सुल्तानी को सार नाम कैसे प्राप्त हुआ?

परमेश्वर कबीर जी एक आश्रम बनाकर रहने लगे। नाम जिन्दा बाबा से प्रसिद्ध थे। सुल्तानी को प्रथम मंत्रा दीक्षा के कुछ महीनों के पश्चात् सतनाम की (दो अक्षर के मंत्रा की) दीक्षा दी जिसमें एक ‘‘ओम्‘‘ मंत्रा है तथा दूसरा उपदेश के समय बताया जाता है। दर्शन के लिए सुल्तान अनेकों बार आता रहा। सत्यनाम के पश्चात् योग्य होने पर सार शब्द साधक को दीक्षा में दिया जाता है। एक वर्ष के पश्चात् सुल्तान अधम ने अपने गुरू की कुटिया में जाकर सारनाम की दीक्षा के लिए विनम्र प्रार्थना की तो परमेश्वर जी ने कहा कि एक वर्ष के पश्चात् ठीक इसी दिन आना, सारनाम दूंगा। दर्शनार्थ कभी-भी आ सकते हो। सुल्तान अब्राहिम अधम ठीक उसी दिन सारनाम लेने के लिए गुरू जी की कुटिया में गया तो गुरू जी ने कहा कि ठीक एक वर्ष पश्चात् इसी दिन आना, सारनाम दँूगा। ऐसे करते-करते ग्यारह (11) वर्ष निकाल दिए। बीच-बीच में भी सतगुरू के दर्शन करने आता था, परंतु सारनाम के लिए निश्चित दिन ही आना होता था। जब ग्यारहवें वर्ष सुल्तानी सारशब्द के दीक्षार्थ आ रहा था तो एक मकान के साथ से रास्ता था। उस मकान की मालकिन ने छत से कूड़ा बुहारकर गली में डाला तो गलती से भक्त के ऊपर गिर गया। सुल्तान इब्राहिम के ऊपर कूड़ा गिरा तो वह ऊँची आवाज में बोला, क्या तुझे दिखाई नहीं देता? गली में इंसान भी आते-जाते हैं? यदि मैं आज राज्य त्यागकर न आया होता तो तेरी देही का चाॅम उधेड़ देता।

उस बहन ने क्षमा याचना की और कहा, हे भाई! मेरी गलती है, मुझे पहले गली में देखना चाहिए था। आगे से ध्यान रखँूगी। वह मकान वाली बहन भी जिन्दा बाबा की भक्तमति थी। उसने जब इब्राहिम को आश्रम में देखा तो गुरू जी से पूछा, हे गुरूदेव! वह जो भक्त बैठा है एकान्त में, क्या वह कभी राजा था? जिन्दा बाबा ने पूछा, क्या बात है बेटी? यहाँ तो राजा और रंक में कोई भेद नहीं है। आपने यह प्रश्न किस कारण से किया? यह पहले बलख शहर का राजा था। इसको मैंने ज्ञान समझाया तो इसने राज्य त्याग दिया और मेहनत करके लकड़ियां बेचकर निर्वाह करता है, भक्ति भी करता है। उस बहन ने बताया कि मेरे से गलती से सूखा कूड़ा छत से फैंकते समय इसके ऊपर गिर गया तो यह बहुत क्रोधित हुआ और बोला कि यदि मैंने राज्य न त्यागा होता तो तेरी खाल उतार देता। सत्संग के पश्चात् सार शब्द लेने वालों को बुलाया गया। जब सुल्तान अब्राहिम की बारी आई तो गुरू जी ने कहा कि अभी तो आप राजा हो, सार शब्द तो बच्चा! दास को मिलता है जिसने शरीर को मिट्टी मान लिया है। सुल्तानी ने कहा, गुरूदेव! राज्य को त्यागे तो वर्षों हो चुके हैं। गुरू महाराज जी ने कहा, मुझसे कुछ नहीं छुपा है। तूने जैसा राज्य त्यागा है। राज भाव नहीं त्यागा है। आप एक वर्ष के पश्चात् इसी दिन सारनाम के लिए आना। एक वर्ष के पश्चात् फिर सुल्तानी आ रहा था। उसी मकान के साथ से आना था। गुरू जी ने उसी शिष्या से कहा कि कल वह राजा सारशब्द लेने आएगा। तेरे मकान के पास से रास्ता है, और कोई रास्ता कुटिया में आने का नहीं है। अबकी बार उसके ऊपर पानी में गोबर-राख घोलकर बाल्टी भरकर उसके ऊपर डालना। फिर उसकी क्या प्रतिक्रिया रहे, वह मुझे बताना। उस बहन ने ऐसा ही किया। बहन ने साथ-साथ यह भी कहा कि हे भाई! धोखे से गिर गया। मैं धोकर साफ कर दूँगी। आप यहाँ तालाब में स्नान कर लो। सुल्तान ने कहा कि बहन मिट्टी के ऊपर मिट्टी ही तो गिरी है, कोई बात नहीं, मैं स्नान कर लेता हूँ, कपड़े धो लेता हूँ। उस शिष्या ने गुरूदेव को सुल्तानी की प्रक्रिया बताई, तब उसको सारशब्द दिया और कहा, बेटा! आज तू दास बना है। अब तेरा मोक्ष निश्चित है।

इसलिए भक्तजनों को इस कथा से शिक्षा लेनी चाहिए। सारशब्द प्राप्ति के लिए शीघ्रता न करें। अपने अंदर सब विकारों को सामान्य करें। विवेक से काम लें, मोक्ष निश्चित है।

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