हरिद्वार में साधुओं का कत्लेआम

3. अब सतगुण श्री विष्णु जी के पुजारियों की कथा सुनाता हूँ।

एक समय हरिद्वार में हर की पोड़ियों पर कुंभ का मेला लगा। उस अवसर पर तीनों गुणों के उपासक अपने-अपने समुदाय में एकत्रित हो जाते है। गिरी, पुरी, नागा-नाथ ये भगवान तमोगुण शिव के उपासक होते हैं तथा वैष्णव सतगुण भगवान विष्णु जी के उपासक होते हैं। हर की पोड़ियों पर प्रथम स्नान करने पर दो समुदायों ‘‘नागा तथा वैष्णवों‘‘ का झगड़ा हो गया। लगभग 25 हजार त्रिगुण (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) के पुजारी लड़कर मर गये, कत्लेआम कर दिया। तलवारों, छुरों, कटारी से एक-दूसरे की जान ले ली।

सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-

तीर तुपक तलवार कटारी, जमधड़ जोर बधावैं हैं।
हर पैड़ी हर हेत नहीं जाना, वहाँ जा तेग चलावैं हैं।।
काटैं शीश नहीं दिल करुणा, जग में साध कहावैं हैं।
जो जन इनके दर्शन कूं जावैं, उनको भी नरक पठावैं हैं।।

हे धर्मदास! उपरोक्त सत्य घटनाओं से सिद्ध हुआ कि रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी की पूजा करने वालों को गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच दूषित कर्म करने वाले मूर्ख कहा है।

परमेश्वर जिन्दा जी के मुख कमल से उपरोक्त कथा सुनकर धर्मदास जी का सिर फटने को हो गया। चक्कर आने लगे। हिम्मत करके धर्मदास बोला हे प्रभु! आपने तो मुझ ज्ञान के अँधे को आँखें दे दी दाता। उपरोक्त सर्व कथायें हम सुना तथा पढ़ा करते थे परन्तु कभी विचार नहीं आया कि हम गलत रास्ते पर चल रहे हैं। आपका सौ-सौ बार धन्यवाद। आप जी ने मुझ पापी को नरक से निकाल दिया प्रभु!

गीता अध्याय 7 के श्लोक 20-23 का उपरोक्त से संबंध है जिसका भावार्थ है कि:-

भावार्थ:- गीता अध्याय 7 श्लोक 20 से 23 तक का भावार्थ है कि जो गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में कहा है कि तीनों गुण(रजगुण श्री ब्रह्मा जी, सतगुण श्री विष्णु जी, तम् गुण श्री शिव जी) रूपी माया द्वारा जिन का ज्ञान हरा जा चुका है अर्थात् जो तीनों देवताओं की साधना करते हैं वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख, मुझ ब्रह्म की पूजा नहीं करते। इसी के सम्बन्ध में गीता अध्याय 7 श्लोक 20 से 23 में कहा है कि जिनका ज्ञान उपरोक्त तीनों देवताओं द्वारा हरा जा चुका है वे अपने स्वभाव वश उन्हीं देवताओं की पूजा मनोंकामना पूर्ण करने के उद्देश्य से करते हैं अर्थात् गीता ज्ञान दाता कह रहा है कि मेरे से अन्य देवताओं की पूजा करते है। जो भक्त जिस देवता की पूजा करता है उसकी श्रद्धा मैं ही, उस देवता के प्रतिदृढ़ करता हूँ। उस देवताओं के पुजारी को भी मेरे द्वारा उस देवता को दी गई शक्ति से ही प्राप्त होता है। परन्तु उन मंद बुद्धि वालों अर्थात् मूर्खों का वह फल नाशवान है। देवताओं के पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं। मेरे भक्त मुझे प्राप्त होते हैं। भावार्थ है कि जो ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव की पूजा या अन्य किसी देव की पूजा करते हैं उन देवताओं की पूजा का फल नाशवान है अर्थात् वह पूजा व्यर्थ है।

पेश है गीता अध्याय 7 श्लोक 20-23 की फोटोकाॅपी:-

(गीता अध्याय 7 श्लोक 20 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 20

(गीता अध्याय 7 श्लोक 21 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 21

(गीता अध्याय 7 श्लोक 22 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 22

(गीता अध्याय 7 श्लोक 23 की फोटोकाॅपी)

Gita Adhyay 7 Shlok 23

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