राजा वाजीद की कथा
पतिव्रता का अंग (39-41)
कथा:- राजा वाजीद जी को वैराग्य कैसे हुआ?
वाणी नं. 39 से 41 तथा ’सवैया गेंद उछाल‘:-
गरीब, बाजींदा बैजार में, तरकस तोरि कमान।
सुत्र मुंये कूं देख कर, छांड्या सकल जहान।।39।।
गरीब, बाजींदा बिचर्या सही, सुत्र मुंये कै नालि।
चरण कंवल छांडै़ नहीं, जीवैंगे कै कालि।।40।।
गरीब, बाजींदा बिचर्या सही, सुत्र मुंये कूं देख।
चरण कंवल छांडै़ नहीं, मिलि है अलख अलेख।।41।।
सवैया गेंद उछाल
बाजींद दुनी सेती बिचरया, कादर कुरबान संभारया है।
फंध टूटि गया तिब ऊंट मुवा, तहां पकरि पलान उतारया है।।
अरवाह चली कहौ कौन गली, धौरा पीरा अक कारा है।
कहीं पैर पियादा पालकियों, कहिं हसती का असवारा है।।
सत खुद खुदाइ अलह लखिया, सब झूठा सकल पसारा है।
कपरे पारे तन से डारे, अब सत प्रणाम हमारा है।।
बीबी रोवै चोली धोवै, तू सुन भरतार हमारा है।
मैं ना मानूं मसतान भया, लाग्या निज निकट निवारा है।।
उरमैं अविनासी आप अलह,सतगुरु कूं पार उतार्या है।
गह गल कंटक दुनिया दूती, यौंह डूबर केसा गारा है।।
हम जान लिया जगदीस गुरु, जिन मंत्र महल समार्या है।
कुछ तोल न मोल नहीं जाका, देख्या नहि हलका भारा है।।
सुंदर रूप रू बीबेक लख्या,चाख्या नहिं मीठा खारा है।
गलतान समांन समाय रह्या, जा पिंड ब्रह्मंड सै न्यारा है।।
सुरसंख समाधि लगाइ रहे, देख्या एक अजब हजारा है।
कहै दासगरीब अजब दरिया, झिलिमिलि झिल वार न पारा है।।
सरलार्थ:-
कथा:– एक वाजीद नाम का मुसलमान राजा था। एक समय अपनी राजधानी से अन्य शहर में जा रहा था। रेगिस्तानी क्षेत्र था। ऊँटों पर चलते थे। सैंकड़ों अंगरक्षक थे। मंत्री तथा प्रधानमंत्री, धर्मगुरू तथा वैद्य भी साथ चले। सब ऊँटों पर चढ़कर चल रहे थे। आगे पर्वतों के बीच से घाटी से होकर जा रहे थे। ऊँट एक के पीछे एक चल रहा था। वह घाटी इतनी तंग थी कि एक ऊँट ही चल सकता था। उस घाटी में एक ऊँट गिर गया और गिरते ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। राजा का काफिला रूक गया क्योंकि बराबर से निकलने का स्थान नहीं था। आगे ऊँटों की लंबी पंक्ति थी। घाटी की लंबाई भी तीन-चार किलोमीटर थी। यह घटना बीच में हो गई। राजा ने कहा कि मेरी आज्ञा बिना काफिला किसने रूकवाया है? उसे बुलाओ। मंत्रीगण गए और आकर कारण बताया। राजा वाजीद ने कहा कि मुझे दिखाओ, मेरी आज्ञा के बिना ऊँट कैसे मर गया और लेट गया? राजा ने देखा कि आँख ठीक, नाक ठीक, कान, टाँग, दुम, गर्दन सब ठीक है। फिर कहाँ से मर गया? धर्म पीर (गुरू) ने बताया कि हे राजन! जिस प्राणी का जितना समय परमात्मा ने निर्धारित कर रखा है, वह उतने समय तक ही संसार में रहता है। चाहे मानव है या अन्य प्राणी। वाजीद बादशाह ने गुरू जी से प्रश्न किया कि क्या मैं भी मरूँगा? गुरू जी ने कहा, जी! आप भी मरोगे। आपके दादा-परदादा भी राजा थे। वे भी मर गए। एक दिन सबको संसार छोड़कर जाना है। राजा वाजीद ने कहा कि पीछे चलो। काफिला पहले आगे गया। मृत ऊँट को उठाकर घसीटकर ले चले। फिर वापिस राजधानी को चले। राजा ने पूछा कि हे पीर (गुरू) जी! फिर मानव जीवन का क्या लाभ है? गुरू जी ने बताया कि भगवान की भक्ति करके अमर हुआ जा सकता है। राजा ने घर आते ही राजशाही वस्त्रा त्याग दिये। घर त्यागकर चल पड़ा। उसकी कई स्त्रिायाँ (रानियाँ) थी। वे रोने लगी। हमारा क्या होगा? आप हमारे भरतार (पति) हैं। वाजीद ने कहा, यह संसार तो डूबन केसा गारा (दलदल) है। मैंने अमर होना है। मैं चला, मैं मानने वाला नहीं हूँ।
बुढ़िया और बाजीद की कथा
एक समय बाजीद राजा राज्य-घर त्यागकर जंगल में साधना कर रहे थे। एक कुतिया ने 8 बच्चों को जन्म दिया। उसको बहुत भूख लगी थी। एक बुढ़िया अपनी 4 रोटी कपड़े में बाँधकर खेत में काम के लिए जा रही थी। बाजीद ने कहा, माई! इस कुतिया को एक रोटी डाल दो। यह भूख से मरने वाली है। साथ में 8 बच्चे और मरेंगे। बुढ़िया चतुर थी। उसने कहा कि मेरे खून-पसीने की कमाई है, यह कैसे दे दूँ? संत ने कहा कैसे रोटी डालोगी? बुढ़िया ने कहा कि आप अपनी भक्ति का चैथा भाग मुझे दे दो, मैं रोटी डाल दूँगी। संत ने अपनी साधना का ( भाग संकल्प कर बुढ़िया को दे दिया। वृद्धा ने एक रोटी कुतिया को डाल दी। फिर भी कुत्ती भूखी थी। करते-करते चारों रोटी कुतिया को डाल दी और संत बाजीद जी ने अपनी सर्व भक्ति कमाई वृद्धा को संकल्प कर दी जिससे कुतिया (सुनही) तथा उसके बच्चों का जीवन बचा। रोटी देने से माई को भक्ति की कमाई प्राप्त हुई और बाजीद जी भक्ति पुण्यहीन हो गया, परंतु कुतिया और उसके बच्चों को जीवन दान देने के कारण स्वर्ग प्राप्ति हुई।