क्या कहता है पाक कुरआन

Kya Kehta hai Pak Quran

(अध्याय नं. 1)

  1. क्या कहता है पाक कुरआन
  2. पाक कुरआन से ज्ञान
  3. बाईबल तथा कुरआन का ज्ञानदाता एक है
  4. पवित्र कुरआन में अच्छी शिक्षा
  5. कुरआन का ज्ञान देने वाला अपनी महिमा बताता है
  6. कुरआन ज्ञानदाता अपने से अन्य कादर अल्लाह की महिमा बताता है
  7. पुस्तक फजाईले आमाल से जानकारी
    • फजाईले आमाल से सहाभार (ज्यों का त्यों लेख)
    • कुरआन मजीद से प्रमाण
  8. वह ज्ञान जिसको कुरआन तथा गीता ज्ञान उतारने वाला भी नहीं जानता
  9. कुरआन का अन-सुलझा ज्ञान (अैन. सीन. काफ. का भेद) (Ayn Seen Qaf)
  10. शास्त्रों में (परमात्मा) अल्लाह का जिक्र
  11. मक्का महादेव का मंदिर है
  12. मनुष्यों के खाने के लिए परमेश्वर का आदेश
  13. सन्त जम्भेश्वर महाराज जी के विचार
  14. कुरआन ज्ञान दाता के माँस आहार के विषय में निर्देश
  15. सृजनकर्ता का मानव के खाने के लिए निर्देश व आदेश
    • मनुष्यों के भोजन के लिए निर्देश
  16. सूक्ष्मवेद (कलामे कबीर) में कादर अल्लाह का निर्देश
  17. पवित्र ग्रंथ कुरआन में प्रवेश से पहले
  18. जन्म तथा मृत्यु पर विवेचन
  19. इस्लाम धर्म के प्रचारकों द्वारा बताया गया विधान गलत है
  20. पुनर्जन्म संबंधित प्रकरण
  21. कयामत तक कब्रों में रहने वाले सिद्धांत का खंडन
  22. प्रलय की जानकारी (प्रथम दिव्य महाप्रलय, दूसरी दिव्य महाप्रलय, तीसरी दिव्य महा प्रलय )

’’क्या कहता है पाक कुरआन‘‘

बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम:- शुरू खुदा का नाम लेकर जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

{जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दु मुस्लिम सिक्ख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।}
(रामपाल दास)

अर्थात् हम सब जीव हैं। मानव शरीर मिला है। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई सब मानव हैं। इसलिए हम सबका एक मानव धर्म है। मानवता (इंसानियत) कर्म है। इस कारण से कोई भिन्न धर्म नहीं है। पूरी पृथ्वी के मानव (स्त्री-पुरूष) एक खुदा (प्रभु) के बच्चे हैं।}

गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।1।।
गरीब, अर्श कुर्श पर अलह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाक पुरूष थे, साहिब के अबदाली।।2।।

  • अर्थात् संत गरीबदास जी ने कहा है कि नबी मुहम्मद जी को मेरा नमस्कार (सलाम) है। वे (राम) अल्लाह के (रसूल) संदेशवाहक कहलाए। बाबा आदम से लेकर अंतिम नबी हजरत मुहम्मद जी तक एक लाख अस्सी हजार नबी हुए हैं तथा जो उनके अनुयाई उस समय थे, कसम है उन्होंने (करद) छुरी चलाकर जीव हिंसा नहीं की।(वाणी 1)

  • (अर्श) आसमान के (कुर्श) अंतिम छोर पर ऊपर (अल्लाह) परमेश्वर का (तख्त) सिंहासन है। वह वहाँ पर विराजमान है। परंतु उस (खालिक) जगत के मालिक (बिन नहीं खाली) की पहुँच प्रत्येक प्राणी तथा प्रत्येक लोक तक है। उसकी शक्ति सर्वव्यापक है। उस खालिक से कुछ नहीं छुपा है। कोई स्थान ऐसा नहीं है जो खुदा की पहुँच से बाहर हो। वे एक लाख अस्सी हजार पैगम्बर (messengers) तो (पाक पुरूष थे) पवित्र महापुरूष थे जो (साहिब के) अल्लाह के (अबदाली) कृपा पात्र थे।(वाणी 2)

{नोट:- यहाँ पर यह स्पष्ट करना अनिवार्य समझता हूँ कि कुछ मुसलमान प्रवक्ता कुल एक लाख चैबीस हजार पैगम्बर मानते हैं। परमेश्वर कबीर जी ने, उनके शिष्य गरीबदास जी ने तथा बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक बाबा जम्बेश्वर जी ने एक लाख अस्सी हजार कुल पैगंबर बताए हैं। पूर्ण परमात्मा ने जो बताया है, वह गलत नहीं हो सकता। फिर भी हमने यह जानना है कि जीव हिंसा माँस भक्षण महापाप बताया है जो उन एक लाख अस्सी हजार या एक लाख चैबीस हजार ने भी वह पाप नहीं किया। हमें भी नहीं करना चाहिए।}

2 ‘‘पाक कुरआन से ज्ञान’’

{नोट:- ’’पाक कुरआन‘‘ की जो आयतें इस पुस्तक में प्रमाण के लिए लिखी गई हैं, उनकी पाक कुरआन से ली गई फोटोकापियां इसी पुस्तक के पृष्ठ 322 पर लगी हैं। कृपया मिलान के लिए वहाँ पर पढ़ें।}

‘‘बाईबल तथा कुरआन का ज्ञानदाता एक है’’ (Knowledge giver of Quran & Bible is the same)

जिस अल्लाह ने ’’कुरआन‘‘ का पवित्र ज्ञान हजरत मुहम्मद पर उतारा। उसी ने पाक ’’जबूर‘‘ का ज्ञान हजरत दाऊद पर, पाक ’’तौरेत‘‘ का ज्ञान हजरत मूसा पर तथा पाक ’’इंजिल‘‘ का ज्ञान हजरत ईसा पर उतारा था। इन सबका एक ही अल्लाह है।

प्रमाण:- कुरआन मजीद की सुरा अल् मुअमिनून नं. 23 आयत नं. 49-50:-

आयत नं. 49:- और मूसा को हमने किताब प्रदान की ताकि लोग उससे मार्गदर्शन प्राप्त करें। आयत नं. 50:- और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया और उनको एक उच्च धरातल पर रखा जो इत्मीनान की जगह थी और स्रोत उसमें प्रवाहित थे।

सुरा अल् हदीद नं. 57, आयत नं. 26-27:-

आयत नं. 26:- हमने नूह और इब्राहिम को भेजा और उन दोनों की नस्ल में नुबूवत (पैगम्बरी) और किताब रख दी। फिर उनकी औलाद में से किसी ने सन्मार्ग अपनाया और बहुत से अवज्ञाकारी हो गए।

आयत नं. 27:- उनके बाद हमने एक के बाद एक अपने रसूल भेजे और उनके बाद मरयम के बेटे ईसा को भेजा और उसे इंजील प्रदान की और जिन लोगों ने उनका अनुसरण किया। उनके दिलों में हमने तरस और दयालुता डाल दी और रहबानियत (सन्यास) की प्रथा उन्होंने खुद आविष्कृत की। हमने उनके लिए अनिवार्य नहीं किया। मगर अल्लाह की खुशी की तलब में उन्होंने खुद ही यह नई चीज निकाली और फिर इसकी पाबंदी करने का जो हक था, उसे अदा न किया। उनमें से जो लोग ईमान लाए हुए थे, उनका प्रतिफल हमने उनको प्रदान किया। मगर उनमें से ज्यादा लोग अवज्ञाकारी हैं। {सन्यास यानि घर त्यागकर पहाड़ों व जंगलों में परमात्मा की तलाश में चले जाना। जैसे शेख फरीद, बाजीद आदि-आदि। उनके विषय में कहा है। आप जी विस्तृत उल्लेख ’’अल-खिज्र (अल-कबीर) की जानकारी‘‘ इसी पुस्तक में पढ़ेंगे।}

अन्य प्रमाण:- कुरआन मजीद की सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 35-38 तक कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह कह रहा है कि:-

आयत नं. 35:- फिर हमने आदम से कहा ‘‘तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों जन्नत (स्वर्ग) में रहो और यहाँ जी भरकर जो चाहो खाओ, किन्तु इस पेड़ के निकट न जाना नहीं तो जालिमों में गिने जाओगे।’’

आयत नं. 36:- अन्ततः शैतान ने उन दोनों को उस पेड़ की ओर प्रेरित करके हमारे आदेश की अवहेलना करवा दी। हमने हुकम दिया कि अब तुम सब यहाँ से उतर जाओ। एक-दूसरे के दुश्मन बन जाओ। (साँप और इंसान एक-दूसरे के शत्रु हो गए) और तुम्हें एक समय तक धरती पर ठहरना है। वहीं गुजर-बसर करना है।

आयत नं. 37:- उस समय आदम ने अपने रब से कुछ शब्द सीखकर तौबा (क्षमा याचना) की जिसको उसके रब ने स्वीकार कर लिया क्योंकि वह बड़ा क्षमा करने वाला और दया करने वाला है।

आयत नं. 38:- हमने कहा कि ‘‘तुम अब यहाँ से उतर जाओ।’’ फिर मेरी ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हारे पास पहुँचे, उस अनुसार (चलना)। जो मेरे मार्गदर्शन के अनुसार चलेंगे, उनके लिए किसी भय और दुःख का मौका न होगा। (कुरआन मजीद से लेख समाप्त)।

‘‘पवित्र कुरआन में अच्छी शिक्षा’’ (Righteous Teachings in Quran)

पवित्र ’’कुरआन मजीद‘‘ पुस्तक में अनेकों नेक बातें हैं। उदाहरण के लिए कुछ पेश हैं:-

कुरआन मजीद से सूरः लुकमान-31 आयत नं. 12:- हमने लुकमान को हिकमत (तत्त्वदर्शिता) प्रदान की थी कि अल्लाह (परमेश्वर) के प्रति कृतज्ञता दिखाए। जो कोई कृतज्ञता दिखाएगा, उसकी कृतज्ञता उसके अपने लिए ही लाभदायक है। और जो इन्कार और अकृतज्ञता की नीति अपनाएगा तो अपनाए। अल्लाह तो वास्तव निस्पृह और आपसे आप प्रशंसित है यानि परमात्मा को अपनी बड़ाई करवाने की आवश्यकता नहीं है, वह तो महान है ही। कोई उसकी महिमा करता है तो उसे स्वतः अच्छा फल परमात्मा देता है उसकी नेकता को देखकर।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 13:- याद करो जब लुकमान अपने बेटे को नसीहत कर रहा था तो उसने कहा, बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न करना यानि परमेश्वर के साथ-साथ अन्य देव को ईष्ट न मानना। यह सत्य है कि अल्लाह के साथ शीरक बहुत बड़ा जुल्म है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 14:- और यह वास्तविकता है कि हमने इंसान को अपने माँ-बाप का हक पहचानने की स्वयं तकीद (नसीहत) की है। उसकी माँ ने कमजोरी पर कमजोरी झेलकर उसको पेट में रखा और दो वर्ष दूध छुटाने में लगे। इसलिए नसीहत दी है कि मेरे प्रति कृतज्ञता दिखाओ तथा अपने माँ-बाप के प्रति कृतज्ञ हो। मेरी ही ओर तुम्हें पलटना है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 15:- लेकिन वे तुझ पर दबाव डालें कि मेरे (अल्लाह के) साथ तू किसी ऐसे को शरीक करे जिसे तू नहीं जानता अर्थात् तेरी जानकारी में मेरा साझी नहीं है तो उनकी बात हरगिज न मान। संसार में उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रह। मगर चल उस व्यक्ति यानि संत या नबी के मार्ग पर जिसने मेरी ओर रजू किया है यानि परमात्मा की भक्ति की प्रेरणा की है। फिर तुम सबको मेरे पास ही आना है। उस समय मैं तुम्हें बता दूँगा कि तुम कैसे कर्म करते रहे हो।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 16:- (और लुकमान ने कहा कि) बेटा! कोई चीज राई के दाने के बराबर भी हो और किसी चट्टान में या आसमान में छुपी हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। वह सूक्ष्मदर्शी और सब खबर रखने वाला है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 17:- बेटा नमाज (आरती) कायम कर। नेकी का संदेश दे, बुराई से रोक और जो मुसीबत भी पड़े तो सब्र कर। ये बातें हैं जिनकी बड़ी ताकीद की गई है यानि सब इन बातों को अच्छी मानते हैं।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 18:- और लोगों से मुख फेरकर बात न कर, न जमीन पर अकड़कर चल। अल्लाह किसी अहंकारी और डींग मारने वाले को पसंद नहीं करता।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 19:- अपनी चाल में संतुलन बनाए रख और अपनी आवाज तनिक धीमी रख। सब आवाजों से बुरी आवाज गधे की आवाज है।

सूरः लुकमान-31 आयत नं. 22:- जो व्यक्ति अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दे और व्यवहार में वह नेक हो। उसने वास्तव में एक भरोसे के योग्य सहारा थाम लिया यानि परमात्मा उसके साथ है और सारे मामलों का अंतिम निर्णय अल्लाह ही के पास है।

सूरः अस् सज्दा-32 आयत नं. 4:- वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 188:- और तुम लोग न तो आपस में एक-दूसरे का माल अवैध रूप से खाओ और अधिकारियों (आफिसरों) के आगे उनको इस गरज से पेश न करो कि तुम्हें दूसरों के माल का कोई हिस्सा जान-बूझकर अन्यायपूर्ण तरीके से खाने का अवसर मिल जाए। {अर्थात् आफिसरों (अधिकारियों) को रिश्वत देकर अनुचित लाभ न उठाओ।}

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 268:- शैतान (काल का दूत तुम्हारे कर्म खराब करने के लिए) तुम्हें निर्धनता से डराता है और शर्मनाक नीति अपनाने के लिए उकसाता है, मगर अल्लाह तुम्हें अपनी बखशीश और उदार कृपा से उम्मीद दिलाता है। अल्लाह बड़ी समाई वाला और सर्वज्ञ है।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 269:- अल्लाह जिसको चाहता है, हिकमत (तत्त्वज्ञान) प्रदान करता है और जिसे हिकमत (तत्त्वज्ञान) मिली, उसे वास्तव बड़ी दौलत मिल गई।

कुरआन सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 256:- धर्म के विषय में कोई जोर-जबरदस्ती नहीं।

सूरः यूनुस-10 आयत नं. 99:- (हे मुहम्मद) तू किसी को मुसलमान बनने के लिए मजबूर न करना। अल्लाह के हुक्म बिना कोई इमान नहीं ला सकता।

सूरः अर-रहमान-55 आयत नं. 7-9:- तोल में डांडी न मरो, न्याय करो। पूरा-पूरा तोलो।

सूरः अन आम-6 आयत नं. 108:- और (ए मुसलमानों) जो लोग अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं, उन्हें गाली ना दो, कहीं ऐसा न हो कि वे शिर्क (बहूदेववादी) से आगे बढ़कर अज्ञान के कारण अल्लाह को गालियाँ देने लग जाएँ (महापाप के भागी हो जाएँ) ये भी कभी अल्लाह की ओर मुड़ेंगे।

सूरः अन् निसा-4 आयत नं. 10:- जो लोग जुल्म के साथ यतीमों (बेसहाराओं) का माल खाते हैं, वास्तव में वे अपने पेट आग से भरते हैं और वे जरूर जहन्नम की भड़कती हुई आग में झोंके जाएँगे अर्थात् वे नरक में जाएँगे।

आयत नं. 9:- (उन) लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर वे स्वयं अपने मरने के पश्चात् बच्चे छोड़ते तो मरते समय उनको कैसी कुछ आशंकाएँ घेरती? इसलिए चाहिए कि वे अल्लाह से डरें और ठीक बात करें।

सूरः अन् निसा-4 आयत नं. 36:- अल्लाह की भक्ति करो। आन-उपासना न करो। माता-पिता, नातेदारों, यतीमों, मुहताजों, पड़ोसी, मुसाफिर (यात्रा के साथी) उन दास-दासियों से जो तुम्हारे अधिकार में हों, सबके साथ अच्छा व्यवहार करो। यकीन जानो! अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो डींग मारने वाला हो और अपनी बड़ाई पर गर्व करे।

‘‘नशा तथा जूआ निषेध’’ | Intoxication and Gambling Prohibited

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 219:- शराब तथा जूए में बड़ी खराबी है, महापाप है।

‘‘ब्याज लेना पाप है’’ | Taking Interest on Money is a Sin

कुरआन मजीद सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 276:- अल्लाह ब्याज लेने वाले का मठ मार देता है यानि नाश कर देता है और (खैरात) दान करने वाले को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी नाशुक्रे बुरे अमल वाले इंसान को पसंद नहीं करता।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 277:- हाँ, जो लोग इमान लाए हैं और अच्छे कर्म करें और नमाज कायम करें और (जकात) दान दें, उनका बदला बेशक उनके रब के पास है। उनके लिए किसी खौप (भय) और रंज (शोक) का मौका नहीं है।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 278:- ऐ लोगो जो इमान लाए हो। अल्लाह से डरो और जो कुछ तुम्हारा ब्याज लोगों पर बाकी रह गया है, उसे छोड़ दो। अगर वास्तव में तुम इमान लाए हो।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 279:- अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो सावधान हो जाओ कि अल्लाह और उसके रसूल (संदेशवाहक) की ओर से तुम्हारे खिलाफ युद्ध की घोषणा है यानि सख्त दंड दिया जाएगा।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 280:- तुम्हारा कर्जदार तंगी में हो तो हाथ खुलने तक उसे मुहलत (छूट) दे दो और अगर दान कर दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है अगर तुम समझो।

‘‘(जकात) दान करना चाहिए’’ | One should do Charity

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 261:- जो लोग अपना माल (धन) अल्लाह के मार्ग में खर्च करते हैं, उनके खर्च की मिसाल ऐसी है जैसे एक दाना बोया जाए। उससे सात बालें निकलें और हर बाल में सौ दाने हों। इस तरह अल्लाह जिसके कर्म को चाहता है, बढ़ोतरी प्रदान करता है। वह समाई वाला भी है और सर्वज्ञ भी।

सूरः अल् बकरा-2 आयत नं. 262:- जो लोग अपना माल (धन) अल्लाह के मार्ग में खर्च करते हैं और खर्च करके फिर अहसान नहीं जताते, न दुःख देते हैं। उनका बदला उनके रब के पास है और उनके लिए किसी रंज (चिंता) तथा खौप (भय) का मौका नहीं। (यानि उनको कोई चिंता तथा भय की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा उनकी रक्षा करता है। धन वृद्धि भी करता है।)

‘‘कुरआन का ज्ञान देने वाला अपनी महिमा बताता है’’ | Knowledge Giver of Quran talks about his own Glory

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 92:- यह है तुम्हारा तरीका कि (जिस पर तुमको रहना वाजिब है और) वह एक ही तरीका है और मैं तुम्हारा रब हूँ सो तुम मेरी इबादत किया करो।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 30:- उन काफिरों को यह मालूम नहीं हुआ कि आसमान और जमीन (पहले) बंद थे। फिर हमने दोनों को (अपनी कुदरत से) खोल दिया। और हमने पानी से हर जानदार चीज को बनाया। क्या (उन बातों को सुनकर) फिर भी ईमान नहीं लाते।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 31:- और हमने जमीन में इसलिए पहाड़ बनाए कि जमीन उन लोगों को लेकर हिलने न लगे। और हमने इस जमीन में खुले रास्ते बनाए ताकि वे लोग (उनके जरिये से) मंजिलों (मकसूद) को पहुँच जाएँ।

सूरः अंबिया-21 (कुरआन मजीद बडे़ साइज वाली से)

आयत नं. 32:- और हमने अपनी (कुदरत से) आसमान को एक छत (की तरह) बनाया जो महफूज (सदा रहने वाला) है और ये लोग इस (आसमान के अंदर) की (मौजूदा) निशानियों से मुँह मोड़े हुए हैं।

‘‘कुरआन ज्ञान दाता अपने से अन्य कादर अल्लाह की महिमा बताता है’’ | Knowledge Giver of Quran talks about Greatness of another True God

सूरः अस् सज्दा-32 आयत नं. 4:- वह अल्लाह ही है जिसने आसमानों और जमीन को और उन सारी चीजों को जो इनके बीच है, छः दिन में पैदा किया और उसके बाद सिंहासन पर विराजमान हुआ। उसके सिवा न तुम्हारा कोई अपना है, न सहायक है और न कोई उसके आगे सिफारिश करने वाला है। फिर क्या तुम होश में न आओगे।

कुरआन का ज्ञान उतारने वाले अल्लाह ने सूरः बकरा-2 आयत नं. 255 में कहा है कि अल्लाह वह जीवन्त शाश्वत् सत्ता है जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है। उसके सिवा कोई खुदा नहीं है। वह न तो सोता है और न उसे ऊँघ लगती है। जमीन और आसमान में जो कुछ भी है, उसी का है। कौन है जो उसके सामने उसकी अनुमति के बिना सिफारिश कर सके। वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब बातों को जानने वाला है। या वह जान सकता है जिस पर वह अनुग्रह करे।

उसका राज्य आसमानों और जमीन पर छाया हुआ है और उनकी देखरेख उसके लिए कोई थका देने वाला काम नहीं है। सब एक वही महान और सर्वोपरि सत्ता है। {स्पष्ट हुआ कि कादर अल्लाह जो सम्पूर्ण जगत को संभाले हुए है, सबका मालिक है, सृष्टि की उत्पत्ति करता है, वह कुरआन ज्ञान बताने वाले से अन्य है।}

पुस्तक ’’फजाईले आमाल‘‘ से जानकारी | Knowledge from Fazail e Amaal

कुरआन ज्ञान देने वाले से अन्य समर्थ अल्लाह के विषय में अन्य जानकारीः-

फजाईले आमाल मुसलमानों की एक विश्वसनीय पवित्र पुस्तक है जो हदीसों में से चुनी हुई हदीसों का प्रमाण लेकर बनाई गई है। हदीस मुसलमानों के लिए पवित्र कुरआन के पश्चात् दूसरे नम्बर पर है। फजाईले आमाल में एक अध्याय फजाईले जिक्र है। उसकी आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में कबीर अल्लाह की महिमा है।

विशेष विचार:- फजाईले आमाल मुसलमानों की एक विशेष पवित्र पुस्तक है जिसमें पूजा की विधि तथा पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब का नाम विशेष रूप से वर्णित है। जैसा कि आप निम्न फजाईले आमाल के ज्यों के त्यों लेख देखेंगे उनमें फजाईले जिक्र में आयत नं. 1, 2, 3, 6 तथा 7 में स्पष्ट प्रमाण है कि पाक कुरआन का ज्ञान उतारने वाला (अल्लाह) ब्रह्म (काल अर्थात् क्षर पुरूष) कह रहा है कि तुम कबीर अल्लाह कि बड़ाई बयान करो। वह कबीर अल्लाह तमाम पोसीदा और जाहिर चीजों को जानने वाला है और वह कबीर है और आलीशान रूत्बे वाला है। जब फरिश्तों को कबीर अल्लाह की तरफ से कोई हुक्म होता है तो वे खौफ के मारे घबरा जाते हैं। यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर होती है तो एक दूसरे से पूछते हैं कि कबीर परवरदिगार का क्या हुक्म है। वह कबीर आलीशान मर्तबे वाला है। ये सब आदेश कबीर अल्लाह की तरफ से है जो बड़े आलीशान रूत्बे वाला है। हजुरे अक्सद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (हजरत मुहम्मद) का इर्शाद (कथन) कहना है कि कोई बंदा ऐसा नहीं है कि ‘लाइला-ह-इल्लल्लाह‘ कहे उसके लिए आसमानों के दरवाजे न खुल जाएँ, यहाँ तक कि यह कलिमा सीधा अर्श तक पहुँचता है, बशर्ते कि कबीरा गुनाहों से बचाता रहे। दो कलमों का जिक्र है कि एक तो ‘लाइला-ह-इल्लल्लाह‘ है और दूसरा ‘अल्लाहु अक्बर‘(कबीर)। {यहाँ पर अल्लाहु अक्बर का भाव है भगवान कबीर (कबीर साहेब अर्थात् कविर्देव)।}

फिर फजाईले दरूद शरीफ़ में भी कबीर नाम की महिमा का प्रत्यक्ष प्रमाण छुपा नहीं है।

कृप्या निम्न पढ़िये फजाईले आमाल का लेख:-

फजाईले आमाल से सहाभार ज्यों का त्यों लेख:-

फजाइले जिक्र

बल्लत कबीर बूल्लाह आला महादाकुप वाला अल्ला कुम तरकोरून (1)

  1. और ताकि तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयान करों, इस बात पर कि तुम को हिदायत फरमायी और ताकि तुम शुक्र करो अल्लाह तआला का।

फजाइले जिक्र

अल्लीमूल गैब बसाहादाती तील कबीर रूलमुतालू (2)

  1. वह कबीर अल्लाह तमाम पोशीदा और जाहिर चीजों का जानने वाला है(सबसे) बड़ा है और आलीशान रुत्बे वाला है।

फजाइले जिक्र

थाजालीका सहारा लाकुम लीतू कबीरू
बुल्लाह आला महादा कुम बसीरी रील मोहसीनीन (3)

  1. इसी तरह अल्लाह जल्ल शानुहू ने तुम्हारे लिए मुसख्खर कर दिया ताकि तुम कबीर अल्लाह की बड़ाई बयान करो। इस बात पर कि उसने तुमको हिदायत की इख्लास वालों को (अल्लाह की रिजा की) खुशखबरी सुना दीजिए।

फजाइले जिक्र

माजा काला रब्बूकूम कालू लूलहक्का वाहोवर अल्लीयू उल्ल कबीर (6)

  1. (जब फरिश्तों को कबीर अल्लाह की तरफ से कोई हुक्म होता है तो वे खौफ के मारे घबरा जाते हैं) यहाँ तक कि जब उनके दिलों से घबराहट दूर हो जाती है, तो एक दूसरे से पूछते हैं कि कबीर परवरदिगार का क्या हुक्म है? वे कहते हैं कि (फ्लानी) हक बात का हुक्म हुआ। वाकई वह (कबीर) आलीशान और मर्तबे वाला है।

फजाइले जिक्र

कुल हूक्कू मूल्लाही हीलअल्ली लील कबीर (7)

  1. पस हुक्म कबीर अल्लाह ही के लिए है, जो आलीशान है, बड़े रुत्बे वाला है।

फजाईले दरूद शरीफ

अल्लाहुम-म सल्लि अलारूहि मुहम्मदिन फ़िल् अर्वाहि अल्लाहुम-म सल्लि अला ज-स-दि मुहम्मदिन फिल् अज्सादि अल्लाहुम म सल्लि अला कबिर् (कबीर) मुहम्मिद फ़िल् कुबूरि0

फजाईले जिक्र

  1. हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि कोई बन्दा ऐसा नहीं कि ‘लाइला-ह-इल्लल्लाहह‘ कहे और उसके लिए आसमानों के दरवाजें न खुल जायें, यहाँ तक कि यह कलिमा सीधा अर्श तक पहुँचता है, बशर्ते कि कबीरा गुनाहों से बचाता रहे। फ़µकितनी बड़ी फ़जीलत है और कुबूलियत की इन्तिहा है कि यह कलिमा बराहे रास्त अर्शे मुअल्ला तक पहुँचता है और यह अभी मालूम हो चुका है कि अगर कबीरा गुनाहों के साथ भी कहा जाये, तो नफ़ा से उस वक्त भी खाली नहीं।

मुल्ला अली कारी रह0 फरमाते हैं कि कबाइर से बचने की शर्त कुबूल की जल्दी और आसमान के सब दरवाजे खुलने के एताबर से है, वरना सवाब और कूबूल से कबाइर के साथ भी खाली नहीं।

बाज उलेमा ने इस हदीस का यह मतलब बयान फरमाया है कि ऐसे शख्स के वास्ते मरने के बाद उस की रूह के एजाज में आसमान के सब दरवाजे खुल जायेंगे।

एक हदीस में आया है, दो कलिमे ऐसे हैं कि उनमें से एक के लिए अर्श के नीचे कोई मुन्तहा नहीं।‘ दूसरा आसमान और जमीन को (अपने नूर या अपने अज्र से) भर दे एक ‘लाइला-ह इल्लल्लाह‘, दूसरा ‘अल्लाहु अक्बर, (परमेश्वर कबीर)

फजाइले जिक्र

‘सुब्हानल्लाहि अल्हम्दु लिल्लाहि अल्लाहु अक्बरू‘(कबिर्)

फजाइले दरूद शरीफ

मन सल्ला अला रूहि मुहम्मदिन फिल् अर्वाहि व अला-ज-स
दिही फिल् अज्सादि व अला कबिर् (कबीर) ही फिल कुबूरि0
व इन्नहाल कबीर तुन इल्ला अलल् खाशिलीनल्लजीन यजुन्नून
अन्नहुम मुलाकू रग्बिहिन व अन्नहुम इलैहि राजिऊन0

(फजाइले आमाल से लेख समाप्त)

अन्य प्रमाण:- कुरआन का ज्ञान देने वाले ने अपने से अन्य सृष्टि उत्पत्तिकर्ता के विषय में बताया है जो इस प्रकार है:-

कुरआन मजीद से प्रमाण

सूरत फुरकानि (फुरकान)-25 आयत नं. 52-59:-

कुरआन मजीद से मूल पाठ इस प्रकार है:-

आयत नं. 52:- फला तुतिअल काफिरन व जाहिद्हुम् बिही जिहादन कबीरा।(52)

आयत नं. 52:- तो (ऐ पैगम्बर) तुम काफिरों का कहा न मानना और इस (कुरआन की दलीलों) से उनका सामना बड़े जोर से करना।(52)

कुरआन शरीफ से आयत नं. 53 से 59 का हिन्दी अनुवाद निम्न है:-

आयत नं. 53:- और वही है जिसने दो दरियाओं को मिला (मिला) चलाया। एक (का पानी) मीठा प्यास बुझाने वाला और एक (का) खारी कड़वा और दोनों में एक मजबूत रोक बना दी।

आयत नं. 54:- और वही है जिसने पानी (की बूँद) से आदमी को पैदा किया। फिर उसे साहिबे नसब (यानि किसी का बेटा या बेटी) और ससुराल वाला (यानि किसी का दामाद, बहू) बनाया। और तुम्हारा परवरदिगार हर चीज करने पर शक्तिमान है।

आयत नं. 55:- और (काफिर) अल्लाह के सिवाय ऐसों को पूजते हैं जो न उनको नफा पहुँचा सकते हैं और न (उनको) नुकसान (पहुँचा सकते हैं) और काफिर तो अपने परवरदिगार से पीठ दिए हुए (मुँह मोड़े) हैं।

आयत नं. 56:- और (ऐ पैगम्बर) हमने तुमको खुशखबरी सुनाने और (सिर्फ अजाब से) डराने के लिए भेजा है।

आयत नं. 57:- (इन लोगों से) कहो कि मैं तुमसे इस (अल्लाह के हुक्म) पर कुछ मजदूरी नहीं माँगता। हाँ, जो चाहे अपने परवरदिगार तक पहुँचने की राह इख्तियार कर ले।

आयत नं. 58:- और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा (चैतन्य) पर भरोसा रखो जो कभी मरने वाला नहीं और तरीफ के साथ उसकी पाकी ब्यान करते रहो और अपने बंदों के गुनाहों से वह काफी खबरदार है।

{अरबी भाषा वाला मूल पाठ ’’नागरी लिपि में‘‘ आयत नं. 58:-

व तवक्कल अल्ल् हय्यिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिह व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिह खबीरा।

सूरत फुरकानि-25 (कुरआन शरीफ से हिंदी)

आयत नं. 59:- जिसने आसमानों और जमीन और जो कुछ उनके बीच में है (सबको) छः दिन में पैदा किया और फिर तख्त पर जा बिराजा। (वह अल्लाह बड़ा) रहमान है तो उसकी खबर किसी बाखबर (इल्मवाले) से पूछ देखो।

{आयत नं. 59 का अरबी भाषा वाला मूल पाठ नागरी लिपी में इस प्रकार है:-

अल्लजी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अल्लअर्शि ज अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्।

विवेचन:- (आयत नं. 52) जो अल्लाह कुरआन (मजीद व शरीफ) का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को बता रहा है, वह कह रहा है कि हे पैगम्बर! तुम काफिरों की बात न मानना क्योंकि वे कबीर अल्लाह को नहीं मानते। उनका सामना (संघर्ष) मेरे द्वारा दी गई कुरआन की दलीलों के आधार से बहुत जोर से यानि दृढ़ता के साथ करना अर्थात् वे तुम्हारी न मानें कि कबीर अल्लाह ही समर्थ (कादर) है तो तुम उनकी बातों को न मानना।

आयत नं. 53 से 59 तक उसी कबीर अल्लाह की महिमा (पाकी) ब्यान की गई है। कहा है कि यह कबीर वह कादर अल्लाह है जिसने सब सृष्टि की रचना की है। उसने मानव उत्पन्न किए। फिर उनके संस्कार बनाए। रिश्ते-नाते उसी की कृपा से बने हैं। खारे-मीठे जल की धाराएँ भी उसी ने भिन्न-भिन्न अपनी कुदरत (शक्ति) से बहा रखी हैं। पानी की बूँद से आदमी (मानव=स्त्री-पुरूष) उत्पन्न किया। {सूक्ष्मवेद में कहा है कि पानी की बूँद का तात्पर्य नर-मादा के तरल पदार्थ रूपी बीज से है।}

जो इस अल्लाह अकबर (परमेश्वर कबीर) को छोड़कर अन्य देवों व मूर्तियों की पूजा करते हैं जो व्यर्थ है। वे साधक को न तो लाभ दे सकते हैं, न हानि कर सकते हैं। वे तो अपने उत्पन्न करने वाले परमात्मा से विमुख हैं। मृत्यु के पश्चात् पछताना पड़ेगा। उन्हें समझा दो कि मेरा काम तुम्हें सच्ची राह दिखाना है। उसके बदले में मैं तुमसे कोई रूपया-पैसा भी नहीं ले रहा हूँ, कहीं तुम यह न समझो कि यह (नबी) अपने स्वार्थवश गुमराह कर रहा है। यदि चाहो तो अपने परवरदिगार (उत्पत्तिकर्ता तथा पालनहार) का भक्ति मार्ग ग्रहण कर लो।

(कुरआन ज्ञानदाता नबी मुहम्मद जी से फिर कहता है कि)

आयत नं. 58:- और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा {जो जिंदा बाबा के वेश में तेरे को काबा में मिला था, वह अल्लाह कबीर} पर विश्वास रखो जो कभी मरने वाला नहीं है (अविनाशी परमेश्वर है) और तारीफ (प्रशंसा) के साथ उसकी पाकी ब्यान (पवित्र महिमा का गुणगान) करते रहो और अपने बंदों के गुनाहों (पापों) से वह कबीर परमेश्वर अच्छी तरह परिचित है यानि सत्य साधक के सब पाप नाश कर देता है।

’’वह ज्ञान जिसको कुरआन तथा गीता ज्ञान उतारने वाला भी नहीं जानता‘‘

आयत 59:- कबीर अल्लाह (अल्लाहू अकबर) वही है जिसने सर्व सृष्टि (ऊपर वाली तथा पृथ्वी वाली) की रचना छः दिन में की। फिर ऊपर अपने निज लोक में सिंहासन पर जा विराजा। (बैठ गया।) वह कबीर अल्लाह बहुत रहमान (दयावान) है। उसके विषय में पूर्ण जानकारी किसी (बाखबर) तत्त्वदर्शी संत से पूछो, उससे जानो।

इससे यह बात स्पष्ट हुई कि कुरआन ज्ञान देने वाला उस समर्थ परमेश्वर कबीर के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं रखता। उसको प्राप्त करने की विधि कुरआन ज्ञान दाता को नहीं है। इसीलिए तो सूरत 42 अश् शूरा की आयत नं. 1 व 2 में सांकेतिक शब्द बताए हैं जिनके अर्थ का वर्तमान तक मुझ दास (रामपाल दास) के अतिरिक्त किसी को भी ज्ञान नहीं था। हजरत मुहम्मद को भी इनका ज्ञान नहीं था। इनके ज्ञान बिना मोक्ष नहीं हो सकता। न जन्नत (काल वाला स्वर्ग) प्राप्त हो सकता।

इससे यह भी सिद्ध हुआ कि हजरत आदम से लेकर हजरत मुहम्मद तक सब नबी व उनके अनुयाई मोक्ष से वंचित रहे। बहिसत (स्वर्ग) में भी नहीं जा पाए। संत गरीबदास जी ने कहा है कि यथार्थ भक्ति विधि से साधना न करने से नबी मुहम्मद भी बहिसत (स्वर्ग) नहीं जा सका। उसके पीछे उसी साधना को करके सब (तुर्क) मुसलमान भी सत्य साधना भूले हुए हैं।

वाणी:- गरीब, नबी मुहम्मद नहीं बहिसत सिधाना। पीछे भूला है तुर्काना।।


’’कुरआन का अन-सुलझा ज्ञान‘‘ (अैन, सीन, काफ का भेद) | Mystery of Quran - Secret of Ayn Seen Qaf

कुरआन के अनुवादकर्ताओं ने सूरः अश् शूरा-42 की आयत नं. 1 के शब्दों हा.मीम. तथा आयत नं. 2 के शब्द अैन.सीन.काफ. का अनुवाद नहीं किया है। टिप्पणी की है कि यह गूढ़ रहस्य है। इसको तो खुदा ही जानता है।

फिर यह भी तर्क दिया है कि यदि इन पाँच अक्षरों का ज्ञान न भी हो तो भी कुरआन के ज्ञान की महिमा कम नहीं होती। न ही मानव को कोई हानि होती है। कुरआन तो ज्ञान का भंडार है। ज्ञान से ही आत्म कल्याण संभव है।

लेखक (रामपाल दास) का तर्क:- अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। परंतु समाधान न हुआ तो ज्ञान व्यर्थ है। उदाहरण के लिए जैसे किसी व्यक्ति को किसी ने बताया कि आपको यह रोग है। इस रोग के ये लक्षण होते हैं। रोगी को ज्ञान हो गया कि मेरे को यह रोग है, परंतु उपचार का ज्ञान न तो रोग के ज्ञान करवाने वाले को तथा न रोगी को हो तो उस ज्ञान का क्या लाभ हुआ?

इसी प्रकार कुरआन मजीद का सब ज्ञान पढ़ लिया, याद भी हो गया। परंतु जो गूढ़ रहस्य है यानि जो उपचार है, हा.मीम. तथा अैन.सीन.काफ. का ज्ञान नहीं है तो कुरआन के पढ़ने से आत्म कल्याण नहीं हो सकता क्योंकि इन पाँच अक्षरों में आत्म कल्याण का रहस्य भरा है जो आप आगे पढ़ेंगे। कुरआन मजीद के ज्ञान से भक्ति मर्यादा का ज्ञान होता है तथा कर्म, अकर्म का ज्ञान होता है। धर्म करो, पाप न करो। ग्रंथ का (कुरआन का) नित्य कुछ अंश पाठ करो। नमाज करो, अजान दो, रोजे रखो, आदि-आदि इन क्रियाओं से जीव का जन्म-मरण का चक्र समाप्त नहीं हो सकता। जन्म-मरण के कष्ट से छुटकारे के लिए नाम (मंत्र) का जाप करना पड़ता है। अैन.सीन.काफ.। ये उन तीन नामों (मंत्रों) के सांकेतिक शब्द हैं जो मोक्षदायक कल्याणकारक मंत्र हैं। उनके प्रथम अक्षर हैं। पूर्ण संत जो इस रहस्य को जानता है, उससे दीक्षा लेकर इन तीनों मंत्रों का जाप करने से आत्म कल्याण होगा। और किसी साधन से जीव को मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता।

रहस्यमयी मंत्रों का ज्ञान (Ayn Seen Qaf):-

हा.=हक , मीम.=माबूद यानि यथार्थ पूजा के अैन.सीन काफ. मंत्र हैं। जो साधना मुसलमान करते हैं, पाँच समय नमाज, जकात (दान), रोजे (व्रत) रखना, कुरआन मजीद का तिलावत (पाठ) करना आदि-आदि यह तो ऐसा जानो जैसे रोगी को ग्लूकोस लगा दी। परंतु रोग नाश करने की गोली व इंजैक्शन लगाए बिना रोगी स्वस्थ नहीं होगा। अैन-सीन-काफ. जिन तीन मंत्रों (नामों) के सांकेतिक शब्द हैं, उन नामों को रोगनाशक गोली (tablet) तथा इंजैक्शन (injection) जानो। इन नामों का जाप करने से जन्म-मरण का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। अब पढ़ें अैन-सीन- काफ. का भेद जो इस प्रकार है:-

सूरत अश् शूरा-42 की आयत नं. 1:- हा. मीम, आयत नं. 2:- अैन. सीन. काफ इन दोनों आयतों का सरलार्थ या विश्लेषण वर्तमान तक किसी ने नहीं किया है।

  • कुरआन के अनुवादकों ने यह कहकर छोड़ दिया कि इनका मतलब तो अल्लाह ही जानता है। अब जानो वह रहस्य।

चारों वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) का ज्ञान भी काल ब्रह्म ने सूक्ष्मवेद से चुनकर अधूरा दिया है। सामवेद के मंत्र नं. 822 में इन्हीं तीन नामों का संकेत है। लिखा है ‘‘त्री तस्य नाम’’ अर्थात् उस समर्थ परमेश्वर की पूजा के तीन नाम हैं। इसी काल ब्रह्म ने श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया है।

श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान भी इसी कुरआन ज्ञान दाता ने अर्जुन (जो पाँचों पाण्डवों में से एक था) को बताया था। उसमें भी अध्याय 17 श्लोक 23 में तीन मंत्र कहे हैं।

उसमें लिखा है कि:-

गीता अध्याय 17 श्लोक 23:- मूल पाठ संस्कृत भाषा में लिपी नागरी ही है:-

ॐ (ओम्) तत् सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणाः तेन वेदाः च यज्ञाः च विहिता पुरा।।23।।

सरलार्थ:- गीता में कहा है कि ओम् (ॐ), तत्, सत्, यह (ब्रह्मणः) समर्थ परमेश्वर सृष्टिकर्ता की साधना करने का तीन नाम का मंत्र है। इसकी स्मरण की विधि तीन प्रकार से बताई है। सृष्टि के प्रारंभ में आदि सनातन पंथ के (ब्राह्मणाः) विद्वान साधक इसी आधार से साधना करते थे। सूक्ष्मवेद का ज्ञान स्वयं परमेश्वर जी ने बताया था। उसी आधार से ब्राह्मण यानि साधक बने। उसी सूक्ष्मवेद के आधार से (यज्ञाः) धार्मिक अनुष्ठानों का विधान बना तथा चारों वेद उसी सूक्ष्मवेद का अंश है जो काल ब्रह्म ने जान-बूझकर अधूरा ज्ञान ऋषियों को देकर भ्रमित किया जो बाद में सनातन पंथ (धर्म) के साधकों ने अपनाया। वह भी समय के अनुसार लुप्त हो गया था। फिर गीता के माध्यम से कुछ स्पष्ट, कुछ अस्पष्ट (सांकेतिक) ज्ञान ज्योति निरंजन (काल ब्रह्म) ने दिया। इसको भी इन (कोड वर्डस्) सांकेतिक मंत्रों का ज्ञान नहीं है कि पूरे मंत्र क्या हैं? सामवेद के मंत्र संख्या 822 में इन्हीं तीनों नामों का संकेत है।

वेदों में बताया है कि परम अक्षर ब्रह्म यानि अल्लाह कबीर ही इन सांकेतिक मंत्रों का यथार्थ ज्ञान करवाता है।

मुझ दास (रामपाल दास) को इन तीनों मंत्रों का ज्ञान करवाया है जो इस प्रकार है:-

  • ’’अैन‘‘ यह अरबी भाषा का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘अ’’ है तथा
  • ‘‘सीन’’ यह अरबी भाषा की वर्णमाला का अक्षर है जो देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘स’’ है तथा
  • ‘‘काफ’’ यह अरबी वर्णमाला का अक्षर है, देवनागरी में हिन्दी भाषा का ‘‘क’’ है।

जैसे ओम् (ॐ) मंत्र का पहला अक्षर वर्णमाला का ‘‘अ’’ है। इसलिए ’’अैन‘‘ अक्षर ’’ओम्‘‘ का सांकेतिक है। ‘‘तत्’’ यह सांकेतिक मंत्र है। इसका जो यथार्थ मंत्र है, उसका पहला अक्षर ‘‘स’’ है तथा तीसरा जो ‘‘सत्’’ सांकेतिक मंत्र है, इसका जो यथार्थ मंत्र है, उसका पहला मंत्र ‘‘क’’ है। इसलिए गुप्त यानि सांकेतिक ’’अैन, सीन, काफ‘‘ कुरआन में बताए। वे गीता में बताए ’’ओम्, तत्, सत्‘‘ की तरह हैं। ये इन्हीं का संकेत है। इन मंत्रों के जाप से मानव को संसारिक सुख मिलेगा तथा पाप कर्मों के कारण होने वाले कष्ट (संकट) समाप्त होंगे तथा अकाल मृत्यु से बचाव होगा। काल ब्रह्म (ज्योति निरंजन) की जन्नत से असंख्य गुणा अधिक सुख वाली जन्नत (सतलोक सुख सागर) में स्थाई निवास मिलेगा तथा दोजख (नरक) में नहीं जाएँगे। सतलोक वाली जन्नत (स्वर्ग) में सदा सुखी रहेंगे। फिर पृथ्वी के ऊपर कभी जन्म उस तीन नाम का जाप करने वाले का नहीं होगा।

ये तीनों नाम दास (रामपाल दास) परमेश्वर कबीर जी की साधना करने वाले यथार्थ कबीर पंथ यानि आदि सनातन पंथ के (तेरहवें अंतिम पंथ के) साधकों को साधना के लिए दीक्षा में देता है। (यथार्थ कबीर पंथ में किसी भी धर्म, पंथ तथा जाति के स्त्री-पुरूष दीक्षा लेकर जुड़ सकते हैं।) यहाँ पर उन दो अन्य मंत्रों के यथार्थ मंत्रों को नहीं बताऊँगा। मेरे से दीक्षा प्राप्त भक्त इस प्रकरण को पढ़ते ही समझ जाएँगे। विश्व के मानव (स्त्री-पुरूष) को अल्लाहू अकबर यानि परमेश्वर कबीर जी की भक्ति करनी पड़ेगी। तब ही उनका मानव जीवन सफल होगा। सदा रहने वाली शांति व सुख मिलेगा। उसे ये तीनों मंत्र दीक्षा में दिए जाएँगे। तीनों की स्मरण विधि तीन प्रकार से है।

’’हाः मीमः‘‘ भी इसी प्रकार सांकेतिक हैं। इनके विषय में पृष्ठ 13 पर पढ़ें। उस कादर अल्लाह कबीर ने कलामे कबीर में कहा है कि:-

बारहवें पंथ हम ही चल आवें। सब पंथ मिटा एक पंथ चलावैं।।
कलयुग बीते पाँच हजार पाँच सौ पांचा। तब यह वचन होगा साचा।।
धर्मदास तोहे लाख दुहाई। सारशब्द कहीं बाहर ना जाई।।
तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा। मूल ज्ञान हम गुप्त ही राखा।।
मूल ज्ञान तब तक छिपाई। जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।

कलयुग सन् 1997 में पाँच हजार पाँच सौ पाँच पूरा हो जाता है। उसी समय से सारनाम को दिया जाने लगा है। जैसे कुरआन मजीद (शरीफ) की सूरत फुरकानि आयत नं. 59 में कहा है कि सृजनहार सबके पालनहार के विषय में सम्पूर्ण ज्ञान यानि तत्त्वज्ञान किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) से पूछो।

उसी प्रकार गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि {जिस (ब्रह्मणः) परम अक्षर ब्रह्म यानि अल्लाह कबीर (सच्चिदानंद घन ब्रह्म) ने तत्त्वज्ञान अपने मुख से उच्चारित वाणी (कलामे कबीर) कबीर वाणी में तत्त्वज्ञान बताया है। उसकी साधना सामान्य (सहज) विधि से करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है जिसका उल्लेख गीता अध्याय 4 के ही श्लोक 32 में है। वह तत्त्वज्ञान है।} उस ज्ञान को (तू तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर) समझ। उनको भली-भांति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्म तत्व को भली-भांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे।

इस विवेचन से यह निष्कर्ष निकलता है कि गीता, चारों वेदों व चारों पुस्तकों का ज्ञान देने वाला एक ही है। वह गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में स्वयं स्वीकारता है कि मैं काल हूँ। सबका नाश करने वाला हूँ। यह ब्रह्म है। इसे क्षर पुरूष भी कहा जाता है। सूक्ष्मवेद में ज्योति निरंजन काल इसका प्रचलित नाम है। यह सब प्राणियों को धोखे में रखता है, परंतु जो सूक्ष्मवेद का ज्ञान इसने वेदों व गीता तथा कुरआन आदि पवित्र पुस्तकों में कहा है, वह अधूरा है, परंतु गलत नहीं है। स्पष्ट नहीं बताया, अस्पष्ट घुमा-फिराकर बताया है। जब तक सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान व सम्पूर्ण भक्ति विधि नहीं मिलेगी, तब तक काल ज्योति निरंजन के जाल में जीव महादुःखी रहेगा। चाहे इसकी जन्नत (स्वर्ग) में चले जाना।

उदाहरण एक ही पर्याप्त होता है:- बाबा आदम जन्नत में दुःखी था। बांयी ओर मुँह करके मारे गम के आँसू भर लेता था। दांयी ओर मुँह करके खिल-खिलाकर हँसता था। इस काल की जन्नत (स्वर्ग) में परम शांति किसी को नहीं मिलेगी। जिस परमशांति को प्राप्त करने के लिए श्रीमद्भगत गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने की राय दी है।

जैसा कि पाठकों ने पढ़ा कि कुरआन का ज्ञान देने वाला अल्लाह (जिसे मुसलमान अपना खुदा मानते हैं) ने अपने से अन्य कादर, सृष्टि रचने वाले, अमर अल्लाह की जानकारी बताई तथा अन्य मुस्लिम शास्त्र ’’फजाईले आमाल‘‘ में भी कबीर अल्लाह की समर्थता को पढ़ा।

इसी प्रकार अन्य परमात्मा से मिले महापुरूषों व संतों ने भी उसे आँखों देखा और गवाही दी थी जो इस प्रकार है:-

“शास्त्रों में (परमात्मा) अल्लाह का जिक्र”

सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-

वही मोहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।

भावार्थ:- मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद जी भगवान शिव के लोक से आए, पुण्यकर्मी आत्मा थे जो परंपरागत साधना ही एक गुफा में बैठकर किया करते थे। शिव जी का एक गण जो ग्यारह रूद्रों में से एक है, वह मुहम्मद जी से उस गुफा में मिले। उन्हीं की भाषा (अरबी भाषा) में काल प्रभु अर्थात् ब्रह्म का संदेश सुनाया। उसी रूद्र को मुसलमान जबरिल फरिस्ता कहते हैं जो नेक फरिस्ता माना जाता है।

हजरत आदम:- पुराणों में तथा जैन धर्म के ग्रन्थों में प्रसंग आता है जो इस प्रकार हैः- ऋषभदेव जी राजा नाभिराज के पुत्र थे। नाभिराज जी अयोध्या के राजा थे। ऋषभदेव जी के सौ पुत्रतथा एक पुत्री थी। एक दिन परमेश्वर एक सन्त रूप में ऋषभ देव जी को मिले, उनको भक्ति करने की प्रेरणा की, ज्ञान सुनाया कि मानव जीवन में यदि शास्त्रविधि अनुसार साधना नहीं की तो मानव जीवन व्यर्थ जाता है। वर्तमान में जो कुछ भी जिस मानव को प्राप्त है, वह पूर्व जन्म-जन्मान्तरों मे किए पुण्यों तथा पापों का फल है। आप राजा बने हो, यह आप का पूर्व जन्म का शुभ कर्म फल है। यदि वर्तमान में भक्ति नहीं करोगे तो आप भक्ति शक्तिहीन तथा पुण्यहीन होकर नरक में गिरोगे तथा फिर अन्य प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाओगे। (जैसे वर्तमान में इन्वर्टर की बैटरी चार्ज कर रखी है और चार्जर निकाल रखा है। फिर भी वह बैटरी कार्य कर रही है, इन्वर्टर से पँखा भी चल रहा है, बल्ब-ट्यूब भी जग रहे हैं। यदि चार्जर को फिर से लगाकर चार्ज नहीं किया तो कुछ समय उपरान्त इन्वर्टर सर्व कार्य छोड़ देगा, न पँखा चलेगा, न बल्ब, न ट्यूब जगेंगीं। इसी प्रकार मानव शरीर एक इन्वर्टर है। शास्त्र अनुकूल भक्ति चार्जर (ब्ींतहमत) है, परमात्मा की शक्ति से मानव फिर से चार्ज हो जाता है अर्थात् भक्ति की शक्ति का धनी तथा पुण्यवान हो जाता है।

यह ज्ञान उस ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा के श्री मुख कमल से सुनकर ऋषभदेव जी ने भक्ति करने का पक्का मन बना लिया। ऋषभदेव जी ने ऋषि जी का नाम जानना चाहा तो ऋषि जी ने अपना नाम कविर्देव बताया तथा यह भी कहा कि मैं स्वयं पूर्ण परमात्मा हूँ।

चारों वेदों में जो ’’कविर्देव’’ लिखा है, वह मैं हूँ। मेरा यही नाम है। मैं ही परम अक्षर ब्रह्म हूँ। सूक्ष्मवेद में लिखा है:-

ऋषभ देव के आइया, कबी नामे करतार।
नौ योगेश्वर को समझाइया, जनक विदेह उद्धार।।

भावार्थ:- ऋषभदेव जी को ’’कबी’’ नाम से परमात्मा मिले, उनको भक्ति की प्रेरणा की। उसी परमात्मा ने नौ योगेश्वरों तथा राजा जनक को समझाकर उनके उद्वार के लिए भक्ति करने की प्रेरणा की। ऋषभदेव जी को यह बात रास नहीं आई कि यह ऋषि ही कविर्देव है जो वेदों में सबका उत्पत्तिकर्ता कविर्देव लिखा है। परन्तु भक्ति करने का दृढ़ मन बना लिया। एक तपस्वी ऋषि से दीक्षा लेकर ओम् (ऊँ) नाम का जाप तथा हठयोग किया। ऋषभदेव जी का बड़ा पुत्र ’’भरत’’ था, भरत का पुत्र मारीचि था। ऋषभ देव जी ने पहले एक वर्ष तक निराहार रहकर तप किया। फिर एक हजार वर्ष तक घोर तप किया। तपस्या समाप्त करके अपने पौत्र अर्थात् भरत के पुत्र मारीचि को प्रथम धर्मदेशना (दीक्षा) दी। यह मारीचि वाली आत्मा 24वें तीर्थकर महाबीर जैन जी हुए थे। ऋषभदेव जी ने जैन धर्म नहीं चलाया, यह तो श्री महाबीर जैन जी से चला है। वैसे श्री महाबीर जी ने भी किसी धर्म की स्थापना नहीं की थी। केवल अपने अनुभव को अपने अनुयाईयों को बताया था। वह एक भक्ति करने वालों का भक्त समुदाय है। ऋषभदेव जी ‘‘ओम्‘‘ नाम का जाप ओंकार बोलकर करते थे। उसी को वर्तमान में अपभ्रंस करके ’’णोंकार’’ मन्त्र जैनी कहते हैं, इसी का जाप करते हैं, इसको ओंकार तथा ऊँ भी कहते हैं।

हम अपने प्रसंग पर आते हैं। जैन धर्म ग्रन्थ में तथा जैन धर्म के अनुयाईयों द्वारा लिखित पुस्तक ’’आओ जैन धर्म को जानें’’ में लिखा है कि ऋषभदेव जी (जैनी उन्हीं को आदिनाथ कहते हैं) वाला जीव ही बाबा आदम रूप में जन्मा था। अब उसी सूक्ष्म वेद की वाणी का सरलार्थ करता हूँ:-

वही मुहम्मद वही महादेव, वही आदम वही ब्रह्मा।
दास गरीब दूसरा कोई नहीं, देख आपने घरमा।।

बाबा आदम जी श्री ब्रह्मा जी देवता के लोक से आए थे क्योंकि मानव जन्म में की गई साधना के अनुसार प्राणी भक्ति अनुसार ऊपर तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) के लोकों में बारी-बारी जाता है, अपने पुण्य क्षीण होने पर पुनः पृथ्वी पर संस्कारवश जन्म लेता है।

संत गरीब दास जी (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर हरियाणा प्रांत वाले) को स्वयं ही वही परमात्मा मिले थे जो ऋषभदेव जी को मिले थे। संत गरीब दास जी ने परमेश्वर के साथ ऊपर जाकर अपनी आँखों से सर्व व्यवस्था को देखा था। फिर बताया है कि आदम जी ब्रह्मा जी के लोक से आए थे, ब्रह्मा के अवतार थे। मुहम्मद जी तम्गुण शिव जी के अवतार थे। प्रिय पाठको! अवतार दो प्रकार के होते हैं, 1) स्वयं वह प्रभु अवतार लेता है जैसे श्री राम, श्री कृष्ण आदि के रूप में स्वयं श्री विष्णु जी अवतार धारकर आए थे। परंतु कपिल ऋषि जी, परशुराम जी को भी विष्णु जी के अवतारों में गिना जाता है। ये स्वयं श्री विष्णु जी नहीं थे, विष्णु लोक से आए देवात्मा थे। उनके पास कुछ शक्ति विष्णु जी की थी क्योंकि वे उन्हीं के द्वारा भेजे गए थे। इसी प्रकार हजरत मुहम्मद जी श्री शिव जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे तथा बाबा आदम जी श्री ब्रह्मा जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे। इसी प्रकार ईसा मसीह जी श्री विष्णु जी के (लोक से आए देव आत्मा) अवतार थे। ईसाई श्रद्धालु भी ईसा जी को प्रभु का पुत्र मानते हैं, प्रभु नहीं।

संत गरीबदास जी ने कहा है कि यदि आप जी को मेरी बात पर विश्वास नहीं होता तो मेरे द्वारा बताई शास्त्रविधि अनुसार भक्ति-साधना करके अपने घर में अर्थात् अपने मानव शरीर में अपनी आँखांे देख लो।

भावार्थ है:- सर्व धर्मों के मानव (स्त्री-पुरूष) के शरीर की रचना एक जैसी है। तत्त्वज्ञान न होने के कारण हम धर्र्मों में बँट गए हैं। संत गरीब दास जी ने बताया है कि मानव शरीर में रीढ़ की हड्डी अर्थात् spinal cord के अन्दर की ओर (निचले सिरे से लेकर कण्ठ तक) पाँच कमल चक्र बने हैं। कृपया देखें यह चित्र:-

  1. मूल चक्र:- यह चक्र रीढ़ की हड्डी के अन्त से एक इंच ऊपर गुदा के पास है। इसका देवता श्री गणेश है। इस कमल की 4 पंखुडियाँ हैं।
  2. स्वाद चक्र:- यह मूल कमल से दो इंच ऊपर रीढ की हड्डी के अन्दर की ओर चिपका है। इसके देवता श्री ब्रह्मा जी तथा उनकी पत्नी सावित्री जी हैं। इस कमल की छः पंखुड़ियाँ हैं।
  3. नाभि कमल चक्र:- यह नाभि के सामने उसी रीढ़ की हड्डी के साथ चिपका है। इसके देवता श्री विष्णु जी तथा उनकी पत्नी लक्ष्मी जी हैं। इस कमल की 8 पंखुड़ियाँ हैं।
  4. हृदय कमल चक्रः- यह कमल सीने में बने दोनों स्तनों के मध्य में रीढ़ की हड्डी के साथ चिपका है। इसके देवता श्री शिव जी तथा उनकी पत्नी पार्वती जी हैं। इस कमल की 12 पंखुड़ियाँ हैं।
  5. कण्ठ कमल:- यह कमल छाती की हड्डियों के ऊपर जहाँ से गला शुरू होता है, उसके पीछे रीढ़ की हड्डी के साथ अंत में है। इसकी प्रधान श्री देवी अर्थात् दुर्गा जी हैं। इस कमल की 16 पंखुड़ियाँ हैं। शेष कमल चक्र ऊपर हैं।
  6. संगम कमल या छठा कमल:- यह कमल सुष्मणा के ऊपर वाले द्वार पर है। इसकी तीन पंखुड़ियाँ हैं। इसमें सरस्वती रूप में देवी दुर्गा जी निवास करती हैं। एक पंखुड़ी में देवी दुर्गा सरस्वती रूप में रहती है। उसी के साथ में 72 करोड़ उर्वशी (सुंदर परियाँ) रहती हैं जो ऊपर जाने वाले भक्तों को अपने जाल में फँसाती हैं। दूसरी पंखुड़ी में सुंदर युवा नर रहते हैं जो भक्तमतियों को आकर्षित करके काल जाल में रखते हैं। काल भी अन्य रूप में इन युवाओं का संचालक मुखिया बनकर रहता है। तीसरी पंखुड़ी में स्वयं परमात्मा अन्य रूप में रहते हैं। अपने भक्तों को उनके जाल से मुक्त कराते हैं। ज्ञान सुनाकर सतर्क करते हैं।
  7. त्रिकुटी कमल चक्र:- यह दोनों आँखों की भौंहों (सेलियों) के मध्यम में सिर के पिछले हिस्से में अन्य कमलों की ही पंक्ति में ऊपर है। इसका देवता सतगुरू रूप में परमेश्वर ही है। इस कमल की दो पंखुड़ियाँ हैं। एक सफेद (वर्ण) रंग की दूसरी काले (भंवर = भंवरे) के रंग की पंखुड़ियाँ हैं। सफेद पंखुड़ी में सतगुरू रूप में सत्यपुरूष का निवास है। काली पंखुड़ी में नकली सतगुरू रूप में काल निरंजन का वास है।
  8. सहंस्र कमल चक्र:- यह कमल सिर के मध्य भाग से दो ऊंगल नीचे अन्य कमलों की ही पंक्ति में है। हिन्दू धर्म के व्यक्ति सिर पर बालों की चोटी रखते थे, कुछ अब भी रखते हैं। इसके नीचे वह सहंस्र कमल दल है। इसका देवता ब्रह्म है, इसे क्षर पुरूष भी कहते हैं जिसने गीता व वेदों का ज्ञान परोक्ष रहकर कहा है। इस कमल की एक हजार पंखुड़ियाँ हैं। इनको काल ब्रह्म ने प्रकाश से भर रखा है, स्वयं इसी कमल चक्र में दूर रहता है। वह स्वयं दिखाई नहीं देता, केवल पंखुड़ियाँ चमकती दिखाई देती हैं।

{अष्ट कमल दल:- इस कमल का देवता अक्षर पुरूष है, इसे परब्रह्म भी कहते हंै, इसकी पंखुड़ियाँ भी 8 हैं। इसकी स्थिति नहीं बताऊँगा क्योंकि नकली गुरू भी इसको जानकर जनता को भ्रमित कर देंगे।}

  1. संख कमल दल:- इस कमल में पूर्ण ब्रह्म अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म का निवास है। इसकी शंख पंखुड़ियाँ है। इसकी स्थिति भी नहीं बताऊँगा, कारण ऊपर लिख दिया है।

{जो चित्र में दिखाए हैं। इनमें छठा कमल तथा नौंवा कमल नहीं दिखाया है। कारण यही है कि विद्यार्थियों की धीरे-धीरे ज्ञान वृद्धि की जाती है। कमलों का गहरा रहस्य है। यह कबीर सागर के सारांश में लिखा है।}

शरीर में ये कमल ऐसा कार्य करते हैं, जैसे टेलीविजन में चैनल लगे हैं। उन चैनलों में से जिस भी चैनल को चालू करोगे, उस पर कार्यक्रम दिखाई देगा। वह कार्यक्रम चल तो रहा है स्टूडियो में, दिख रहा है टी.वी. में। इसी प्रकार प्रत्येक कमल का फंक्शन (थ्नदबजपवद) है। इन कमलों को चालू करने के मन्त्र हैं जो यह दास (संत रामपाल दास) जाप करने को देता है। प्रथम बार दीक्षा इन्हीं चैनलों को खोलने की दी जाती है। मन्त्रों की शक्ति से सर्व कमल व्द (चालू) हो जाते हैं, फिर साधक अपने शरीर में लगे चैनल में उस देव के धाम को देख सकता है, वहाँ के सर्व दृश्य देख सकता है। इसलिए संत गरीब दास जी ने कहा है कि आप अपने शरीर के चैनल व्द (चालू) करके स्वयं देख लो कि आदम जी आप को ब्रह्मा के लोक से आए दिखाई देंगे क्योंकि वहाँ पर सर्व रिकाॅर्ड उपलब्ध है। जैसे वर्तमान में ल्वन ज्नइम है, इसी प्रकार प्रत्येक देव के लोक में आप जो पूर्व में हुई घटना देखना चाहें, आप देख सकते हैं। इसी प्रकार हजरत मुहम्मद जी आपको शिव जी के लोक से आए दिखाई देंगे। इसी प्रकार ईसा जी भी श्री विष्णु जी के लोक से आए दिखाई देंगे।

‘‘मक्का महादेव का मंदिर है‘‘ | Mecca is a temple of Mahadev (Shiv)

सिख धर्म की पुस्तक भाई बाले वाली जन्म साखी में प्रमाण है:-

‘‘साखी मदीने की चली‘‘ हिन्दी वाली के पृष्ठ 262 पर श्री नानक जी ने चार इमामों के प्रश्न का जवाब देते हुए कहा है:-

आखे नानक शाह सच्च, सुण हो चार इमाम।
मक्का है महादेव का, ब्राह्मण सन सुलतान।।

भावार्थ:- सतगुरू नानक देव जी ने चार इमामों से चर्चा करते हुए कहा कि जिस मक्का शहर में जो काबा (मंदिर) है जिसको आप अपना पवित्र स्थान मानते हो। वह महादेव (शिव जी) का मंदिर है। इसमें सब देवी-देवताओं की मूर्तियाँ (बुत) थी। उसकी स्थापना करने वाला सुल्तान (राजा) ब्राह्मण था। बाद में सब मूर्तियाँ उठा दी गई थी। नबी इब्राहिम व हजरत इस्माईल (अलैहि.) ने इसका पुनः निर्माण करवाया था।

अब आप जी को अपने उद्देश्य की ओर ले चलता हूँ। आप जी को स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जो यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान सूक्ष्म वेद में है, वह न गीता में है तथा न चारों वेदों में है, न पुराणों में है, न कुरआन शरीफ में, न बाईबल में, न छः शास्त्रों तथा न ग्यारह उपनिषदों में।

उदाहरण:- जैसे दसवीं कक्षा तक का पाठ्यक्रम गलत नहीं है, परंतु उसमें ठण्।ण् तथा डण्। वाला ज्ञान नहीं है। वह पाठ्यक्रम गलत नहीं है, परन्तु पर्याप्त नहीं है। समझने के लिए इतना ही पर्याप्त है।

प्रश्न:- संसार के शास्त्र तथा सन्त, परमात्मा के विषय में क्या जानकारी देते हैं?

उत्तर:- विश्व के मुख्य शास्त्रों, सद्ग्रन्थों में परमात्मा को बहुत अच्छे तरीके से परिभाषित किया है। पहले यह जानते हैं कि विश्व के मुख्य शास्त्र, सद्ग्रन्थ कौन-से हैं?

  1. वेद:- वेद दो प्रकार के हैं:- 1) सूक्ष्म वेद, 2) सामान्य वेद।
  2. सूक्ष्म वेद:- यह वह ज्ञान है जिसको (अल्लाह ताला) समर्थ परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से वाणी उच्चारण करके बोलता है, यह सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान है। प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 86 मन्त्र 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 82 मन्त्र 1-2, 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 20 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96 मन्त्र 17 से 20, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 54 मन्त्र 3, यजुर्वेद अध्याय 9 मन्त्र 1 तथा 32, यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25, अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मन्त्र 7, सामवेद मन्त्र संख्या 822

अन्य प्रमाण:- श्री मद्भगवत गीता अध्याय 4 मन्त्र 32 में है। कहा है कि सच्चिदानंद घन ब्रह्म यानि सत्य पुरूष अपने मुख कमल से वाणी बोलकर तत्वज्ञान विस्तार से कहता है। कारण:- परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में सम्पूर्ण ज्ञान ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल पुरूष) के अन्तकरण में डाला था। (थ्ंग किया था) परमात्मा द्वारा किए निर्धारित समय पर यह ज्ञान स्वयं ही काल पुरूष के श्वांसों द्वारा समुद्र में प्रकट हो गया। काल पुरूष ने इसमें से महत्वपूर्ण जानकारी निकाल दी। शेष अधूरा ज्ञान संसार में प्रवेश कर दिया। उसी को चार भागों में ब्यास ऋषि ने विभाजित किया। उसके चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) बनाए।

  1. सामान्य वेद:- यह वही चारों वेदों वाला ज्ञान है जो ब्रह्म (ज्योति निरंजन अर्थात् काल) ने अपने ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा जी को दिया था। यह अधूरा ज्ञान है। इसमें से मुख्य जानकारी निकाली गई है जो ब्रह्म अर्थात् काल ने जान-बूझकर निकाली थी। कारण यह था कि “काल पुरूष” को भय रहता है कि मानव को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान न हो जाए। यदि प्राणियों को पूर्ण परमात्मा का ज्ञान हो गया तो सब इस काल के लोक को त्यागकर पूर्ण परमात्मा के लोक (सत्यलोक=शाश्वत स्थान) में चले जाऐंगे, जहाँ जाने के पश्चात् जन्म-मृत्यु समाप्त हो जाता है। इसलिए ब्रह्म (काल पुरूष) ने पूर्ण परमात्मा के परमपद की जानकारी नहीं बताई, वह नष्ट कर दी थी। उसकी पूर्ति करने के लिए पूर्ण परमात्मा स्वयं सशरीर प्रकट होकर सम्पूर्ण ज्ञान बताता है। अपनी प्राप्ति के वास्तविक मन्त्र भी बताता है जो काल भगवान ने समाप्त करके शेष ज्ञान प्रदान कर रखा होता है। उसको ऋषिजन चार वेद कहते हैं। ऋषि व्यास जी ने इस वेद को लिखा तथा इस के चार भाग बनाए।
  1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद 3. सामवेद 4. अथर्ववेद जो वर्तमान में प्रचलित हैं।

इन्हीं चार वेदों का सारांश काल पुरूष ने श्री मद्भगवत गीता के रूप में श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके महाभारत के युद्ध से पूर्व बोला था। वह भी बाद में महर्षि व्यास जी ने कागज पर लिखा। जो आज अपने को उपलब्ध हैं।

सद्ग्रन्थों में बाईबल का नाम भी है। बाईबल:- यह तीन पुस्तकों का संग्रह है।

  1. तौरेत 2. जबूर 3. इंजिल।

बाईबल में सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी है, वह तौरेत पुस्तक वाली है जिसमें लिखा है कि परमात्मा ने सर्वप्रथम सृष्टि की रचना की। पृथ्वी, सूर्य, आकाश, पशु-पक्षी, मनुष्य (नर-नारी) आदि की रचना परमात्मा ने छः दिन में की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। सृष्टि रचना अध्याय 1 के श्लोक 26, 27-28 में यह भी स्पष्ट किया है कि परमात्मा ने मानव को अपने स्वरूप जैसा उत्पन्न किया।

इससे सिद्ध हुआ कि परमात्मा भी मनुष्य जैसा (नराकार) साकार है।

मनुष्यों के खाने के लिए परमेश्वर का आदेश:-

उत्पत्ति अध्याय में (बाईबल में) लिखा है कि (श्लोक 27-28 में) मनुष्यों के खाने के लिए बीजदार पौधे (गेहूँ, चने, बाजरा आदि-आदि) तथा फलदार वृक्ष दिए हैं, यह तुम्हारा भोजन है। पशु-पक्षियों के खाने के लिए घास, पत्तेदार झाड़ियाँ दी हैं। इसके पश्चात् परमात्मा तो अपने निजधाम (सत्यलोक) में तख्त पर जा बैठा। बाईबल में आगे जो ज्ञान है वह काल भगवान का तथा इसके देवताओं (फरिस्तों) का दिया हुआ है। यदि बाईबल, ग्रन्थ में आगे चलकर माँस खाने के लिए लिखा है तो वह पूर्ण परमात्मा का आदेश नहीं है। वह किसी अधूरे प्रभु का है। पूर्ण परमात्मा (Supreme God) के आदेश की अवहेलना हो जाने से पाप का भागी बनता है।

कुरआन शरीफ (मजीद):- बाईबल के पश्चात् सद्ग्रन्थों में कुरआन शरीफ का नाम श्रद्धा से लिया जाता है, कुरआन का ज्ञान दाता भी वही है जिसने बाईबल का ज्ञान दिया है तथा चारों वेदों और श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया है, इसलिए उसने उन पहलुओं को बाईबल में तथा कुरआन में नहीं दोहराया जिन पहलुओं का ज्ञान चारों वेदों तथा श्री मद्भगवत गीता में दिया है।

उपनिषद:- ये सँख्या में 11 (ग्यारह) माने जाते हैं, उपनिषद का ज्ञान किसी ऋषि का अपना अनुभव है। यदि वह अनुभव वेदों व गीता से नहीं मिलता तो वह व्यर्थ है। उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए। इसलिए उपनिषदों को छोड़कर वेदों व गीता के ज्ञान को ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उपनिषदों का अधिकतर ज्ञान वेदों व गीता के ज्ञान के विपरीत है। इसी प्रकार बाईबल तथा कुरआन के ज्ञान को समझें कि जो ज्ञान वेदों तथा गीता से मेल नहीं करता, उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए। वेदों व गीता में जो ज्ञान सूक्ष्मवेद से नहीं मिलता, वह ग्रहण नहीं करना चाहिए।

पुराण:- ये सँख्या में 18 (अठारह) माने गए हैं। वैसे यह पुराणों का ज्ञान एक ही बोध माना गया है। यह ज्ञान सर्व प्रथम ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों (दक्ष आदि ऋषियों) को दिया था। राजा दक्ष जी, मनु जी तथा पारासर आदि ऋषियों ने इसका आगे प्रचार करते समय अपना अनुभव भी मिला दिया। इस प्रकार 18 भागों में पुराण का ज्ञान माना गया है। 18 पुराणों के ज्ञान का जो अंश वेदों तथा गीता से मेल नहीं खाता तो वह त्याग देना चाहिए। इसी प्रकार अन्य कोई भी पुस्तक वेदों व गीता के ज्ञान से विपरीत ज्ञान युक्त है, उसे भी त्याग देना उचित है।

गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता अर्जुन को कह रहा है कि तू सर्वभाव से उस परमेश्वर (जो गीता ज्ञान दाता से भिन्न है) की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परमशान्ति तथा सनातन परमधाम (सत्य लोक) को प्राप्त हो जाएगा। गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि जो ज्ञान (सूक्ष्म वेद) स्वयं परमात्मा अपने मुख कमल से बोलकर बताता है, वह सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी कही जाती है, उसी को तत्वज्ञान भी कहते हैं जिसमें परमात्मा ने पूर्ण मोक्ष मार्ग का ज्ञान दिया है। गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि उस तत्वज्ञान को तू तत्वदर्शी सन्तों के पास जाकर समझ। उनको डण्डवत प्रणाम करके प्रश्न करने से वे तत्वदर्शी सन्त तुझे तत्व ज्ञान का उपदेश करेंगे। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई है। कहा है कि जो सन्त संसार रूपी वृक्ष के सर्वांग को जानता है, वह वेदवित अर्थात् वेदों के तात्पर्य को जानता है, वह तत्वदर्शी सन्त है। सूक्ष्म वेद अर्थात् सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी में बताया है:-

कबीर, अक्षर पुरूष एक पेड़ है, क्षर पुरूष वाकी डार।
तीनों देवा शाखा हैं, पात रूप संसार।।

इसी सचिदानन्द घन ब्रह्म की वाणी को तत्वज्ञान भी कहते हैं।

गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वज्ञान की प्राप्ति के पश्चात् परमेश्वर के उस परमपद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक कभी लौटकर फिर से संसार में नहीं आता अर्थात् उसका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। उसी परमात्मा ने संसार रूपी वृक्ष की रचना की है, केवल उसकी भक्ति करो। गीता ज्ञान दाता अपनी साधना से श्रेष्ठ उस पूर्ण परमात्मा की भक्ति को मानता है, उसी से परमेश्वर का वह परम पद प्राप्त होता है, जिसे प्राप्त करने के पश्चात् जीव का जन्म-मृत्यु का चक्कर सदा के लिए समाप्त हो जाता है।

श्री गुरू ग्रन्थ साहेब जी:- यह सिक्ख धर्म का ग्रन्थ माना जाता है, वास्तव में यह कई महात्माओं की अमृत वाणी का संग्रह है, जिसमें श्री नानक देव जी की वाणी अर्थात् महला-पहला की वाणी तत्वज्ञान अर्थात् सूक्ष्मवेद से मेल खाती है क्योंकि श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे जिस समय श्री नानक देव साहेब जी सुल्तानपुर शहर में नवाब के यहाँ मोदी खाने में नौकरी करते थे। सुल्तानपुर शहर से आधा कि.मी. दूर बेई नदी बहती है, श्री नानक जी प्रतिदिन उस दरिया में स्नान करने जाया करते थे। एक दिन परमात्मा जिन्दा बाबा की वेशभूषा में बेई नदी पर प्रकट हुए, वहाँ श्री नानक देव जी से ज्ञान चर्चा हुई। उसके पश्चात् श्री नानक जी ने दरिया में डुबकी लगाई लेकिन बाहर नहीं आए। वहाँ उपस्थित व्यक्तियों ने मान लिया कि नानक जी दरिया में डूब गए हैं। शहर के लोगों ने दरिया में जाल डालकर भी खोजा परन्तु निराशा ही हाथ लगी क्योंकि श्री नानक देव जी तो जिन्दा बाबा के रूप में प्रकट परमात्मा के साथ सच्चखण्ड (सत्यलोक) में चले गए थे। तीन दिन के पश्चात् श्री नानक देव जी वापिस पृथ्वी पर आए। उसी बेई नदी के उसी किनारे पर खड़े हो गए, जहाँ से परमेश्वर के साथ जल में डुबकी लगाकर अन्तध्र्यान हुए थे। श्री नानक जी को जीवित देखकर सुल्तानपुर के निवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं था। श्री नानक जी की बहन नानकी भी सुल्तानपुर शहर में विवाही थी। अपनी बहन के पास श्री नानक जी रहा करते थे। अपने भाई की मौत के गम से दुःखी बहन नानकी को बड़ा आश्चर्य हुआ और गम खुशी में बदल गया। श्री नानक देव को परमात्मा मिले, सच्चा ज्ञान मिला, सच्चा नाम (सत्यनाम) मिला, पुस्तक भाई बाले वाली “जन्म साखी गुरू नानक देव जी” में तथा प्राण संगली हिन्दी लिपि वाली में जिसके सम्पादक सन्त सम्पूर्ण सिंह हैं। इन दोनों पुस्तकों में प्रमाण है कि श्री गुरू नानक देव जी ने स्वयं मर्दाना को बताया कि मुझे परमात्मा जिन्दा बाबा के रूप में बेई नदी पर मिले, जब में स्नान करने के लिए गया। मैं तीन दिन तक उन्हीं के साथ रहा था, वह बाबा जिन्दा मेरा सतगुरू भी है तथा वह सर्व सृष्टि का रचनहार भी है। इसलिए वही “बाबा” कहलाने का अधिकारी है, अन्य को “बाबा” नहीं कहा जाना चाहिए, उसका नाम कबीर है।

कायम दायम कुदरती सब पीरन सिर पीर आलम बड़ा कबीर।।

इसलिए श्री नानक जी की वाणी (महला 1) है, वह सूक्ष्म वेद से मेल खाती है, यह सही है। श्री गुरू ग्रन्थ साहेब में कबीर जी की वाणी को छोड़कर अन्य सन्तों की वाणी इतनी सटीक नहीं है। कारण यह है कि श्री नानक देव जी को परमात्मा कबीर जी मिले थे।

प्रमाण:- श्री गुरू ग्रन्थ साहिब में पृष्ठ 24 पर लिखी वाणी:-

एक सुआन दुई सुआनी नाल भलके भौंकही सदा बियाल, कुड़ छुरा मुठा मुरदार धाणक रूप रहा करतार। तेरा एक नाम तारे संसार मैं ऐहो आश ऐहो आधार, धाणक रूप रहा करतार। फाही सुरत मलूकी वेश, एह ठगवाड़ा ठगी देश। खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।

श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के पृष्ठ 731 पर निम्न वाणी है:-

नीच जाति परदेशी मेरा, क्षण आवै क्षण जावै।
जाकि संगत नानक रहंदा, क्यूकर मुंडा पावै।।

पृष्ठ 721 पर निम्न वाणी लिखी है:-

यक अर्ज गुफतम पेश तोदर, कून करतार। हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदिगार।।

यह उपरोक्त अमृतवाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहेब जी की है जिससे सिद्ध हुआ कि श्री नानक जी को परमात्मा मिले थे। वह “कबीर करतार” है जो काशी में धाणक रूप में लीला करने आए थे।

सन्त गरीब दास जी (गांव = छुड़ानी, जिला झज्जर हरियाणा) को भी इसी प्रकार जिन्दा बाबा के रूप में कबीर परमात्मा मिले थे, उसी प्रकार सच्चखण्ड (सत्यलोक) लेकर गए थे, फिर वापिस छोड़ा था। संत गरीबदास जी ने कहा है:-

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जाति जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहें कबीर हुआ।।
अन्नत कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर है, कुल के सिरजन हार।।

सन्त दादू दास जी महाराज को भी परमात्मा जिन्दा बाबा के रूप में मिले थे। श्री दादू जी 7 वर्ष की आयु के थे। (कुछ पुस्तकों में उस समय श्री दादू जी की आयु ग्यारह वर्ष लिखी है) गाँव से बाहर बच्चों में खेल रहे थे। परमात्मा उन्हें भी बाबा जिन्दा के रूप में मिले थे, सत्यलोक लेकर गए थे। दादू जी भी तीन दिन-रात तक अचेत रहे, फिर सचेत हुए तो परमात्मा कबीर जी की महिमा बताने लगे।

जिन मोकूं निज नाम (वास्तविक नाम) दिया, सोई सतगुरू हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।
दादू नाम कबीर की, जै कोई लेवे ओट। उनको कबहु लागे नहीं, काल बज्र की चोट।।

सन्त गरीब दास जी ने कहा है:-

दादू कूँ सतगुरू मिले, देई पान की पीख। बुढा बाबा जिसे कहै, यह दादू की नहीं सीख।।
पहली चोट दादू को, मिले पुरूष कबीर। टक्कर मारी जद मिले, फिर साम्भर के तीर।।

संत धर्मदास जी बान्धवगढ़ वाले को मिले:- महात्मा धर्मदास जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में गाँव-बांधवगढ़ (मध्यप्रदेश, भारत) में हुआ था। गुरू जी के आदेशानुसार तीर्थों का भ्रमण करते हुए धर्मदास जी मथुरा में पहुँचे तो समर्थ परमात्मा (कादर खुदा) जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे। धर्मदास जी को भी (परमात्मा) अल्लाह कबीर सत्यलोक लेकर गए थे। तीन दिन-रात तक धर्मदास जी भी श्री नानक देव जी की तरह परमात्मा के साथ आकाश मण्डल में (सत्यलोक) में रहे। आकाश में ज्योति निरंजन के लोक (इक्कीस ब्रह्मंडों) की व्यवस्था दिखाई। फिर ऊपर को ले गए। अक्षर पुरूष के सात संख ब्रह्मंड दिखाए तथा अपना तख्त (सिंहासन) व सतलोक दिखाया। धर्मदास जी का शरीर अचेत रहा। तीसरे दिन होश में आए तो बताया कि मैं सत्यलोक में परमात्मा के साथ गया था। वे परमात्मा काशी शहर में लीला करने आए हैं, उनको मिलूँगा। धर्मदास दास बनारस (काशी) में गए। वहाँ जुलाहे के रूप में परमात्मा को कार्य करते देखकर आश्चर्य चकित रह गए, चरणों में गिर गए तथा यथार्थ भक्ति मार्ग प्राप्त करके कल्याण कराया।

हजरत मुहम्मद जी को भी परमात्मा मक्का में जिन्दा महात्मा के रूप में मिले थे। जिस समय नबी मुहम्मद काबा मस्जिद में हज के लिए गए हुए थे तथा उनको अपने लोक में ले गए जो एक ब्रह्माण्ड में राजदूत भवन रूप में बना है, परमात्मा ने हजरत मुहम्मद जी को समझाया तथा अपना ज्ञान सुनाया परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने परमात्मा के ज्ञान को नहीं स्वीकारा और न सत्यलोक में रहने की इच्छा व्यक्त की। इसलिए हजरत मुहम्मद को वापिस शरीर में भेज दिया। उस समय हजरत मुहम्मद जी के कई हजार मुसलमान अनुयायी बन चुके थे, उनकी महिमा संसार में पूरी गति से फैल रही थी और कुरआन के ज्ञान को सर्वोत्तम मान रहे थे।

सन्त गरीब दास जी ने बताया है कि कबीर परमेश्वर जी मुहम्मद साहेब जी को ऊपर लोक में ले गए, परन्तु वहाँ नहीं रहा। गरीब दास जी ने कहा है कि कबीर परमेश्वर जी ने बताया है:-

हम मुहम्मद को सतलोक द्वीप ले गयो, इच्छा रूपी वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुझ बिरज एक कलमा ल्याया।
रोजा, बंग, नमाज दयी रे, बिस्मल की नहीं बात कही रे।
मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे होते मुहम्मद पीरं।
शब्दै फेर जिवाई, जीव राख्या माँस नहीं भख्या, ऐसे पीर मुहम्मद भाई।
मारी गऊ ले शब्द तलवार, जीवत हुई नहीं अल्लाह से करी पुकार।
तब हमों (मुझको) मुहम्मद ने याद किया रे।शब्द स्वरूप हम बेग गया रे।
मुई गऊ हमने तुरन्त जीवाई। तब मुहम्मद कै निश्चय आई।।
तुम कबीर अल्लाह दर्वेशा। मोमिन मुहम्मद का गया अंदेशा।।
कहा मुहम्मद सुन जिन्दा साहेब।तुम अल्लाह कबीर और सब नायब।।

“कुरआन शरीफ” की सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में भी है, कुरआन शरीफ के ज्ञान दाता को हजरत मुहम्मद तथा मुसलमान धर्म के सर्व श्रद्धालु अपना खुदा मानते हैं, उसी को पूर्ण परमात्मा भी मानते हैं, इन 52 से 59 आयतों में कुरआन ज्ञान दाता ने कहा है कि हे पैगम्बर! हजरत मुहम्मद! जो कुरआन की आयतों में मैंने तुझे जो ज्ञान दिया है, तुम उस पर अडिग रहना। अल्लाह कबीर है और ये काफिर उस अल्लाह पर विश्वास नहीं करते। तुम इनकी बातो में न आना, इनके साथ संघर्ष करना, झगड़ा नहीं करना। हे पैगम्बर! यह कबीर नामक परमात्मा है जिसने किसी को बेटा, बहु, सास, ससुर व नाती बनाया है, तुम उस जिन्दा पर भरोसा रखना। (जो तुझे काबा में मिला था) वह वास्तव में अविनाशी परमात्मा है, वह अपने बन्दों (भक्तों) के गुनाहों (पापों) को क्षमा कर देता है, वह कबीर अल्लाह है। यह कबीर अल्लाह वही है जिसका वर्णन बाईबल ग्रन्थ में उत्पत्ति ग्रन्थ में आता है कि उस परमात्मा ने छः दिन में आसमान और धरती तथा इसके बीच के सर्व नक्षत्र बनाए हैं अर्थात् सर्व सृष्टि की रचना की और सातवें दिन तख्त पर जा बैठा। उसकी खबर किसी बाहखबर अर्थात् तत्वदर्शी सन्त से पूछो।

हजरत मुहम्मद जी माँस नहीं खाते थे | Prophet Muhammad did not eat meat

सन्त गरीब दास महाराज (गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर) ने अपनी अमृतवाणी में भी स्पष्ट किया है कि हजरत मुहम्मद तथा एक लाख अस्सी हजार जो आदम से मुहम्मद तक नबी हुए हैं तथा मुहम्मद के उस समय अनुयायी मुसलमान थे, उन्होंने माँस नहीं खाया तथा गाय को बिस्मल (हत्या) नहीं किया।

गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगन्ध, जिन नहीं करद चलाया।।
अर्स-कुर्स पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।

भावार्थ:- संत गरीब दास जी ने बताया है कि नबी मुहम्मद को मैं प्रणाम करता हूँ। वे तो परमात्मा के रसूल (संदेशवाहक) थे। उनके एक लाख अस्सी हजार मुसलमान अनुयायी मुहम्मद जी के समय में हुए हैं। एक लाख अस्सी हजार नबी भी बाबा आदम से हजरत मुहम्मद तक हुए हैं। मैं (गरीब दास जी) कसम खाता हूँ कि उन्होंने (एक लाख अस्सी हजार नबियों तथा अनुयाइयों ने) तथा हजरत मुहम्मद जी ने ज्ञान होने के बाद कभी किसी जीव पर करद (छुरा) नहीं चलाया अर्थात् कभी भी जीव हिंसा नहीं की और माँस नहीं खाया। परमात्मा आसमान के अन्तिम छोर (सर्व ब्रह्माण्डों के ऊपर के स्थान) पर विराजमान है, परन्तु उसकी नजरों से कोई भी जीव छिपा नहीं है, वह सर्व जीवों को देखता है। वे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद तथा अन्य) पवित्र आत्माऐं थे। वे परमात्मा के कृपा पात्र थे।

सन्त जम्भेश्वर महाराज जी के विचार:- | Viewpoint of Sant Jambheshwar on Prophet Muhammad

इसी बात की गवाही सन्त जम्भेश्वर जी महाराज (बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक) ने दी है। शब्द संख्या 12 में:-

महमद-महमद न कर काजी, महमद का तो विषम विचारू।
महमद हाथ करद न होती, लोहे घड़ी न सारू।
महमद साथ पयबंर सीधा, एक लाख अस्सी हजारूं।
महमद मरद हलाली होता, तुम ही भए मुरदारूं।

भावार्थ:- सन्त जम्भेश्वर जी ने बताया है कि:- हे काजी! आप उस पवित्र आत्मा मुहम्मद जी का नाम लेकर जो गाय या अन्य जीवों को मारते हो, उस महापुरूष को बदनाम करते हो, हजरत मुहम्मद जी के विचार बहुत नेक थे। आप उनके बताए मार्ग से भटक गए हैं, मुहम्मद जी के हाथ में करद (जीव काटने का छुरा) नहीं था, जो लोहे का अहरण पर घण कूटकर तैयार होता है। हजरत मुहम्मद के साथ एक लाख अस्सी हजार पवित्रात्माऐं मुसलमान अनुयाई थे। वे तथा हजरत आदम से हजरत मुहम्मद तक नबी हुए हैं। वे सीधे-साधे थे तथा नेक पैगम्बर थे। हजरत मुहम्मद तो शूरवीर हलाल की कमाई करके खाने वाले थे। तुम ही मुरदारू (जीव हिंसा करने वाले) हो। आप उस महापुरूष के अनुसार अपना जीवन निष्पाप बनाओ। जीव हिंसा मत करो।

सन्त जम्भेश्वर को परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में समराथल में मिले थेः-

जैसा कि वेदों में प्रमाण है कि परमात्मा सत्यलोक में रहता है, वहाँ से गति करके पृथ्वी पर प्रकट होता है, अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको आध्यात्मिक यथार्थ ज्ञान देता है, कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर विचरता है। जिस कारण से प्रसिद्ध कवियों में से भी एक कवि होता है। वह कवि की उपाधि प्राप्त करता है, परमात्मा गुप्त भक्ति के मन्त्र को उद्घृत करता है जो वेदों व कतेबों आदि-आदि पोथियों में नहीं होता। कृपया इन मन्त्रों का अनुवाद देखें फोटोकापियों में इसी पुस्तक के पृष्ठ 202 पर।

प्रमाण:- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मन्त्र 26-27, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मन्त्र 1, 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 से 20 जैसा कि पूर्व में लिख दिया है कि हजरत मुहम्मद जी तथा अन्य कई महात्माओं को परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में मिला था उसी प्रकार महात्मा जम्भेश्वर जी महाराज को समराथल में जिन्दा सन्त के रूप में परमात्मा मिले थे।

प्रमाण:- श्री जम्भेश्वर जी की वाणी शब्द संख्या = 50 का कुछ अंश:-

दिल-दिल आप खुदाय बंद जाग्यो, सब दिल जाग्यो सोई।
जो जिन्दो हज काबै जाग्यो, थल सिर जाग्यो सोई।।
नाम विष्णु कै मुसकल घातै, ते काफर सैतानी।
हिन्दु होय का तीर्थ न्हावै, पिंड भरावै, तेपण रहा इवांणी।
तुरक होय हज कांबो धोके, भूला मुसलमाणी।
के के पुरूष अवर जागैला, थल जाग्यो निज वाणी।

भावार्थ:- श्री जम्भेश्वर महाराज जी ने बताया है कि जो परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में हजरत मुहम्मद जी को काबा (मक्का) में उस समय मिला था जिस समय मुहम्मद जी हज के लिए मक्का में बनी मस्जिद काबा गए थे और उनको जगाया था कि मन्दिर-मस्जिद, आदि तीर्थ स्थानों पर चक्कर लगाने से परमात्मा नहीं मिलता, परमात्मा प्राप्ति के लिए मन्त्र जाप की आवश्यकता है। श्री जम्भेश्वर जी महाराज ने फिर बताया है कि वही परमात्मा थल सिर (समराथल) स्थान (राजस्थान प्रान्त) में आया और मुझे जगाया? न जाने कितने व्यक्ति और जागेंगे जैसे मेरा समराथल प्रसिद्ध है। यह मेरी निज वाणी यानि विशेष वचन है। मैंने अपनी अनुभव की खास (निज) यथार्थ वाणी बोलकर समराथल के व्यक्तियों में परमात्मा भक्ति की जाग्रति लाई है, सत्य से दूर होकर मुसलमान अभी भी काबे में हज करने जाते हैं, वहाँ धोक लगाते हैं, पत्थर को सिजदा करते हैं जो व्यर्थ है। इसी प्रकार हिन्दू भी तीर्थ पर जाते हैं, भूतों की पूजा करते हैं, पिण्ड भराते हैं, यह व्यर्थ साधना है।

‘‘कुरआन ज्ञान दाता के माँस आहार के विषय में निर्देश’’ | Orders about Consumption of Meat by Giver of Knowledge of Quran

सूरः अल्-माइदा-5

आयत नं. 1:- ऐ लोगो! जो इमान लाए हो यानि मुसलमान बने हो। प्रतिबंधों का पूर्ण रूप से पालन करो यानि मेरी बनाई मर्यादा का पालन करो।

तुम्हारे खाने के लिए चैपायों की जाति के सब जानवर हलाल (वैध) किए हैं सिवाय उनके जो तुमको आगे चलकर बताएँगे, लेकिन हराम की हालत में शिकार को अपने लिए हलाल (वैध) न करो, बेशक अल्लाह जो चाहता है, हुक्म देता है।

{जो चार पाँव वाले जानवर खाने के लिए जायज बताए हैं, वे हैं:- ऊँट, गाय, भेड़, बकरी आदि।}

सूरः माइदा-5

आयत नं. 3:- तुम पर हराम किया गया।(यानि जो खाना पाप है, वे जानवर बताए हैं) मुर्दार, खून, सूअर का माँस, वे जानवर जो अल्लाह के सिवाय किसी और के लिए जब्ह (मारा गया हो, उसको भोग लगा हो) किया गया हो। वह जो गला घुटकर या चोट खाकर या ऊँचाई से गिरकर या टक्कर खाकर मरा हो या किसी हिंसक जानवर ने फाड़ा हो। सिवाय उसके जिसे तुमने जीवित पाकर जब्ह न कर लिया हो और वह किसी स्थान पर जब्ह किया हो यानि जिस स्थान पर अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति हो और यह भी तुम्हारे लिए नाजायज है और पाँसों (टौस डालकर) के द्वारा अपना भाग्य मालूम करो। ये सारे उपरोक्त काम आदेश उल्लंघन के हैं।

सूरा अल् मोमिन-40

आयत नं. 79:- अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए चैपाए बनाए हैं ताकि इनमें से किसी पर तुम सवार हो और किसी का गोश्त (माँस) खाओ।

‘‘सृजनकर्ता का मानव के खाने के लिए निर्देश व आदेश’’ | Direction & Order of The Creator to Humans about Food

बाईबल ग्रंथ में उत्पत्ति विषय में अध्याय 1-2 में उत्पत्ति 1रू26:- फिर परमेश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ। और वे समुद्र की मछलियों और आकाश के पक्षियों और घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी पर सब रेंगने वाले जंतुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।(26)

{अधिकार रखने से तात्पर्य है कि मानव अन्य प्राणियों से बुद्धिमान बनाया है जो सब प्राणियों को काबू कर सके। इनको खाने का निर्देश नहीं है।}

1-27:- तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। नर-नारी करके उसने मनुष्य की सृष्टि की।

1-28:- परमेश्वर ने मनुष्य को आशीष दी और उनसे कहा:-

फूलो, फलो और पृथ्वी के ऊपर भर जाओ।

मनुष्यों के भोजन के लिए निर्देश:-

1-29:- फिर परमेश्वर ने उनसे (मनुष्यों से) कहा, सुनो! जितने बीज वाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं (यानि बाजरा, ज्वार, गेहूँ, चावल, चना, मक्का, काजू, बादाम, पिस्ता आदि-आदि) और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं (आम, अमरूद, जामुन, केले, अंगूर आदि), वे सब मैंने तुमको दिए हैं, वे तुम्हारे भोजन के लिए हैं।

1-30:- और जितने पृथ्वी के पशु और आकाश के पक्षी और पृथ्वी पर रेंगने वाले जंतु हैं जिनमें जीवन के प्राण हैं, उन सबके खाने के लिए मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं। और वैसा ही हो गया।

1-31:- तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, देखा तो क्या देखा कि वह बहुत अच्छा है। तथा सांझ हुई। फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया।

अध्याय 2 में 2-2:- यों आकाश और पृथ्वी और उसकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था, सातवें दिन समाप्त किया और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।

2-3:- और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी तथा पवित्र ठहराया क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया।

विशेष:- मानव के भोजन के विषय में यह आदेश उस अल्लाह का जिसके विषय में कुरआन की सूरः फुरकानि-25 की आयत नं. 52-59 में वर्णन है कि ’’कबीर अल्लाह ने सर्व सृष्टि की रचना छः दिन में की। फिर ऊपर आसमान में तख्त (सिंहासन) पर जा विराजा। उसकी खबर यानि सम्पूर्ण जानकारी किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। (उससे जानो।)‘‘

यह कादर अल्लाह (अल्लाह ताला) है, सृष्टि का रचनहार है। इसने जो रचना करनी थी, छः दिन में की तथा जो प्राणियों के खाने का आदेश देना था, दिया और सातवें दिन ऊपर आसमान में अपने निज निवास में तख्त पर जा बैठा जिसका आदेश मानव (नर-नारी) को माँस खाने का नहीं है। इसके आदेश की अवहेलना करके अन्य का आदेश पालन करके माँस खाने वाले परमेश्वर का विधान भंग कर रहे हैं जो दंडित किए जाएँगे।

विशेष:- बाईबल के इस कथन से सिद्ध होता है कि सृष्टि रचना करने वाले ने अपने वचन से अनेकों स्त्री-पुरूषों (मनुष्यों) की उत्पत्ति की थी तथा अनेकों पशु, पक्षियों तथा पृथ्वी व जल के जीव-जंतुओं की उत्पत्ति की थी। जैसे कहा है कि {बाईबल उत्पत्ति 1:25} छठे दिन:- इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को और जाति-जाति के भूमि पर रेंगने वाले सब जंतुओं को बनाया।

1:26-27:- तब परमेश्वर ने मनुष्यों को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। नर-नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की। जो बाईबल में आगे वर्णन है, यह प्रलय के बाद का है। फिर भी हमने माँस न खाने वाला प्रकरण समझना है। इससे स्पष्ट है कि पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) यानि परमेश्वर का आदेश मानव को माँस खाने का नहीं है। माँस खाने से पाप लगता है। आगे पढ़ें विस्तृत वर्णन:-

अल्लाह के तख्त पर जाने के पश्चात् काल ब्रह्म ने इसमें पुनः मानव रचना की। उसका वर्णन आगे है। काल ब्रह्म ने अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) को यहाँ का संचालक बनाया है। कर्मों के अनुसार फल देना इनके अधिकार में दिया है। स्वयं गुप्त रहता है।

आगे इस पवित्र ग्रंथ बाईबल में कहीं पर माँस खाने का निर्देश है, वह उस पूर्ण ब्रह्म (ब्वउचसमजम ळवक) का नहीं है। इसी प्रकार यदि पवित्र बाईबल में या पवित्र कुरआन में कहीं माँस खाने का आदेश है तो वह पूर्ण ब्रह्म (कादर अल्लाह) का नहीं है। वह हमने नहीं मानना है।

‘‘सूक्ष्मवेद (कलामे कबीर) में कादर अल्लाह का निर्देश’’ | Orders of Almighty God in Sukshmved (Kalam-e-Kabir)

हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों (एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया। केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख अस्सी हजार पैगंबर हुए हैं तथा जो उनके अनुयाई थे, उनको कसम है कि उन्होंने कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद नहीं चलाया अर्थात् जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मुहम्मद, हजरत मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर (संदेशवाहक) तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन/काल) के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर (सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर अर्थात् अल्लाह कबीर) है उस सृष्टि के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।

मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।

भावार्थ: एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो। आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्र बन रहे हो।

कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि।
ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।1।।
कबीर-माँस खांय ते ढेड़ सब, मद पीवैं सो नीच।
कुल की दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।2।।
कबीर-माँस भखै और मद पिये, धन वेश्या स्यों खाय।
जुआ खेलै चोरी करै, अंत समूला जाय।।5।।
कबीर-माँस माँस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय।
आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।।6।।
कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय।
मुख में आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।7।।
कबीर-पापी पूजा बैठिकै, भखै माँस मद दोइ।
तिनकी दीक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होइ।।10।।
कबीर-जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय।
निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।14।।
कबीर-तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान।
काशी करौंत ले मरै, तौ भी नरक निदान।।16।।
कबीर-बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल।
जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल।।18।।
कबीर-मुल्ला तुझै करीम का, कब आया फरमान।
घट फोरा घर घर बांटा, साहबका नीसान।।21।।
कबीर-काजी का बेटा मुआ, उर में सालै पीर।
वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।22।।
कबीर-पीर सबन को एकसी, मूरख जानैं नाहिं।
अपना गला कटाय के, क्यों न बसो भिश्त के माहिं।।23।।
कबीर-मुरगी मुल्ला से कहै, जबह करत है मोहिं।
साहब लेखा माँगसी, संकट परि है तोहिं।।24।।
कबीर-जोर करि जबह करै, मुख से कहै हलाल।
साहब लेखा माँगसी, तब होसी कौन हवाल।।28।।
कबीर-जोर कीयां जुलूम है, मांगै ज्वाब खुदाय।
खालिक दर खूनी खडा, मार मुहीं मुँह खाय।।29।।
कबीर-गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल।
साहब लेखा माँगसी, तब होसी जबाब-सवाल।।30।।
कबीर-गला गुसा का काटिये, मियां कहर को मार।
जो पाँचू बिस्मिल करै, तब पावै दीदार।।31।।
कबीर-ये सब झूठी बंदगी, बेरिया पाँच नमाज।
सांचहि मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज।।32।।
कबीर-दिन को रोजा रहत हैं, रात हनत है गाय।
यह खून वह बंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।33।।
कबीर-कबिरा तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।36।।
कबीर-खूब खाना है खीचड़ी, माँहीं परी टुक लौन।
माँस पराया खाय के, गला कटावै कौन।।37।।
कबीर-कहता हूँ कहि जात हूँ, कहा जो मान हमार।
जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटै तुम्हार।।38।।
कबीर-हिन्दू के दया नहीं, मिहर तुरक कै नाहिं।
कहै कबीर दोनूं गया, लख चैरासी माहिं।।39।।
कबीर-मुसलमान मारै करद से, हिंदू मारे तरवार।
कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं जम के द्वार।।40।।

उपरोक्त अमृतवाणी में कबीर खुदा (परमेश्वर) ने समझाया कि जो व्यक्ति माँस खाते हैं, शराब पीते हैं, सत्संग सुनकर भी बुराई नहीं त्यागते, उपदेश प्राप्त नहीं करते, उन्हें तो साक्षात राक्षस जानों। अनजाने में गलती न जाने किससे हो जाए। यदि वह बुराई करने वाला व्यक्ति सत्संग विचार सुनकर बुराई त्याग कर भगवान की भक्ति करने लग जाता है वह तो नेक आत्मा है, वह चाहे किसी जाति व धर्म का हो। जो माँस आहार तथा सुरा पान त्याग कर प्रभु भक्ति नहीं करता वह तो ढे़ड (नीच) व्यक्ति है, चाहे किसी जाति या धर्म का हो। भावार्थ है कि उच्च कर्म करने वाला उच्च है तथा नीच कर्म करने वाला नीच है। जाति या धर्म विशेष में जन्म मात्र से उच्च-नीच नहीं होता। जिन साधकों ने उपदेश ले रखा है उन्हें उपरोक्त प्रकार के बुराई करने वालों के पास नहीं बैठना चाहिए जिससे आपकी भक्ति में बाधा पड़ेगी।(साखी 1-2)

जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, जो स्त्री वैश्यावृति करती है तथा जो व्यक्ति उससे व्यवसाय करवा कर वैश्या से धन प्राप्त करते हैं, जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते है, समझाने से भी नहीं मानते, वह तो महापाप के भागी हैं तथा घोर नरक में गिरेंगे।(साखी 5)

माँस चाहे गाय, हिरनी तथा मुर्गी आदि किसी प्राणी का है जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं। जो व्यक्ति अनजाने में माँस खाते हैं(जैसे आप किसी रिश्तेदारी में गए, आपको पता नहीं लगा कि सब्जी है या माँस, आपने खा लिया) तो आप को दोष नहीं, परन्तु आगे से अति सावधान रहना। जो व्यक्ति आँखों देखकर भी खा जाते हैं वे दोषी हैं। यह माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है।(साखी 6-7)

जो गुरुजन माँस भक्षण करते हैं तथा शराब पीते हैं उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करने वालों कीे मुक्ति नहीं होती अपितु महा नरक के भागी होंगे।(साखी 10)

जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं (चाहे गाय, सूअर, बकरी, मुर्गी, मनुष्य, आदि किसी भी प्राणी को स्वार्थवश मारते हैं) वे महापापी हैं, (भले ही जिन्होंने पूर्ण संत से पूर्ण परमात्मा का उपदेश भी प्राप्त है) वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।(साखी 14)

जरा-सा (तिल के समान) भी माँस खाकर भक्ति करता है, चाहे करोड़ गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। माँस आहारी व्यक्ति चाहे काशी में करौंत से गर्दन छेदन भी करवा ले वह नरक ही जायेगा।(नोट - काशी/बनारस के हिन्दूओं के स्वार्थी गुरुओं ने भक्त समाज में भ्रम फैला रखा था कि जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है।

अधिक भीड़ होने लगी तब एक और घातक योजना बनाई उसके तहत कहा कि जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है उसके लिए गंगा पर एक करौंत भगवान का भेजा आता है। उससे गर्दन कटवाने वालों के लिए स्वर्ग के कपाट खुले रहते हैं। उन स्वार्थी गुरुजनों ने मनुष्य हत्या के लिए एक हत्था खोल दिया। श्रद्धालु भक्तों ने आत्मकल्याण के लिए वहाँ गर्दन कटवाना भी स्वीकार कर लिया। परन्तु ज्ञानहीन गुरुओं के द्वारा बताई साधना से भी कोई लाभ नहीं होता)। इसलिए कहा है कि माँस खाने वाला चाहे कितना भी भक्ति तथा पुण्य व दान तथा बलिदान करे उसका कोई लाभ नहीं।(साखी 16)

बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल लोक में ऐसे शाकाहारी सरीफ पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो अधिक बुरा हाल होगा।(साखी 18)

पशु आदि को हलाल, बिस्मिल आदि करके माँस खाने व प्रसाद रूप में वितरित करने का आदेश दयालु (करीम) प्रभु का कब प्राप्त हुआ(क्योंकि पवित्र बाईबल उत्पत्ति ग्रन्थ में पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रची, सातवें दिन ऊपर तख्त पर जा बैठा तथा सर्व मनुष्यों के आहार के लिए आदेश किया था कि मैंने तुम्हारे खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं। उस करीम (दयालु पूर्ण परमात्मा) की ओर से आप को फिर से कब आदेश हुआ? वह कौन-सी कुरआन में लिखा है? पूर्ण परमात्मा सर्व मनुष्यों आदि की सृष्टि रचकर ब्रह्म(जिसे अव्यक्त कहते हो, जो कभी सामने प्रकट नहीं होता, गुप्त कार्य करता तथा करवाता रहता है) को दे गया। बाद में पवित्र बाईबल तथा पवित्र कुरआन शरीफ (मजीद) आदि ग्रन्थों में जो विवरण है वह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का तथा उसके फरिश्तों का है, या भूतों-प्रेतों का है। करीम अर्थात् दयालु पूर्ण ब्रह्म अल्लाहु कबीरू का नहीं है। उस पूर्ण ब्रह्म के आदेश की अवहेलना किसी भी फरिश्ते व ब्रह्म आदि के कहने से करने की सजा भोगनी पड़ेगी।)

उदाहरण:- एक समय एक व्यक्ति की दोस्ती एक पुलिस थानेदार से हो गई। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त थानेदार से कहा कि मेरा पड़ोसी मुझे बहुत परेशान करता है। थानेदार (ैण्भ्ण्व्ण्) ने कहा कि मार लट्ठ, मैं आप निपट लूंगा। थानेदार दोस्त की आज्ञा का पालन करके उस व्यक्ति ने अपने पड़ोसी को लट्ठ मारा, सिर में चोट लगने के कारण पड़ौसी की मृत्यु हो गई। उसी क्षेत्र का अधिकारी होने के कारण वह थाना प्रभारी अपने दोस्त को पकड़ कर लाया, कैद में डाल दिया तथा उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड मिला। उसका दोस्त थानेदार कुछ मदद नहीं कर सका। क्योंकि राजा का संविधान है कि यदि कोई किसी की हत्या करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। उस नादान व्यक्ति ने अपने मित्रादरोगा की आज्ञा मान कर राजा का संविधान भंग कर दिया। जिससे जीवन से हाथ धो बैठा।

ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा की आज्ञा की अवहेलना करने वाला पाप का भागी होगा। क्योंकि कुरआन शरीफ (मजीद) का सारा ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन, जिसे आप अव्यक्त कहते हो) का दिया हुआ है। इसमें उसी का आदेश है तथा पवित्र बाईबल में केवल उत्पत्ति ग्रन्थ के प्रारम्भ में पूर्ण प्रभु का आदेश है। पवित्र बाईबल में हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को उस पूर्ण परमात्मा ने बनाया। बाबा आदम की वंशज संतान हजरत ईस्राईल, राजा दऊद, हजरत मूसा, हजरत ईसा तथा हजरत मुहम्मद आदि को माना है। पूर्ण परमात्मा तो छः दिन में सृष्टि रचकर तख्त पर विराजमान हो गया। बाद का सर्व कतेबों (कुरआन शरीफ आदि) का ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का प्रदान किया हुआ है। पवित्र कुरआन का ज्ञान दाता स्वयं कहता है कि पूर्ण परमात्मा जिसे करीम, अल्लाह कहा जाता है उसका नाम कबीर है, वही पूजा के योग्य है। उसके तत्वज्ञान व भक्ति विधि को किसी बाखबर (तत्वदर्शी संत) से पता करो। इससे सिद्ध है कि जो ज्ञान कुरआन शरीफ आदि का है वह पूर्ण प्रभु का नहीं है।(साखी 21) जब काजी के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो काजी को कितना कष्ट होता है। पूर्ण ब्रह्म(अल्लाह कबीर) सर्व का पिता है। उसके प्राणियों को मारने वाले से अल्लाह खुश नहीं होता।(साखी 22)

दर्द सबको एक जैसा ही होता है। यदि बकरे आदि का गला काट कर हलाल किया कहते हो तो काजी तथा मुल्ला अपना गला छेदन करके हलाल किया क्यों नहीं कहते यानि अपनी जान प्रिया लगती है, क्या बकरे को अपनी जान प्रिया नहीं है?(साखी 23)

जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन। जब परमेश्वर के घर न्याय अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा।(साखी 24)

जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी को मारते हो, कहते हो हलाल कर रहे हैं। इस दोगली नीति का आपको महा कष्ट भोगना होगा। काजी तथा मुल्ला व कोई भी जीव हिंसा करने वाला व्यक्ति पूर्ण प्रभु के कानून का उल्लंघन कर रहा है, वह वहाँ धर्मराज के दरबार में खड़ा-खड़ा पिटेगा। यदि हलाल ही करने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ आदि को कर।

पाँच समय नमाज भी पढ़ते हो तथा रमजान के महीने में दिन में रोजे (व्रत) भी रखते हो। शाम को गाय, बकरी, मुर्गी आदि को मार कर माँस खाते हो। एक तरफ तो परमात्मा की स्तुति करते हो दूसरी ओर उसी के प्राणियों की हत्या करते हो। ऐसे प्रभु कैसे खुश होगा? अर्थात् आप स्वयं भी पाप के भागी हो रहे हो तथा अनुयाईयों (साहबाओं) को भी गुमराह करने के दोषी होकर जहन्नम में गिरोगे।(साखी 28 से 33)

कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि हे काजी!, हे मुल्ला! आप पीर (गुरु) भी कहलाते हो। पीर तो वह होता है जो दूसरे के दुःख (पीड़) को समझे उसे, संकट में गिरने से बचाए। किसी को कष्ट न पहुँचाए। जो दूसरे के दुःख में दुःखी नहीं होता वह तो काफिर (अवज्ञाकारी) बेपीर (निर्दयी) है। वह पीर (गुरु) के योग्य नहीं है।(साखी 36)

उत्तम खाना नमकीन खिचड़ी है उसे खाओ। दूसरे का गला काटने वाले को उसका बदला देना पड़ता है। यह जान कर समझदार व्यक्ति प्रतिफल में अपना गला नहीं कटाता। दोनों ही धर्मों के मार्ग दर्शक निर्दयी हो चुके हैं। हिन्दूओं के गुरु कहते हैं कि हम तो एक झटके से बकरे आदि का गला छेदन करते हैं, जिससे प्राणी को कष्ट नहीं होता, इसलिए हम दोषी नहीं हैं तथा मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शक कहते हैं हम धीरे-धीरे हलाल करते हैं जिस कारण हम दोषी नहीं। परमात्मा कबीर साहेब जी ने कहा यदि आपका तथा आपके परिवार के सदस्य का गला किसी भी विधि से काटा जाए तो आपको कैसा लगेगा?(साखी 37 से 40)

बात करते हैं पुण्य की, करते हैं घोर अधर्म। दोनों दीन नरक में पड़हीं, कुछ तो करो शर्म।। कबीर परमेश्वर ने कहा:-

हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे, बिसमिल की नहीं बात कही रे।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद को मैं (कबीर अल्लाह) सतलोक ले कर गया था। परंतु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी को काल ब्रह्म से पर्दे के पीछे से जो आदेश मिला था, वह उस आदेश में काल ने भी रोजा (व्रत) बंग (ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था, परंतु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा। कुरआन में बाद में फरिस्ते का आदेश लिखा है, वह महापाप है।

‘‘पवित्र ग्रंथ कुरआन में प्रवेश से पहले’’ | Prior to entering into Holy Quran

पाक ग्रंथ कुरआन को समझने के लिए कुछ मुख्य बातें हैं जिनका ध्यान रखना अनिवार्य हैः-

  1. कुरआन मजीद का ज्ञान नाजिल करने वाले खुदा ने अपने नबी-ए-करीम मुहम्मद (सल्लम) को सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले अल्लाह के विषय में सम्पूर्ण जानकारी नहीं दी है। प्रमाण:- सूरः फुरकानि-25 आयत नं. 59 में लिखा है कि (हे मुहम्मद) अल्लाह ने सारी कायनात को छः दिन में उत्पन्न किया। फिर आसमान में तख्त (सिंहासन) पर जा बैठा। उसकी (खबर) सम्पूर्ण जानकारी किसी (बाखबर) जानकार यानि तत्त्वदर्शी संत से पूछो।(जानो)

  2. सूरः अश शूरा-42 आयत नं. 1-2 में (कोड वर्ड) सांकेतिक शब्द हैं। उनका ज्ञान किसी मुसलमान को नहीं है जो अहम हैं। आयत नं. 1) ’’हा. मीम्, अैन. सीन. काफ. ’’ ये अक्षर लिखे हैं जो जाप करने का नाम है। नाम के जाप बिन जीव का कल्याण नहीं हो सकता।

  3. नबी मुहम्मद जी को कुरआन ज्ञान देने वाला खुदा प्रत्यक्ष नहीं मिला। पर्दे के पीछे से नमाज आदि करने का हुक्म हुआ था।

  4. नबी मुहम्मद जी को डरा-धमकाकर कुरआन मजीद वाला ज्ञान नाजिल किया (उतारा)। नबी मुहम्मद (सल्लम) ने बताया था कि मेरा गला घोंट-घोंटकर जबरिल फरिश्ते ने कुरआन ज्ञान पढ़ने के लिए विवश किया। तीसरी बार जब गला भींचा तो लगा कि मेरी जान निकल जाएगी। एक प्रकार की वह्य (संदेश) जब आती थी तो उसमें नबी जी को बहुत कष्ट होता था। यह वह्य जब आती थी तो घंटियाँ बजती सुनाई देती थी। नबी जी ने बताया कि मुझे बहुत कष्ट होता था।

  5. कुरआन मजीद में माँस खाने की आज्ञा है, परंतु सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले कादर अल्लाह ने बाईबल ग्रंथ में उत्पत्ति विषय के अध्याय में मनुष्यों के खाने के लिए बीज वाले छोटे-छोटे पेड़ (पौधे) तथा फलदार वृक्षों के फल बताए हैं।

  6. नबी मुहम्मद जी की शेष मेअराज सत्य हैं जो इस प्रकार हैं:-

शेष मेअराज (Al Miraj)

पवित्र कुरआन मजीद का अमृत ज्ञान पाक आत्मा हजरत मुहम्मद जी को मिला। हजरत मुहम्मद जी थे तो कुरआन का ज्ञान हमारे बीच में है। इसलिए नबी मुहम्मद जी का अनुभव कुरआन मजीद से कम महत्व नहीं रखता।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद जी की जीवनी में एक अनमोल प्रसंग है जो इस प्रकार हैः-

एक सुबह नबी मुहम्मद जी ने अपने साथियों को आपबीती बताई कहा कि आज रात्रि में जबरील फरिस्ता आया। मेरे सीना चाक करके (खोल करके) पवित्र वस्तु डाली और फिर वैसा ही कर दिया। फिर मेरे को एक बुराक नामक (खच्चर जैसे) जानवर पर बैठाकर आकाश में उड़ा ले गया। प्रथम आसमान पर जन्नत (स्वर्ग) में ले गया। वहाँ एक आदमी जन्नत तथा जहन्नम के मध्य में बैठा था। जन्नत (स्वर्ग) की ओर मुख करता था तो खिल-खिलाकर हँसता था। तब जहन्नम (नरक) की ओर देखता था तो फूट-फूटकर रोने लगता था। मैंने (नबी मुहम्मद जी ने) जबरील फरिस्ते से पूछा कि हे जबरील! यह आदमी कौन है? तथा यह दाँई (right) ओर मुख करता है तो खिल-खिलाकर हँसता है तथा बाँई (left) ओर देखता है तो रोने लगता है। कारण क्या है?

जबरील फरिस्ते ने बताया कि यह सब आदमियों का पिता आदम जी है। बायीं ओर दोजख (नरक) है। नरक में इसकी बुरे कर्म करने वाली संतान है, वह नरक में कष्ट भोग रही है जो अल्लाह के बताए भक्ति मार्ग पर नहीं चली। उसे दुःखी देखकर रोता है तथा दायीं ओर जन्नत है। उसमें इनकी वह संतान है जिसने अल्लाह के आदेशानुसार इबादत की जो महासुखी है। उसे देखकर खुशी से हँसता है। हजरत मुहम्मद जी ने आगे बताया कि जब मैं जबरील के साथ बाबा आदम के निकट गया तो उन्होंने कहा कि आओ नेक नबी! नेक बेटे! यह कहकर मेरे को सीने से लगाया और कौम की उन्नति करने का आशीर्वाद दिया। फिर जबरील फरिस्ता मुझे आगे जन्नत में ऐसे स्थान पर (दूसरे आसमान पर) ले गया जहाँ पर नबियों की जमात बैठी थी। हजरत दाऊद जी, हजरत मूसा जी, हजरत ईसा आदि एक लाख अस्सी हजार नबी वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने मेरे को विशेष सम्मान दिया। मैंने उन सबको नमाज अदा करवाई। इसके पश्चात् जबरील ने मेरे को ऊपर जाने को कहा और जबरील तथा बुराक दोनों वहीं रह गए। मैं अकेला (नबी मुहम्मद जी) आगे गया, सीढ़ियां चढ़ी। तब पर्दे के पीछे से आवाज आई कि पचास नमाज प्रतिदिन करो तथा अपने अनुयाईयों से करवाओ। रोजा रखो, अजान (बंग) लगाओ, जाओ। मैं वापिस आ गया जिस स्थान पर सब नबी मंडली बैठी थी। मुझे देखकर मूसा जी आए और पूछा कि अल्लाह ने क्या हुक्म फरमाया? मैंने (हजरत मुहम्मद जी ने) बताया कि मुझे तथा मेरी कौम को पचास समय नमाज करने का आदेश दिया है तथा रोजा (व्रत) तथा अजान (बंग) लगाने को भी कहा है। तब मूसा जी ने कहा कि प्रतिदिन पचास वक्त नमाज कौम नहीं कर पाएगी, कुछ कम करवाओ। वापिस जाओ, अर्ज करो। करते-कराते अंत में पाँच वक्त नमाज का हुक्म मिला। रोजा तथा अजान भी करना फरमाया।(जो वर्तमान में किया जा रहा है) नबी मुहम्मद जी ने फिर बताया कि फिर जन्नत के नजारे दिखाने के लिए मुझे जबरील फरिस्ता जन्नत में कई स्थानों पर ले गया। वहाँ की शोभा अनोखी है। अनेकों नेक आत्माएँ वहाँ निवास करती हैं। फिर जबरील ने मुझे बुराक पर बैठाकर वापिस जमीन पर छोड़ दिया। तब यह सत्य घटना बताई। जन्नत व जहन्नम में जो कुछ वर्तमान में है, उसके चश्मदीद गवाह (eye witness) नबी मुहम्मद जी हैं।

मौलवी साहेबान तर्क देते हैं कि बाबा आदम बायीं ओर बद-संतान के कर्म देखकर रो रहे थे। दायीं ओर नेक संतान के कर्म देखकर हँस रहे थे। उसकी संतान तो कब्रों में है। लेखक का वितर्क यह है कि आपके नियम के अनुसार तो हजरत आदम जी से हजरत ईसा जी तक को भी कब्रों में रहना चाहिए था जो नबी मुहम्मद जी ने ऊपर जन्नत में देखे, बातें की, उनको नमाज पढ़ाई। आदम जी क्या अच्छे-बुरे कर्म दीवारों पर देखकर हँस-रो रहे थे? उनके दायीं ओर स्वर्ग था तथा बायीं ओर नरक था। उनकी संतान भी जहन्नम तथा जन्नत में थी।

अन्य प्रमाण:- आसमान की यात्रा के बाद हजरत मुहम्मद से उसके चाचा ने पूछा कि तेरा दादा भी देखा। वह जन्नत में है या जहन्नम में? मुहम्मद जी ने कहा, जहन्नम (नरक) में देखा। यह सुनकर उनका चाचा मुहम्मद जी से बहुत नाराज हो गया और बोला, तू मेरे पिता जी को जहन्नम में बता रहा है। झूठा है। नबी जी ने कहा कि मैंने जो देखा, वही बताया है। मुहम्मद का चाचा पूरा विरोधी बन गया था। सच्चाई वही है जो ऊपर बताई है कि बाबा आदम की अच्छी-बुरी संतान नरक व स्वर्ग में देखी थी।

‘‘जन्म तथा मृत्यु पर विवेचन’’ | Deliberation on Birth & Death

‘‘इस्लाम धर्म के प्रचारकों द्वारा बताया गया विधान गलत है’’

मैंने (रामपाल दास ने) इस्लाम के प्रसिद्ध प्रचारकों तथा अन्य मौलवी साहेबानों के विचार भी पढ़े। उन्होंने बताया कि इस्लाम नहीं मानता कि जन्म-मृत्यु यानि फिर जन्म, फिर मृत्यु, फिर जन्म, फिर मृत्यु, जैसे हिन्दू धर्म मानता है जो उनकी प्रसिद्ध पुस्तक श्रीमद्भगवद् गीता के अध्याय 2 श्लोक 22 में लिखा है कि ‘‘जैसे व्यक्ति पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र पहन लेता है, ऐसे ही जीवात्मा वर्तमान शरीर को त्यागकर यानि मृत्यु को प्राप्त होकर नया शरीर यानि नया जन्म प्राप्त करती रहती है तथा गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि हे अर्जुन! तू, मैं तथा ये सब योद्धा पहले भी जन्में थे, आगे भी जन्मेंगे। तू यह मत समझ कि केवल वर्तमान में ही जन्मे हैं।

मुस्लिम उलेमा (विद्वान) जोर देकर कहते हैं कि जो हिन्दू शास्त्रों में लिखा है और हिन्दू मानते हैं। (जो ऊपर बताया है।) इस्लाम धर्म के ग्रंथों में कहीं नहीं लिखा है बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु का होना, हम नहीं मानते। मुस्लिम विद्वान बताते हैं कि इस्लाम का यह नियम है कि बाबा आदम जी हम सबके प्रथम पुरूष हैं। प्रथम नबी हैं। बाबा आदम जी से लेकर हजरत मुहम्मद जी तक जितने नबी हुए हैं तथा उन सबकी संतान यानि बाबा आदम जी सब (यहूदी, ईसाई तथा मुसलमानों के परम पिता हैं) तथा वर्तमान तक जितने स्त्री-पुरूष (बालक, जवान, वृद्ध) मर चुके हैं। सबको सम्मान के साथ कब्रों में सुरक्षित रखा गया है। उन सबका जीवात्मा उसके शव में कब्र में तब तक रहेंगे, जब तक कयामत (प्रलय) नहीं आती यानि कयामत के समय केवल जन्नत तथा दोजख (नरक) तथा अल्लाह का तख्त सातवें आसमान वाला बचेगा। शेष पृथ्वी, चाँद, तारे, ग्रह, सूर्य आदि सब नक्षत्र नष्ट हो जाएँगे। वह कयामत खरबों वर्षों के बाद आएगी। उस समय तक जितने आदमी (स्त्री-पुरूष, बालक, वृद्ध, जवान) मरेंगे, वे भी कब्रों में दफनाए जाते रहेंगे। कयामत के समय सबको कब्रों से निकालकर जिलाया (जीवित किया) जाएगा। अल्लाह उनको जीवित करके उनके कर्मों अनुसार जन्नत तथा जहन्नम में रखेगा। जिन्होंने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक धार्मिक कर्म किए, उन सबको जन्नत में रखा जाएगा तथा जिन्होंने अल्लाह का हुक्म नहीं माना और मनमर्जी का जीवन जीया, उन सबको दोजख (नरक) की आग में डाला जाएगा।

इस्लाम के विद्वानों ने यह उपरोक्त सिद्धांत इस्लाम धर्म का बताया है। इसका समर्थन सब मौलवी साहेबान भी कर रहे हैं। पूरा मुसलमान समाज इस सिद्धांत को अटल मान रहा है। परंतु सच्चाई इसके विपरित है। आप जी ने हजरत मुहम्मद जी के द्वारा बताया आँखों देखी सच्चाई पूर्व में पढ़ी कि उन्होंने ऊपर जन्नत तथा दोजख में बाबा आदम तथा उसकी अच्छी-बुरी संतान तथा हजरत मुहम्मद से पहले के सब नबी देखे। मुस्लिम विद्वान तथा मौलवी साहेबान अपने ग्रंथों को भी ठीक से नहीं समझे हैं। इसी कारण पूरा मुसलमान समाज भ्रमित है। सच्चाई से परिचित नहीं है। इससे सिद्ध हुआ कि या तो इन सबको इस्लाम के विषय में ज्ञान नहीं और यदि ज्ञान है तो जान-बूझकर झूठी बातों का प्रचार कर रहे हैं। तो ये मुस्लिम समाज के साथ धोखा कर रहे हैं। यह दास (रामपाल दास) मुसलमान भाईयों तथा बहनों से जानना चाहेगा कि आप अपने प्यारे नबी मुहम्मद (वसल्लम) की बात को सत्य मानोगे या इन झूठे प्रचारकों की झूठ को? आपका उत्तर स्पष्ट है कि हजरत मुहम्मद जी की बताई बातों का अक्षर-अक्षर सत्य है।

{कुछ मुसलमान मौलवी व प्रचारक इतने झूठे हैं कि वे अब शिक्षित मानव समाज को भी भ्रमित करने से नहीं चूकते। जब उनसे इस विषय पर ज्ञान चर्चा होती है कि यदि कयामत तक कब्रों में रहने वाला सिद्धांत सही मानें तो हजरत मुहम्मद ने बाबा आदम से लेकर ईसा तक सब नबी ऊपर प्रथम व दूसरे आकाश में देखे। बाबा आदम की अच्छी व बुरी संतान जन्नत व जहन्नम में देखी जिनको देखकर बाबा आदम बायीं ओर मुँह करके रो रहे थे तथा दायीं ओर मुँह करके हँस रहे थे। आपका सिद्धांत तो नबी मुहम्मद जी ही खंड कर रहे हैं। तब वे झूठे नई झूठ बोलते हैं। कहते हैं कि नबियों के लिए छूट है। वे ऊपर जन्नत में जा सकते हैं। दास (लेखक रामपाल) उनसे प्रमाण चाहता है। दिखाओ कुरआन या किसी हदीस या हजरत मुहम्मद जी की यात्रा के वर्णन में या बाईबल में। इनके पास कोई प्रमाण नहीं है। दूसरी बात यह कहते हैं कि बाबा आदम जी दायीं ओर अपनी नेक संतान के कर्म देखकर हँस रहे थे तथा बायीं ओर बद-संतान के कर्म देखकर रो रहे थे। दास (रामपाल दास) उनसे पूछता है कि क्या उनके कर्म दायीं व बायीं ओर दीवारों पर लिखे थे जिनको बाबा आदम पढ़कर हँस-रो रहा था। याद रहे बाबा आदम अशिक्षित थे। सच्चाई वही है जो ऊपर बताई है।} जन्म तथा मृत्यु बार-बार होने का प्रमाण पवित्र कुरआन में भी है जो इस प्रकार है:- पवित्र कुरआन मजीद में सृष्टि, प्रलय तथा जन्म-मरण के विषय में कुछ सूरतों (सूरों) को पढ़ते हैं और विवेचन करते हैं कि:-

सूरत-कहफ- 18

आयत नं. 47:- और (उस दिन की चिंता से बेखटक ना हो) जिस दिन हम पहाड़ों को हटा देंगे (नष्ट कर देंगे) और तुम जमीन को देख लोगे कि खुला मैदान पड़ा है। और हम लोगों को बुलावेंगे और उनमें से किसी को नहीं छोड़ेंगे।(47)

आयत नं. 48:- पांती की पांती तुम्हारे परवरदिगार के सामने पेश किए जाएँगे। (और उनसे कहा जाएगा कि कहो) जैसा हमने तुमको पहले पैदा किया था। वैसे ही तुम हमारे सामने आए हो।

विवेचन:- उपरोक्त वर्णन में स्पष्ट है कि अल्लाह ने पृथ्वी नष्ट नहीं की। उसके ऊपर जो संरचना पहाड़ों व लोगों को तथा उनके घरों को नष्ट किया है। यह पूर्ण प्रलय (कयामत) नहीं कही जा सकती। जैसे मुसलमान प्रचारक बताते हैं कि खरबों वर्षों के पश्चात् जब प्रलय (कयामत) आएगी। उस समय पूरी पृथ्वी, सूर्य, चाँद तथा नक्षत्र नष्ट हो जाएँगे और मुर्दे कब्रों से निकालकर जिंदा किए जाएँगे। जिन्होंने अल्लाह के हुक्म यानि कुरआन के ज्ञान अनुसार जीवन जीया, आज्ञाकारी (मुसलमान बनकर) रहे, उनको जन्नत (heaven) में स्थान मिलेगा तथा जिन्होंने (कुफ्र) अल्लाह की आज्ञा मानने से इंकार किया। वे अवज्ञाकारी जहन्नम (hell) में डाले जाएँगे। इसके पश्चात् केवल जन्नत व जहन्नुम (दोजख) शेष रहेंगे। अल्लाह सातवें आसमान पर सदा मौजूद है, वह रहेगा। पृथ्वी, चाँद, सूरज व सब ग्रह आदि नष्ट हो जाएँगे। सृष्टि नीचे वाली सदा के लिए बंद हो जाएगी। परंतु उपरोक्त उल्लेख जो कुरआन की सूरत कहफ.18 की आयत 47.48 में कहा है कि पृथ्वी तो रहेगी। उस पृथ्वी को तुम देखोगे कि खुला मैदान पड़ा है। उसके ऊपर के पर्वत व अन्य रचना नहीं रहेंगे। और सब लोग परमात्मा के सामने अपने कर्मों का फल प्राप्त करने के लिए पंक्ति (पांती) में खड़े होंगे।

अब पढ़ें सूरत-मुलकि-67 की आयत नं. 2:-

जिस (अल्लाह) ने मरना और जीना बनाया ताकि तुम्हें जाँचे कि तुम में कौन अच्छा काम करता है और वह (अल्लाह) बड़ा बलवान और बड़ा ही क्षमा करने वाला है।

अब पढ़ें ‘‘सूरत-अर रूम-30 की आयत नं. 11:-

अल्लाह पहली बार सृष्टि (खिलकित) को उत्पन्न करता है। फिर उसे दोहराएगा।(पुनरावर्ती करेगा।)

अब पढ़ें (कुरआन मजीद में) सूरत-अंबिया-21 की आयत नं. 104:-

जिस दिन आसमान को इस तरह लपेट लेगा, जिस तरह पुलंदे में कागज लपेट लेते हैं। जिस तरह हमने पहले (काइनात) सृष्टि को पैदा किया था। हम उसे दोहराएँगे।(पुनरावर्ती करेंगे)

अब पढ़ें (कुरआन शरीफ में) सूरत अंबिया-21 आयत नं. 104 का हिन्दी अनुवाद:-

जिस दिन आसमान को इस तरह लपेटेंगे जैसे तुमार (पुलिन्दा) में कागज लपेटते हैं। जिस तरह (काइनात) सृष्टि को हमने पहले पैदा किया था, फिर हम उसे दोहराएंगे। (यह) वादा हमारे जिम्मे है। हमें जरूर करना है।(104)

अब पढे़ं सूरः अल् बकरा-2 की आयत नं. 28:-

तुम अल्लाह के साथ इंकार की नीति कैसे अपनाते हो? जबकि तुम निर्जीव थे। उसने तुम्हें जीवन प्रदान किया। फिर वहीं तुम्हारे प्राण ले लेगा। फिर वही तुम्हें पुनः जीवन प्रदान करेगा। फिर उसी ओर तुम्हें पलटकर जाना है।

अब पढ़ें सूरः अल् बकरा-2 की आयत नं. 29:-

वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती की सारी चीजें पैदा की। फिर ऊपर की ओर रूख किया और सात आसमान ठीक तौर पर बनाए और वह हर चीज का ज्ञान रखने वाला है।

आयत नं. 25 (सूरत-अल् बकरा-2):- {कुरआन मजीद जिसका तर्जुमा अरबी मतन तथा उर्दू तर्जुमा ‘‘हजरत मौलाना अशरफ अली थानवी (रहमतुल्लाहि अलैह) तथा उर्दू से हिन्दी तर्जुमा ‘‘एस.खालिद निजामी ने किया है तथा प्रकाशक कुतुब खाना हमीदिया 342, गली गढ़य्या जामा मस्जिद, दिल्ली-110006 है।}

विशेष:- पाठकों से निवेदन है कि उपरोक्त अनुवादकर्ताओं के द्वारा किया हिन्दी अनुवाद नीचे लिख रहा हूँ। कृपया आप स्वयं पढ़ें और निर्णय करें कि इसका भावार्थ बार-बार जन्म-मृत्यु तथा बार-बार जन्नत (स्वर्ग) में जाना है या अन्य?(लेखक)

सूरः अल बकरा-2 की आयत नं. 25:-

और खुशखबरी सुना दीजिए आप ए पैगम्बर! उन लोगों को जो इमान लाए और काम किए, अच्छे इस बात की कि बेशक उनके वास्ते जन्नतें हैं कि बहती होंगी। उनके नीचे से नहरें, जब कभी दिए जाऐंगे। वे लोग उन जन्नतों में से किसी फल की गिजा, तो हर बार में यही कहेंगे कि यह तो वही है जो हमको मिला था। इससे पहले, और मिलेगा भी उनको दोनों बार का फल मिलता जुलता। और उनके वास्ते उन जन्नतों में बीवियाँ होंगी। साफ, पाक की हुई और वे लोग उन जन्नतों में हमेशा के लिए बसने वाले होंगे।(25)

{कुछ अनुवादकों ने ’’दोनों बार फल एक जैसा मिलेगा‘‘, इसका अर्थ किया है कि खाने का फल जो धरती पर भी मिला था तथा यहाँ जन्नत में भी मिलता-जुलता मिला है। विचार करें कि क्या जन्नत में एक केवल फल ही खाने को मिलेगा। और पदार्थ जन्नत में नहीं हैं? वास्तविक अर्थ इस उपरोक्त अनुवादक ने किया है कि ’’जब नेक बंदे जन्नत में जाएँगे, दोबारा तब उनको याद आएगा कि पहले भी कर्म फल के बदले यही जन्नत का सुख मिला था। अब भी वही कर्मों का प्रतिफल मिला है। और यह सही है कि जब वे दूसरी बार जन्नत में जाएँगे तो उनको कर्मों का फलस्वरूप जन्नत का सुख मिलेगा। जहाँ पर बिबियाँ होंगी साफ पाक की हुई।‘‘ इससे भी जन्म-मृत्यु बार-बार सिद्ध होता है।}

’’पुनर्जन्म संबंधित प्रकरण‘‘ | Issue of Rebirth

सूरः अल बकरा-2 की आयत नं. 243:-

तुमने उन लोगों के हाल पर भी कुछ विचार किया जो मौत के डर से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे और हजारों की तादाद में थे। अल्लाह ने उनसे कहा मर जाओ। फिर उसने उनको दोबारा जीवन प्रदान किया। हकीकत यह है कि अल्लाह इंसान पर बड़ी दया करने वाला है। मगर अधिकतर लोग शुक्र नहीं करते।

‘‘कयामत तक कब्रों में रहने वाले सिद्धांत का खंडन’’ | Concept of Residing in Graves until Judgement Day Challenged

कुरआन की सूरः अल् मुद्दस्सिर-74 आयत नं. 26-27:-

आयत नं. 26:- शीघ्र ही मैं उसे नरक में झोंक दूँगा।

आयत नं. 27:- और तुम क्या जानों कि क्या है वह नरक। {एक वलीद बिन मुगहरह नामक व्यक्ति ने पहले तो मुसलमानी स्वीकार की। उसको अच्छे लाभ भी हुए। वह पहले विरोधियों का सरदार था। बाद में हजरत मुहम्मद जी की खिलाफत करने लगा। कुरआन को जादू करार देने लगा तथा कहने लगा कि यह तो मानव बोली वाणी है। अल्लाह की नहीं है। मुहम्मद नबी को जादूगर बताने लगा। तब कुरआन ज्ञान देने वाले अल्लाह ने कहा, उपरोक्त सूरः मुद्दस्सिर-74 की आयत नं. 26-27 में कि मैं शीघ्र ही उसे नरक में झोंक दूँगा यानि नरक की आग में डाल दूँगा। नरक में भेज दूँगा।

विचार करें पाठकजन! कि कब्र की बजाय शीघ्र नरक में डाला जाने को कहा है जो उस सिद्धांत को गलत सिद्ध करता है जो बताया जाता है कि कयामत तक सब नबी से लेकर सामान्य व्यक्ति तक कब्रों में रहेंगे। हजरत मुहम्मद जी की आसमान वाली यात्रा तो स्पष्ट ही कर रही है कि सब नबी व आदम जी की अच्छी-बुरी संतान ऊपर नरक व स्वर्ग में थे।}

निष्कर्ष:- कुरआन मजीद के ज्ञान के साथ-साथ हजरत मुहम्मद का अनुभव भी कम अहमियत नहीं रखता। हजरत मुहम्मद जैसे नेक नबी का जन्म हुआ तो कुरआन का पवित्र ज्ञान मानव के हाथों आया। जैसे बर्तन शुद्ध है तो घी डाला जाता है। अशुद्ध बर्तन में घी डालना उसे नष्ट करना है। कुरआन का ज्ञान हजरत मुहम्मद जी को किस सूरत में मिला? इसकी जानकारी मुसलमान समाज के बच्चे-बच्चे को है कि जिस अल्लाह ने कुरआन का ज्ञान दिया, उसे मुसलमान समाज अपना खालिक मानते हैं। उसी को कादर (समर्थ) परमात्मा मानते हैं। यह भी मानते हैं कि उस अल्लाह ने जो ज्ञान दिया है। उसे जबरील फरिस्ता ज्यों का त्यों बिना किसी बदलाव के लाया और नबी मुहम्मद जी की आत्मा में डाला। फिर हजरत मुहम्मद जी के मुख से बोला गया। उसको लिखने वालों ने लिखा।

हजरत मुहम्मद जी तो अशिक्षित थे। कुरआन के ज्ञान को हजरत मुहम्मद जी प्राप्त होने की प्रक्रिया में यह भी बताया है कि कभी हजरत को जबरील सामने प्रत्यक्ष होकर ज्ञान बताता। कभी अप्रत्यक्ष रूप में ज्ञान बताता है। कभी अल्लाह ताला सीधे ज्ञान नबी मुहम्मद जी की आत्मा में डाल देता। नबी मुहम्मद चद्दर से मुख ढ़ककर लेट जाता। फिर कुरआन का ज्ञान बोलता। इस प्रकार यह कुरआन का पवित्र ज्ञान प्राप्त हुआ। ऊपर कुरआन की कुछ सूरतों की आयतों का उल्लेख किया है जिनमें यह समझना है कि पुनर्जन्म के विषय में क्या संकेत है?

  • ऊपर विवेचन में आप जी ने पढ़ा कि सूरत-कहफ-18 की आयत 47-48 में कहा है कि प्रलय में पृथ्वी नष्ट नहीं होगी। उसके ऊपर की संरचना जैसे पहाड़, मानव, उनके घर, निवास, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सब नष्ट हो जाएँगे। पृथ्वी एक खुला मैदान पड़ा दिखाई देगा।

  • फिर सूरः मुलकि-67 की आयत नं. 2 में स्पष्ट किया है कि अल्लाह ने मरने और जीने का विधान बनाया है। मानव को जाँचने के लिए कि कौन अच्छा काम करता है, कौन गलत काम करता है।

  • फिर सूरः अर रूम-30 की आयत नं. 11 में कहा है कि अल्लाह पहली बार सृष्टि को उत्पन्न करता है, फिर उसे दोहराएगा (पुनरावर्ती करेगा)।

  • सूरः अंबिया-21 आयत नं. 104 में कहा है कि उस दिन आसमान को इस तरह लपेट देंगे, जैसे पुलंदे में कागज लपेट देते हैं। जिस तरह हमने (काइनात) सृष्टि को पहले पैदा किया था। उसे हम दोहराएँगे, यह वादा हमारे जिम्मे है, हमने जरूर करना है। सूरः अल बकरा-2 आयत नं. 243 में अल्लाह ने मारा। फिर उनको जीवन दिया।

  • सूरः अल मुद्दस्सिर-74 आयत नं. 26.27 में कहा है कि शीघ्र ही नरक में डाल दूँगा। यह क्या जाने नरक (जहन्नम) क्या है? (इससे भी कब्रों में रहने वाली बात गलत सिद्ध हुई।)

’’अब यह देखें कि पहले सृष्टि कैसे पैदा की थी?‘‘

यह भी याद रखना जरूरी है कि जिस अल्लाह ने ‘‘कुरआन मजीद’’ का ज्ञान नबी मुहम्मद जी को दिया है। उसी ने नबी दाऊद जी को ‘‘जबूर’’ का ज्ञान दिया। उसी ने नबी मूसा जी को ‘‘तौरेत’’का ज्ञान दिया। उसी ने नबी ईसा मसीह को ‘‘इंजिल’’ पुस्तक का ज्ञान दिया। कुरआन को छोड़कर उपरोक्त तीनों पवित्र पुस्तकों (जबूर, तौरेत तथा इंजिल) को इकठ्ठा जिल्द करके ‘‘बाईबल’’ ग्रंथ नाम दिया है। बाईबल में सृष्टि की उत्पत्ति अध्याय में लिखा है कि परमेश्वर ने पहले पृथ्वी बनाई, आसमान बनाया, पृथ्वी पर जल भर दिया जो समुद्र बने। पृथ्वी पर पेड़-पौधे उगाए, जीव-जन्तु भांति-भांति के पैदा किए। पशु-पक्षी उत्पन्न किए। छठे दिन मानव उत्पन्न किए। अल्लाह अपना कार्य छः दिन में पूरा करके सातवें दिन ऊपर सातवें आसमान पर जा बैठा। यह है पहले वाली सृष्टि की उत्पत्ति की कथा।

कुरआन की उपरोक्त आयत यही स्पष्ट करती है कि जैसे हमने सृष्टि (कायनात) की रचना की थी। उसी प्रकार फिर सृष्टि की रचना करूँगा जिससे जन्म-मरण का बार-बार होना यानि पुनर्जन्म सिद्ध होता है।

जो सिद्धांत मुस्लिम शास्त्री व प्रवक्ता मानते हैं कि प्रलय के बाद जिंदा किए जाएँगे। उसमें यह भी स्पष्ट नहीं है कि वो किस आयु के होंगे यानि कोई दस वर्ष का, कोई कम, कोई 30, 40, 50, 60, 62, 65, 80 वर्ष या अधिक आयु में मरेंगे। कब्रों में दबाए जाएँगे। फिर उसी आयु के उसी शरीर में जीवित किए जाएँगे या शिशु रूप में? जीवित किए जाएँगे, इस बात पर मुसलमान प्रवक्ता मौन हैं। कुरआन स्पष्ट करती है कि अल्लाह ने कहा है कि जैसे पहले सृष्टि की उत्पत्ति की थी (जो बाईबल यानि तौरेत पुस्तक में बताई), वैसे ही पुनरावर्ती करेंगे, यह पक्का वादा है।

ऊपर की कुरआन मजीद की सूरतों की आयतों में यही कहा है कि एक बार प्रलय के समय केवल पृथ्वी के ऊपर की संरचना नष्ट की जाएगी। पृथ्वी खुला मैदान पड़ा दिखाई देगा।(इसे आदि सनातन तथा सनातन पंथ में प्रलय कहते हैं।)

फिर कहा है कि उस दिन (प्रलय के समय) आसमान को इस तरह लपेट देंगे जैसे कागज को पुलंदे में लपेट देते हैं यानि सर्व सृष्टि को नष्ट कर देंगे जिस तरह हमने पहले पैदा किया था। (आदि सनातन तथा सनातन पंथ में इसे महाप्रलय कहते हैं) उसे हम दोहराएँगे, यह वादा हमारे जिम्मे है, हम जरूर करेंगे। {यह महाप्रलय के बाद पुनः सृष्टि रचना करने को कहा है यानि फिर से पृथ्वी, जल, मानव (स्त्री-पुरूष), पशु-पक्षी व अन्य जीव-जंतुओं को उत्पन्न किया जाएगा जैसे पहले उत्पत्ति की थी। उसके विषय में कहा है कि हम उसे दोहराएंगे।} उपरोक्त प्रकरण से स्वसिद्ध हो जाता है कि पुनर्जन्म जीना-मरना होता है। जो सिद्धांत मुसलमान धर्म के उलेमा (विद्वान) बताते हैं कि अल्लाह ने सृष्टि उत्पन्न की है। मानव (स्त्री-पुरूष) जन्मते रहेंगे, मरते रहेंगे। मृत्यु के उपरांत कब्र में दफनाए जाएँगे। वे सब कब्रों में तब तक रहेंगे जब तक महाप्रलय (कयामत) नहीं आती। महाप्रलय खरबों वर्षों के पश्चात् आएगी। तब सृष्टि नष्ट हो जाएगी और कब्रों वालों को जिंदा किया जाएगा।

जिसने अच्छे कर्म अल्लाह के आदेशानुसार किए थे, उनको जन्नत (स्वर्ग) में रखा जाएगा तथा जिन्होंने कुरआन के विपरित कर्म किए, उनको जहन्नुम (नरक) की आग में डाला जाएगा। बस इसके पश्चात् सृष्टि न उत्पन्न होगी, न नष्ट होगी।

विवेचन:- विचारणीय विषय यह है कि मुसलमान प्रवक्ताओं के अनुसार जिन्होंने अल्लाह का हुक्म माना, नेक कर्म किए। वे भी कब्रों में दबाए जाएँगे। बाबा आदम तथा उसकी सब संतान तथा एक लाख से ऊपर नबी हुए हैं, वे सब कब्रों में दफन हैं। उन कब्रों में खरबों वर्ष पड़े-पड़े सडे़ंगे, महाकष्ट उठाएँगे। फिर उनको जन्नत में रखा जाएगा। ऐसी जन्नत को सिर में मारेंगे जिससे पहले खरबों वर्षों घोर नरक का कष्ट कब्रों में भूखे-प्यासे, गर्मी-सर्दी से महादुःखी होकर उठाएँगे।

मुसलमान प्रवक्ता यहाँ यह भी तर्क देने से नहीं चूकेंगे कि मृत्यु के पश्चात् सुख-दुःख का अहसास नहीं होता। मेरा वितर्क यह है कि यदि मृत्यु के पश्चात् न सुख का अहसास होता है, न दुःख का तो फिर जन्नत की क्या आवश्यकता है? आपकी जन्नत में तो आपका प्रथम नबी आदम जी दुःखी भी है और सुखी भी। बेचैन भी होता है।

परंतु नबी मुहम्म्द जी ने पूर्वोक्त प्रकरण में इस सिद्धांत को गलत सिद्ध कर रखा है जिसमें आप जी ने पढ़ा कि नबी मुहम्मद जी को जबरील फरिस्ता बुराक नामक (खच्चर जैसे) पशु पर बैठाकर ऊपर ले गया। वहाँ पर (जन्नत तथा जहन्नुम में) नबी जी ने बाबा आदम तथा उनकी अच्छी-बुरी संतान को स्वर्ग-नरक में देखा। नबी ईसा, मूसा, दाऊद, अब्राहिम आदि-आदि नबियों की जमात (मंडली) देखी। उनको नबी मुहम्मद जी ने नमाज अदा करवाई। फिर जन्नत (स्वर्ग) के अन्य स्थानों का नजारा देखा। अल्लाह के पास गए। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला। पाँच बार नमाज, रोजे तथा अजान करने का आदेश अल्लाह ने नबी मुहम्मद को दिया जिसको पूरा मुसलमान समाज पालन कर रहा है।

मुसलमान प्रवक्ता यह तर्क भी दे सकते हैं कि बाबा आदम ऊपर प्रथम आसमान पर जो दांये देखकर दुःखी व बांयी ओर देखकर खुश हो रहे थे। वे दांयी ओर नेक संतान के कर्म तथा बांयी ओर निकम्मी संतान के कर्म देखकर दुःखी व खुश हो रहे थे। दास का वितर्क यह है कि क्या वे अच्छे और बुरे कर्म दीवार पर लिखे थे? बाबा आदम अशिक्षित थे। सच्चाई ऊपर बता दी है, वही है।

इससे सिद्ध हुआ कि मुसलमान समाज भ्रमित है। अपनी पवित्र कुरआन मजीद तथा प्यारे नबी मुहम्मद जी के विचार भी नहीं समझ सके। कृपया अपने पवित्र ग्रंथों को अब पुनः पढ़ो। दास (रामपाल दास) ने एक पुस्तक लिखी है ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत’’ श्री मद्भगवत गीता का विश्लेषण किया है जिसे हिन्दू समाज के बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने स्वीकार किया तथा हैरान रह गए कि हमारे सद्ग्रंथों का सही ज्ञान आज तक हमें नहीं था। इस पुस्तक ने आँखें खोल दी।

  • यहाँ पर यह बताना अनिवार्य हो जाता है कि जिस अल्लाह ने पवित्र जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन का ज्ञान दिया, उसी ने इनसे पहले चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) का तथा श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान दिया था। जो ईसा से चार हजार वर्ष पहले वेद व्यास ऋषि ने लीपिबद्ध किया था। ऋषि का नाम कृष्ण द्वैपायन था। पहले वेद ज्ञान एक था। ऋषि कृष्ण द्वैपायन ने इसको चार भागों में बाँटा। नाम भी चार रखे। जिस कारण से ऋषि कृष्ण द्वैपायन को वेद व्यास कहा जाने लगा।

प्रसंग चल रहा है जन्म तथा मृत्यु का:-

सनातन पंथ सब अन्य प्रचलित पंथों से पहले का है। आदि सनातन पंथ सबसे पहले का है जिसका अनुयाई दास (रामपाल दास) है। इन दोनों पंथों (वर्तमान में धर्म कहे जाते हैं) में यही मान्यता है कि प्रत्येक प्राणी का जन्म तथा मरण होता है। यह सिद्धांत इसलिए भी विश्वसनीय है कि यह कादर खुदा कबीर का बताया हुआ है। अंतर इतना है कि सनातन धर्म में जन्म-मरण का चक्र सदा रहने वाला मानते हैं। जैसे गीता अध्याय 4 श्लोक 5 में कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं।

गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में कहा है कि तू तथा मैं और ये सब सामने खड़े सैनिक पहले भी जन्मे थे, आगे भी जन्मेंगे। यह ना समझ कि हम सब वर्तमान में ही जन्मे हैं।

आदि सनातन पंथ:- आदि सनातन पंथ में यह मान्यता है कि जब तक पूर्ण सतगुरू नहीं मिलता जो सतपुरूष यानि (गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9, 10 तथा अध्याय 15 श्लोक 17 वाले) परम अक्षर ब्रह्म की संपूर्ण यथार्थ भक्ति जानता है, उससे दीक्षा लेकर भक्ति नहीं करता। उसका जन्म-मरण का चक्र सदा बना रहेगा। परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करने से गीता अध्याय 15 श्लोक 4 वाली मुक्ति मिल जाती है। वह परम पद मिल जाता है जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में कभी नहीं आते। इसलिए गीता अध्याय 18 श्लोक 46ए 61ए 62 में कहा है कि (श्लोक 46 में) हे अर्जुन! जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत व्याप्त है। उस परमेश्वर की स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

(श्लोक 61 में):- हे अर्जुन! शरीर रूपी यंत्र में आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया (शक्ति) से उनके कर्मों अनुसार भ्रमण करवाता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित (विराजमान) है।

(श्लोक 62 में):- हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन (महफूज) परम धाम को प्राप्त होगा।

आदि सनातन पंथ को उस परमेश्वर यानि परम अक्षर ब्रह्म को सतपुरूष कहा जाता है। सनातन परम धाम को अमर लोक सतलोक कहा जाता है। उस सत्यलोक में जाने के पश्चात् साधक का जन्म-मृत्यु का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता है।

सिक्ख पंथ:- सिख पंथ (वर्तमान में सिख धर्म) में भी जन्म-मृत्यु की मान्यता है। इनका भी यह मानना है कि जब तक पूर्ण सतगुरू की शरण में जाकर सतपुरूष की साधना नहीं करता, जन्म-मृत्यु समाप्त नहीं होता। सतपुरूष की भक्ति से जन्म-मृत्यु सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं। वह साधक सत्यलोक (सच्चखंड) में चला जाता है।

जैन धर्म (पंथ):- जैन धर्म की सनातन धर्म वाली मान्यता है कि जन्म-मरण कभी समाप्त नहीं होगा। उनका मानना है कि जैन धर्म के प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थंकर आदि नाथ यानि ऋषभ देव जी की मृत्यु के पश्चात् बाबा आदम रूप में जन्मे थे।

श्री ऋषभ के पोते (भरत के पुत्र) श्री मारीचि ने ऋषभ देव से दीक्षा ली थी। उसके पश्चात् उस आत्मा के अनेकों मानव जन्म हुए। करोड़ों पशुओं (गधे, घोड़े) के जन्म हुए। अनेकों बार वृक्ष के जन्म हुए। वही आत्मा चैबीसवें तीर्थंकर जैन धर्म के हुए।

सूक्ष्मवेद में प्रमाण है कि श्री नानक देव जी (सिख धर्म के प्रवर्तक) वाली आत्मा सत्ययुग में राजा अंबरीष रूप में जन्मी थी तथा त्रोतायुग में राजा जनक रूप में जन्मी थी। कलयुग में श्री नानक जी के रूप में जन्मी थी। जब सतगुरू से दीक्षा लेकर सतपुरूष (सत पुरख) की भक्ति सतनाम का जाप करके की। तब जन्म-मरण का चक्र समाप्त हुआ। पुराणों में पुनर्जन्म के और भी अनेकों प्रमाण मिलते हैं जो जन्म-मृत्यु बार-बार होना कहते हैं। इससे सिद्ध हुआ कि जन्म-मरण का जो विधान मुसलमान बताते हैं, वह निराधार है। उनके पवित्र ग्रंथ भी उनकी बात को गलत सिद्ध करते हैं।

अब पढ़ें प्रलय, महाप्रलय तथा दिव्य महाप्रलय की जानकारी:-

प्रलय की जानकारी | Knowledge about Dissolution

प्रलय का अर्थ है ‘विनाश‘। यह दो प्रकार की होती है - आंशिक प्रलय तथा महाप्रलय।

आंशिक प्रलय: यह दो प्रकार की होती है। एक तो चैथे युग (कलियुग) के अंत में पृथ्वी पर एक निःकलंक नामक दसवाँ अवतार आता है, जिसे कल्कि भी कहा है। वह उस समय (कलियुग) के सर्व भक्तिहीन मानव शरीर धारी प्राणियों को अपनी तलवार से मार कर समाप्त करेगा। उस समय मानव की उम्र 20 वर्ष की होगी तथा 5 वर्ष खण्ड (स्मेे) होगी अर्थात् 15 वर्ष में सब बालक-जवान-वृद्ध होकर मर जाया करेंगे। पाँच वर्षीय लड़की बच्चों को जन्म दिया करेगी। मानव कद लगभग डेढ़ या अढ़ाई फुट का होगा। उस समय इतने भूकंप आया करेंगे कि पृथ्वी पर चार फुट ऊँचें भवन भी नहीं बना पाया करेंगे। सर्व मानव धरती में बिल खोद कर रहा करेंगे। पृथ्वी उपजाऊँ नहीं रहेगी। तीन हाथ (लगभग साढे चार फुट) नीचे तक जमीन का उपजाऊ तत्त्व समाप्त हो जाएगा। कोई फलदार वृक्ष नहीं होगा तथा पीपल के पेड़ को पत्ते नहीं लगेंगे। सर्व मनुष्य (स्त्री व पुरुष)मांसाहारी होंगे। आपसी व्यवहार बहुत घटिया हेागा। रीछों की अस्वारी किया करेंगे। रीछ उस समय का अच्छा वाहन होगा। पर्यावरण दूषित होने से वर्षा होनी बंद हो जाऐंगी। जैसे ओस पड़ती है ऐसे वर्षा हुआ करेगी। गंगा-जमना आदि नदियाँ भी सूख जाएगी। यह कलियुग का अंत होगा। उस समय प्रलय (पृथ्वी पर पानी ही पानी होगा) होगी। एक दम इतनी वर्षा होगी की सारी पृथ्वी पर सैकड़ों फुट पानी हो जाएगा। अति उच्चे स्थानों पर कुछ मानव शेष रहेंगे। यह पानी सैंकड़ों वर्षों में सूखेगा। फिर सारी पृथ्वी पर जंगल उग जाएगा। पृथ्वी फिर से उपजाऊ हो जाएगी। जंगल (वृक्षों) की अधिकता से पर्यावरण फिर शुद्ध हो जाएगा। कुछ व्यक्ति जो भक्ति युक्त होंगे ऊँचे स्थानों पर बचे रह जाएंगे। उनके संतान होगी। वह बहुत ऊँचे कद की होगीं। चूंकि वायुमण्डल में वातावरण की शुद्धता होने से शरीर अधिक स्वस्थ हो जायेगा। मात-पिता छोटे कद के होंगे और बच्चे उँचे कद (शरीर)के होगें। कुछ समय पश्चात् माता-पिता और बच्चों का युवा अवस्था में कद समान हो जाएगा। उस समय वातावरण पूर्ण रूप से शुद्ध होगा। इस प्रकार यह सतयुग का प्रारम्भ होगा। यह पृथ्वी पर आंशिक प्रलय ज्योति निरंजन (काल) द्वारा की जाती है।

दूसरी आंशिक प्रलय एक हजार चतुर्युग पश्चात् होती है। तब श्री ब्रह्मा जी का एक दिन समाप्त होता है। इतने ही चतुर्युग तक रात्रि होती है। एक रात्रि तक प्रलय रहती है। {वास्तव में श्री ब्रह्मा जी का एक दिन 1008 चतुर्युग होता है, एक ब्रह्मा जी के दिन में चैदह इन्द्रों का शासन काल पूरा होता है। एक इन्द्र का शासन काल बहतर चैकड़ी युग का होता है। एक चैकड़ी (चतुर्युगी) में चार युग होते हैं:- 1. सतयुग जो 17 लाख 28 हजार वर्षों का होता है। 2.त्रेता युग जो 12 लाख 96 हजार वर्षों का होता है। 3. द्वापर युग जो 8 लाख 64 हजार वर्षों का होता है। 4. कलयुग जो 4 लाख 32 हजार वर्षों का होता है। चारों युगों के कुल 43 लाख 20 हजार वर्ष हैं। गणना करने के लिए आसानी रहे, इसलिए चतुर्युग से गणना की जाती है। ब्रह्मा का एक दिन एक हजार आठ चतुर्युग का होता है। इसको सीधा एक हजार चतुर्युग गिनते हैं।}

जब ब्रह्मा का दिन समाप्त होता है तो पृथ्वी, पाताल व स्वर्ग (इन्द्र) लोक के सर्व प्राणी नाश को प्राप्त होते हैं। प्रलय में विनाश हुए प्राणी ब्रह्म अर्थात् काल जो ब्रह्म लोक में रहता है तथा व्यक्त रूप से किसी को दर्शन नहीं देता जिसे अव्यक्त मान लिया गया है उस अव्यक्त (ब्रह्म) के लोक में अचेत करके गुप्त डाल दिए जाते हैं। फिर एक हजार चतुर्युग (वास्तव में 1008 चतुर्युग की होती है) की ब्रह्मा की रात्रि समाप्त होने पर फिर इन तीनों लोकों (पाताल-पृथ्वी-स्वर्ग लोक) में उत्पत्ति कर्म प्रारम्भ हो जाता है। उस समय ब्रह्मा, विष्णु, शिव लोक के प्राणी और ब्रह्मलोक (महास्वर्ग) के प्राणी बचे रहते हैं। यह दूसरी प्रकार की आंशिक प्रलय हुई।

महाप्रलय: यह तीन प्रकार की होती है। प्रथम महाप्रलय:- यह काल (ज्योति निरंजन) महाकल्प के अंत में करता है जिस समय ब्रह्मा जी की मृत्यु होती है। {ब्रह्मा की आयु = ब्रह्मा की रात्रि एक हजार चतुर्युग की होती है तथा इतना ही दिन होता है। तीस दिन-रात्रि का एक महीना, 12 महीनों का एक वर्ष, सौ वर्ष का एक ब्रह्मा का जीवन। यह एक महाकल्प कहलाता है।}

दूसरी महाप्रलय:-- सात ब्रह्मा जी की मृत्यु के बाद एक विष्णु जी की मृत्यु होती है, सात विष्णु जी की मृत्यु के उपरान्त एक शिव की मृत्यु होती है। इसे दिव्य महाकल्प कहते हैं उसमें ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित इनके लोकों के प्राणी तथा स्वर्ग लोक, पाताल लोक, मृत्यु लोक आदि में अन्य रचना तथा उनके प्राणी नष्ट हो जाते हैं। उस समय केवल ब्रह्मलोक बचता है जिसमें यह काल भगवान (ज्योति निरंजन) तथा दुर्गा तीन रूपों महाब्रह्मा-महासावित्री, महाविष्णु-महालक्ष्मी और महाशंकर-महादेवी (पार्वती) के रूप, में तीन लोक बना कर रहता है। इसी ब्रह्मलोक में एक महास्वर्ग बना है, उसमें चैथी मुक्ति प्राप्त प्राणी रहते हैं। {मार्कण्डेय, रूमी ऋषि जैसी आत्मा जो चैथी मुक्ति प्राप्त हैं जिन्हें ब्रह्म लीन कहा जाता है। वे यहाँ के तीनों लोकों के साधकों की दिव्य दृष्टी की क्षमता (रेंज) से बाहर होते हैं। स्वर्ग, मृत्यु व पाताल लोकों के ऋषि उन्हें देख नहीं पाते। इसलिए ब्रह्म लीन मान लेते हैं। परन्तु वे ब्रह्मलोक में बने महास्वर्ग में चले जाते हैं।}

फिर दिव्य महाकल्प के आरम्भ में काल (ज्योति निरंजन) भगवान ब्रह्म लोक से नीचे की सृष्टि फिर से रचता है। काल भगवान अपनी प्रकृति (माया-आदि भवानी) महासावित्री, महालक्ष्मी व महादेवी (गौरी)के साथ रति कर्म से अपने तीन पुत्रों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिव) को उत्पन्न करता है। यह काल भगवान उन्हें अपनी शक्ति से अचेत अवस्था में कर देता है। फिर तीनों को भिन्न-2 स्थानों पर जैसे ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, विष्णु जी को समुद्र में शेष नाग की शैय्या पर, शिव जी को कैलाश पर्वत पर रखता है। तीनों को बारी-बारी सचेत कर देता है। उन्हें प्रकृति (दुर्गा) के माध्यम से सागर मंथन का आदेश होता है। तब यह महामाया (मूल प्रकृति/शेराँवाली) अपने तीन रूप बना कर सागर में छुपा देती है। तीन लड़कियों (जवान देवियों) को प्रकट करती है। तीनों बच्चे (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) इन्हीं तीनों देवियों से विवाह करते हैं। अपने तीनों पुत्रों को तीन विभाग - उत्पत्ति का कार्य ब्रह्मा जी को व स्थिति (पालन-पोषण) का कार्य विष्णु जी को तथा संहार (मारने) का कार्य शिव जी को देता है जिससे काल (ब्रह्म) की सृष्टि फिर से शुरु हो जाती है। जिसका वर्णन पवित्र पुराणों में भी है जैसे शिव महापुराण, ब्रह्म महापुराण, विष्णु महापुराण, महाभारत, सुख सागर, देवी भागवद् महापुराण में विस्तृत वर्णन किया गया है और गीता जी के चैदहवें अध्याय के श्लोक 3 से 5 में संक्षिप्त रूप से कहा गया है।

तीसरी महाप्रलय:- एक ब्रह्मण्ड में 70 हजार बार त्रिलोकिय शिव (काल के तमोगुण पुत्र) की मृत्यु हो जाती है तब एक ब्रह्मण्ड की प्रलय होती है तथा ब्रह्मलोक में तीनों स्थानों पर रहने वाला काल (महाशिव) अपना महाशिव वाला शरीर भी त्याग देता है। इस प्रकार यह एक ब्रह्मण्ड की प्रलय अर्थात् तीसरी महाप्रलय हुई तथा उस समय एक ब्रह्मलोकिय शिव (काल) की मृत्यु हुई तथा 70000 (सतर हजार) त्रिलोकिय शिव (काल के पुत्र) की मृत्यु हुई अर्थात् एक ब्रह्मण्ड में बने ब्रह्म लोक सहित सर्व लोकों के प्राणी विनाश में आते हैं। इस समय को परब्रह्म अर्थात् अक्षर पुरूष का एक युग कहते हैं। इस प्रकार गीता अध्याय 8 श्लोक 16 का भावार्थ समझना चाहिए। ‘‘इसी प्रकार तीन दिव्य महा प्रलय होती हैं’’:-

‘‘प्रथम दिव्य महाप्रलय’’

जब सौ (100) ब्रह्मलोकिय शिव (काल-ब्रह्म) की मृत्यु हो जाती है तब चारों महाब्रह्मण्डों में बने 20 ब्रह्मण्डों के प्राणियों का विनाश हो जाता है।

विशेषकर एक महाब्रह्मंड में ही सृष्टि रहती है। एक महाब्रह्मंड के अंदर जब प्रलय होती है, तब दूसरे महाब्रह्मंड में सृष्टि शुरू होती है। अंत में चारों महाब्रह्मंडों के बीस ब्रह्मंडों में प्रलय हो जाती है।

तब चारों महाब्रह्मण्डों के शुभ कर्मी प्राणियों (हंसात्माओं) को इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बने नकली सत्यलोक आदि लोकों में रख देता है तथा उसी लोक में निर्मित अन्य चार गुप्त स्थानों पर अन्य प्राणियों को अचेत करके डाल देता है तथा तब उसी नकली सत्यलोक से प्राणियों को खाकर अपनी भूख मिटाता है तथा जो प्रतिदिन खाए प्राणियों को उसी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में बने चार गुप्त मुकामों में अचेत करके डालता रहता है तथा वहाँ पर भी ज्योति निरंजन अपने तीन रूप (महाब्रह्मा, महाविष्णु तथा महाशिव) धारण कर लेता है तथा वहाँ पर बने शिव रूप में अपनी जन्म-मृत्यु की लीला करता रहता है, जिससे समय निश्चित रखता है तथा सौ बार मृत्यु को प्राप्त होता है, जिस कारण परब्रह्म के सौ युग का समय इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में पूरा हो जाता है। तत् पश्चात् चारों महाब्रह्मण्डों के अन्दर सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ करता है। {जिस एक सृष्टि में सौ ब्रह्मलोकिय शिव (काल) की आयु अर्थात् परब्रह्म के सौ युग तक सृष्टि रहती है तथा इतनी ही समय प्रलय रहती है अर्थात् परब्रह्म के दो सौ युग (क्योंकि परब्रह्म के एक युग में एक ब्रह्मलोकिय शिव अर्थात् काल की मृत्यु होती है) में एक दिव्य महाप्रलय जो काल द्वारा की जाती है का क्रम पूरा होता है} यह काल अर्थात् ब्रह्म प्रथम अव्यक्त कहलाता है। (गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में)। दूसरा अव्यक्त परब्रह्म तथा इससे भी परे दूसरा सनातन अव्यक्त जो पूर्ण ब्रह्म है, गीता अध्याय 8 श्लोक 20 का भाव समझें।

‘‘दूसरी दिव्य महाप्रलय’’

इस उपरोक्त महाप्रलय के पाँच बार हो जाने के पश्चात् द्वितीय दिव्य महाप्रलय होती है। दूसरी दिव्य महाप्रलय परब्रह्म (अविगत पुरुष/अक्षर पुरुष) करता है। उसमें काल अर्थात् ब्रह्म (क्षर पुरूष) सहित सर्व 21 ब्रह्मण्डों का विनाश हो जाता है जिसमें तीनों लोक (स्वर्गलोक, मृत्युलोक, पाताल लोक), ब्रह्मा, विष्णु, शिव व काल (ज्योति निरंजन-ओंकार निरंजन) तथा इनके लोकों (ब्रह्म लोक) अर्थात् सर्व अन्य 21 ब्रह्मण्डों के प्राणी नष्ट हो जाते हैं।

विशेष:- सात त्रिलोकिय ब्रह्मा की मृत्यु के बाद एक त्रिलोकिय विष्णु जी की मृत्यु होती है तथा सात विष्णु की मृत्यु के बाद एक त्रिलोकिय शिव की मृत्यु होती है। 70000 (सतर हजार) त्रिलोकिय शिव की मृत्यु के बाद एक ब्रह्मलोकिय शिव अर्थात् काल (ब्रह्म) की मृत्यु परब्रह्म के एक युग के बाद होती है। ऐसे एक हजार युग का परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का एक दिन तथा इतनी ही रात्रि होती है। अक्षर पुरूष की रात्रि का समय शुरू होने पर प्रकृति (दुर्गा) सहित काल (ज्योति निरंजन) अर्थात् ब्रह्म तथा इसके इक्कीस ब्रह्मण्डों के प्राणी नष्ट हो जाते हैं। तब परब्रह्म (दूसरे अव्यक्त) का एक हजार युग का दिन समाप्त होता है। इतनी ही रात्रि व्यतीत होने के उपरान्त ब्रह्म को फिर पूर्ण ब्रह्म प्रकट करता है। गीता अ. 8 श्लोक 17 का भाव ऐसे समझें। परन्तु ब्रह्मण्डों व महाब्रह्मण्डों व इनमें बने लोकों की सीमा (गोलाकार दिवार समझो) समाप्त नहीं होती। फिर इतने ही समय के बाद यह काल तथा माया (प्रकृति देवी) को पूर्ण ब्रह्म (सत्यपुरूष) अपने द्वारा पूर्व निर्धारित सृष्टि कर्म के आधार पर पुनः उत्पन्न करता है तथा सर्व प्राणी जो काल के कैदी (बन्दी) हैं, को उनके कर्माधार पर शरीरों में सृष्टि कर्म नियम से रचता है तथा लगता है कि परब्रह्म रच रहा है {यहाँ पर गीता अ. 15 का श्लोक 17 याद रखना चाहिए जिसमें कहा है कि उत्तम प्रभु तो कोई और ही है जो वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का धारण-पोषण करता है तथा गीता अ. 18 के श्लोक 61 में कहा है कि अन्तर्यामी परमेश्वर सर्व प्राणियों को यन्त्र (मशीन) के सदृश कर्माधार पर घुमाता है तथा प्रत्येक प्राणी के हृदय में स्थित है।

गीता के पाठकों को फिर भ्रम होगा कि गीता अ. 15 के श्लोक 15 में काल (ब्रह्म) कहता है कि मैं सर्व प्राणियों के हृदय में स्थित हूँ तथा सर्व ज्ञान अपोहन व वेदों को प्रदान करने वाला हूँ। हृदय कमल में काल भगवान महापार्वती (दुर्गा) सहित महाशिव रूप में रहता है तथा पूर्ण परमात्मा भी जीवात्मा के साथ अभेद रूप से रहता है जैसे वायु रहती है गंध के साथ। दोनों का अभेद सम्बन्ध है परन्तु कुछ गुणों का अन्तर है। गीता अ. 2 के श्लोक 17 से 21 में भी विस्तृत विवरण है। इस प्रकार पूर्ण ब्रह्म भी प्रत्येक प्राणी के हृदय में जीवात्मा के साथ रहता है जैसे सूर्य दूर स्थान पर होते हुए भी उसकी ऊष्णता व प्रकाश का प्रभाव प्रत्येक प्राणी से अभेद है तथा जीवात्मा का स्थान भी हृदय ही है।

विशेष:- एक महाब्रह्माण्ड का विनाश परब्रह्म के 100 वर्षों के उपरान्त होता है। इतने ही वर्षों तक एक महाब्रह्मण्ड में प्रलय रहती है।

काल अर्थात् ब्रह्म (ज्योति निरंजन) को तो ऐसा जानों जैसे गर्मियों के मौसम में राजस्थान-हरियाणा आदि क्षेत्रों में वायु का एक स्तम्भ जैसा (मिट्टी युक्त वायु) आसमान में बहुत ऊँचे तक दिखाई देता है तथा चक्र लगाता हुआ चलता है। जो अस्थाई होता है। परन्तु गंध तो वायु के साथ अभेद रूप में है। इसी प्रकार जीवात्मा तथा परमात्मा का सुक्ष्म सम्बन्ध समझे। ऐसे ही सर्व प्रलय तथा महाप्रलय के क्रम को पूर्ण परमात्मा (सत्यपुरूष, कविर्देव) से ही होना निश्चित समझे। एक हजार युग जो परब्रह्म की रात्रि है उसके समाप्त होने पर काल (ज्योति निरंजन) सृष्टि फिर से सत्यपुरूष कविर्देव की शब्द शक्ति से बनाए समय के विद्यान अनुसार प्रारम्भ होती है। अक्षर पुरुष(परब्रह्म) पूर्ण ब्रह्म (सतपुरूष) के आदेश से काल (ज्योति निरंजन) व माया (प्रकृति अर्थात् दुर्गा) को सर्व प्राणियों सहित काल के इक्कीस ब्रह्मण्ड में भेज देता है तथा पूर्ण ब्रह्म के बनाए विद्यान अनुसार सर्व ब्रह्मण्डों में अन्य रचना प्रभु कबीर जी की कृपा से हो जाती है। माया (प्रकृति) तथा काल (ज्योति निरंजन) के सूक्ष्म शरीर पर नूरी शरीर भी पूर्ण परमात्मा ही रचता है तथा शेष उत्पत्ति ब्रह्म(काल) अपनी पत्नी दुर्गा (प्रकृति) के संयोग से करता है। शेष स्थान निरंजन पाँच तत्त्व के आधार से रचता है। फिर काल (ज्योति निरंजन अर्थात् ब्रह्म) की सृष्टि प्रारम्भ होती है। इस प्रकार यह परब्रह्म दूसरा अव्यक्त कहलाता है।}

‘‘तीसरी दिव्य महा प्रलय’’

जैसा कि पूर्वोक्त विवरण में पढ़ा कि सत्तर हजार काल (ब्रह्म) के शिव रूपी पात्रों की मृत्यु के पश्चात् एक ब्रह्म (महाशिव) की मृत्यु होती है वह समय परब्रह्म का एक युग होता है। इसी के विषय में गीता अध्याय 2 श्लोक 12 अध्याय 4 श्लोक 5 तथा 9 में अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता प्रभु कह रहा है कि मेरी भी जन्म मृत्यु होती है। बहुत से जन्म हो चुके हैं। जिनको देवता लोग (ब्रह्मा,विष्णु तथा शिव सहित) व महर्षि जन भी नहीं जानते क्योंकि वे सर्व मुझ से ही उत्पन्न हुए हैं। गीता अध्याय 4 श्लोक 9 में कहा है कि मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। परब्रह्म के एक युग में काल भगवान सदा शिव वाला शरीर त्यागता है तथा पुनः अन्य ब्रह्मण्ड में अन्य तीन रूपों में विराजमान हो जाता है। यह लीला स्वयं करता है। परब्रह्म का एक दिन एक हजार युग का होता है इतनी ही रात्रि होती है। तीस दिन-रात का एक महीना, बारह महीनों का एक वर्ष तथा सौ वर्ष की परब्रह्म (द्वितीय अव्यक्त) की आयु होती है। उस समय परब्रह्म (अक्षर पुरूष) की मृत्यु होती है। यह तीसरी दिव्य महाप्रलय कहलाती है।

तीसरी दिव्य महा प्रलय में सर्व ब्रह्मण्ड तथा अण्ड जिसमें ब्रह्म (काल) के इक्कीस ब्रह्मण्ड तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्ड व अन्य असंख्यों ब्रह्मण्ड नाश में आवेंगे। धूंधूकार का शंख बजेगा। सर्व अण्ड व ब्रह्मण्ड नाश में आवेंगे परंतु वह तीसरी दिव्य महा प्रलय बहुत समय पर्यान्त होवेगी। वह तीसरी (दिव्य) महा प्रलय सतपुरुष का पुत्र अचिंत अपने पिता पूर्ण ब्रह्म (सतपुरूष) की आज्ञा से सृष्टि कर्म नियम से जो पूर्णब्रह्म ने निर्धारित किया हुआ है करेगा और फिर सृष्टि रचना होगी। परंतु सतलोक में गए हंस दोबारा जन्म-मरण में नहीं आऐंगे। इस प्रकार न तो अक्षर पुरुष (परब्रह्म) अमर है, न काल निरंजन (ब्रह्म) अमर है, न ब्रह्मा (रजगुण)-विष्णु (सतगुण) शिव (तमगुण) अमर हैं। फिर इनके पूजारी (उपासक) कैसे पूर्ण मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं? अर्थात् कभी नहीं। इसलिए पूर्णब्रह्म की साधना करनी चाहिए जिसकी उपासना से जीव सतलोक (अमरलोक) में चला जाता है। फिर वह कभी नहीं मरता, पूर्ण मुक्त हो जाता है। वह पूर्ण ब्रह्म (कविर्देव) तीसरा सनातन अव्यक्त है। जो गीता अ. 8 के श्लोक 20,21 में वर्णन है। गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में यही कहा है।

श्लोक 16:- इस लोक में दो पुरूष एक क्षर पुरूष (ज्योति निरंजन-काल ब्रह्म) तथा दूसरा अक्षर पुरूष (परब्रह्म) तथा इनके लोकों के सब प्राणी नाशवान हैं। आत्मा सबकी अमर है। फिर गीता अध्याय 15 ही के श्लोक 17 में कहा है कि वास्तव में पुरूषोत्तम यानि श्रेष्ठ परमात्मा तो उपरोक्त क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष से अन्य ही है जो परमात्मा कहलाता है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी है।

‘‘अमर करुँ सतलोक पठाऊँ, तातैं बन्दी छोड़ कहाऊँ।‘‘

उसी पूर्ण परमात्मा (अविनाशी परमेश्वर) का प्रमाण गीता जी के अध्याय 2 के श्लोक 17 में, अध्याय 3 के श्लोक 14, 15 में, अध्याय 7 के श्लोक 13 और 19 व 29 में, अध्याय 8 के श्लोक 3, 4, 8, 9, 10, 20, 21, 22 में, अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तथा 22 से 24, 27 से 28, 30-31 व 34 तथा अध्याय 4 श्लोक 31-32, अध्याय 5 श्लोक 14, 15, 16, 19, 20, 24-26 में, अध्याय 6 श्लोक 7 तथा 19-20, 25 से 27 में तथा अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62 तथा 66 में भी विशेष रूप से प्रमाण दिया गया है कि उस पूर्ण परमात्मा की शरण में जाकर जीव फिर कभी जन्म मरण में नहीं आता।

{विशेष:- काल का जाल समझने के लिए यह विवरण ध्यान रखें कि त्रिलोक में एक शिव जी है। जो इस काल का पुत्र है जो 7 त्रिलोकिय विष्णु जी की मृत्यु तथा 49 त्रिलोकिय ब्रह्मा जी की मृत्यु के उपरान्त मृत्यु को प्राप्त होता है। ऐसे ही काल भगवान एक ब्रह्मण्ड में बने ब्रह्मलोक में महाशिव रूप में भी रहता है। परमेश्वर द्वारा बनाए समय के विद्यान अनुसार सृष्टि क्रम का समय बनाए रखने के लिए यह ब्रह्मलोक वाला महाशिव (काल) भी मृत्यु को प्राप्त होता है। जब त्रिलोकिय 70000 (सतर हजार) ब्रह्म काल के पुत्र शिव मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तब एक ब्रह्मलोकिय शिव (ब्रह्म/क्षर पुरुष) पूर्ण परमात्मा द्वारा बनाए समय के विद्यान अनुसार परवश हुआ मरता तथा जन्मता है। यह ब्रह्मलोकिय शिव (ब्रह्म/काल) की मृत्यु का समय परब्रह्म (अक्षर पुरूष) का एक युग होता है। इसीलिए गीता जी के अ. 2 के श्लोक 12, गीता अ. 4 श्लोक 5, गीता अ. 10 श्लोक 2 में कहा है कि मेरे तथा तेरे बहुत जन्म हो चुके हैं। मैं जानता हूँ तू नहीं जानता। मेरे जन्म अलौकिक (अद्भुत) होते हैं।}

अद्भुत उदाहरण:- आदरणीय गरीबदास साहेब जी सन् 1717 (संवत् 1774) में श्री बलराम जी के घर पर माता रानी जी के गर्भ से जन्म लेकर 61 वर्ष तक शरीर में गांव छुड़ानी जिला झज्जर में रहे तथा सन् 1778 (विक्रमी संवत् 1835) में शरीर त्याग गए। आज भी उनकी स्मृति में एक यादगार बनी है जहाँ पर शरीर को जमीन में सादर दबाया गया था। छः महीने के उपरान्त वैसा ही शरीर धारण करके आदरणीय गरीबदास साहेब जी 35 वर्ष तक अपने पूर्व शरीर के शिष्य भूमड़ सैनी जी के पास शहर सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में रहकर शरीर त्याग गए। वहाँ पर हिन्दू तथा मुसलमान दोनों उनके शिष्य हुए। वहाँ भी आज उनकी स्मृति में यादगार बनी है। स्थान है:- सहारनपुर शहर में चिलकाना रोड़ से कलसिया रोड़ निकलता है, कलसिया रोड़ पर आधा किलोमीटर चल कर बायीं तरफ यह अद्वितीय पवित्र यादगार विद्यमान है तथा उस पर एक शिलालेख भी लिखा है जो प्रत्यक्ष साक्षी है। उसी के साथ में बाबा लालदास जी का बाड़ा भी बना है।

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