काशी में भोजन-भण्डारा करना
शेखतकी सब मुसलमानों का मुख्य पीर (गुरू) था जो परमात्मा कबीर जी से पहले से ही ईष्र्या किया करता था। सर्व ब्राह्मणों तथा मुल्ला-काजियों व शेखतकी ने मजलिस (डममजपदह) करके षड़यंत्र के तहत योजना बनाई कि कबीर निर्धन व्यक्ति है। इसके नाम से पत्र भेज दो कि कबीर जी काशी में बहुत बड़े सेठ हैं। उनका पूरा पता है कबीर पुत्र नूरअली अंसारी, जुलाहों वाली काॅलोनी, काशी शहर। कबीर जी तीन दिन का धर्म भोजन-भण्डारा करेंगे। सर्व साधु संत आमंत्रित हैं। प्रतिदिन प्रत्येक भोजन करने वाले को एक दोहर (जो उस समय का सबसे कीमती कम्बल के स्थान पर माना जाता था), एक मोहर (10 ग्राम स्वर्ण से बनी गोलाकार की मोहर) दक्षिणा में देगें। प्रतिदिन जो जितनी बार भी भोजन करेगा, कबीर उसको उतनी बार ही दोहर तथा मोहर दान करेगा। भोजन में लड्डू, जलेबी, हलवा, खीर, दही बड़े, माल पूडे़, रसगुल्ले आदि-आदि सब मिष्ठान खाने को मिलेंगे। सुखा सीधा (आटा, चावल, दाल आदि सूखे जो बिना पकाए हुए, घी-बूरा) भी दिया जाएगा। एक पत्र शेखतकी ने अपने नाम तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के नाम भी भिजवाया। निश्चित दिन से पहले वाली रात्रि को ही साधु-संत भक्त एकत्रित होने लगे। अगले दिन भण्डारा (लंगर) प्रारम्भ होना था। परमेश्वर कबीर जी को संत रविदास दास जी ने बताया कि आपके नाम के पत्र लेकर लगभग 18 लाख साधु-संत व भक्त काशी शहर में आए हैं। भण्डारा खाने के लिए आमंत्रित हैं। कबीर जी अब तो अपने को काशी त्यागकर कहीं और जाना पड़ेगा। कबीर जी तो जानीजान थे। फिर भी अभिनय कर रहे थे, बोले रविदास जी झोंपड़ी के अंदर बैठ जा, सांकल लगा ले। अपने आप झख मारकर चले जाएंगे। हम बाहर निकलेंगे ही नहीं। परमेश्वर कबीर जी अन्य वेश में अपनी राजधानी सत्यलोक में पहुँचे। वहाँ से नौ लाख बैलों के ऊपर गधों जैसा बौरा (थैला) रखकर उनमें पका-पकाया सर्व सामान भरकर तथा सूखा सामान (चावल, आटा, खाण्ड, बूरा, दाल, घी आदि) भरकर पृथ्वी पर उतरे। सत्यलोक से ही सेवादार आए। परमेश्वर कबीर जी ने स्वयं बनजारे का रूप बनाया और अपना नाम केशव बताया। दिल्ली के सम्राट सिकंदर तथा उसका धार्मिक पीर शेखतकी भी आया। काशी में भोजन-भण्डारा चल रहा था। सबको प्रत्येक भोजन के पश्चात् एक दोहर तथा एक मोहर {10 ग्राम सोना(ळवसक)} दक्षिणा दी जा रही थी। कई बेईमान साधक तो दिन में चार-चार बार भोजन करके चारों बार दोहर तथा मोहर ले रहे थे। कुछ सूखा सीधा (चावल, खाण्ड, घी, दाल, आटा) भी ले रहे थे।
यह सब देखकर शेखतकी ने तो रोने जैसी शक्ल बना ली और जाँच (म्दुनपतल) करने लगा। सिकंदर लोधी राजा के साथ उस टैंट में गया जिसमें केशव नाम से स्वयं कबीर जी वेश बदलकर बनजारे (उस समय के व्यापारियों को बनजारे कहते थे) के रूप में बैठे थे। सिकंदर लोधी राजा ने पूछा आप कौन हैं? क्या नाम है? आप जी का कबीर जी से क्या संबंध है? केशव रूप में बैठे परमात्मा जी ने कहा कि मेरा नाम केशव है, मैं बनजारा हूँ। कबीर जी मेरे पगड़ी बदल मित्र हैं। मेरे पास उनका पत्र गया था कि एक छोटा-सा भण्डारा यानि लंगर करना है, कुछ सामान लेते आइएगा। उनके आदेश का पालन करते हुए सेवक हाजिर है। भण्डारा चल रहा है। शेखतकी तो कलेजा पकड़कर जमीन पर बैठ गया जब यह सुना कि एक छोटा-सा भण्डारा करना है जहाँ पर 18 लाख व्यक्ति भोजन करने आए हैं। प्रत्येक को दोहर तथा मोहर और आटा, दाल, चावल, घी, खाण्ड भी सूखा सीधा रूप में दिए जा रहे हैं। इसको छोटा-सा भण्डारा कह रहे हैं। परंतु ईष्र्या की अग्नि में जलता हुआ विश्राम गृह में चला गया जहाँ पर राजा ठहरा हुआ था। सिकंदर लोधी ने केशव से पूछा कबीर जी क्यों नहीं आए? केशव ने उत्तर दिया कि उनका गुलाम जो बैठा है, उनको तकलीफ उठाने की क्या आवश्यकता? जब इच्छा होगी, आ जाएंगे। यह भण्डारा तो तीन दिन चलना है।
सिकंदर लोधी हाथी पर बैठकर अंगरक्षकों के साथ कबीर जी की झोंपड़ी पर गए। वहाँ से उनको तथा रविदास जी को साथ लेकर भण्डारा स्थल पर आए। सबसे कबीर सेठ का परिचय कराया तथा केशव रूप में स्वयं डबल रोल करके उपस्थित संतों-भक्तों को प्रश्न-उत्तर करके सत्संग सुनाया जो 24 घण्टे तक चला। कई लाख सन्तों ने अपनी गलत भक्ति त्यागकर कबीर जी से दीक्षा ली, अपना कल्याण कराया। भण्डारे के समापन के बाद जब बचा हुआ सब सामान तथा टैंट बैलों पर लादकर चलने लगे, उस समय सिकंदर लोधी राजा तथा शेखतकी, केशव तथा कबीर जी एक स्थान पर खड़े थे, सब बैल तथा साथ लाए सेवक जो बनजारों की वेशभूषा में थे, गंगा पार करके चले गए। कुछ ही देर के बाद सिकंदर लोधी राजा ने केशव से कहा आप जाइये आपके बैल तथा साथी जा रहे हैं। जिस ओर बैल तथा बनजारे गए थे, उधर राजा ने देखा तो कोई भी नहीं था। आश्चर्यचकित होकर राजा ने पूछा कबीर जी! वे बैल तथा बनजारे इतनी शीघ्र कहाँ चले गए? उसी समय देखते-देखते केशव भी परमेश्वर कबीर जी के शरीर में समा गए। अकेले कबीर जी खड़े थे। सब माजरा (रहस्य) समझकर सिकंदर लोधी राजा ने कहा कि कबीर जी! यह सब लीला आपकी ही थी। आप स्वयं परमात्मा हो। शेखतकी के तो तन-मन में ईष्र्या की आग लग गई, कहने लगा ऐसे-ऐसे भण्डारे हम सौ कर दें, यह क्या भण्डारा किया है? महौछा किया है।
महौछा उस अनुष्ठान को कहते हैं जो किसी गुरू के द्वारा किसी वृद्ध की गति करने के लिए थोपा जाता है। उसके लिए सब घटिया सामान लगाया जाता है। जग जौनार करना उस अनुष्ठान कबीर बनाम कृष्ण वगैरा कबीर बनाम कृष्ण वगैरा कबीर बनाम कृष्ण वगैरा को कहते हैं जो विशेष खुशी के अवसर पर किया जाता है, जिसमें अनुष्ठान करने वाला दिल खोलकर धन खर्च करता है।
संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-
गरीब, कोई कह जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा।
बड़े बड़ाई किया करें, गाली काढे़ औछा।।
- सारांश:- कबीर जी ने भक्तों को उदाहरण दिया है कि यदि आप मेरी तरह सच्चे मन से भक्ति करोगे तथा ईमानदारी से निर्वाह करोगे तो परमात्मा आपकी ऐसे सहायता करता है। भक्त ही वास्तव में सेठ अर्थात् धनवंता हैं। भक्त के पास दोनों धन हैं, संसार में जो चाहिए वह भी धन भक्त के पास होता है तथा सत्य साधना रूपी धन भी भक्त के पास होता है।
एक अन्य करिश्मा जो उस भण्डारे में हुआ:-
वह जीमनवार (लंगर) तीन दिन तक चला था। दिन में प्रत्येक व्यक्ति कम से कम दो बार भोजन खाता था। कुछ तो तीन-चार बार भी खाते थे क्योंकि प्रत्येक भोजन के पश्चात् दक्षिणा में एक मौहर (10 ग्राम सोना) और एक दौहर (कीमती सूती शाॅल) दिया जा रहा था। इस लालच में बार-बार भोजन खाते थे। तीन दिन तक 18 लाख व्यक्ति शौच तथा पेशाब करके काशी के चारों ओर ढे़र लगा देते। काशी को सड़ा देते। काशी निवासियों तथा उन 18 लाख अतिथियों तथा एक लाख सेवादार जो सतलोक से आए थे। उस गंद का ढ़ेर लग जाता, श्वांस लेना दूभर हो जाता, परंतु ऐसा महसूस ही नहीं हुआ। सब दिन में दो-तीन बार भोजन खा रहे थे, परंतु शौच एक बार भी नहीं जा रहे थे, न पेशाब कर रहे थे। इतना स्वादिष्ट भोजन था कि पेट भर-भरकर खा रहे थे। पहले से दुगना भोजन खा रहे थे। हजम भी हो रहा था। किसी रोगी तथा वृद्ध को कोई परेशानी नहीं हो रही थी। उन सबको मध्य के दिन चिंता हुई कि न तो पेट भारी है, भूख भी ठीक लग रही है, कहीं रोगी न हो जाएँ। सतलोक से आए सेवकों को समस्या बताई तो उन्होंने कहा कि यह भोजन ऐसी जड़ी-बूटियां डालकर बनाया है जिनसे यह शरीर में ही समा जाएगा। हम तो प्रतिदिन यही भोजन अपने लंगर में बनाते हैं, यही खाते हैं। हम कभी शौच नहीं जाते तथा न पेशाब करते, आप निश्चिंत रहो। फिर भी विचार कर रहे थे कि खाना खाया है, परंतु कुछ तो मल निकलना चाहिए। उनको लैट्रिन जाने का दबाव हुआ। सब शहर से बाहर चल पड़े। टट्टी के लिए एकान्त स्थान खोजकर बैठे तो गुदा से वायु निकली। पेट हल्का हो गया तथा वायु से सुगंध निकली जैसे केवड़े का पानी छिड़का हो। यह सब देखकर सबको सेवादारों की बात पर विश्वास हुआ। तब उनका भय समाप्त हुआ, परंतु फिर भी सबकी आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी थी। परमेश्वर कबीर जी को परमेश्वर नहीं स्वीकारा।
{पुराणों में भी प्रकरण आता है कि अयोध्या के राजा ऋषभ देव जी राज त्यागकर जंगलों में साधना करते थे। उनका भोजन स्वर्ग से आता था। उनके मल (पाखाने) से सुगंध निकलती थी। आसपास के क्षेत्र के व्यक्ति इसको देखकर आश्चर्यचकित होते थे। इसी तरह सतलोक का आहार करने से केवल सुगंध निकलती है, मल नहीं। स्वर्ग तो सतलोक की नकल है जो नकली (क्नचसपबंजम) है।} श्री कृष्ण जी के वकील:- हमने कभी कहीं न सुना तथा न पढ़ा कि तैमूरलंग को राज कबीर जी ने प्रदान किया तथा काशी में इतना बड़ा भोजन कार्यक्रम किया था। शास्त्रों से प्रमाण बताओ कि कबीर बड़ा है कृष्ण से।
कबीर जी का वकील:- आप जी ने तो यह भी नहीं सुना था कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव के माता-पिता हैं। ये जन्मते-मरते हैं अविनाशी नहीं हैं। उपरोक्त प्रकरण तैमूरलंग को राज बख्शना कबीर सागर ग्रंथ में है तथा काशी में भोजन-भण्डारा देना संत गरीबदास जी द्वारा बताया है जो अमर ग्रंथ में लिखा है। आप गीता, वेद, पुराणों से प्रमाण चाहते हैं कि कबीर समर्थ है कृष्ण से, तो देता हूँ शास्त्रों के प्रमाण। आप कहते हो कि श्री विष्णु जी, श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी का कभी जन्म-मरण नहीं हुआ, न इनकी मृत्यु होती है, ये अविनाशी हैं। आप यह भी कहते हैं कि श्री कृष्ण से ऊपर कोई भगवान ही नहीं। श्री कृष्ण रूप में श्री विष्णु जी ने माता देवकी जी के गर्भ से जन्म लिया। पिता वासुदेव जी हैं। गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को सुनाया। आप चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) श्री मद्भगवत गीता, अठारह पुराणों, ग्यारह उपनिषदों को सत्य मानते हैं। अदालत में बताओ क्या आप ऐसा बताते हो?
कृष्ण जी के वकील:- सबने एक स्वर में कहा, हाँ! हम ऐसा ही बताते हैं। इसमें कोई संदेह की बात नहीं। हम उपरोक्त शास्त्रों को सत्य मानते हैं।
कबीर जी का वकील:- आप पंचदेव पूजा करते हो तथा इन्हीं की पूजा करने को कहते हो। इन पाँच देवों में श्री कृष्ण उर्फ विष्णु (सतगुण) की पूजा व श्री शिव (तमगुण) की पूजा, श्री ब्रह्मा जी (रजगुण) की पूजा करने को कहते हो। क्या गीता में, वेदों में इनकी पूजा करने का प्रमाण है? कृष्ण जी के वकील:- गीता में प्रमाण है तथा पुराणों में भी प्रमाण है। गीता श्री कृष्ण जी ने बोली। गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु) ने अपनी पूजा करने को कहा है।
कबीर जी का वकील:- आप कहते हैं कि श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु से अन्य कोई परमेश्वर ही नहीं है। श्री कृष्ण जी ही सर्वशक्तिमान हैं। गीता अध्याय 8 श्लोक 5 तथा 7 में तो गीता ज्ञान देने वाले ने अपनी पूजा करने को कहा है। फिर गीता अध्याय 8 के श्लोक 8ए 9 तथा 10 में किसी अन्य की भक्ति करने को कहा है। गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में किस परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है?
कृष्ण जी के वकील:- श्री कृष्ण से अन्य कोई भगवान ही नहीं है। अन्य की शरण जाने को नहीं कहा है। श्री कृष्ण जी ने अपनी ही शरण में आने को कहा है। श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु जी अमर अविनाशी (जन्म-मरण रहित) पारब्रह्म परमेश्वर हैं।
कबीर जी का वकील:- जनता की अदालत में श्रीमद्भगवत गीता से ही प्रमाणित करता हूँ कि श्री कृष्ण जी के वकील झूठ बोल रहे हैं कि गीता ज्ञान देने वाला (इनका कृष्ण उर्फ विष्णु) कभी जन्मता-मरता नहीं और इससे अन्य कोई सृष्टि का कर्ता ही नहीं है।
अदालत को बताना चाहता हूँ कि श्री कृष्ण उर्फ श्री विष्णु जी के वकील साहेबानों ने झूठ कहा है कि श्री विष्णु जी समर्थ परमात्मा हैं। इनसे ऊपर कोई परमेश्वर नहीं है। श्री विष्णु जी की भक्ति करो।
पेश है प्रमाण के लिए संक्षिप्त श्रीमद् देवीभागवत (पुराण) के प्रथम स्कंध के अध्याय 4 पृष्ठ 44-45 की फोटोकाॅपी जिसमें श्री विष्णु जी ने कहा है कि मैं देवी दुर्गा (अष्टांगी) की भक्ति करता हूँ। इससे बड़ी शक्ति यानि भगवान कोई नहीं है:-
इस संक्षिप्त श्रीमद् देवीभागवत के उल्लेख से श्री कृष्ण जी के वकीलों का दावा गलत सिद्ध होता है क्योंकि श्रीमद् देवीभागवत (देवी पुराण) के प्रथम स्कंध के अध्याय 4 में प्रमाण है कि ’’एक बार श्री ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु जी को महान तप करते हुए देखकर प्रश्न किया कि हे प्रभो! आप देवताओं के अध्यक्ष, जगत के स्वामी तथा सर्व जीवों के शासक होते हुए भी किस देवता की अराधना में ध्यान मग्न हैं। मुझे असीम आश्चर्य तो यह हो रहा है कि आप देवेश्वर एवं सारे संसार के शासक होते हुए भी समाधि लगाए बैठे हैं। आप सर्व समर्थ पुरूष से बढ़कर कौन विशिष्ट हैं? उसे बताने की कृपा कीजिए। ब्रह्मा जी के विनीत वचन सुनकर भगवान श्री हरि उनसे कहने लगे, ‘ब्रह्मन्’! सावधान होकर सुनो। मैं अपने मन का विचार व्यक्त करता हूँ। मैं भगवती अद्या शक्ति यानि अष्टांगी (देवी दुर्गा) का ध्यान तप करके किया करता हूँ। ब्रह्मा जी! मेरी जानकारी में इन भगवती शक्ति (प्रकृति देवी- अष्टांगी देवी) से बढ़कर दूसरे कोई देवता नहीं हैं।‘‘ इस संक्षिप्त देवी भागवत पुराण के लेख से स्पष्ट हुआ कि श्री विष्णु जी (श्री कृष्ण जी) श्री देवी दुर्गा जी की भक्ति (पूजा) करते हैं। कहा है कि इस अद्याशक्ति से बड़ा कोई भगवान मेरी जानकारी में नहीं है।
कबीर जी का वकील:- श्री कृष्ण जी के वकील साहेबानों की झूठ सामने है जो कहते हैं कि श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु जी) से बढ़कर कोई देवता यानि परमेश्वर नहीं है जबकि श्री विष्णु जी ने अपने से अन्य सर्व समर्थ शक्ति श्री देवी दुर्गा को बताया है। अब अदालत में पेश है प्रमाण के लिए फोटोकाॅपी संक्षिप्त श्रीमद् देवीभागवत (पुराण) {गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित व मुद्रित जिसके सम्पादक हैं हनुमान प्रसाद पोद्दार व चिमन लाल गोस्वामी} की जिसके सातवें स्कंध के अध्याय 36 में श्री देवी जी ने राजा हिमालय को कहा कि पर्वतराज! उस ब्रह्म का क्या स्वरूप है, यह बतलाया जाता है। (श्री देवी जी ने पहले तो कहा कि मेरी भक्ति करो तो ऐसे करो जैसे अध्याय 35 में बताया है। परंतु मेरी व अन्य सबकी भक्ति छोड़कर ‘‘उस एकमात्रा परमात्मा को ही जानो’’। दूसरी सब बातों को छोड़ दे। यही अमृत रूप परमात्मा के पास पहुँचाने वाला पुल है। संसार समुद्र से पार होकर अमृत स्वरूप परमात्मा को प्राप्त करने का यही सुलभ साधन है।......... इस आत्मा का ‘‘ॐ’’ के जप के साथ ध्यान करो। इससे अज्ञानमय अंधकार से सर्वथा परे और संसार समुद्र से उस पार जो ब्रह्म है, उसको पा जाओगे। तुम्हारा कल्याण हो।........... वह यह सबका आत्मा ‘‘ब्रह्म’’ ब्रह्मलोक रूप दिव्य आकाश में स्थित है।)
गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि परमशान्ति प्राप्त करनी है अर्थात् जन्म-मरण से छुटकारा चाहता है तथा सनातन परम धाम को प्राप्त करना चाहता है तो उस परमेश्वर की शरण में जा जिसको गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम अक्षर ब्रह्म कहा है तथा गीता अध्याय 8 श्लोक 8ए 9ए 10 में कहा है कि जो उस परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करता है, उसी को प्राप्त होता है। गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि (तत्वज्ञान रूपी शस्त्रा से अज्ञान को काटकर) उसके पश्चात् परमेश्वर के उस परम पद की खोज करनी चाहिए जहाँ जाने के पश्चात् साधक लौटकर संसार में नहीं आते। जिसने संसार की रचना की है, उसकी भक्ति कर। गीता ज्ञान बोलने वाला क्षर ब्रह्म (काल निरंजन) है। वह परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करने को कह रहा है।
विचार करें:- श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु जी) श्री देवी दुर्गा को सबसे बड़ी बता रहे हैं। श्री देवी दुर्गा ब्रह्म (क्षर पुरूष) को समर्थ बता रही है। उसकी भक्ति के लिए कह रही है। ब्रह्म (गीता ज्ञान देने वाला काल) अपने से समर्थ सबकी उत्पत्तिकर्ता, सबके धारण-पोषणकर्ता पुरूषोत्तम अविनाशी परमेश्वर की भक्ति करने को कह रहा है। इससे सिद्ध हुआ कि श्री कृष्ण जी के वकीलों को अपने सद्ग्रन्थों का ही ज्ञान नहीं। जिस अध्यापक को अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों का ही ज्ञान नहीं है तो वह विद्यार्थियों का भविष्य खराब कर रहा है। उससे बचना चाहिए।
पेश है संक्षिप्त श्रीमद् देवीभागवत के सातवें स्कंध के अध्याय 36 के पृष्ठ 573-574 की फोटोकाॅपी:-
अदालत में पेश श्रीमद् देवीभागवत (श्री देवी पुराण) के सातवें स्कंध के अध्याय 36 पृष्ठ 573- 574 के इस उल्लेख से स्पष्ट है कि श्री देवी जी ने अपनी व अन्य सबकी साधना त्यागकर ‘‘ब्रह्म’’ की साधना करने को कहा है।
श्री कृष्ण जी के वकील कहते हैं कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु जी) ने अर्जुन को बताया। यह भी इनकी झूठ है। वास्तव में श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण में प्रवेश करके ‘‘ब्रह्म’’ यानि काल ने कहा है। ब्रह्म ने यानि गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 18 श्लोक 46, 61, 62 व 66 में, गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में, गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में तथा गीता अध्याय 8 श्लोक 3, 8, 9 तथा 10 में अपने से अन्य परमेश्वर यानि परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति करने, उसकी शरण में जाने को कहा है। उसी को परमात्मा, सबका धारण-पोषण करने वाला, अविनाशी परमेश्वर व पुरूषोत्तम कहा है।
प्रमाण के लिए पेश है श्रीमद्भगवत गीता के कुछ श्लोकों की फोटोकाॅपी:-