य का तेज भी कम पड़ेगा। इसलिए मैं (नास्त्रोदमस) वैश्विक सिंह महामानव इतना महान होगा कि मैं उसकी महिमा को शब्दों में नहीं बांध पांउगा। मैं (नास्त्रोदमस) उस गे्रट शायरन को देख रहा हूँ।
उपरोक्त विवरण का भावार्थ है कि ”उस विश्व नेता को 50 वर्ष की आयु में तत्वज्ञान शास्त्रों में प्रमाणित होगा अर्थात् वह 50 वर्ष की आयु में सन् 2001 में सर्व धर्मो के शास्त्रों को पढ़ कर उनका ज्ञाता (तत्वज्ञानी) होगा तथा उसके पश्चात् उस तत्वज्ञान का ज्ञेय (जानने योग्य परमेश्वर का ज्ञान अन्य को प्रदान करने वाला) होगा तथा उसका अध्यात्मिक जन्म अमावस्या को होगा। उस समय उसकी आयु तरुण अर्थात् 16ए 20ए 25 वर्ष की नहीं होगी, वह प्रौढ़ होगा तथा जब वह प्रसिद्ध होगा तब उसकी आयु पचास से साठ साल के मध्य होगी।“
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(पृष्ठ 46ए 47):-- नास्त्रोदमस कहता है कि निःसंदेह विश्व में श्रेष्ठ तत्वज्ञाता (ग्रेट शायरन) के विषय में मेरी भविष्यवाणी के शब्दा शब्द को किसी नेताओं पर जोड़ कर तर्क-वितर्क करके देखेगें तो कोई भी खरा नहीं उतरेगा। मैं (नास्त्रोदमस) छाती ठोक कर शब्दा शब्द कह रहा हूँ मेरा शायरन का कर्तृत्व और उसका गूढ़-गहरा ज्ञान (तत्वज्ञान) ही सर्व की खाल उतारेगा, बस 2006 साल आने दो। इस विधान का एक-एक शब्द खरा-खरा समर्थन शायरन ही देगा।
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(पृष्ट 52):-- नास्त्रोदमस ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि 21 वीं सदी के प्रारम्भ में दुनिया के क्षितिज पर ‘शायरन‘ का उदय होगा। जो भी बदलाव होगा वह मेरी (नास्त्रोदमस की) इच्छा से नहीं बल्कि शायरन की आज्ञा से नियती की इच्छा से सारा बदलाव होगा ही होगा। उस में से नया बदलाव मतलब हिन्दुस्तान सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होगा। कई सदियों से ना देखा ऐसा हिन्दुओं का सुख साम्राज्य दृष्टिगोचर होगा। उस देश में पैदा हुआ धार्मिक संत ही तत्वदृष्टा तथा जग का तारणहार, जगज्जेता होगा। एशिया खण्डों में रामायण, महाभारत आदि का ज्ञान जो हिन्दुओं में प्रचलित है उससे भी भिन्न आगे का ज्ञान उस तत्वदर्शी संत का होगा। वह सतपुरुष का अनुयाई होगा। वह एक अद्वितीय संत होगा।
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(पृष्ठ 74):-- बहुत सारे संत नेता आएगें और जाएगें, सर्व परमात्मा के द्रोही तथा अभिमानी होगें। मुझे (नास्त्रोदमस को) आंतरिक साक्षात्कार उस शायरन का हुआ है। नास्त्रोदमस ने कहा है कि उस महान हिन्दू धार्मिक नेता को न पहचानकर उस पर राष्ट्रद्रोह का भी आरोप लगाया जाएगा। मुझे (नास्त्रोदमस को) दुख है कि वह महान धार्मिक नेता (ब्भ्ल्त्म्छ) उपेक्षा का पात्रा बनाया जाएगा, परंतु हिन्दुस्तान का हिन्दू संत आगामी अंधकारी (भक्तिज्ञान के अभाव से अंधे) प्रलयकारी (स्वार्थ वश भाई-भाई को मार रहा है, बेटा-बाप से विमुख है, हिन्दू-हिन्दू का शत्राु, मुस्लमान-मुस्लमान का दुश्मन बना है) धुंधुकारी (माया की दौड़ में बेसब्रे समाज) जगत को नया प्रकाश देने वाला सर्वश्रेष्ठ जगज्जेता धार्मिक विश्व नेता की अपनी उदासी के सिवा कोई अभिलाषा नहीं होगी अर्थात् मानव उद्धार के लिए चिन्ता के अतिरिक्त कुछ भी स्वार्थ नहीं होगा। ना अभिमान होगा, यह मेरी भविष्यवाणी की गौरव की बात होगी की वास्तव में वह तत्वदर्शी संत संसार में अवश्य प्रसिद्ध होगा। उसके द्वारा बताया ज्ञान सदियों तक छाया रहेगा। वह संत आधुनिक वैज्ञानिकों की आँखें चकाचैंध करेगा ऐसे आध्यात्मिक चमत्कार करेगा कि वैज्ञानिक भी आश्चर्य में पड़ जायेंगे। उसका सर्व ज्ञान शास्त्रा प्रमाणित होगा। मैं (नास्त्रोदमस) कहता हूँ कि बुद्धिवादी व्यक्ति उसकी उपेक्षा न करें। उसे छोटा ज्ञानदीप न समझें, उस तत्ववेता महामानव (शायरन को) सिहांसनस्थ करके (आसन पर बैठाकर) उसको आराध्य देव मानकर पूजा करें। वह आदि पुरुष (सतपुरुष) का अनुयाई दुनिया का तारणहार होगा।
”संत रामपाल जी महाराज के समर्थन में अन्य भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ“
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इंग्लैण्ड के ज्योतिषी ‘कीरो’ ने सन् 1925 में लिखी पुस्तक में भविष्यवाणी की है, बीसवीं सदी अर्थात् सन् 2000 ई. के उत्तरार्द्ध में (सन् 1950 के पश्चात् उत्पन्न सन्त) ही विश्व में ‘एक नई सभ्यता’ लाएगा जो सम्पूर्ण विश्व में फैल जावेगी। भारत का वह एक व्यक्ति सारे संसार में ज्ञानक्रांति ला देगा।
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भविष्यवक्ता ‘‘श्री वेजीलेटिन’’ के अनुसार 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में, विश्व में आपसी प्रेम का अभाव, मानवता का Ðास, माया संग्रह की दौड़, लूट व राज नेताओं का अन्यायी हो जाना आदि-2 बहुत से उत्पात देखने को मिलेगें। परन्तु भारत से उत्पन्न हुई शांति भ्रातृत्व भाव पर आधारित नई सभ्यता, संसार में-देश, प्रांत और जाति की सीमाऐं तोड़कर विश्वभर में अमन व चैन उत्पन्न करेगी।
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अमेरिका की महिला भविष्यवक्ता ‘‘जीन डिक्सन’’ के अनुसार 20 वीं सदी के अंत से पहले विश्व में एक घोर हाहाकार तथा मानवता का संहार होगा। वैचारिक युद्ध के बाद आध्यात्मिकता पर आधारित एक नई सभ्यता सम्भवतः भारत के ग्रामीण परिवार के व्यक्ति के नेतृत्व में जमेगी और संसार से युद्ध को सदा-सदा के लिए विदा कर देगी।
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अमेरिका के ‘‘श्री एण्डरसन’’ के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले या 21 वीं सदी के प्रथम दशक में विश्व में असभ्यता का नंगा तांडव होगा। इस बीच भारत के एक देहात का एक धार्मिक व्यक्ति, एक मानव, एक भाषा और झण्डा की रूपरेखा का संविधान बनाकर संसार को सदाचार, उदारता, मानवीय सेवा व प्यार का सबक देगा। यह मसीहा सन् 1999 तक विश्व में आगे आने वाले हजारों वर्षों के लिए धर्म व सुख-शांति भर देगा।
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हाॅलैण्ड के भविष्यदृष्टा ‘‘श्री गेरार्ड क्राइसे’’ के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले या 21 वीं सदी के प्रथम दशक में भयंकर युद्ध के कारण कई देशों का अस्तित्व ही मिट जावेगा। परन्तु भारत का एक महापुरूष सम्पूर्ण विश्व को मानवता के एक सूत्रा में बांध देगा व हिंसा, फूट-दुराचार, कपट आदि संसार से सदा के लिए मिटा देगा।
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अमेरिका के भविष्वक्ता ‘‘श्री चाल्र्स क्लार्क’’ के अनुसार 20 वीं सदी के अन्त से पहले एक देश विज्ञान की उन्नति में सब देशों को पछाड़ देगा परन्तु भारत की प्रतिष्ठा विशेषकर इसके धर्म और दर्शन से होगी, जिसे पूरा विश्व अपना लेगा, यह धार्मिक क्रांति 21 वीं सदी के प्रथम दशक में सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करेगी और मानव को आध्यात्मिकता पर विवश कर देगी।
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हंगरी की महिला ज्योतिषी ‘‘बोरिस्का’’ के अनुसार सन् 2000 ई. से पहले-पहले उग्र परिस्थितियों हत्या और लूटमार के बीच ही मानवीय सद्गुणों का विकास एक भारतीय फरिश्ते के द्वारा भौतिकवाद से सफल संघर्ष के फलस्वरूप होगा, जो चिरस्थाई रहेगा, इस आध्यात्मिक व्यक्ति के बड़ी संख्या में छोटे-छोटे लोग ही अनुयायी बनकर भौतिकवाद को आध्यात्मिकता में बदल देगें।
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फ्रांस के डाॅ. जूलर्वन के अनुसार सन् 1990 के बाद यूरोपीय देश भारत की धार्मिक सभ्यता की ओर तेजी से झूकेंगे। सन् 2000 तक विश्व की आबादी 640 करोड़ के आस-पास होगी। भारत से उठी ज्ञान की धार्मिक क्रांति नास्तिकता का नाश करके आँधी तूफान की तरह सम्पूर्ण विश्व को ढक लेगी। उस भारतीय महान आध्यात्मिक व्यक्ति के अनुयाई देखते-देखते एक संस्था के रूप में ‘आत्मशक्ति’ से सम्पूर्ण विश्व पर प्रभाव जमा लेंगे।
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फ्रांस के ‘‘नास्त्रोदमस’’ के अनुसार विश्व भर में सैनिक क्रांतियों के बाद थोड़े से ही अच्छे लोग संसार को अच्छा बनाऐंगे। जिनका महान् धर्मनिष्ठ विश्वविख्यात नेता 20 वीं सदी के अन्त और 21 वीं सदी की शुरूआत में किसी पूर्वी देश से जन्म लेकर भ्रातृवृत्ति व सौजन्यता द्वारा सारे विश्व को एकता के सूत्रा में बांध देगा। (नास्त्रोदमस शतक 1 श्लोक 50 में प्रमाणित कर रहा है) तीन ओर से सागर से घिरे द्वीप में उस महान संत का जन्म होगा। उस समय तत्व ज्ञान के अभाव से अज्ञान अंधेरा होगा। नैतिकता का पतन होकर, हाहाकार मचा होगा। वह शायरन (धार्मिक नेता) गुरुवर अर्थात् गुरुजी को वर (श्रेष्ठ) मान कर अपनी साधना करेगा तथा करवाएगा। वह धार्मिक नेता (तत्वदर्शी सन्त) अपने धर्म बल अर्थात् भक्ति की शक्ति से तथा तत्वज्ञान द्वारा सर्व राष्ट्रों को नतमस्तक करेगा। एशिया में उसे रोकना अर्थात् उस के प्रचार में बाधा करना पागलपन होगा। (शतक 1 श्लोक 50) (सेंचुरी-प्ए कन्ना-50)
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इजरायल के प्रो. हरार के अनुसार भारत देश का एक दिव्य महापुरूष मानवतावादी विचारों से सन् 2000 ई. से पहले-पहले आध्यात्मिक क्रांति की जड़े मजबूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा, पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। जो एक धार्मिक संगठन के आश्रित होगें।
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नार्वे के श्री आनन्दाचार्य की भविष्यवाणी के अनुसार, सन् 1998 के बाद एक शक्तिशाली धार्मिक संस्था भारत में प्रकाश में आवेगी, जिसके स्वामी एक गृहस्थ व्यक्ति की आचार संहिता का पालन सम्पूर्ण विश्व करेगा। धीरे-धीरे भारत औद्योगिक, धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से विश्व का नेतृत्व करेगा और उसका विज्ञान (आध्यात्मिक तत्वज्ञान) ही पूरे विश्व को मान्य होगा।
उपरोक्त भविष्यवाणियों के अनुसार ही आज विश्व में घटनाएँ घट रही हैं। युग परिवर्तन प्रकृति का अटल सिद्धांत है। वैदिक दर्शन के अनुसार चार युगों- सतयुग, त्रोतायुग, द्वापर और कलयुग की व्यवस्था है। जब पृथ्वी पर पापियों का एक छत्रा साम्राज्य हो जाता है तब भगवान पृथ्वी पर मानव रूप में प्रकट होता है।
मानवता के इस पूर्ण विकास का काम अनादि काल से भारत ही करता आया है। इसी पुण्यभूमि पर अवतारों का अवतरण अनादि काल से होता आ रहा है। लेकिन कैसी विडम्बना है कि ऋषि-मुनियों महापुरूषों व अवतारों के जीवन काल में उस समय के शासन व्यवस्था व जनता ने उनकी दिव्य बातों व आदर्शों पर ध्यान नहीं दिया और उनके अन्तर्ध्यान होने पर दूगने उत्साह से उनकी पूजा शुरू कर पूजने लग गये। यह भी एक विडम्बना कि हम जीवंत और समय रहते उनकी नहीं मानते अपितु उनका विरोध व अपमान ही करते रहे हैं। कुछ स्वार्थी तत्व जनता को भ्रमित करके परम सन्त को बदनाम करके बाधक बनते हैं। यह उक्ति हर युग में चरितार्थ होती आई है, और आज भी हो रही है।
जो महापुरूष हजारों कष्टों को सहन कर अपनी तपस्या व सत्य पर अडिग रहता है उनकी बात असत्य नहीं हो सकती। सत्य पर अडिग रहते हुए ईसा मसीह ने अपने शरीर में कीलों की भयंकर पीड़ा को झेला, सुकरात ने जहर का प्याला पिया, श्री राम तथा श्री कृष्ण जी को भी यातनाओं का शिकार होना पड़ा।
ईसा मसीह ने कहा था कि- ‘‘पृथ्वी और आकाश टल सकते हैं, सूर्य का अटल सिद्धांत है उदय-अस्त, वो भी निरस्त हो सकता है, लेकिन मेरी बातें कभी झूठी नहीं हो सकती है।’’
सज्जनों ! यदि आज के करोड़ों मानव उस परमतत्व के ज्ञाता सन्त को ढूंढकर, स्वीकार कर, उनके बताए पथानुसार, अपनी जीवन शैली को सुधार लेंगे तो पूरे विश्व में सद्भावना, आपसी भाई-चारा, दया तथा सद्भक्ति का वातावर्ण हो जाएगा। वर्तमान का मानव बुद्धिजीवी है इसलिए उस सन्त के विचारों को अवश्य स्वीकार करेगा तथा धन्य होगा। वह सन्त है जगत् गुरु तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज। कृप्या पढ़ें सन्त रामपाल जी महाराज की संक्षिप्त जीवनी जो सर्व भविष्यवाणियों पर खरी उतर रही है।