द्वारिका पुरी में कबीर कोठा

श्री कृष्ण जी की नगरी द्वारिका पुरी समुद्र में डूब गई थी। इस का कारण आप जी पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 97 पर ‘‘पुरी में मन्दिर अर्थात् जगन्नाथ धाम कैसे बना?‘‘

श्री कृष्ण जी के समक्ष सर्व यादव आपस में लड़कर मर गए थे जो कुछ बचे थे, वे स्वयं श्री कृष्ण जी ने मुसलों से मार डाले (प्रमाणः- विष्णु पुराण अ. 37 पाँचवा अंश पृष्ठ 409 से 414 तक)

एक मछुआरे शिकारी ने श्री कृष्ण जी के पैर के तलुए में विषाक्त तीर मारकर वध किया। श्री कृष्ण जी के शरीर का द्वारिका से बाहर वहीं पर अन्तिम संस्कार किया था। उनके शरीर को गड्ढ़ा खोदकर पाण्डवों ने दबाया था। उस स्थान पर वर्तमान में श्री द्वारिकाधीश का मन्दिर बना है।

कुछ समय बाद श्रद्धालु उस यादगार को देखने जाने लगे। फिर वहाँ पर पूजा प्रारम्भ हो गई। वि. सं. 1505 (सन् 1448) में कबीर परमेश्वर जी द्वारिका में गए। समुद्र के किनारे जहां गोमती नदी सागर में आकर मिलती है, उसके पास एक बालू रेत के टीले (कोठा) पर अर्थात् मिट्टी के ढ़ेर पर बैठकर तीर्थ भ्रमण पर आने वाले श्रद्धालुओं को तत्व ज्ञान सुनाया करते थे।

परमेश्वर कबीर जी प्रश्न करते थे कि आप किसलिए आए हैं? उत्तर होता था कि = द्वारिकाधीश के दर्शन करने आए हैं। उनकी नगरी को देखने आए हैं। भगवान से आशीर्वाद लेने आए हैं।

परमेश्वर कबीर जी कहा करते:- एक वैद्य था। वह नब्ज पकड़ कर रोग जान लेता था। औषधि देकर स्वस्थ कर देता था। उसकी मृत्यु के उपरांत वैद्य के शरीर को जमीन में दबा कर अन्तिम संस्कार कर दिया। उस स्थान पर एक मन्दिर बनाकर यादगार बना दी। यदि वैद्य की मूर्ति से कोई उपचार के लिए प्रार्थना करे तो क्या होगा? श्रोताओं का एक सुर में उत्तर:- मूर्ति वैद्य वाला कार्य थोड़े ही करेगी।

प्रश्न:- परमेश्वर प्रश्न करते थे तो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए?

उत्तर श्रोताओं का:- किसी जीवित वैद्य के पास जाकर अपनी जीवन रक्षा करनी चाहिए, यही उचित है।

परमेश्वर कबीर जी कहा करते कि हे भोले श्रद्धालुओ! आप इस श्री कृष्ण त्रिलोकी नाथ की मूर्ति से क्या मांगने आए हो? क्या यह श्री कृष्ण जी की मूर्ति आप का कल्याण कर सकती है? उत्तर:- कुछ आश्चर्य करते। कुछ कहते कि हम गलत कर रहे हैं। कुछ नाराज होकर उठ जाते। परमात्मा कबीर जी कहा करते थे कि आप द्वारिका धीश श्री कृष्ण की मूर्ति के दर्शन से कल्याण की अपेक्षा कर के आए हो। यहां पर श्री कृष्ण जी का ही सर्वनाश हो गया। आपको क्या प्राप्ति होगी? आत्म कल्याण तथा सांसारिक सुख प्राप्त करना है तो मैं आप जी को वह शास्त्रानुकूल भक्ति बताऊँगा जिससे आप का कल्याण संभव है। इस प्रकार सत्य को समझकर भ्रमे हुए श्रद्धालुओं को यथार्थ भक्ति प्राप्त हुई। गरीब दास जी ने अपनी अमृतवाणी में कहा है कि:-

मेले ठेले जाइयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजतें, कोई साधू सन्त मिल जात।।

जहां बैठ कर परमेश्वर कबीर जी सदोपदेश किया करते थे। उस स्थान पर एक गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है। कहा जाता है कि आज तक सन् 1448 से सन् 2014 (566 वर्ष) तक उस बालू रेत के टीले (कोठे = चबूतरेनुमा गोल चक्र) को समुद्र की लहरों ने छुवा भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है। तब भी समुद्र की लहरें उस ओर नहीं जाती। कृपया देखें काल्पनिक चित्र तथा वास्तविक चित्र। यह कबीर कोठा द्वारिका धीश के मन्दिर के बगल में है।

insert pic here (द्वारिका कोठे का काल्पनिक चित्र)

insert pic here (द्वारिका कोठे का वास्तविक चित्र)

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