वेदों से जानते हैं परम अक्षर ब्रह्म कौन है?

यहाँ पर वेदों के मंत्रों की कुछ फोटोकाॅपी लगाई हैं जिनका अनुवाद आर्य समाज के आचार्यों, शास्त्रियों ने किया है। कुछ ठीक, कुछ गलत है। परंतु सत्य फिर भी स्पष्ट है।

वेद मंत्रों में कहा है कि सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता ‘‘परम अक्षर ब्रह्म’’ यानि ‘‘सत्यपुरूष’’ आकाश में बने सनातन परम धाम यानि सत्यलोक में निवास करता है। एक सिंहासन पर विराजमान है। उसके सिर के ऊपर मुकट तथा छत्र लगे हैं। परमेश्वर देखने में राजा के समान है। परमेश्वर वहाँ से चलकर नीचे के लोक में पृथ्वी आदि पर चलकर (गति करके) आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको यथार्थ अध्यात्म ज्ञान बताता है। अपने मुख से वाणी बोल-बोलकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है। साधना के सत्य नामों का आविष्कार करता है। प्रत्येक युग में एक बार ऐसी लीला करते हुए शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर निवास करता है। वहाँ से बाल परमेश्वर को निःसंतान दम्पति उठा ले जाते हैं। बाल भगवान की परवरिश कंवारी गायों द्वारा होती है। बड़ा होकर तत्त्वज्ञान का प्रचार करता है। अपने मुख से वाणी उच्चारण करता है। दोहों, चैपाईयों, शब्दों के माध्यम से अपनी जानकारी की वाणी उच्चारण करता है जिसको (कविर्गिर्भीः) कबीर वाणी कहा जाता है तथा इसी कारण से प्रसिद्ध कवि की भी पदवी प्राप्त करता है यानि उसको कवि कहा जाता है। जिस पर वेदों में कहे लक्षण खरे उतरते हैं। वही सृष्टि का उत्पत्ति कर्ता तथा सबका धारण-पोषण कर्ता है। अन्य नहीं हो सकता। ये लक्षण केवल कबीर जुलाहे (काशी वाले) पर खरे उतरते हैं। इसलिए परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी हैं। इन वेद मंत्रों के बाद चारों युगों में परमेश्वर कबीर जी का लीला करने आने का संक्षिप्त वर्णन है। उसे पढ़कर जान जाओगे कि वेदों में कबीर परमेश्वर जी का वर्णन है। कबीर परमेश्वर जी ने भी कहा है:-

बेद मेरा भेद है, मैं ना बेदन के मांही। जौन बेद से मैं मिलूं, बेद जानते नांही।।

अर्थात् कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि चारों वेद मेरी महिमा बताते हैं। परंतु इन वेदों में मेरी प्राप्ति की भक्ति विधि नहीं क्योंकि काल ब्रह्म ने वह यथार्थ भक्ति के मंत्र निकाल दिए थे। मेरी प्राप्ति का ज्ञान जिस सूक्ष्म वेद में है, उसका ज्ञान वेदों में अंकित नहीं है।

कृपया पढ़ें वेद मंत्रों की फोटोकाॅपी तथा दास (रामपाल दास) के द्वारा किया गया विश्लेषण, इनके बाद परमेश्वर कबीर जी का चारों युगों में सतलोक सिंहासन से गति करके आने का प्रकरण।

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