संत सताने की सजा

आदरणीय गरीबदास साहेब जी का जन्म पावन गाँव छुड़ानी जिला-झज्जर में श्री बलराम जी धनखड़ (जाट) के घर हुआ। आपजी को पूर्णब्रह्म कबीर परमेश्वर (कविर्देव) सतलोक (ऋतधाम) से सन् 1727 में सशरीर आकर मिले थे तथा आपजी के जीव को सत्यलोक लेकर गए थे। पीछे से परिवार जनों ने गरीबदास जी को मृत जानकर चिता पर रखा दिया था। उसी समय कविर्देव ने आप जी का जीव वापिस शरीर में प्रविष्ट कर दिया। उसके पश्चात् आदरणीय गरीबदास जी भी परम पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) की आँखों देखी महिमा जन-जन को सुनाने लगे। जो भी दुःखी प्राणी आपजी से उपदेश प्राप्त करता, वही सुखी हो जाता। आपजी की बढ़ती महिमा तथा तत्वज्ञान के सामने अन्य गुरुओं (आचार्यों) के अधूरे ज्ञान की पोल खुलने से आस-पास के सर्व अधूरे ज्ञान युक्त गुरू जन (आचार्य जन) आप जी से अत्यधिक ईष्र्या करने लगे। आस पास के मुख्य-मुख्य चैधरियों को उलटी पट्टी पढ़ा दी। जिससे आस-पास के गाँव के आम व्यक्ति प्रभु कबीर के प्यारे बच्चे आदरणीय गरीबदास जी से घृणा करने लगे।

दिल्ली के वाजीदपुर गाँव में आपका एक शिष्य था। उससे भी पूरा गाँव ईष्र्या करता था। उसकी प्रार्थना पर आप जी कुछ दिन वाजीदपुर में ठहरे। उसी समय टिड्डी दल ने आस पास के क्षेत्रा में बाजरे की फसल नष्ट कर दी। परन्तु आप जी के सेवक की फसल को कोई हानि नहीं पहुँचाई। सर्व ग्रामवासी सन्त गरीबदास जी की महिमा से बहुत प्रभावित हुए तथा ज्ञान को स्वीकार करके अपना आत्म कल्याण करवाया।

आप जी के आदेश से आप के भक्त ने उस बाजरे को पूरे गाँव में बांट दिया तथा गरीबदास जी के बार-2 मना करने पर भी कुछ बाजरा बैलगाड़ी में डाल दिया तथा कहा कि प्रत्येक पूर्णमासी में आप भण्डारा करते हो, कुछ दान आपके दास का भी हो जायेगा। भक्तों की श्रद्धा को रखते हुए आप जी ने स्वीकृति प्रदान कर दी (आदरणीय गरीबदास जी के चार लड़के तथा दो कन्याऐं संतान रूप में थी तथा लगभग 1300 एकड़ जमीन के स्वामी भी थे)। उसी बैलगाड़ी में बैठकर आप गाँव छुड़ानी को चल पड़े। रास्ते में गाँव काणौंदा के पास बैलगाड़ी पहुँचते ही पहले से सुनियोजित षड़यन्त्रा स्वार्थी गुरूओं (आचार्यों) ने संत गरीबदास जी को घेर लिया। सर्व बाजरा लूट लिया तथा उसी गाँव के चैधरी छाजूराम छिक्कारा को सूचना कर दी कि वह हिन्दू धर्म का द्रोही पकड़ लिया है। चैधरी छाजुराम जी के आदेश से चैपाड़ में बांध दिया गया। चैधरी छाजुराम जी को सरकार की तरफ से कुछ कानूनी अधिकार प्राप्त थे। छः महीने की सजा, पाँच सौ रूपये जुर्माना तथा महादोषी को काठ में बंद करना आदि सम्मिलित थे।

उन धर्म के अज्ञानी ठेकेदारों (गुरूओं - आचार्यों) द्वारा पूर्व से उल्टी पट्टी पढ़े चैधरी छाजुराम छिक्कारा जी ने उस परम आदरणीय गरीबदास जी महाराज को काठ में बंद कर दिया (काठ में बंद करना एक प्रकार की कठिन कारागार की सजा थी, दोनों पैरों के घुटनों से ऊपर दो काष्ठ के मोटे डण्डे बांध कर दोनों हाथों को पीछे बांध दिया जाता था जिस कारण व्यक्ति बैठ नही सकता था तथा पीड़ा बहुत होती थी पैर सूज जाते थे)। बैलगाड़ी वाला खाली गाड़ी लेकर गाँव वाजीदपुर वापिस चला गया जो गाँव काणौंदा से लगभग 10 कि.मी. दूरी पर है। सूचना प्राप्त होते ही वाजीदपुर गाँव के कुछ मुख्य व्यक्ति तुरन्त काणौंदा पहुँच गए तथा चैधरी छाजुराम जी से प्रार्थना की तथा बहुत समझाया कि यह आम व्यक्ति नहीं है, यह परम शक्ति सम्पन्न है। आप क्षमा याचना कर लो। चैधरी छाजुराम जी बहुत ही नेक आत्मा तथा बहुत ही दयालु व नम्र हृदय का व्यक्ति था। परन्तु उन स्वार्थी व प्रभुता के भूखे गुरुओं (आचार्यों) ने उस पुण्यात्मा श्री छाजुराम छिक्कारा जी को झूठी कहानी सुनाकर प्रभु के प्यारे बच्चे आदरणीय गरीबदास जी के प्रति अत्यधिक ग्लानि पैदा कर रखी थी। जिस कारण से चैधरी छाजुराम जी ने बिना कारण जाने ही सजा प्रारम्भ कर दी थी। वाजीदपुर के भक्तों की प्रार्थना मान कर आदरणीय गरीबदास जी को छोड़ दिया। आदरणीय गरीबदास जी साहेब जी ने कुछ नहीं कहा तथा अपने गाँव छुड़ानी आ गए। कुछ दिनों उपरान्त चैधरी छाजुराम जी प्रातः काल टट्टी फिरने (फ्रैश होने) जोहड़ (तालाब) पर गए तो उनके दोनों हाथ दो घुड़सवारों ने काट दिए। उसी समय उनके समक्ष ही अदृश हो गए। इस दृश्य को तालाब पर उपस्थित कई व्यक्तियों ने भी देखा। बहुत उपचार करवाया परन्तु दर्द तथा रक्त का स्राव बंद नहीं हुआ। कई दिन तक बुरी तरह चिल्लाते रहे। फिर एक व्यक्ति ने कहा उसी सन्त गरीबदास जी के पास जाकर क्षमा याचना कर लो, वे दयालु हैं, परिवार जन उस चैधरी को घोड़े पर बैठा कर छुड़ानी ले गये। श्री छाजुराम जी जाते ही आदरणीय गरीबदास जी के चरणों में गिर गए। क्षमा याचना की। संत गरीबदास जी ने आशीर्वाद दिया तथा नाम उपदेश दिया तथा आजीवन भक्ति करने को कहा। चैधरी छाजुराम जी ने कहा दाता मेरे को आप के विषय में अत्यधिक भ्रमित कर रखा था।

मुझे नहीं मालुम था कि आप पूर्ण परमात्मा आए हो। आदरणीय गरीबदास जी ने कहा मैं पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब (कविर्देव) जुलाहा का भेजा हुआ दास हूँ। उन्हीं की शक्ति से आप ठीक हुए हो। मैंने आपको कोई शाप नहीं दिया था। आप का कर्म आपको मिला है। यदि यहाँ नहीं आते तो आपके परिवार पर और भी पाप का प्रभाव था। अब वह नहीं रहेगा, क्योंकि आपने उपदेश प्राप्त कर लिया। चैधरी छाजुराम जी ने अपने सर्व परिवार को उपदेश दिलाया। आज भी उसी पुण्यात्मा छाजुराम के वंशज आदरणीय गरीबदास जी की परम्परागत पूजा करते हैं। लगभग सैकड़ों परिवार हैं जिन्हें छाजुवाड़ा कहते हैं। क्योंकि:-

तुमने उस दरगाह का महल ना देख्या। धर्मराय के तिल-2 का लेख।।

राम कहै मेरे साध को, दुःख ना दीजो कोए।
साध दुखाय मैं दुःखी, मेरा आपा भी दुःखी होय।।

हिरण्यक शिपु उदर (पेट) विदारिया, मैं ही मार्या कंश।
जो मेरे साधु को सतावै, वाका खो-दूं वंश।।
साध सतावन कोटि पाप है, अनगिन हत्या अपराधं।
दुवार्सा की कल्प काल से, प्रलय हो गए यादव।।

उपरोक्त वाणी में सतगुरु गरीबदास जी साहेब प्रमाण दे रहे हैं कि परमेश्वर कहते हैं कि मेरे संत को दुःखी मत कर देना। जो मेरे संत को दुःखी करता है समझो मुझे दुःखी करता है। जब मेरे भक्त प्रहलाद को दुःखी किया तब मैंने हिरणयकशिपु का पेट फाड़ा और मैंने ही कंश को मारा और जो मेरे साधु को दुःखी करेगा मैं उसका वंश मिटा दूंगा। इसलिए संत को सताने के करोड़ों पाप लगते हैं। जैसे अनगिन (अनंत) हत्याएं कर दी हों। ये अनजान लोग परमात्मा के संविधान से परिचित नहीं हैं, इसलिए भयंकर भूल करते हैं और फिर दण्ड के भागी बनते हैं। साधु सताने को निम्न दण्ड मिलता है।

यदि एक मनुष्य दुसरे मनुष्य की मृत्यु कर देता है तो उसका अगले जन्म में हत्या करने से पूरा हो जाता है। लेकिन संत को सताने का बहुत बड़ा दण्ड है जो अनंत जन्मों में भी पूरा नहीं होता। सतगुरु अपनी वाणी में कहते हैं:--

अर्धमुखी गर्भवास में हरदम बारम्बार, जूनी भूत पिशाच की, जब लग सृष्टि संहार। ऐसी गलती करने वाले को परमेश्वर भिन्न प्राणियों की योनियों में बारम्बार मां के गर्भ में डालते हैं अर्थात् वह जन्म लेते ही बारम्बार मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और जब तक सृष्टि प्रलय नहीं हो जाती तब तक भूत-पिशाच की योनि व मां के गर्भ में महान कष्ट रखता है जो बहुत ही दुःखदायी होता है और तब तक क्षमा नहीं मिलती जब तक सताया हुआ संत ही क्षमा नहीं कर देता।

एक बार दुर्वासा ऋषि ने अभिमान वश अम्ब्रीष ऋषि को मारने के लिए अपनी शक्ति से एक सुदर्शन चक्र छोड़ दिया। सुदर्शन चक्र अम्ब्रीष ऋषि के चरण छू कर वापिस दुर्वासा ऋषि को मारने के लिए दुर्वासा की तरफ ही चल पड़ा। दुर्वासा ऋषि ने सोच लिया कि तुने बहुत बड़ी गलती कर दी है। लेकिन अधिक समय न रहते देख दुर्वासा सुदर्शन चक्र के आगे-2 भाग लिया। भागता-2 श्री ब्रह्मा जी के पास गया और बोला कि हे भगवन ! कृप्या आप मुझे इस सुदर्शन चक्र से बचाओ। इस पर ब्रह्मा जी बोले कि ऋषि जी यह मेरे वस की बात नहीं है। अपने सिर पर से बला को टालते हुए कहा कि आप भगवान शंकर के पास जाओ। वे ही आपको बचा सकते हैं। यह सुनते ही दुर्वासा ऋषि, भगवान शंकर के पास गया और बोला कि हे भगवन् ! कृपा करके आप मुझे इस सुदर्शन चक्र से बचाओ। इस पर भगवान शिव ने भी ब्रह्मा की तरह टालते हुए कहा कि आप श्री विष्णु भगवान के पास जाओ। वही आपको बचा सकते हैं। यह सुनते ही भगवान विष्णु जी के पास जाकर दुर्वासा ऋषि ने कहा कि हे भगवन ! आप ही मेरे को इस सुदर्शन चक्र से बचा सकते हो वरना यह मेरे को काट कर मार डालेगा। इस पर भगवान विष्णु जी ने कहा कि हे ऋषि जी ! यह सुदर्शन चक्र आपको क्यों मारना चाहता है ? दुर्वासा ऋषि ने उपरोक्त सारी कहानी बताई तब विष्णु जी ने कहा कि हे दुर्वासा ऋषि ! यदि आप उसी अम्ब्रीष ऋषि के चरण पकड़ कर माफी मांगो तो यह सुदर्शन चक्र आपकी जान बख्श सकता है अन्यथा मैं तो क्या कोई भी देव आपको नहीं बचा सकता। इसका दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है। मरता क्या नहीं करता ? तब दुर्वासा ऋषि वापिस जाकर अम्ब्रीष ऋषि के चरण पकड़ कर रोने लगा और हृदय से माफी मांगी। तब अम्ब्रीष ऋषि ने वह सुदर्शन चक्र अपने हाथ में पकड़ कर दुर्वासा ऋषि को दिया और कहा कि संतों/ऋषियों के साथ बेअदबी कभी नहीं करनी चाहिए। उसका परिणाम बहुत बुरा होता है।

“श्री कृष्ण गुरु कसनी हुई और बचेगा कौन”

जब श्री कृष्ण जी के गुरु श्री दुर्वासा जैसे ऋषियों की ये हालत है तो फिर आम आदमी कैसे बच सकता है ?

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