श्री नानक जी का गुरू था, अन्य प्रमाण
’’साखी कंधार देश की चली‘‘ जन्म साखी के पृष्ठ 470-471 पर:-
एक मुगल पठान ने पूछा कि आपका गुरू कौन है? श्री नानक जी ने उत्तर दिया कि जिन्दा पीर है। वह परमेश्वर ही गुरू रूप में आया था। उसका शिष्य सारा जहाँ है। फिर ‘‘साखी रूकनदीन काजी के साथ होई’’ जन्म साखी के पृष्ठ 183 पर कुछ वाणी इस प्रकार हैं:-
नानके आखे रूकनदीन सच्चा सुणहू जवाब। खालक आदम सिरजिया आलम बड़ा कबीर।
कायम दायम कुदरती सिर पिरां दे पीर। सजदे करे खुदाई नू आलम बड़ज्ञ कबीर।।
भावार्थ:- श्री नानक जी ने कहा है कि रूकनदीन काजी! जिस खुदा ने आदम जी की उत्पत्ति की है। वह बड़ा परमात्मा कबीर है। वह ही पृथ्वी पर सतगुरू की भूमिका करता है। वह सिर पीरां दे पीर यानि सब गुरूओं का सिरताज है। सब से उत्तम ज्ञान रखता है। वह कायम यानि श्रेष्ठ दायम यानि समर्थ परमात्मा (कुदरती) है। मुसलमान अल्लाह कबीर कहते हैं। कबीर का अर्थ बड़ा करके बड़ा अल्लाह अर्थ करते हैं। श्री नानक जी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह बड़ा आलम कबीर है। मुसलमान जिसे अल्लाह कबीर कहते हैं यानि बड़ा अल्लाह कहते हैं। जन्म साखी में कबीर तथा बड़ा दोनों शब्द लिखे हैं जिससे कबीर का अर्थ कबीर ही रहेगा तथा बड़ा शब्द भी रहेगा। इसलिए स्पष्ट हुआ कि बड़ा परमात्मा कबीर है। वह बड़ा आलम कबीर है जो धाणक रूप में काशी में लीला करके गया है जिसका प्रमाण श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के पृष्ठ 24, 721, 731 पर पूर्व में लिख दिया है। उसमें स्पष्ट है तथा कबीर सागर पवित्र ग्रन्थ भी भाई बाला जी ने जैसे प्रत्यक्ष सुना लिखा है, ऐसे ही धनी धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से सुना ज्ञान लिखा है।