श्री नानक जी द्वारा श्राद्ध भ्रम खण्डन
अन्य उदाहरण:- सिक्ख धर्म के प्रवर्तक श्री नानक देव साहेब जी की जीवनी में एक घटना ऐसी है जिसका वर्णन करता हूँ जो पवित्र पुस्तक ‘‘भाई बाले वाली जन्म साखी श्री नानक देव’’ में लिखी है जिसकी हैडिंग है:-
‘‘आगे साखी दुनिचंद खत्री नाल होई’’
संक्षिप्त प्रकरण इस प्रकार है:-
श्री नानक जी को परमात्मा (परम अक्षर ब्रह्म) बेई नदी पर उस समय मिले थे, जिस समय श्री नानक जी सुलतानपुर शहर से सुबह के समय प्रतिदिन की तरह बेई नदी में स्नान करने के लिए गए थे। अन्य नगरवासी भी स्नान कर रहे थे। उस समय परमेश्वर कबीर जी बाबा जिंदा के वेश में आए और श्री नानक जी के साथ दरिया में स्नान करने के बहाने प्रवेश हुए। अन्य उपस्थित व्यक्ति देख रहे थे। दोनों ने दरिया में डुबकी लगाई, परंतु बाहर नहीं आए। दोनों को दरिया में डूबा मान लिया गया था। परमेश्वर जी श्री नानक जी की आत्मा को लेकर (शरीर को दूर जंगल में छोड़कर) अपने साथ अपने निवास स्थान सतलोक (सच्चखण्ड) में ले गए। तीन दिन तक काल ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्डों, अक्षर पुरूष के सात शंख ब्रह्माण्डों तथा अपने सतलोक के असंख्य ब्रह्माण्डों की स्थिति को आँखों दिखाया, यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान बताया तथा यथार्थ मोक्ष मंत्र सतनाम (जो दो अक्षर का है जिसमें एक ॐ मंत्र है तथा दूसरा गुप्त है जो उपदेशी को बताया जाता है।) से मुक्ति होना बताया। फिर एक नाम (सारनाम) का विशेष योगदान मानव के मोक्ष की साधना में है, उससे परिचित कराया तथा सतनाम और सारनाम को कलयुग के पाँच हजार पाँच सौ पाँच (5505) वर्ष बीत जाने तक गुप्त रखने की आज्ञा दी। श्राद्ध-पिण्डदान आदि कर्मकाण्ड को व्यर्थ बताया और स्वर्ग-नरक को दिखाया। तीसरे दिन श्री नानक जी की आत्मा को शरीर में प्रवेश करके अंतध्र्यान हो गए। उसके पश्चात् श्री नानक जी ने अपने दो शिष्यों ‘‘भाई बाला तथा मर्दाना’’ को साथ लेकर प्रभु से प्राप्त यथार्थ ज्ञान व आँखों देखी ऊपर के लोकों की व्यवस्था का प्रचार करने के उद्देश्य से देश-प्रदेश में बारह वर्ष भ्रमण किया। उसी दौरान लाहौर में एक धनी व्यक्ति दुनिचन्द खत्री की प्रार्थना पर उनके घर गए। उस दिन सेठ दुनिचन्द खत्री ने अपने पिता जी का श्राद्ध किया था। कई ब्राह्मणों को भोजन करवाया तथा वस्त्र व हजारों रूपये दक्षिणा दी थी। श्री नानक जी ने पूछा कि हे दुनिचन्द! आज किस उपलक्ष्य में इतने पकवान बनाऐ हैं। दुनिचन्द ने बताया कि महाराज जी! आज मेरे पिता जी का श्राद्ध किया है। श्री नानक जी ने पूछा कि आपके पिता जी कहाँ है? उत्तर दुनिचन्द का कि वे स्वर्गवासी हो चुके हैं। श्राद्ध करने से उनको एक वर्ष तक स्वर्ग में भूख नहीं लगती। यह बात सुनकर श्री नानक जी ने कहा कि हे दुनिचन्द! आपको आपके अज्ञानी गुरूओं ने भ्रमित कर रखा है। आपका पिता जी तो बाघ (lion) के शरीर को प्राप्त होकर उस जंगल में एक वृक्ष के नीचे भूख से व्याकुल बैठा है। यदि मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो जाँच कर सकते हैं। तू एक व्यक्ति का भोजन तैयार कर, उस जंगल में जा, तेरी दृष्टि पड़ते ही मेरे आशीर्वाद से उस बाघ (सिंह) को मनुष्य बुद्धि आ जाएगी। उसको अपना पूर्व जन्म भी याद आ जाएगा। दुनिचन्द जी को श्री नानक जी पर पूर्ण विश्वास था कि इन्होंने जो बोल दिया, वह सिद्ध है। इस महात्मा में लोग बड़ी शक्ति बताते हैं।
दुनीचन्द सेठ एक व्यक्ति का भोजन जो श्राद्ध के बाद बचा था, लेकर उस बताए जंगल में उसी झाड़ के पास गया तो एक सिंह दिखाई दिया जो दुनिचन्द की ओर कुत्ते की तरह दुम हिला-हिलाकर भाव प्रकट करने लगा कि मैं कोई हानि नहीं करूंगा, आ जा मेरे पास। दुनिचन्द सेठ ने भोजन बाघ के सामने थाली में रख दिया। सर्व भोजन बाघ खा गया। दुनिचन्द ने पूछा कि हे पिता जी! आप तो बड़े धर्म-कर्म करते थे। आप तो सदा शाकाहारी रहे थे। आपकी यह दशा कैसे हुई? श्री नानक महाराज जी की शक्ति से सिंह ने कहा कि बेटा! जब मेरे प्राण निकल रहे थे, उसी समय साथ वाले मकान में माँस पकाया जा रहा था। उसकी गंध मेरे तक आई, मेरे मन में माँस खाने की इच्छा हुई। उसी समय मेरे प्राण निकल गए। जिस कारण से मुझे शेर का शरीर मिला। बेटा दुनिचन्द! आप किसी पूर्ण संत से दीक्षा लेकर अपने जीव का कल्याण करा लेना। मानव जीवन बड़ी कठिनता से मिलता है। यह कहकर शेर जंगल की ओर गहरा चला गया। दुनिचन्द ने उन अज्ञानी धर्मगुरूओं को धिक्कारा कि सबको भ्रमित कर रहे हैं। अब विश्वास हुआ कि श्राद्ध करने से कोई लाभ मृतक को नहीं मिलता। घर आकर श्री नानक जी के चरणों में गिरकर अपने कल्याण के लिए यथार्थ भक्ति का ज्ञान तथा मंत्र लेकर आजीवन स्मरण किया तथा सर्व अंधविश्वास वाली साधना त्याग दी जो शास्त्रों के विरूद्ध कर रहा था। मानव जीवन सफल किया।