सत्संग न सुनने से सर्वनाश हुआ

कबीर, राम-नाम कड़वा लागै, मीठे लागें दाम।
दुविधा में दोनों गए, माया मिली ना राम।।

शब्दार्थ:- सत्संग न सुनने वाले मानव (स्त्री/पुरूष) को परमात्मा के विधान का ज्ञान नहीं होता। जिस कारण से उसको परमात्मा के विषय में चर्चा भी अच्छी नहीं लगती। धन संग्रह करना अच्छा लगता है। जिस कारण से उसको दोनों से हाथ धोने पड़ते हैं यानि उसे न तो परमात्मा मिलता है और मृत्यु के पश्चात् धन भी यहीं रह गया। उसके दोनों ही हाथ से निकल गए।

पंजाब प्रान्त में मेरे (रामपाल दास के) पूज्य गुरूदेव जी का आश्रम ’’तलवण्डी भाई की’’ नामक कस्बे में है। उनके सतलोक चले जाने के पश्चात् उनका दास (रामपाल दास) महीने के दूसरे रविवार को सत्संग करने जाता था। मेरे गुरूदेव जी के कुछ शिष्य तलवण्डी भाई की कस्बे के सेठ भी हैं। उनका रिश्तेदार शुक्रवार को एक वृद्धा की मौत पर शोक व्यक्त करने सपरिवार आया था। वह शनिवार 2 बजे बाद दोपहर को अपने घर चण्डीगढ़ जाने लगा तो सत्संगी रिश्तेदारों ने उनसे कहा कि आज-आज और रूक जाओ, कल सुबह 8.10 बजे सत्संग होगा। आप सत्संग सुनकर प्रसाद लेकर जाना। रिश्तेदार ने कहा कि कल रविवार को एक पार्टी आएगी। दो बजे उससे मेरा अनुबंध होना है जिसमें मुझे पाँच लाख का लाभ होगा। यह घटना सन् 1998 की है। सत्संगियों ने आग्रह किया कि आप रविवार को ग्यारह बजे सुबह चलोगे तो भी आप समय पर पहुँच सकते हो। फोन करके उन्हें सूचित कर देंगे कि वे कुछ देर से आ जाऐंगे। परंतु वह नहीं माना। उसके परिवार में कुल चार सदस्य थे, पत्नी तथा बेटा-बेटी। चारों अपनी मारूति कार में सवार होकर चण्डीगढ़ के लिए शनिवार को रवाना हो गए। चण्डीगढ़ से कुछ पहले अम्बाला शहर के पास एक बजरी का भरा ट्रक खराब हालत में खड़ा था। उसके पिछले पहिये निकाल रखे थे। जैक लगा रखा था। माया के लोभी को केवल पाँच लाख का लाभ ही नजर आ रहा था। कार पूरी गति से चला रहा था। कार उस बजरी के भरे ट्रक के नीचे घुस गई, जैक हट गया। पूरा परिवार कुचला गया। बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि यदि सत्संग सुनने के लिए रूक जाता तो यह नाश नहीं होता। माया के बिना तो काम चल जाता, परंतु काया के बिना नहीं चलता क्योंकि शरीर है तो परमात्मा की भक्ति करके आत्म-कल्याण कराया जा सकता है। परमेश्वर कबीर जी ने सतर्क किया है किः-

कबीर, रामनाम कड़वा लगै, मीठे लागें दाम।
दुविधा में दोनों गए, माया मिली ना राम।।

शब्दार्थ:- सत्संग न सुनने वाले मानव (स्त्राी/पुरूष) को परमात्मा के विधान का ज्ञान नहीं होता। जिस कारण से उसको परमात्मा के विषय में चर्चा भी अच्छी नहीं लगती। धन संग्रह करना अच्छा लगता है। जिस कारण से उसको दोनों से हाथ धोने पड़ते हैं यानि उसे न तो परमात्मा मिलता है और मृत्यु के पश्चात् धन भी यहीं रह गया। उसके दोनों ही हाथ से निकल गए।

इसलिए हे भाई-बहनो! सत्संग की ओर रूचि करो। आत्म-कल्याण कराओ और जीवन की राह को आसान बनाओ।

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