सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है
रामानंद जी के शरीर से आधा खून और आधा दूध निकला हुआ था। जब साहेब कबीर से स्वामी रामानन्द जी ने कारण पूछा तो साहेब ने बताया कि स्वामी जी आपके अन्दर यह थोड़ी-सी कसर और रह गई है कि अभी तक आप हिन्दू और मुसलमान को दो समझते हो। इसलिए आधा खून और आधा दूध निकला है। आप अन्य जाति वालों को अपना साथी समझ चुके हो। यह जीव सभी एक हैं। आप तो जानीजान हो। आप तो लीला कर रहे हो अर्थात् उसको गोल-मोल भी कर दिया और समझा भी गए।
कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।1।।
कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।2।।
कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।3।।
कबीर-काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।4।।
कबीर-एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सार तत्व ले जान।।5।।
कबीर-सब काहू का लीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर विचार।।6।।
कबीर-राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।।7।।
कबीर-राम कबीर एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।8।।
रामानंद जी ने सिकंदर को सीने से लगाया तथा उसके बाद हिन्दू तथा मुसलमान को तथा सर्व जाति व धर्मों के व्यक्तियों को प्रभु के बच्चे जानकर प्यार देने लगे तथा अपने औपचारिक शिष्य वास्तव में परमेश्वर कबीर साहेब जी का धन्यवाद किया कि आपने मेरा अज्ञान पूर्ण रूप से दूर कर दिया। हम एक पिता प्रभु की संतान हैं, मुझे दृढ़ विश्वास हो गया। दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के साथ उनका धार्मिक गुरु शेखतकी भी बनारस गया था। वह रैस्ट हाऊस(विश्राम गृह) में ही रूका था। क्योंकि शेखतकी हिन्दू संतों से बहुत ईष्र्या करता था तथा उन्हें व उनके शिष्यों को काफिर कहता था। इसलिए स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में जाने से इंकार कर दिया था। राजा सिकंदर लोधी के साथ स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में नहीं गया था।
महाराजा सिकंदर ने विश्राम गृह में आकर परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा अपने असाध्य रोग का निवारण केवल आशीर्वाद मात्र से करने तथा स्वामी रामानन्द जी को पुनर् जीवित करने की कथा खुशी के साथ अपने धार्मिक पीर शेखतकी को बताई तथा कहा कि पीर जी मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ। मेरे किसी अंग में कोई पीड़ा नहीं है। रात्रि का समय था। प्रभु कबीर साहेब जी सुबह आने की कहकर अपनी कुटिया पर चले गये थे।
शेखतकी ने बादशाह के मुख से अन्य संत की भूरी-भूरी प्रशंसा सुनी तो अन्दर ही अन्दर जल-भुन गया। रात भर करवटें बदलता रहा। परमेश्वर कबीर साहेब जी को नीचा दिखाने की योजना बनाता रहा।