भूमिका
अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामथ्र्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी प्राणी चाहते हैं कि कोई कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले, पहनने को सुन्दर वस्त्र मिलें, रहने को आलीशान भवन हों, घूमने के लिए सुन्दर पार्क हों, मनोरंजन करने के लिए मधुर-2 संगीत हों, नांचे-गांए, खेलें-कूदें, मौज-मस्ती मनांए और कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न होवे आदि-2, परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है और न ही ऐसा संभव है। क्योंकि यह लोक नाशवान है, इस लोक की हर वस्तु भी नाशवान है और इस लोक का राजा ब्रह्म काल है जो एक लाख मानव सूक्ष्म शरीर खाता है। उसने सब प्राणियों को कर्म-भ्रम¹ व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद किए हुए है। कबीर साहेब कहते हैं कि:--
कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।
गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।
{कर्म-भ्रम¹ - कर्म = सिद्धांत - जैसा करोगे वैसा प्राप्त करोगे (भरोगे)।
भ्रम = शंस्य युक्त ज्ञान जो वेदों तथा गीता में काल ब्रह्म ने प्रदान किया है।
उदाहरणार्थ (for example):- गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 में तथा अध्याय 4 श्लोक 31-32, 34, अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने कहा है कि ‘‘यह संसार रूपी वृक्ष है। इसकी जड़ें (roots) ऊपर हैं तथा तीनों गुण रूपी शाखाएँ नीचे हैं। जो इस संसार रूपी वृक्ष के विषय में पूर्ण जानकारी बताए वह पूर्ण संत अर्थात् तत्वदर्शी संत है। जैसे तना कौन प्रभु है? डार कौन तथा तीनों शाखाएँ कौन प्रभु है? यहाँ विचारकाल में अर्थात् जो गीता ज्ञान में तुझे बता रहा हूँ मुझे इस संसार की रचना का ज्ञान नहीं है। क्योंकि मुझे इसके आदि (प्रारंभ) का तथा अंत (अंतिम सिरे) का ज्ञान नहीं है। इसलिए किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर। उस तत्वदर्शी संत के बताए भक्ति मार्ग (Way of Worship) अनुसार साधना करके उस परम पद व परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहाँ जाने के पश्चात् साधक पुनः लौटकर संसार में नहीं आता। अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है। जिस पूर्ण परमात्मा से इस संसार रूपी वृक्ष का विस्तार हुआ है। अर्थात् जिस परमेश्वर ने इस सृष्टि की रचना की है। उसी की पूजा करनी चाहिए। मै। (गीता ज्ञान दाता) भी उसी परमेश्वर की शरण में हूँ। गीता अध्याय 3 श्लोक 31-32 में कहा है गीता में जो ज्ञान दिया है यह मेरा मत (विचार) है। भले ही यह पूर्ण नहीं है फिर भी अन्य साधनाएँ जो शास्त्राविधि रहित है। उनसे श्रेष्ठ है। जो मेरे मत अनुसार साधना नहीं करता वह व्यर्थ प्रयत्न कर रहा है। पूर्ण परमात्मा की साधना से मिलने वाले लाभ की तुलना में गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ने अपनी साधना से मिलने वाले लाभ को भी अनुत्तम बताया है। इस प्रकार काल ब्रह्म द्वारा बताया ज्ञान भ्रमयुक्त है।}
वह नहीं चाहता कि कोई प्राणी इस पिंजरे रूपी कैद से बाहर निकल जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि जीव आत्मा को अपने निज घर सतलोक का पता चले। इसलिए वह अपनी त्रिगुणी माया से हर जीव को भ्रमित किए हुए है। फिर मानव को ये उपरोक्त चाहत कहां से उत्पन्न हुई है ? यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां हम सबने मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। जिस स्थिति को हम यहां प्राप्त करना चाहते हैं ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे। काल ब्रह्म के लोक में स्व इच्छा से आकर फंस गए और अपने निज घर का रास्ता भूल गए। कबीर साहेब कहते हैं कि --
इच्छा रूपी खेलन आया, तातैं सुख सागर नहीं पाया।
इस काल ब्रह्म के लोक में शांति व सुख का नामोनिशान भी नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं। यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको नहीं रहने देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है, किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है, राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है अर्थात् यहां पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं। राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहां तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता-पिता के सामने जवान बेटा-बेटी मर जाते हैं, दूध पीते बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर मात-पिता मर जाते हैं, जवान बहनें विधवा हो जाती हैं और पहाड़ से दुःखों को भोगने को मजबूर होते हैं। विचार करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है ? लेकिन हम मजबूरी वश यहां रह रहे हैं क्योंकि इस काल के पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता और हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई। यदि आप जी को इस लोक में होने वाले दुःखों से बचाव करना है तो यहां के प्रभु काल से परम शक्ति युक्त परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) की शरण लेनी पड़ेगी। जिस परमेश्वर का खौफ काल प्रभु को भी है। जिस के डर से यह उपरोक्त कष्ट उस जीव को नहीं दे सकता जो पूर्ण परमात्मा अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) की शरण पूर्ण सन्त के बताए मार्ग से ग्रहण करता है। वह जब तक संसार में भक्ति करता रहेगा, उसको उपरोक्त कष्ट आजीवन नहीं होते। जो व्यक्ति इस पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ को पढ़ेगा उसको ज्ञान हो जाएगा कि हम अपने निज घर को भूल गए हैं। वह परम शांति व सुख यहां न होकर निज घर सतलोक में है जहां पर न जन्म है, न मृृत्यु है, न बुढ़ापा, न दुःख, न कोई लड़ाई-झगड़ा है, न कोई बिमारी है, न पैसे का कोई लेन-देन है, न मनोरंजन के साधन खरीदना है। वहां पर सब परमात्मा द्वारा निःशुल्क व अखण्ड है। बन्दी छोड़ गरीबदास जी महाराज की वाणी में प्रमाण है कि:--
बिन ही मुख सारंग राग सुन, बिन ही तंती तार। बिना सुर अलगोजे बजैं, नगर नांच घुमार।।
घण्टा बाजै ताल नग, मंजीरे डफ झांझ। मूरली मधुर सुहावनी, निसबासर और सांझ।।
बीन बिहंगम बाजहिं, तरक तम्बूरे तीर। राग खण्ड नहीं होत है, बंध्या रहत समीर।।
तरक नहीं तोरा नहीं, नांही कशीस कबाब। अमृत प्याले मध पीवैं, ज्यों भाटी चवैं शराब।।
मतवाले मस्तानपुर, गली-2 गुलजार। संख शराबी फिरत हैं, चलो तास बजार।।
संख-संख पत्नी नाचैं, गावैं शब्द सुभान। चंद्र बदन सूरजमुखी, नांही मान गुमान।।
संख हिंडोले नूर नग, झूलैं संत हजूर। तख्त धनी के पास कर, ऐसा मुलक जहूर।।
नदी नाव नाले बगैं, छूटैं फुहारे सुन्न। भरे होद सरवर सदा, नहीं पाप नहीं पुण्य।।
ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार। ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।
जहां संखों लहर मेहर की उपजैं, कहर जहां नहीं कोई।
दासगरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व अमृत्व को प्राप्त नहीं कर सकते। सतलोक में जाना तभी संभव है जब हम पूर्ण संत से उपदेश लेकर पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करते रहें। इस पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ के माध्यम से जो हम संदेश देना चाहते हैं उसमें किसी देवी-देवता व धर्म की बुराई न करके सर्व पवित्रा धर्म ग्रंथों में छुपे गूढ रहस्य को उजागर करके यथार्थ भक्ति मार्ग बताना चाहा है जो कि वर्तमान के सर्व संत, महंत व आचार्य गुरु साहेबान शास्त्रों में छिपे गूढ रहस्य को समझ नहीं पाए। परम पूज्य कबीर साहेब जी अपनी वाणी में कहते हैं कि -
वेद कतेब झूठे ना भाई, झूठे हैं सो समझे नांही।
जिस कारण भक्त समाज को अपार हानि हो रही है। सब अपने अनुमान से व झूठे गुरुओं द्वारा बताई गई शास्त्रा विरूद्ध साधना करते हैं। जिससे न मानसिक शांति मिलती है और न ही शारीरिक सुख, न ही घर व कारोबार में लाभ होता है और न ही परमेश्वर का साक्षात्कार होता है और न ही मोक्ष प्राप्ति होती है। यह सब सुख कैसे मिले तथा यह जानने के लिए कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं, क्यों जन्म लेता हूं, क्यों मरता हूं और क्यों दुःख भोगता हूं ? आखिर यह सब कौन करवा रहा है और परमेश्वर कौन है, कैसा है, कहां है तथा कैसे मिलेगा और ब्रह्मा, विष्णु और शिव के माता-पिता कौन हैं और किस प्रकार से काल ब्रह्म की जेल से छुटकारा पाकर अपने निज घर (सतलोक) में वापिस जा सकते हैं। यह सब इस पुस्तक के माध्यम से दर्शाया गया है ताकि इसे पढ़कर आम भक्तात्मा का कल्याण संभव हो सके। यह पुस्तक सतगुरु रामपाल जी महाराज के प्रवचनों का संग्रह है जो कि सद्ग्रन्थों में लिखे तथ्यों पर आधारित है। हमें पूर्ण विश्वास है कि जो पाठकजन रूची व निष्पक्ष भाव से पढ़ कर अनुसरण करेगा। उसका कल्याण संभव है:-
”आत्म प्राण उद्धार ही, ऐसा धर्म नहीं और। कोटि अश्वमेघ यज्ञ, सकल समाना भौर।।“
जीव उद्धार परम पुण्य, ऐसा कर्म नहीं और। मरूस्थल के मृग ज्यों, सब मर गये दौर-दौर।।
भावार्थ:-- यदि एक आत्मा को सतभक्ति मार्ग पर लगाकर उसका आत्म कल्याण करवा दिया जाए तो करोड़ अवश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और उसके बराबर कोई भी धर्म नहीं है। जीवात्मा के उद्धार के लिए किए गए कार्य अर्थात् सेवा से श्रेष्ठ कोई भी कार्य नहीं है। अपने पेट भरने के लिए तो पशु-पक्षी भी सारा दिन भ्रमते हैं। उसी तरह वह व्यक्ति है, जो परमार्थी कार्य नहीं करता, परमार्थी कर्म सर्वश्रेष्ठ सेवा जीव कल्याण के लिए किया कर्म है। जीव कल्याण का कार्य न करके सर्व मानव मरूस्थल के हिरण की तरह दौड़-2 कर मर जाते हैं। जिसे कुछ दूरी पर जल ही जल दिखाई देता है और वहां दौड़ कर जाने पर थल ही प्राप्त होता है। फिर कुछ दूरी पर थल का जल दिखाई देता है अन्त में उस हिरण की प्यास से ही मृत्यु हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जो प्राणी इस काल लोक में जहां हम रह रहे है। वे उस हिरण के समान सुख की आशा करते हैं जैसे निःसन्तान सोचता है सन्तान होने पर सुखी हो जाऊँगा। सन्तान वालों से पूछें तो उनकी अनेकों समस्याऐं सुनने को मिलेंगी। निर्धन व्यक्ति सोचता है कि धन हो जाए तो में सुखी हो जाऊं। जब धनवानों की कुशल जानने के लिए प्रश्न करोगे तो ढेर सारी परेशानियाँ सुनने को मिलेंगी। कोई राज्य प्राप्ति से सुख मानता है, यह उसकी महाभूल है। राजा (मन्त्राी, मुख्यमन्त्राी, प्रधानमन्त्राी, राष्ट्रपति ) को स्वपन में भी सुख नहीं होता। जैसे चार-पांच सदस्यों के परिवार का मुखिया अपने परिवार के प्रबन्ध में कितना परेशान रहता है। राजा तो एक क्षेत्र का मुखिया होता है। उसके प्रबन्ध में सुख स्वपन में भी नहीं होता। राजा लोग शराब पीकर कुछ गम भुलाते हैं। माया इकट्ठा करने के लिए जनता से कर लेते हैं फिर अगले जन्मों में जो राजा सत्यभक्ति नहीं करते, पशु योनियों को प्राप्त होकर प्रत्येक व्यक्ति से वसूले कर को उनके पशु बनकर लौटाते हैं। जो व्यक्ति मनमुखी होकर तथा झूठे गुरुओं से दिक्षित होकर भक्ति तथा धर्म करते हैं। वे सोचते हैं कि भविष्य में सुख होगा लेकिन इसके विपरित दुःख ही प्राप्त होता है। कबीर साहेब कहते हैं कि मेरा यह ज्ञान ऐसा है कि यदि ज्ञानी पुरुष होगा तो इसे सुनकर हृदय में बसा लेगा और यदि मूर्ख होगा तो उसकी समझ से बाहर है।
“कबीर, ज्ञानी हो तो हृदय लगाई, मूर्ख हो तो गम ना पाई“
अधिक जानकारी के लिए कृप्या प्रवेश करें इस पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ में। इस पुस्तक को पढ़कर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ट अधिवक्ता श्री सुरेश चन्द्र ने कहा ‘‘इस पुस्तक का नाम तो ‘‘ज्ञान सागर’’ होना चाहिए।।
‘‘कलयुग में सत्ययुग’’
(सन्त रामपाल जी के सत्संग वचनों से उद्धृत)
सत्ययुग उस समय को कहते हैं जिस युग में अधर्म नहीं होता। शांति होती है। पिता से पहले पुत्रा की मृत्यु नहीं होती, स्त्राी विधवा नहीं होती। रोग रहित शरीर होता हैं। सर्व मानव भक्ति करते हैं। परमात्मा से डरने वाले होते हैं क्योंकि वे आध्यात्मिक ज्ञान के सर्व कर्मों से परिचित होते हैं। मन, कर्म, वचन से किसी को पीड़ा नहीं देते तथा दुराचारी नहीं होते। जति-सति, स्त्राी पुरूष होते हैं। वृक्षों की अधिकता होती हैं। सर्व मनुष्य वेदों के आधार से भक्ति करते हैं। वर्तमान में कलयुग है। इसमें अधर्म बढ़ चुका है। कलयुग में मानव की भक्ति के प्रति आस्था कम हो जाती है या तो भक्ति करते ही नहीं यदि करते हैं तो शास्त्रा विधि त्याग कर मनमानी भक्ति करते हैं। जो श्रीमद् भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में वर्जित हैं। जिस कारण से परमात्मा से जो लाभ वांछित होता है वह प्राप्त नहीं होता। इसलिए अधिकतर मनुष्य नास्तिक हो जाते हैं। धनी बनने के लिए रिश्वत, चोरी, डाके डालने को माध्यम बनाते हैं। परन्तु यह विधि धन लाभ की न होने के कारण परमात्मा के दोषी हो जाते हैं तथा प्राकृतिक कष्टों को झेलते हैं। परमेश्वर के विधान को मानव भूल जाता है कि किस्मत से अधिक प्राप्त नहीं हो सकता। यदि अन्य अवैध विधि से धन प्राप्त कर लिया तो वह रहेगा नहीं। जैसे एक व्यक्ति अपने पुत्रा को सुखी देखने के लिए अवैध विधि से धन प्राप्ति करता था। कुछ दिनों पश्चात् उस के पुत्रा के दोनों गुर्दे खराब हो गए। जैसे तैसे करके गुर्दे बदलवाए, तीन लाख रूपये खर्च हुआ। जो धन अवैध विधि से जोड़ा था वह सर्व खर्च हो गया तथा कुछ रूपये कर्जा भी हो गया। फिर लड़के का विवाह किया। छः महीने के पश्चात् बस दुर्घटना में इकलौता पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुआ। अब न तो पुत्रा रहा और न ही अवैध विधि से अर्जित किया गया धन। शेष क्या रहा? अवैध विधि से धन संग्रह करने में किए हुए पाप, जो अभी शेष हैं, उनको भोगने के लिए जिस-2 से पैसे ऐंठे थे, उनका पशु (गधा, बैल, गाय ) बनकर पूरे करेगा। परन्तु परम अक्षर ब्रह्म की शास्त्रानुकूल साधना करने वाले भक्त की किस्मत को परमेश्वर बदल देता है। क्योंकि परमेश्वर के गुणों में लिखा है कि परमात्मा निर्धन को धनवान बना देता है।
सत्ययुग में कोई भी प्राणी मांस-तम्बाखु, मदिरा सेवन नहीं करता। क्योंकि वे इनसे होने वाले पापों से परिचित होते हैं।
मांस खाना पाप है:- एक समय एक संत अपने शिष्य के साथ कहीं जा रहा था। वहाँ पर एक मछियारा तालाब से मछलियाँ पकड़ रहा था। मछलियाँ जल से बाहर तड़फ-2 कर प्राण त्याग रही थी। शिष्य ने पूछा हे गुरुदेव! इस अपराधी प्राणी को क्या दण्ड मिलेगा ? गुरुजी ने कहा बेटा! समय आने पर बताऊँगा। चार-पांच वर्ष के पश्चात् दोनों गुरु शिष्य कहीं जाने के लिए जंगल से गुजर रहे थे। वहां पर एक हाथी का बच्चा चिल्ला रहा था। उछल कूद करते समय हाथी का बच्चा दो निकट-2 उगे वृक्षों के बीच में फंस गया वह निकल तो गया परन्तु निकलने के प्रयत्न में उसका सर्व शरीर छिल गया था तथा उसके शरीर में जख्म हो गए थे। उसके सारे शरीर में कीड़े चल रहे थे। जो उसको नोच रहे थे। वह हाथी का बच्चा बुरी तरह चिल्ला रहा था। शिष्य ने गुरु जी से पूछा कि हे गुरुदेव! यह प्राणी कौन से पाप का दण्ड भोग रहा है। गुरुदेव ने कहा पुत्रा यह वही मछियारा है जो उस शहर के बाहर जलास्य से मछलियाँ निकाल रहा था।
मदिरा (शराब) पीना कितना पाप है:- शराब पीने वाले को सत्तर जन्म कुत्ते के भोगने पड़ते है। मल-मूत्र खाता-पीता फिरता है। अन्य कष्ट भी बहुत सारे भोगने पड़ते हैं तथा शराब शरीर में भी बहुत हानि करती है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग होते हैं। फेफड़े, लीवर, गुर्दे तथा हृदय। शराब इन चारों को क्षति पहुँचाती है। शराब पीकर मानव, मानव न रह कर पशु तुल्य गतिविधि करने लगता है। कीचड़ में गिर जाना, कपड़ों में मलमूत्र तथा वमन कर देना।
धन हानि, मान हानि, घर में अशांति आदि मदिरा पान के कारण होते है। मदिरा सत्ययुग में प्रयोग नहीं होती। सत्ययुग में सर्व मानव परमात्मा के विद्यान से परिचित होते हैं। जिस कारण सुख का जीवन व्यतीत करते हैं।
गरीब: मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म स्वान के जानी।
दुराचार करना कितना पाप है:-
परद्वारा स्त्राी का खोलै, सत्तर जन्म अन्धा हो डोलै।
पूज्य कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि जो व्यक्ति किसी परस्त्राी के साथ दुष्कर्म करता है तो वह सत्तर जन्म अन्धे का जीवन भोगता है। बुद्धिमान व्यक्ति ऐसी आफत कभी मोल नहीं लेता। मूर्ख ही ऐसा कार्य करता है। जैसे आग में हाथ डालने का अर्थ मौत मोल लेना है। जैसे कोई व्यक्ति किसी अन्य के खेत में बीज डालता है तो वह महा मूर्ख है। बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा कभी नहीं कर सकता। वैश्यागमन को ऐसा जानो जैसे कुरड़ियों पर गेहूं का बहुमूल्य बीज का थैला भर कर डाल आए। यह क्रिया बुद्धिमान व्यक्ति नहीं कर सकता या तो महामूर्ख या शराबी निर्लज अर्थात् घंड व्यक्ति ही किया करता है। विचारणीय विषय है कि जो पदार्थ शरीर से नाश होते हुए आनन्द का अनुभव कराता है यदि वह शरीर में सुरक्षित रखा जाए तो कितना आनन्द देगा? दीर्घायु, स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मस्तिष्क, शूरवीरता तथा स्फूर्ति प्रदान करता है। जिस पदार्थ से अनमोल बच्चा प्राप्त होता है। उसका नाश करना बच्चे की हत्या करने तुल्य है। इसलिए दुराचार तथा अनावश्यक भोग विलास वर्जित है।
तम्बाकू सेवन कितना पाप है? परमेश्वर कबीर जी ने बताया है:--
सुरापान मद्य मांसाहारी, गमन करै भोगै पर नारी।
सत्तर जन्म कटत हैं शिशम्, साक्षी साहिब है जगदीशम्।।
पर द्वारा स्त्राी का खोलै, सत्तर जन्म अन्धा हो डोलै।
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरे, डूबै काली धार।।
जैसे कि ऊपर वर्णन किया है कि एक बार शराब पीने वाला सत्तर जन्म कुत्ते का जीवन भोगता है। फिर मल-मूत्रा खाता-पीता फिरता है। परस्त्राी गमन करने वाला सत्तर जन्म अन्धे के भोगता है। मांस खाने वाला भी महाकष्ट का भागी होता है। उपरोक्त सर्व पाप सौ-2 बार करने वाले को जो पाप होता है। वह एक बार हुक्का पीने वाले अर्थात् तम्बाखु सेवन करने वाले को सहयोग देने वाले को होता है। तम्बाखु सेवन करने वाले हुक्का, सिगरेट, बीड़ी या अन्य विधि से सेवन करने वाले तम्बाखु खाने वालों को क्या पाप लगेगा? घोर पाप का भागी होगा। एक व्यक्ति जो तम्बाखु सेवन करता है। जब वह हुक्का या बीड़ी-सिगरेट पी कर धुआं छोड़ता है तो वह धुआं उस के छोटे-छोटे बच्चों के शरीर में प्रवेश करके हानि करता है। वे बच्चें फिर शीघ्र बुराई को ग्रहण करते हैं तथा उनका स्वास्थय भी बिगड़ जाता है।
‘‘अवतार की परिभाषा’’
‘अवतार’ का अर्थ है ऊँचे स्थान से नीचे स्थान पर उतरना। विशेषकर यह शुभ शब्द उन उत्तम आत्माओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जो धरती पर कुछ अद्धभुत कार्य करते हैं। जिनको परमात्मा की ओर से भेजा हुआ मानते हैं या स्वयं परमात्मा ही का पृथ्वी पर आगमन मानते हैं।
श्री मद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16-17 में तीन पुरूषों (प्रभुओं) का ज्ञान है।
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क्षर पुरूष जिसे ब्रह्म भी कहते हैं। जिसका ¬ नाम साधना का है। जिसका प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में है।
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अक्षर पुरूष जिसको परब्रह्म भी कहते हैं। जिसकी साधना का मंत्र तत् जो सांकेतिक है। प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है।
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उत्तम पुरूष तूः अन्यः = श्रेष्ठ पुरूष परमात्मा तो उपरोक्त दोनों पुरूषों (क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष) से अन्य है। वह परम अक्षर पुरूष है जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 1 के उत्तर में अध्याय 8 के श्लोक 3 में कहा है कि वह परम अक्षर ब्रह्म है। इसका जाप सत् है जो सांकेतिक है। इसी परमेश्वर की प्राप्ति से साधक को परम शांति तथा सनातन परमधाम प्राप्त होगा। प्रमाण गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में यह परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) गीता ज्ञान दाता से भिन्न है। अधिक ज्ञान प्राप्ति के लिए कृप्या पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ सतलोक आश्रम बरवाला से प्राप्त करें। अवतार दो प्रकार के होते हैं। जैसे ऊपर कहा गया है। अब आप जी को पता चला कि मुख्य रूप से तीन पुरूष (प्रभु) है। जिनका उल्लेख ऊपर कर दिया गया है। हमारे लिए मुख्य रूप से दो प्रभुओं की भूमिका रहती है।
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क्षर पुरूष (ब्रह्म):- जो गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में अपने आप को काल कहता है।
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परम अक्षर पुरूष (परम अक्षर ब्रह्म):- जिसके विषय में गीता अध्याय 8 श्लोक 3 तथा 8, 9, 10 में तथा गीता अध्याय 18 श्लोक 62 अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 17 में कहा है।
‘‘ब्रह्म (काल) के अवतारों की जानकारी’’
गीता अध्याय 4 का श्लोक 7
यदा, यदा, हि, धर्मस्य, ग्लानिः, भवति, भारत,
अभ्युत्थानम्, अधर्मस्य, तदा, आत्मानम्, सृजामि, अहम्।।7।।
अनुवाद: (भारत) हे भारत! (यदा,यदा) जब-जब (धर्मस्य) धर्मकी (ग्लानिः) हानि और (अधर्मस्य) अधर्मकी (अभ्युत्थानम्) वृद्धि (भवति) होती है (तदा) तब-तब (हि) ही (अहम्) मैं (आत्मानम्) अपना अंश अवतार (सृजामि) रचता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ। (7)
जैसे श्री मद्भगवत् गीता अध्याय 4 श्लोक 7 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जब-जब धर्म में घृणा उत्पन्न होती है। धर्म की हानि होती है तथा अधर्म की वृद्धि होती है तो मैं (काल = ब्रह्म = क्षर पुरूष) अपने अंश अवतार सृजन करता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ।
जैसे श्री रामचन्द्र जी तथा श्री कृष्ण चन्द्र जी को काल ब्रह्म ने ही पृथ्वी पर उत्पन्न किया था। जो स्वयं श्री विष्णु जी ही माने जाते हैं।
इनके अतिरिक्त 8 अवतार और कहे गये हैं। जो श्री विष्णु जी स्वयं नहीं आते अपितु अपने लोक से अपने कृपा पात्रा पवित्रा आत्मा को भेजते हैं। वे भी अवतार कहलाते हैं। कहीं-2 पर 25 अवतारों का भी उल्लेख पुराणों में आता है। काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) के भेजे हुए अवतार पृथ्वी पर बढ़े अधर्म का नाश कत्लेआम अर्थात् संहार करके करते हैं।
उदाहरण के रूप में:- श्री रामचंद्र जी तथा श्री कृष्णचंद्र जी, श्री परशुराम जी तथा श्री निःकलंक जी (जो अभी आना शेष है, जो कलयुग के अन्त में आएगा)। ये सर्व अवतार घोर संहार करके ही अधर्म का नाश करते हैं। अधर्मियों को मारकर शांति स्थापित करने की चेष्टा करते हैं। परन्तु शांन्ति की अपेक्षा अशांति ही बढ़ती है। जैसे श्री रामचंद्र जी ने रावण को मारने के लिए युद्ध किया। युद्ध में करोड़ों पुरूष मारे गए। जिन में धर्मी तथा अधर्मी दोनों ही मारे गए। फिर उनकी पत्नियाँ तथा छोटे-बड़े बच्चे शेष रहे उनका जीवन नरक बन गया। विधवाओं को अन्य व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया। निर्वाह की समस्या उत्पन्न हुई आदि-2 अनेकों अशांति के कारण खड़े हो गए। यही विधि श्री कृष्ण जी ने अपनाई थी, यही विधि श्री परशुराम जी ने अपनाई थी। इसी विधि से दशवां अवतार काल ब्रह्म (क्षर पुरूष) द्वारा उत्पन्न किया जाएगा। उसका नाम ‘‘निःकलंक’’ होगा। वह कलयुग के अन्तिम समय में उत्पन्न होगा। जो राजा हरिशचन्द्र वाली आत्मा होगी। संभल नगर में श्री विष्णु दत्त शर्मा के घर में जन्म लेगा। उस समय सर्व मानव अत्याचारी - अन्यायी हो जाऐंगे। उन सर्व को मारेगा। उस समय जिन-2 मनुष्यों में परमात्मा का डर होगा। कुछ सदाचारी होंगे उनको छोड़ जाएगा अन्य सर्व को मार डालेगा। यह विधि है ब्रह्म (काल-क्षर पुरूष) के अवतारों की अधर्म का नाश करने तथा शांति स्थापना करने की।
‘‘परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् सत्यपुरूष के अवतारों की जानकारी’’
परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होता है। वह सशरीर आता है। सशरीर लौट जाता है:- यह लीला वह परमेश्वर दो प्रकार से करता है।
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क = प्रत्येक युग में शिशु रूप में किसी सरोवर में कमल के फूल पर वन में प्रकट होता है। वहां से निःसन्तान दम्पति उसे उठा ले जाते हैं। फिर लीला करता हुआ बड़ा होता है तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करता है। सरोवर के जल में कमल के फूल पर अवतरित होने के कारण परमेश्वर नारायण कहलाता है (नार=जल, आयण=आने वाला अर्थात् जल पर निवास करने वाला नारायण कहलाता है।)
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ख = जब चाहे साधु सन्त जिन्दा के रूप में अपने सत्यलोक से पृथ्वी पर आ जाते हैं तथा अच्छी आत्माओं को ज्ञान देते हैं। फिर वे पुण्यात्माऐं भी ज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश करते हैं। वे भी परमेश्वर के भेजे हुए अवतार होते हैं। कलयुग में ज्येष्ठ शुदि पूर्णमासी संवत् 1455 (सन् 1398) को कबीर परमेश्वर सत्यलोक से चलकर आए तथा काशी शहर के लहरतारा नामक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में विराजमान हुए। वहां से नीरू तथा नीमा जो जुलाहा (धाणक) दम्पति थे, उन्हें उठा लाए। शिशु रूपधारी परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने 25 दिन तक कुछ भी आहार नहीं किया। नीरू तथा नीमा उसी जन्म में ब्राह्मण थे। श्री शिव जी के पुजारी थे। मुसलमानों द्वारा बलपूर्वक मुसलमान बनाए जाने के कारण जुलाहे का कार्य करके निर्वाह करते थे। बच्चे की नाजुक हालत देखकर नीमा ने अपने ईष्ट शिव जी को याद किया। शिव जी साधु वेश में वहां आए तथा बालक रूप में विराजमान कबीर परमेश्वर को देखा। बालक रूप में कबीर साहेब जी ने कहा हे शिव जी इन्हें कहो एक कुँवारी गाय लाऐं वह आप के आशीर्वाद से दूध देगी। ऐसा ही किया गया। कबीर परमेश्वर के आदेशानुसार भगवान शिव जी ने कँुवारी गाय की कमर पर थपकी लगाई। उसी समय बछिया के थनों से दूध की धार बहने लगी। एक कोरा मिट्टी का छोटा घड़ा नीचे रखा। पात्रा भर जाने पर दूध बन्द हो गया। फिर प्रतिदिन पात्रा थनों के नीचे करते ही बछिया के थनों से दूध निकलता। उसको परमेश्वर कबीर जी पीया करते थे। जुलाहे के घर परवरिश होने के कारण बड़े होकर परमेश्वर कबीर जी भी जुलाहे का कार्य करने लगे तथा अपनी अच्छी आत्माओं को मिले, उनको तत्वज्ञान समझाया तथा स्वयं भी तत्वज्ञान प्रचार करके अधर्म का नाश किया तथा जिन-2 को परमेश्वर जिन्दा महात्मा के रूप में मिले, उनको सच्चखण्ड (सत्यलोक) में ले गए तथा फिर वापिस छोड़ा, उनको आध्यात्मिक ज्ञान दिया तथा अपने से परिचित कराया। वे उस परमेश्वर (सत्य पुरूष) के अवतार थे। उन्होंने भी परमेश्वर से प्राप्त ज्ञान के आधार से अधर्म का नाश किया। वे अवतार कौन-2 हुऐ हैं।
(1) आदरणीय धर्मदास जी (2) आदरणीय मलुकदास जी (3) आदरणीय नानक देव साहेब जी (सिख धर्म के प्रवर्तक) (4) आदरणीय दादू साहेब जी (5) आदरणीय गरीबदास साहेब जी गांव छुड़ानी जि. झज्जर (हरियाणा) वाले तथा (6) आदरणीय घीसा दास साहेब जी गांव खेखड़ा जि. मेरठ (उत्तर प्रदेश) वाले ये उपरोक्त सर्व अवतार परम अक्षर ब्रह्म (सत्य पुरूष) के थे। अपना कार्य करके चले गए। अधर्म का नाश किया। जिस कारण से जनता में बहुत समय तक बुराई नहीं समाई। वर्तमान में सन्तों की कमी नहीं परन्तु शांति का नाम नहीं, कारण यह है कि इन संतों की साधना शास्त्रों के विरूद्ध है। जिस कारण से समाज में अधर्म बढ़ता जा रहा है। इन पंथों और सन्तों को सैकड़ों वर्ष हो गए ज्ञान प्रचार करते हुए परन्तु अधर्म बढ़ता ही जा रहा है।
‘‘सत्यपुरूष का वर्तमान अवतार’’
जो सत्य साधना तथा तत्वज्ञान का प्रचार परमेश्वर के पूर्वोक्त परमेश्वर के अवतार सन्त किया करते थे। जिससे आपसी प्रेम था, एक दूसरे के दुःख में दुःखी होते थे, असहाय व्यक्ति की मदद करते थे, वही शास्त्रविधि अनुसार साधना तथा वही आध्यात्मिक यथार्थ ज्ञान संत रामपाल दास जी महाराज को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने प्रदान किया है। मार्च 1997 को फाल्गुन मास की शुक्ल प्रथमा को दिन के दस बजे जिन्दा महात्मा के रूप में सत्यलोक से आकर सन्त रामपाल दास जी महाराज को सतनाम तथा सारनाम दान करने का आदेश देकर अन्तध्र्यान हो गए।
सन्त रामपाल दास जी महाराज भी परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) के उन अवतारों में से एक हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा अधर्म का नाश करते हैं। अब विश्व में शांति होगी। सर्व धर्म तथा पंथों के व्यक्ति एक होकर आपस में प्रेम से रहा करेंगे। राजनेता भी निर्भिमानी, न्यायकारी तथा परमात्मा से डर कर कार्य करने वाले होंगे। जनता के सेवक बनकर निष्पक्ष कार्य किया करेंगे। धरती पर पुनः सत्ययुग जैसी स्थिति होगी। वर्तमान में धरती पर वह अवतार सन्त रामपाल दास जी हैं। अब घर-2 में परमेश्वर के ज्ञान की चर्चा होगी। जहां गांव व शहरों में तथा पार्कों में बैठकर ताश खेलते है, कोई राजनीतिक बातें करता है, कोई अपने पुत्रों तथा पुत्रा वधुओं की अच्छे या निकम्में होने की चर्चा करते हैं वहां परमेश्वर की महिमा की चर्चा होगी तथा ‘‘ज्ञान गंगा’’ पुस्तक में लिखे ज्ञान पर विचार हुआ करेगा। परमात्मा की महिमा करने मात्र से भी जीव पुण्य का भागी बनता है। फिर शास्त्राविधि अनुसार साधना करके जीवन सुखी बनाऐंगे तथा आत्म कल्याण करायेंगे। धरती पर कलयुग में सत्ययुग जैसा समय आयेगा। सन्त रामपाल दास जी महाराज ही वर्तमान में वास्तव में धरती पर अवतार हैं अधिक जानकारी के लिए कृप्या पढ़ें पुस्तक ‘‘धरती पर अवतार’’ (सम्पूर्ण)।
‘अमेरिका की महिला भविष्यवक्ता फ्लोरेंस की महत्वपूर्ण भविष्यवाणी।‘
अमेरिका की विश्व विख्यात भविष्यवक्ता फ्लोरेंस ने अपनी भविष्यवाणियों में कई बार भारत का जिक्र किया है। ‘द फाल आॅफ सेंशेसनल कल्चर’ नाम की अपनी पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि सन् 2000 आते-आते प्राकृतिक संतुलन भयावह रूप से बिगड़ेगा। लोगों में आक्रोश की प्रबल भावना होगा। दुराचार पराकाष्ठा पर होगा। पश्चिमी देशों के विलासितापूर्ण जीवन जीने वालों में निराशा, बैचेनी और अशांति होगी। अतृप्त अभिलाषाएं और जोर पकड़ेगी। जिससे उनमें आपसी कटुता बढ़ेगी। चारों ओर हिंसा और बर्बरता का वातावरण होगा। ऐसा वातावरण होगा की चारों ओर हाहाकार मच जाएगा। लेकिन भारत से उठने वाली एक नई विचारधारा इस घातक वातावरण को समाप्त कर देगी। वह विचारधारा वैज्ञानिक दृष्टि से सामंजस्य और भाईचारे का महत्व समझाएगी, वह यह भी समझाएगी कि धर्म और विज्ञान में आपस में विरोध नहीं है। आध्यात्मिकता की उच्चता और भौतिकता का खोखलापन सबके सामने उजागर करेगी। मध्यमवर्ग उस विचारधारा से बहुत अधिक प्रभावित होगा। यह वर्ग समाज के सभी वर्गों को अच्छे समाज के निर्माण के लिए उत्प्रेरित करेगा। यह विचारधारा पूरे विश्व में चमत्कारी परिवर्तन लाएगी।
मुझे अपनी छठी अतींद्रिय शक्ति से यह एहसास हो रहा है कि इस विचारधारा को जन्म देने वाला वह महान संत भारत में जन्म ले चुका है। उस संत के ओजस्वी व्यक्तित्व का प्रभाव सब को चमत्कृत करेगा। उसकी विचारधारा अध्यात्म के कम होते जा रहे प्रभाव को फिर से नई स्फूर्ति देगी। चारों ओर आध्यात्मिक वातावरण होगा।
संत की विचारधारा से प्रभावित लोग विश्व के कल्याण के लिए पश्चिम की ओर चलेंगे। धीरे-धीरे एशिया, यूरोप और अमेरिका पर पूरी तरह छा जाएगें। उस संत की विचारधारा से पूरा विश्व प्रभावित होगा और उनके चरण चिन्हों पर चलेगा। पश्चिमी देश के लोग उन्हें ईसा, मुसलमान उन्हें एक सच्चा रहनुमा और एशिया के लोग उन्हें भगवान का अवतार मानेंगे।
उस महान संत की विचारधारा से बौद्धिक क्रांति होगी। बुद्धिजीवियों की मान्यताएं बदलंेगी। उनमें ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास की कोंपले फूटेंगी। फ्लोरेंस के अनुसार वह संत भारत में जन्म ले चुकें हैं। वह इस संत से काफी प्रभावित थी। अपनी एक दूसरी पुस्तक ‘गोल्डन लाइट आॅफ न्यू एरा’ में भी उन्होंने लिखा है। ‘‘जब मैं ध्यान लगाती हूँ तो अक्सर एक संत को देखती हूँ। गौर वर्ण का है। सफेद बाल हैं। उसके मुख पर न दाढ़ी है, न मूछ है। उस संत के ललाट पर गजब का तेज होता है। उनके ललाट पर आकाश से एक नक्षत्र के प्रकाश की किरणें निरंतर बरसती रहती हैं। मैं देखती हूँ कि वह संत अपनी कल्याणकारी विचारधारा तथा अपने सत् चरित्र प्रबल अनुयायियों की शक्ति से सम्पूर्ण विश्व में नए ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं।
वह संत अपनी शक्ति निरंतर बढ़ा रहे हैं। उनमें इतनी शक्ति है कि वह प्राकृतिक परिवर्तन भी कर सकते हैं। वह अपना कार्य वैज्ञानिक ढंग से करेंगे। उनकी कृपा और प्रयत्नों से मानवीय सभ्यता में नई जागृति आएगी। विश्व के समस्त जनसमूह में नई चेतना का संचार होगा। लोकशक्ति का एक नया रूप उभर कर सामने आएगा जो सत्ताधारियों की मनमानियों पर अंकुश लगा देगा।’’
मनोचिकित्सक तथा सम्मोहन कला के विश्व प्रसिद्धज्ञाता डाॅ. मोरे बर्सटीन की फ्लोरेंस से अच्छी दोस्ती थी। एक बार फ्लोरेंस ने उनसे भी कहा था। ‘‘डाॅक्टर वह समय बड़ी तेजी से नजदीक आ रहा है जब सत्ता लोलुप राजनेताओं की अपेक्षा आप जैसे समाजसेवकों की बातें समाज अधिक ध्यान से सुनेगा। 21 वीं सदी के आते आते एक नई विचारधारा पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। हर राष्ट्र में सच्चरित्र धार्मिक लोगों का संगठन लोगों के दिमाग में बैठी गलत मान्यताओं को बदल देगा। यह विचारधारा भारत से प्रस्फुटित होंगी। वहीं से पूरे विश्व में फैलेगी। मैं उस पवित्रा स्थान पर एक प्रचंड तपस्वी को देख रही हूँ। जिसका तेज बड़ी तेजी से फैल रहा है। मनुष्य में सोए देवत्व को जगाने तथा धरती का स्वर्ग जैसा बनाने के लिए वह संत दिन रात प्रयत्न कर रहे हैं।
एक पत्रकार ने 1964 में फ्लोरेंस से पूछा था कि क्या वह दुनिया का भविष्य बता सकती है। फ्लोरेंस ने इसके जवाब में कहा था 1970 की शुरूवात व्यापक उथल-पुथल के साथ होगी। 1979.80 के बाद ऐसे-ऐसे भूकंप आऐंगे की न्यूजर्सी का कुछ हिस्सा तथा यूरोप का और एशिया के कई देशों के स्थान भूकंप से विदीर्ण हो जाएंगे। कुछ जलमग्न भी हो जाऐंगे। तृतीय विश्वयुद्ध का आतंक सबके दिमाग में बैठ जाएगा और वे इस युद्ध की तैयारी करेंगे, लेकिन भारतीय राजनेता अपने प्रभाव और बुद्धि से तीसरे विश्वयुद्ध को टालने में सफल हो जाऐंगे। तीसरे विश्वयुद्ध के शुरू होने तक भारत के शासन की बागडोर आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोगों के हाथ में होगी, इसलिए उनके प्रभाव से विश्वयुद्ध टलेगा। वे शासक एक महान संत के ओजस्वी तथा क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित होंगे। वे उस संत के प्रति उसी तरह समर्पित होंगे जैसे वाशिंगटन स्वतंत्राता एवं मानवता के प्रति समर्पित थे।’’ अमेरिका के शहर न्यूजर्सी की रहने वाली फ्लोरेंस सचमुच एक विलक्षण महिला थी। एक बार नेबेल नाम के व्यक्ति ने टी.वी. कार्यक्रम के दौरान उनसे बोला, ‘‘आप भारत में जन्म ले चुके संत के बारे में तो अक्सर बताती रहती हैं। मैं अपने बारे में कुछ जानना चाहता हूँ बताइए।’’
फ्लोरेंस ने उसके दाहिने हाथ को थाम लिया और बोली, ‘‘आप बहुत जल्द किसी दूसरे राज्य से प्रसारण करेंगे।’’ नेबेल एक प्रसारण सेवा के कर्मचारी थे। फ्लोरेंस की इस बात पर वह हंसने लगे। कुछ क्षण बाद बोले ‘‘आपने मुझसे यह अच्छा मजाक किया। यदि हमारी कंपनी के अधिकारी इस कार्यक्रम को देख रहे होंगे तो मैं दूसरे राज्य में जाऊ या नहीं, फिलहाल अपनी कंपनी से तुरंत निकाल दिया जाऊंगा।’’
कुछ ही मिनटों के बाद टी.वी. के कंट्रोल रूम का फोन घनघना उठा। फोन नेबेल के लिए था। उनकी कंपनी के जनरल मैनेजर उनसे बात करना चाहते थे। नेबेल ने जब फोन उठाया तो उन्होंने कहा हमने न्यूयार्क से प्रसारण करने का काम शुरू करने का निर्णय लिया है वहां तुम्हें ही भेजा जाएगा। अभी यह बात गुप्त रखना इसकी घोषणा कल की जाएगी। मैं टी.वी. पर फ्लोरेंस के साथ तुम्हारी बातचीत देख रहा था। फ्लोरेंस ने तुम्हारे विषय में जो बताया है वह पूरी तरह सच है। आश्चर्य है कि उन्हें यह बात कैसे मालूम हो गई ?’’ नेबेल फ्लोरेंस का चेहरा देखता रह गया।
कुछ पत्राकारों ने उनसे एक बार पूछा था कि वह भविष्य को कैसे देख लेती हैं तथा गायब व्यक्ति या वस्तुओं का पता कैसे लगा लेती हैं, तो फ्लोरेंस ने बताया,‘‘मुझे स्वयं नहीं मालूम कि ऐसा कैसे सम्भव हो जाता है। मैं भविष्य के विषय में एक बहुत महत्वपूर्ण बात बता रहीं हूँ। 20 वीं शताब्दी के अंत में भारतवर्ष से एक प्रकाश निकलेगा। यह प्रकाश पूरी दुनिया को उन दैवी शक्तियों के विषय में जानकारी देगा, जो अब तक हम सभी के लिए रहस्यमय बनी हुई हैं। (देवी शक्तियों की जानकारी जो सन्त रामपाल दास जी महाराज द्वारा बताई गई हैं। कृप्या पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 20 पर ‘‘सृष्टि रचना’’) एक दिव्य महापुरूष द्वारा यह प्रकाश पूरे विश्व में फैलेगा। वह सभी को सत् मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगा। समस्त दुनिया में एक नयी सोच की ज्योति फैलेगी। जब मैं ध्यानावस्था में होती हूँ तो अक्सर यह दिव्य महापुरूष मुझे दिखाई देते हैं।’’
फ्लोरेंस ने बार-बार इस संत या दिव्य महापुरूष का जिक्र किया है। साथ ही यह भी बताया है कि उत्तरी भारतवर्ष के एक पवित्र स्थान पर वह मौजूद हैं। सज्जनों उपरोक्त भविष्यवाणी तथा वर्तमान वाणी है जो परम सन्त रामपाल महाराज जी पर खरी उतरती है तथा इसी का समर्थन अन्य भविष्यवाणियाँ भी करती है। जो आगे लिखी हैं।
‘‘भाई बाले वाली जन्म साखी में प्रमाण’’
‘‘एक महापुरूष के विषय में भाई बाले वाली जन्म साखी में प्रजाद भक्त की भविष्यवाणी’’ भाई बाले वाली जन्म साखी में लिखा गया विवरण स्पष्ट करता है कि संत रामपाल दास जी महाराज ही वह अवतार है जिन्हें परमेश्वर कबीर जी तथा संत नानक जी के पश्चात् पंजाब की धरती पर अवतरित होना था। सन्त रामपाल दास जी महाराज 8 सितम्बर सन् 1951 को गांव धनाना, जिला सोनीपत, हरियाणा प्रान्त (उस समय पंजाब प्रान्त) भारत की पवित्रा धरती पर श्री नन्द राम जाट के घर जाट वर्ण में श्रीमति इन्द्रा देवी की कोख से जन्में।
इस विषय में ’’जन्म साखी भाई बाले वाली’’ हिन्दी वाली में जिसके प्रकाशक हैं:- भाई जवाहर सिंह कृपाल सिंह एण्ड कम्पनी पुस्तकां वाले, बाजार माई सेवां, अमृतसर (पंजाब) तथा पंजाबी वाली के प्रकाशक है:- भाई जवाहर सिंह कृपाल सिंह पुस्तकां वाले गली-8 बाग रामानन्द अमृतसर (पंजाब)।
इसमें लिखा अमर लेख इस प्रकार है:- एक समय भाई बाला तथा मरदाना को साथ लेकर सतगुरु नानक देव जी भक्त प्रजाद जी के लोक में गए। जो पृथ्वी से कई लाख कोस दूर अन्तरिक्ष में है। प्रजाद ने कहा कि हे नानक जी! आप को परमात्मा ने दिव्य दृष्टि दी तथा कलयुग में बड़ा भक्त बनाया है। आप का कलयुग में बहुत प्रताप होगा। यहां पर (प्रजाद के लोक में) पहले कबीर जी आये थे या आज आप आये हो एक और आयेगा जो आप दोनों जैसा ही महापुरूष होगा। इन तीनों के अतिरिक्त यहां मेरे लोक में कोई नहीं आ सकता। भक्त बहुत हो चुके हैं आगे भी होगें परन्तु यहां मेरे लोक में वही पहुँच सकता है, जो इन जैसी महिमा वाला होगा और कोई नहीं। इसलिए इन तीनों के अतिरिक्त यहां कोई नहीं आ सकता। मरदाने ने पूछा कि हे प्रजाद जी! कबीर जी जुलाहा थे, नानक जी खत्राी हैं, वह तीसरा किस वर्ण (जाति) से तथा किस धरती पर अवतरित होगा।
प्रजाद भक्त ने कहा भाई सुन:- नानक जी के सच्चखण्ड जाने के सैकड़ों वर्ष पश्चात् पंजाब की धरती पर जाट वर्ण में जन्म लेगा तथा उसका प्रचार क्षेत्रा शहर बरवाला होगा। (लेख समाप्त)
विवेचन:- संत रामपाल दास जी महाराज वही अवतार हैं जो अन्य प्रमाणों के साथ-2 जन्म साखी में लिखे वर्णन पर खरे उतरते हैं। जन्म साखी में ‘‘सौ वर्ष के पश्चात्’’ लिखा है। यहां पर सैकड़ों वर्ष पश्चात् कहा गया था जिसको पंजाबी भाषा में लिखते समय सौ वर्ष ही लिख दिया। क्योंकि मर्दाना ने पूछा था कि वह कौन से युग में नजदीक ही आयेगा? तब भक्त प्रजाद ने कहा कि श्री नानक जी के सैकड़ों वर्ष पश्चात् कलयुग में ही वह संत जाट वर्ण में जन्म लेगा। इसी लिए यहां सौ वर्ष के स्थान पर सैकड़ों वर्षों ही न्यायोचित है तथा प्रचार क्षेत्रा बरवाला के स्थान पर बटाला लिखा गया है। इसके दो कारण हो सकते हैं कि ‘‘शहर बरवाला’’ जिला हिसार हरियाणा (उस समय पंजाब) प्रान्त में सुप्रसिद्ध नहीं था तथा बटाला शहर पंजाब प्रान्त में प्रसिद्ध था। लेखनकर्ता ने इस कारण से ‘‘बरवाला’’ के स्थान पर ‘‘बटाला’’ लिख दिया दूसरा प्रिन्ट करते समय ‘‘अतअूसल’’ की जगह ‘‘अजूसल’’ प्रिंट हो गया है। एक और विशेष विचारणीय पहलू है कि पंजाब के बटाला शहर में कोई भी जाट संत नहीं हुआ है। जो इन महापुरूषों (परमेश्वर कबीर देव जी व श्री नानक देव जी) के समान महिमावान तथा इनके समान ज्ञानवान हुआ हो। इस आधार से तथा अन्य प्रमाणों के आधार से तथा इस जन्म साखी के आधार से स्पष्ट है कि वह तीसरे महापुरूष संत रामपाल दास जी महाराज हैं तथा इनका आध्यात्मिक ज्ञान भी इन दोनों महापुरूषों (परमेश्वर कबीर जी तथा श्री नानक देव जी) से मेल खाता है। आप देखेंगे दोनों फोटो कापी जो जन्म साखी भाई बाले वाली जो कि एक पंजाबी भाषा में है तथा दूसरी हिन्दी में है जो कि पंजाबी भाषा से ही अनुवादित है। इसमें कुछ प्रकरण ठीक नहीं लिखा है। जैसे पंजाबी भाषा में लिखा है कि ‘‘जो इस जीहा कोई होवेगा तां एथे पहुँचेगा होर दा एथे पहुँचण दा कम नही’’ परन्तु हिन्दी वाली जन्म साखी में यह विवरण नहीं है जो बहुत महत्वपूर्ण है। इससे सिद्ध है कि लिखते समय कुछ प्रकरण बदल जाता है। फिर भी ढेर सारे प्रमाण जो इस पुस्तक में अन्य महापुरूषों के द्वारा सन्त रामपाल दास जी के विषय में कहे हैं वे भी इसी को प्रमाणित करते हैं।
विशेष:- यदि कोई यह कहे कि जन्म साखी में लिखी व्याख्या सन्त गरीबदास जी गांव छुड़ानी वाले के लिए हैं। क्योंकि वे भी जाट जाति से थे तथा छुड़ानी गांव भी पहले पंजाब प्रांत के अन्तर्गत आता था। यह भी उचित नहीं लगती क्योंकि संत गरीबदास जी ने अपनी अमृतवाणी ‘‘असुर निकंदन रमैणी’’ में कहा है कि ‘‘सतगुरु दिल्ली मण्डल आयसी, सूती धरनी सूम जगायसी’’ भावार्थ है कि संत गरीबदास जी के सतगुरु पूज्य कबीर साहेब जी थे। पुराना रोहतक जिला (सोनीपत, रोहतक तथा झज्जर को मिला कर एक जिला रोहतक था) दिल्ली मण्डल में लगता था। यह किसी राजा के आधीन नहीं था। अग्रेंजो के शासन काल में दिल्ली के आधीन था। सन्त गरीबदास जी ने स्पष्ट किया है कि सतगुरु (परमेश्वर कबीर जी) दिल्ली मण्डल में आऐंगे भक्तिहीन प्राणियों को जगाऐंगे सत्यभक्ति कराऐंगे। (ध्यान रहे कबीर सागर में काल के दूतों ने मिलावट करके सत्य को न जानकर अपनी अटकल बाजी से असत्य प्रमाण दिए हैं। उसका नाश करने के लिए परमेश्वर कबीर जी ने अपने अंश अवतार सन्त गरीब दास जी द्वारा यथार्थ ज्ञान प्रचार करवाया है। जो सन्त गरीब दास जी की अमृतवाणी रूप में है। इसी बात की पुष्टि ‘‘कबीर सागर के सम्पादक कबीर पंथी श्री युगलानन्द बिहारी जी की उस टिप्पणी से होती है जो उन्होंने अनुराग सागर तथा ज्ञान सागर की भूमिका में की है कहा है कि कबीर पंथियों ने ही कबीर पंथ के ग्रन्थों का नाश कर रखा है। अपने-2 मते अनुसार फेर बदल करके अपने मत को जोड़ा है। मेरे पास अनुराग सागर तथा ज्ञान सागर की कई-2 प्रतियाँ रखी हैं। जिनमें से एक दूसरे से मेल नहीं खा रही हैं।)
सन्त रामपाल दास जी महाराज का जन्म श्री नन्द राम जाट के घर 8 सितम्बर 1951 को गांव-धनाना जिला सोनीपत (उस समय जिला रोहतक) में हुआ था। जो वर्तमान हरियाणा तथा पंजाब प्रांत मिलकर, उस समय एक ही ‘पंजाब’ प्रांत था। परमेश्वर कबीर जी ने भी कहा था कि जिस समय कलयुग 5500 वर्ष बीत चुका होगा मैं गरीबदास वाले बारहवें पंथ में आगे स्वयं आऊँगा। सन्त गरीबदास जी द्वारा मेरी (कबीर परमेश्वर की) महिमा की वाणी प्रकट होगी तथा गरीबदास वाले बारहवें पंथ तक के साधक मुझे आधार बनाकर वाणी को समझने की कोशिश करेंगे परन्तु वाणी को न समझ कर सतनाम तथा सारनाम से वंचित रहने के कारण असंख्य जन्म तक सत्यलोक प्राप्ति नहीं कर सकते। उसी बारहवें पंथ (गरीबदास जी वाले पंथ) में मैं (परमेश्वर कबीर जी) ही स्वयं चलकर आऊँगा। तब सन्त गरीबदास जी द्वारा प्रकट की गई वाणी को मैं (कबीर परमेश्वर) प्रकट होकर समझाऊँगा। इस से सिद्ध हुआ कि जन्म साखी में जिस जाट सन्त के विषय में कहा है निरविवाद रूप से वह संत रामपाल दास जी महाराज जी ही हैं। फिर भी हम संत गरीबदास जी का विशेष आदर करते हैं। क्योंकि उन्होंने परमेश्वर कबीर जी का अमर संदेश सुनाया है।
यदि कोई भ्रम उत्पन्न करे की दस गुरु साहिबानों में से भी किसी की ओर संकेत हो सकता है। इसके लिए स्मरण रहे कि दस सिख गुरु साहिबानों में से कोई भी जाट वर्ण से नहीं थे। दूसरे सिख गुरु श्री अंगद देव जी खत्राी थे। तीसरे गुरु जी श्री अमर दास जी भी खत्राी थे। चौथे गुरु जी श्री रामदास जी खत्राी थे तथा पांचवें गुरु जी श्री अर्जुन देव जी से लेकर दसवें तथा अन्तिम श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी तक श्री गुरु रामदास जी की सन्तान अर्थात् खत्राी थे। फिर भी हम सभी सिख गुरु साहिबानों का विशेष आदर करते हैं।
संत रामपाल दास जी महाराज कहते हैं:-
जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा, हिन्दु मुसलिम, सिख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है:-
जाति ना पूछो संत की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान।।
कृप्या प्रमाण के लिए देखें फोटो कापी जन्म साखी पंजाबी गुरुमुखी (पंजाबी भाषा) वाली तथा हिन्दी वाली दोनों में आप जी सहज में समझ सकते हो कि वास्तविक्ता क्या है। जन्म साखियों के प्रकाशक हैं:- भाई जवाहर सिंह कृपाल सिंह अमृतसर (पंजाब)। कृप्या देखें फोटो कापी जन्म साखी भाई बाले वाली पंजाबी भाषा वाली के पृष्ठ 272 की।
कृप्या देखें फोटो कापी जन्म साखी भाई बाले वाली पंजाबी भाषा वाली के पृष्ठ 273 की।
कृप्या देखें फोटो कापी जन्म साखी भाई बाले वाली हिन्दी वाली के पृष्ठ 305 की प्रश्न: एक संस्कृत के विद्वान शास्त्राी ने कहा कि आप के गुरु संत रामपाल दास जी महाराज संस्कृत नहीं पढ़े हैं। आप कहते हो कि उन्होंने श्री मद्भगवत् गीता का यथार्थ अनुवाद करके भक्तों को बताते हैं। यह कभी नहीं हो सकता। उत्तर: सन्त रामपाल दास जी महाराज के भक्त ने उत्तर दिया शास्त्राी जी उसी को परमेश्वर का अवतार कहते हैं। जो भाषा का ज्ञान न होते हुए यथार्थ अनुवाद कर दें। क्योंकि परमेश्वर सर्वज्ञ है। उन्हीं गुणों से युक्त उसका भेजा हुआ अवतार होता है। वह अवतार सन्त रामपाल दास जी महाराज जी हैं। आप तो केवल वेदों और गीता के अनुवाद से अचम्भित हैं। सन्त रामपाल दास जी महाराज ने तो बाईबल तथा कुरान को यथार्थ रूप में बताया है। जिसे ईसाई धर्म के वर्तमान के फादर व पादरी तथा मुसलमान धर्म के मुल्ला व काजी भी नहीं समझ सके।