अनअधिकारी से यज्ञ व पाठ करवाना व्यर्थ है

जिसको पूर्ण परमात्मा का मार्ग दर्शन करने का अधिकार नहीं है तथा उसके पास सत्य भक्ति तीन मंत्र की नहीं है, वह अन अधिकारी होता है। पूर्ण संत जो पूर्ण परमेश्वर की वास्तविक साधना बताता है उसे गुरु बना कर उसी के माध्यम से सर्व धार्मिक अनुष्ठान करवाना हितकर है।

कबीर गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान। गुरु बिन दोनों निष्फल हैं, पूछो वेद पुराण।।
गुरु बिन यज्ञ हवन जो करही, निष्फल जाएं कबहुं नहीं फलहीं।

एक बार राजा परिक्षित को सातवें दिन सर्प ने डसना था। उस समय सर्व ऋषियों ने यह निर्णय लिया कि राजा को सात दिन तक श्रीमद्भागवद सुधासागर का पाठ सुनाया जाये, ताकि राजा का मोह संसार से हट जाए। कौन ऐसा कथा करने वाला ऋषि है जिसके पाठ करने से राजा का कल्याण हो सके ?

विचार करें:- सातवें दिन पता लग जाना था कि कथा (पाठ) करने वाला अधिकारी है या नहीं। इसलिए पृथ्वी पर उपस्थित सर्व ऋषियों व महर्षियों ने पाठ (कथा) करने का कार्य स्वीकार नहीं किया। क्योंकि वे महापुरुष प्रभु के संविधान से परिचित थे, इसलिए राजा परिक्षित के जीवन से खिलवाड़ नहीं किया तथा जो ढोंगी थे वे इस डर से सामने नहीं आए कि सातवें दिन पोल खुल जायेगी। उस समय स्वर्ग से महर्षि सुखदेव जी बुलाए गए जो विमान में बैठ कर आए। आते ही श्री सुखदेव जी ने राजा परिक्षित जी से कहा कि राजन आप मेरे से उपदेश प्राप्त करो अर्थात् मुझे गुरु बनाओ तब कथा (पाठ) करने का फल प्राप्त होगा। राजा परिक्षित ने श्री सुखदेव जी को गुरु बनाया तब सात दिन श्री भागवत सुधासागर (श्री विष्णु उर्फ श्री कृष्ण जी की लीला) की कथा सुनाई। राजा को सर्प ने डसा। राजा की मृत्यु हो गई। सूक्ष्म शरीर में राजा परिक्षित अपने गुरु श्री सुखदेव जी के साथ विमान में बैठ कर स्वर्ग गए। क्योंकि पहले राजा बहुत धार्मिक होते थे, पुण्य करते रहते थे।

राजा परिक्षित ने श्री कृष्ण जी से उपदेश भी प्राप्त था। उन्हीं के मार्ग दर्शन अनुसार बहुत धर्म किया था। परन्तु बाद में कलयुग के प्रभाव से ऋषि भिंडी के गले में सर्प डालने से तथा अन्य मर्यादा हीन कार्य करने से राजा परिक्षित का उपदेश खण्ड हो गया था। उस समय न तो किसी ऋषि जी ने राजा को उपदेश दे कर शिष्य बनाने की हिम्मत की, क्योंकि वे गुरु बनने योग्य नहीं थे। उन्हें उपदेश देने का अधिकार नहीं था। केवल श्री कृष्ण जी ही उपदेश देते थे, जो पाण्डवों के भी गुरु जी थे तथा छप्पन (56) करोड़ यादवों के भी गुरु जी थे। राजा परिक्षित के पुण्यों के आधार से श्री सुखदेव जी गुरु बन कर उसको कथा सुनाकर संसार से आस्था हटवा कर केवल स्वर्ग ले गए। इतना लाभ राजा परिक्षित को हुआ। स्वर्ग का समय पूरा होने अर्थात् पुण्य क्षीण होने के उपरान्त राजा परिक्षित तथा सुखदेव जी भी नरक जायेंगे, फिर चैरासी लाख प्राणियों के शरीर में नाना कष्ट उठायेंगे। जन्म-मृत्यु समाप्त नहीं हुआ अर्थात् मुक्त नहंीं हुए।

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