परमेश्वर का तीनों युगों में थोड़े जीव पार करने का वचन देना
प्रश्न:-परमात्मा का काल लोक में आना तथा काल ब्रह्म द्वारा वचन बद्ध करके तीन युगों (सत्ययुग, त्रेतायुग तथा द्वापर युग) में थोड़े ही जीव काल जाल से निकालने तथा कलयुग में जितने चाहे जीव मुक्त कराने का वर प्राप्त किया। क्या परमेश्वर को पता नहीं था कि काल ब्रह्म क्या मांगने जा रहा है। यदि परमेश्वर को ज्ञान नहीं था तो सर्वज्ञ नहीं हुए। यदि ज्ञान था तो वर किस लिए दिए?
उत्तर:- (लेखक द्वारा) सतयुग में महापुण्यात्माओं का जन्म होता है। पृथ्वी पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त होती है। फलदार वृक्षों की भरमार होती है। अत्यधिक वन होने के कारण आॅक्सीजन की अधिकता वाली वायु चलती है। मानव शरीर अति स्वस्थ रहता है। मानव की आयु, लाखों वर्ष की सत्ययुग के प्रारम्भ में होती है। आपसी भाई चारा, प्रेम, दूसरे के दुःख को अपना दुःख मानना। उस समय के मानव का स्वभाव होता है। चोर, डाकू, परस्त्रीगमन करने वाले नाम मात्र ही सत्ययुग के अन्त में होते हैं। स्त्री से पहले पति की मृत्यु सत्ययुग में नहीं होती। पिता से पहले पुत्र की मृत्यु नहीं होती। सर्व मानव समाज परमात्मा से डरने वाला, पाप-पुण्य पर गहन विचार करके कार्य करने वाला होता है तथा अधिक समय परमात्मा के भजन-स्मरण व वेदों के अध्ययन में ही व्यतीत करता है। पूर्वजन्म में किए भक्ति अभ्यास से प्रत्येक व्यक्ति (स्त्री व पुरूष) समाधिस्थ होता है। कई वर्षों तक बिना खाए-पीए ही समाधि द्वारा ऊपर के लोकों के दृश्य यहाँ बैठे देखते रहते हैं। नाम का जाप न करके अधिक समय समाधि में व्यतीत करते हैं। जिस कारण से उनको तपस्या का फल प्राप्त होता है। तप से राज्य प्राप्त होता है। राज्य भोग कर फिर नरक को वह व्यक्ति प्राप्त होता है। यह काल ब्रह्म के जाल का सुनियोजित चक्र है। जो व्यक्ति पृथ्वी पर बैठा स्वर्ग लोक के नृत्य देख लेता है जो धर्मराज के दरबार से भी अन्य सूचना प्राप्त कर लेता है तो वह व्यक्ति अपनी साधना को सर्वोत्तम मान बैठता है। ऐसी स्थिति सत्ययुग के प्रारम्भ में प्रत्येक मानव की होती है। उनमें सिद्धियाँ भी अन्य युगों के प्राणियों से अधिक होती हैं। इस कारण से तत्वज्ञान को ग्रहण नहीं करते।
त्रेता युग में उत्पन्न प्राणी सत्ययुग के प्राणियों से कम पुण्य वान होते हैं।
त्रेता युग में भी सर्व मानव समाज परमात्मा से डरने वाला भक्ति करने वाला होता है। भक्ति शक्ति व सिद्धियाँ भी बहुत व्यक्तियों में होती हैं। त्रेतायुग के प्रारम्भ में मानव की आयु दस हजार वर्ष होती है। परमात्मा की भक्ति करने में पूर्ण विश्वास करते हैं। इस युग में भी प्राणी अधिक दुःखी नहीं होते परन्तु त्रेतायुग में मानवता में कुछ गिरावट आ जाती है अपनी साधना पर अतिदृढ़ रहते हैं। जो साधना करते हैं उसी से मानते हैं हमें लाभ हो रहा है। वास्तव में वह लाभ पूर्व जन्म के पुण्यों के संयोग से होता है वे मान लेते हैं कि जो साधना हम कर रहे हैं यह सुख इसी का प्रतिफल है।
उदाहरण:-संत रामपाल दास जी महाराज ने बताया कि पहले मैं सर्व साधना शास्त्रविधि के विपरीत किया करता था। परन्तु जो लाभ होता तो मानता था कि इसी भक्ति के प्रतिफल से हो रहा है। जैसे परीक्षा में उत्तीर्ण होना, लड़का उत्पन्न होना, नौकरी मिलना आदि को अपनी भक्ति साधना के प्रतिफल ही मानता था। अब तत्व ज्ञान की प्राप्ति होने के पश्चात् पता चला कि जो भक्ति करता था। उससे कोई लाभ होने वाला नहीं था। इस कारण से त्रेता युग के प्राणी भी तत्वज्ञान ग्रहण नहीं करते हैं। फिर भी कुल संख्या तत्वज्ञान ग्रहण करने वालों की बहुत कम होती है। द्वापर युग में मानव त्रेता से भी कम पुण्यों युक्त होते हैं। विकारी भी अधिक हो जाते हैं। परमात्मा की भक्ति करने में विश्वास तो रखते हैं परन्तु विलास के भी सर्व साधनों का प्रयोग करते है। जैसे बहुपत्नी, जुआ खेलना, मदिरा पीना आदि विकार कुछ व्यक्ति प्रारम्भ कर देते हैं।
उपरोक्त युगों की तरह इस द्वापर युग में भी साधक अपनी साधना जो शास्त्रविरूद्ध होती है को लाभदायक मानकर करते रहते हैं परन्तु वास्तव में वह पाप विनाशक, कष्ट निवारक नहीं होती। जैसे आप ने पूर्वोक्त उल्लेख में पढा कि श्री कृष्ण जी ने पाण्डवों को जो कष्ट निवारक (पाप कर्म नाशक) भक्ति विधि बताई थी वह कोई काम नहीं आई। द्वापर युग में भी व्यक्ति तत्वज्ञान को बहुत ही कम ग्रहण करते हैं। परन्तु उपरोक्त दोनों युगों से अधिक मात्रा में तत्वज्ञान ग्रहण करते हैं। फिर भी बीच में विचलित हो जाते हैं क्योंकि शास्त्रविरूध साधना करने वाले अधिक मात्रा में होते हैं। इस कारण से सत्य साधना करने वाले अपना विश्वास खो बैठते हैं। सत्य साधना कुछ वर्ष करके त्याग देते हैं। दो-चार प्राणी ही पूर्ण आयु विश्वास के साथ लगे रहते हैं तथा मोक्ष प्राप्त करते हैं। द्वापर युग के प्रारम्भ में मानव की आयु एक हजार वर्ष होती है। कलयुग में भी सर्व परमात्मा को मानने वाले होते हैं। काल ब्रह्म अपने भक्ति ज्ञान दूत भेज कर कई प्रकार के धर्मों का उत्थान करा देता है।
सर्व धर्मों के श्रद्वालु अपने-2 धर्म के धार्मिक कार्यों को उत्तम मानकर दूसरों के धार्मिक कार्यों में दोष निकालते रहते है। आपसी झगड़े भी धर्म के कारण करके समाज में अशान्ति फैलाते रहते हैं। कलयुग में जिन प्राणियों का जन्म होता है वे सतयुग, त्रेता, द्वापर युग में अपनी पुण्य कमाई को समाप्त करके पुण्यहीन हो जाते हैं। आपत्तियाँ पग-पग पर आती रहती है। शरीर भी किसी न किसी रोग से युक्त होता है। सर्व मानव समाज किसी न किसी रोग की चपेट में अवश्य रहता है। जो साधना कलयुग के साधक कर रहे होते हैं उससे उन्हें कोई लाभ नहीं होता। उनके पूर्व जन्म के पुण्य शेष नहीं होते तथा जो साधना वे कलयुग के श्रद्धालु करते हैं। वह शास्त्र विधि विरूद्ध होती है। जिस कारण उनका कोई कष्ट निवारण नहीं होता। न वांच्छित कार्य ही सिद्ध होता है। कुछ समय उपरान्त साधक का परमात्मा से विश्वास उठ जाता है। वह विकार करने लग जाता है। चोरी, डाके या ठगी का सहारा लेकर धनी बनना चाहता है। अवैध विधि से धन इक्टठा करता है तो पाप का भागी हो जाता है। अवैध विधि से जोड़ा धन स्थाई नहीं होता। भाग्य से अधिक प्राणी रख नहीं सकता। वह धन या तो रोग की चिकित्सा में खर्च होगा या चोरी हो जाएगा या कोई मित्र लेकर वापिस नहीं देगा शत्रुता को जन्म देगा या कन्या के विवाह में अधिक खर्च करके प्रतिष्ठा बनाएगा। कई बार देखा है विवाह के कुछ समय पश्चात् लड़की की मृत्यु हो जाती है वह धन किसी काम नहीं आता।
इस प्रकार वह अवैध विधि से जोड़ा धन तो रहा नहीं जो उस धन को प्राप्त करने में अपराध हुए वे शेष रह जाते हैं। उनको भोगने के लिए कुत्ते-गधे की योनी प्राप्त होती है। कुत्तों को देखा है खाज लगी होती है। सिर में चोट लगने से घाव में कीड़े चल रहे होते हैं। पिछले पैरों को अधरंग हो जाता है। अगले पैरों के सहारे वह अपराधी चलता है पिछले पैर घिसट रहे होते हैं।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा अन्य युगों की भाँति तत्वदर्शी सन्त की भूमिका करने आता है। वह शास्त्रविधि अनुसार सत्य साधना का ज्ञान देता है। जो श्रद्धालु अपनी परंपरागत साधना से लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है। जब वह पूर्ण परमात्मा की भक्ति तत्वदर्शी सन्त के बताए अनुसार करता है तो तुरन्त लाभ होता है। वह श्रद्धालु तुरन्त पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को ग्रहण कर लेता है। इस कारण से कलयुग में परमेश्वर के मार्ग को अधिक प्राणी ग्रहण करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते है। इसलिए कबीर परमेश्वर ने काल ब्रह्म को वर दिया था कालब्रह्म ने प्रार्थना की थी कि तीनों युगों, सत्ययुग, त्रेता युग, द्वापर युग में थोड़े जीव पूर्ण प्रभु की शरण में जाऐं कलयुग में जितने चाहे उतने प्राणी आपकी (पूर्ण परमात्मा की) शरण में जाऐं मुझे कोई विरोध नहीं। काल ब्रह्म ने सोचा था कि कलयुग तक सर्व मानव को शास्त्रविधि त्याग कर मनमाने आचरण (पूजा) पर अति आरूढ़ कर दूंगा। देवी-देवों की पूजा व मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारों तथा मूर्ति पूजा व तीर्थ स्नान पित्तर व भूत पूजा आदि पर ही आधारित कर दूँगा। जिस समय कलयुग में पूर्ण परमात्मा का भेजा हुआ तत्वदर्शी सन्त आएगा वह शास्त्रविधि अनुसार साधना करने को कहेगा। पूर्व वाली पूजा को बन्द करने को कहेगा तो भ्रमित भक्त समाज उस तत्वदर्शी सन्त के साथ झगड़ा करेगा। इस कारण से कलयुग में किसी भी प्राणी को पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। वह तत्वदर्शी सन्त झखमार कर रह जाएगा। परन्तु पूर्ण परमात्मा को ज्ञान था कि कलयुग में प्राणी महादुःखी हो जाऐंगे। जो साधना वे कर रहे होगें वह शास्त्रविधि के विरूद्ध होने के कारण लाभदायक नहीं होगी। मेरे द्वारा या मेरे अंश (वंश) तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताई जाने वाली साधना से वे दुःखी प्राणी महासुख प्राप्त करेंगे। उनके सुखों को देखकर अन्य व्यक्ति भी खिंचे चले आऐंगे। यह तत्वज्ञान विशेषकर उस समय कलयुग में प्रकट किया जाएगा जिस समय सर्व मानव (स्त्री-पुरूष) शिक्षित होगा। जिन शास्त्रों को आधार बताकर उस समय के काल ब्रह्म के प्रचारक उन्हीं शास्त्रों में लिखे उल्लेख के विपरित दन्तकथा (लोकवेद) सुना रहे होंगे तो तत्वज्ञान को जानने वाले शिक्षित व्यक्ति उन ग्रन्थों (पुराणों, वेदों व गीता आदि ग्रन्थों) को स्वयं पढ़कर निर्णय लेगें। जो तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताया ज्ञान सर्व सद्ग्रन्थों से मेल करेगा तथा उन काल ब्रह्म के प्रचारकों का लोक वेद सद्ग्रन्थों के विपरित पाएगा तो सर्व बुद्धिमान व्यक्ति तत्परता के साथ शास्त्र विधि विरूद्ध साधना को त्याग कर हमारी शरण में आऐंगे तथा शास्त्र विधि अनुसार भक्ति ग्रहण करके मोक्ष को प्राप्त होंगे। इस प्रकार पूरे विश्व में तत्वज्ञान (कबीर परमेश्वर का ज्ञान) ही कलयुग में रहेगा अन्य लोकवेद अर्थात् अज्ञान नष्ट हो जाएगा।
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान।।
वह समय वर्तमान में (सन् 2014 में) चल रहा है तत्व ज्ञान का सूर्य उदय होने वाला है। सूर्य उदय होने से कुछ ही समय पूर्व जो प्रकाश होता है। तत्वज्ञान प्रचार रूपी प्रकाश हो चुका है। शीघ्र ही यह तत्वज्ञान रूपी सूरज का प्रकाश विश्व में फैलेगा। सर्व मानव समाज सुखी होगा। आपसी प्रेम बढ़ेगा। धन जोड़ने की हाय तौबा नहीं रहेगी। सर्व मानव समाज विकार रहित होगा। पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करने वाले पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में चले जाऐंगे। धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ ने बताया हे धर्मदास ! वैसे तो मैं पृथ्वी पर अनेकों बार प्रकट होता हूँ। परन्तु एक मानव सदृश जीवन पृथ्वी पर निवास करके प्रत्येक युग में तत्व ज्ञान (स्वसम वेद) को प्रकट करता हूँ।
वर्तमान में (सन् 1398 से सन् 1518 तक) में तत्व ज्ञान को लिपिबद्ध कराने तथा समर्थ की समर्थता का प्रमाण देने के लिए निवास कलयुग में कर रहा हूँ। यह तत्वज्ञान उस समय तक छुपा कर रखना है जिस समय बिचली पीढ़ी प्रारम्भ होगी (बीसवीं सदी के मध्य सन् 1950 से तथा संवत् अनुसार इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से होगी) उस समय मेरा ज्ञान प्रचारक हमारा अंश (वंश) उत्पन्न होगा। उसका जन्म बीसवीं सदी के मध्यम में (सितम्बर सन् 1951में) होगा उसमें और मुझ में कोई भिन्नता नहीं होगी। मैं सर्वदा उस अपने दास के साथ रहूँगा। वह मेरा ही स्वरूप होगा। जो बारहवें पंथ अर्थात् गरीबदास पंथ का अनुयाई होगा। वह तेरहवां अंश (वंश) होगा। जो सर्व पंथों को समाप्त करके एक परमेश्वर (मेरा) पंथ चलाएगा। बारहवें पंथ के प्रवर्तक सन्त गरीबदास द्वारा मेरी महिमा की वाणी प्रकट होगी परन्तु निर्णायक ज्ञान नहीं होगा। वे बारह पंथों के अनुयाई मेरा ही गुणगान करेगें परन्तु तत्वज्ञान के अभाव से असंख्य जन्म में भी स्थाई स्थान अर्थात् सत्यलोक में वास नहीं कर सकेगें वे काल पे्ररित होगें।
धर्मदास तोहे लाख दुहाई, सार ज्ञान कहीं बाहर न जाई।
सार ज्ञान तब तक छिपाई, जब तक द्वादश पंथ न मिट जाई।।
{कबीर सागर, कबीर चरित्र बोध (बोध सागर) पृष्ठ 1870}
उपरोक्त चैपाईयों का भावार्थ है कि कबीर परमेश्वर जी अपने प्रिय भक्त धर्मदास जी को विशेष निर्देश दे रहे हैं कि हे धर्मदास। तुझे लाख सौगंध है कि आप इस तत्व ज्ञान को तेरे और मेरे अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं समझाना। इसे लिपिबद्ध कर ले। आप के वंश में तथा अन्य बारह पंथ काल ब्रह्म इसी ज्ञान के आधार से चलाएगा। परन्तु मेरी कृपा से कोई भी इस तत्वज्ञान को यथार्थ रूप से न समझ पाऐंगे। वे अपनी-2 समझ से इसका विपरीत अर्थ लगा कर एक दुसरे से वाद-विवाद करते रहेगें अपना-2 मत चलाकर भ्रमित रहेगें। यदि आप किसी को यह तत्वज्ञान बताओगे वह तुरन्त समझ जाएगा तथा यह तत्व भेद को समय से पूर्व काल ब्रह्म के दूतों के हाथ लग जाएगा। जिस समय बिचली पीढ़ी प्रारम्भ होगी तब ज्ञान भी भिन्न न होने के कारण काल ब्रह्म का दाव लग जाएगा। कोई जीव हमारी शरण न आ पावेगा। इसलिए यह तत्वज्ञान तब तक गुप्त रखना है। मेरा तत्वज्ञान अन्य लोक वेद अर्थात् अज्ञान को ऐसे नष्ट कर देगा जैसे तोप यन्त्रा का गोला जहाँ भी गिरता है। वहाँ की सर्व भवनों व किलों को ढहाकर मैदान कर देता है।
वर्तमान समय (सन् 2014) तक काल के सर्व पंथ चल चुके हैं। वे पंथ प्रवर्तक क्या ज्ञान बताते हैं? वह उनके द्वारा लिखी पुस्तकों में विद्यमान है। बुद्धिमान वा शिक्षित व्यक्ति तुरन्त तत्वज्ञान की तुला में तोल कर देख लेगा तथा उस काल ब्रह्म के हानिकारक पंथ को त्याग कर परमेश्वर की शरण में अविलम्ब आएगा तथा अपने सम्पर्क के सर्व श्रद्धालुओं का भी काल ब्रह्म के जाल से मुक्त कराने हेतु परमेश्वर का यथार्थ भक्ति मार्ग प्राप्त कराएगा। इस प्रकार मानव सत्यभक्ति करके पूर्ण मोक्ष प्राप्त करेगा तथा अपने पूर्व वाले स्थान सत्यलोक में अमर जीवन प्राप्त करेगा।
भक्त धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर जी ने बान्धवगढ़ भेज दिया तथा कहा मैं आप के पास आऊंगा कुछ दिन वहाँ रहकर ज्ञान प्रचार करूंगा कुछ दिन पश्चात् बान्धवगढ़ में प्रकट हुए।