भैंसे से वेद मन्त्र बुलवाना
स्वामी रामानन्द जी ने पृथ्वी पर प्रकट कबीर परमेश्वर जी को पहचान लिया था। परन्तु परमात्मा के आदेशानुसार वे यह गुप्त रखे थे तथा कबीर परमात्मा जी के गुरू भी उन्हीं के आग्रह से बने थे। स्वामी रामानन्द जी जहाँ भी किसी सत्संग-समागम में जाते थे तो कबीर जी को अवश्य साथ लेकर जाते थे। एक समय एक तोताद्री नाम के स्थान पर सत्संग था। दूर-दूर के ब्राह्मण विद्वान निमन्त्रण पर पंहुचे। स्वामी रामानन्द जी भी परमेश्वर कबीर जी के साथ उस सत्संग में शामिल हुए। सत्संग में एक ब्राह्मण जो वहां का प्रमुख मण्डलेश्वर था जो समागम कर रहा था। वह प्रवचन कर रहा था कि भगवान रामचन्द्र जी ने शुद्र भिलनी (सबरी) के झूठे बेर खाए, तनिक भी संकोच नहीं किया, ऐसे ही साधु-संतों की समदृष्टि होनी चाहिए।
सत्संग के पश्चात् भोजन-भण्डारा शुरू हुआ। प्रमुख पाण्डे को पता चला कि स्वामी रामानन्द जी के साथ कबीर जुलाहा शुद्र आया है। वह रामानन्द ब्राह्मण के साथ हम ब्राह्मणों वाले भोजनालय में भोजन करने साथ आएगा। यदि मना करेंगे तो रामानन्द जी नाराज हो जाऐंगे। इसलिए युक्ति से काम लिया। कहा कि जो ब्राह्मणों वाले भण्डारे में भोजन करने आएगा, उसे वेद के चार मन्त्र सुनाने पर ही प्रवेश मिलेगा। सर्व ब्राह्मण चार-चार वेद मन्त्र सुना कर प्रवेश पा रहे थे। जब परमेश्वर कबीर जी की बारी आई तो उन से भी कहा कि चार वेद मन्त्र सुनाओ। तब परमेश्वर ने देखा कि थोड़ी-सी दूरी पर एक भैंसा (झोटा) घास चर रहा था। परमेश्वर कबीर जी ने मूल मन्त्र (हुर्र-हुर्र) से पुकारा, भैंसा दौड़ा-दौड़ा आया। तब कबीर जी ने उस भैंसे की कमर पर थपकी हाथ से लगाई और कहा कि भैंसा जी इन पंडितों को वेद के चार मन्त्र सुना दे। भैंसे ने छः मन्त्र सुना दिए।
भैंसे ने यजुर्वेद अध्याय 5 मन्त्र 32, अध्याय 29 मन्त्र 25, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 86 मन्त्र 26, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 96, मन्त्र 17, ऋग्वेद मण्डल 9 सुक्त 94 मन्त्र 1 तथा सुक्त 95 का मन्त्र 2 सुना दिया। परमेश्वर कबीर जी ने भैंसे से कहा कि भैंसा राम! पंडितों को इन सर्व वेद मन्त्रों का अनुवाद भी कर के सुना दे। इनको वेदों के मन्त्रों का अनुवाद भी ठीक से ज्ञात नहीं है। झोटा राम ने अनुवाद सुनाया:- गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में जिस परमात्मा की शरण में गीता ज्ञान दाता ने जाने के लिए कहा है, इन वेद मन्त्रों में उसी का नाम यहां पर स्पष्ट किया है जो परम शान्ति दायक है। (अंघारी) सर्व पापों का शत्रु अर्थात् पापनाशक है। वह (कविर्) कबीर (बम्भारी) बंधनों का शत्रु अर्थात् कर्म बन्धन को नाश करने वाला = बन्दी छोड़ है।
भावार्थ:- वह पाप नाश करने वाला बन्दी छोड़ कबीर है। वह पूर्ण परमात्मा अपने तेजोमय स्वरूप को सरल करके अपने सत्यलोक से चल कर आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है, अपने मुख कमल से यथार्थ भक्ति का ज्ञान कराता है। वह कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर भी विचरण करता है। भक्ति के गुप्त मन्त्र भी वही बताता है। वह परमेश्वर मेरे और आपके पास यह कबीर जुलाहा (धाणक) खड़ा है।
insert pic here (तोताद्री नामक स्थान पर भैंसे से वेद मंत्र बुलवाना)
परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे विद्वान भैंसा! आप ब्राह्मणों वाले लंगर में भोजन-प्रसाद खाऐं। मैं तो सामान्य भण्डारे में प्रसाद ग्रहण कर लंूगा। उपस्थित पंडित शर्म से पानी-पानी हो गए और क्षमा मांगी। परमेश्वर कबीर जी ने कहा ‘‘हे विद्वानो! आप सत्संग में क्या प्रवचन कर रहे थे कि श्री राम जी ने सबरी (भीलनी) शुद्र के झूठे बेर रूचि-रूचि खाए थे। तनिक भी भेदभाव नहीं किया, स्वयं भेदभाव कर रहे हो।‘‘
कबीर:- करनी तज कथनी कथैं, अज्ञानी दिन-रात।
कुक्कर ज्यों भौंकत फिरैं, सुनी-सुनाई बात।।
वेदों के मन्त्र तो ब्राह्मण को भी कंठस्थ थे परन्तु अनुवाद का ज्ञान नहीं था। उसी समय सर्व विद्वान व परमात्मा चाहने वाले ब्राह्मणों ने कबीर परमेश्वर जी से दीक्षा ली। इस प्रकार परमेश्वर कबीर जी ने अपनी प्रिय आत्माओं को काल के जाल से निकाल कर अपनी शरण में लिया। उस सत्संग में उपस्थित हजारों की संख्या में अन्य श्रोताओं ने भी यह लीला देखी और दीक्षा प्राप्त करके अपना जीवन धन्य किया।