आठवीं किस्त

राधा स्वामी पंथ की कहानी-उन्हीं की जुबानी: जगत गुरु

(धन-धन सतगुरु, सच्चा सौदा तथा जय गुरुदेव पंथ भी राधास्वामी की शाखाएं हैं)

(आठवीं किस्त)
(---- गतांक से आगे)

‘‘राधास्वामी पंथी से ज्ञान चर्चा’’

राधास्वामी पंथी भक्त दयासिंह(गाँव छोटा सिंगपुरा जि. रोहतक, हरयाणा) से ज्ञान चर्चा हुई जो निम्न है।

भक्त दयासिंह जी ने सन्त श्री दर्शन सिंह(सावन कृपाल रूहानी मिशन दिल्ली) से सन् 1983 में उपदेश प्राप्त किया। उनके द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर अटूट श्रद्धा से लगा था।

मुझ दास(रामपाल दास) को सन् 1988 को नाम दान (एक परम सन्त कबीर पंथी स्वामी रामदेवानन्द जी महाराज से) प्राप्त हुआ। सन् 1993 को मुझ दास को प्रचार तथा पाठ की आज्ञा प्रदान हुई तथा 1994 को नामदान करने की आज्ञा सद्गुरू रामदेवानन्द जी से प्राप्त हुई।

भक्त दयासिंह के रिश्तेदार ने मुझ दास से नाम प्राप्त है। उसने अपनी बहन(जिसकी शादी भक्त दयासिंह के लड़के से हुई है) के घर गाँव छोटा सिंगपुरा में सत्संग व पाठ करवाया उस समय भक्त दया सिंह जी से ज्ञान चर्चा हुई। सत्संग के पश्चात भक्त दयासिंह जी ने शंका व्यक्त की।

प्रश्न:- महाराज जी मैंने राधास्वामी पंथ से नामदान प्राप्त है। हमारे महाराज जी तो कहते है कि सतलोक में केवल प्रकाश ही प्रकाश है। सतपुरूष निराकार है। वही सतपुरूष जब सन्त रूप धर कर अपना ज्ञान देने आता है तब मनुष्य रूप में प्रकट होता है तथा फिर वापिस सतलोक सतनाम में जाकर ऐसे समा जाता है जैसे बूंद समुन्द्र में समा जाती है। जो उनके ज्ञान अनुसार भक्ति करता है वह आत्मा भी सच्चखण्ड(सतलोक) में ऐसे ही समुन्द्र में बूंद की तरह समा जाती है। वहाँ पर परमात्मा तथा आत्मा एक हो जाते हैं। यह देखो महाराज दर्शन सिंह जी के द्वारा दिया निर्मल ज्ञान। यह कह कर उस पुण्यात्मा दयासिंह जी ने पुस्तकः- जीवन चरित्र बाबा जैमलसिंह लेखक कृपाल सिंह जी, जो श्री दर्शन सिंह जी के पूज्य गुरू जी हैं तथा पुस्तक ‘‘परमात्मा का साक्षात्कार’’ जिसमें श्री दर्शन सिंह जी महाराज के सत्संग वचन है, दिखाई।

पुस्तक जीवन चरित्र बाबा जैमलसिंह पृष्ठ 102, 103 पर सृष्टि रचना लिखी हैः-

कृपा पढ़ें फोटो कापी 102,103 जिसमें लिखा है कि परमात्मा पहले निराकार था।

वही अनाम प्रभु साकार हुआ तो ऊपर के तीन मण्डल अगम लोक-अलख लोक और सतनाम (ये सन्त सतलोक को सतनाम भी कहते हैं) बन गया। ज्योति स्वरूप हो गया तथा धुन हो गया।

फिर इसी पुस्तक के पृष्ठ 20 पर लिखा है कि परमात्मा ने इंसान बनाए। परमात्मा ने इंसान को अपने रूप के अनुसार बनाया।

कृप्या देखें पुस्तक जीवन चरित्र बाबा जैमलसिंह पृष्ठ 20से फोटो कापी उपरोक्त पुस्तकों से ही भक्त दया सिंह जी को समझाया कि श्री कृपाल सिंह जी राधास्वामी वाले ने सृष्टि रचना में कहा है कि सतपुरूष निराकार है फिर कहा है कि परमात्मा ने मनुष्य को अपने रूप के अनुसार बनाया है। जिस से परमात्मा मनुष्य जैसे शरीर का सिद्ध हुआ। अपने विचारों को आप ही गलत सिद्ध किया है।

कृप्या देखें लेखक दर्शन सिह जी महाराज राधास्वामी पंथी की पुस्तक ‘‘परमात्मा का साक्षात्कार’’ पृष्ठ 1, 2 से फोटो कापी। इसी पुस्तक के पृष्ठ 123 पर। जिसमें एक बार तो लिखा है कि हम परमात्मा को देख सकते हैं तथा ऐसे बातें कर सकते हैं जैसे आप और हम बातें कर रहे हैं। इस विचार में भगवान को मानव जैसा सिद्ध किया है। फिर कहा है कि परमात्मा आकार रहित है। परमात्मा केवल प्रकाश है परमात्मा का प्रकाश(ज्योति पुंज) अवर्णनीय है। फिर कहा है शास्त्रों में बताया है कि परमात्मा के एक रोम की शोभा करोड़ सूर्यों तथा चन्द्रमाओं की मिली-जुली रोशनी से भी अधिक तेजोमय है।

विचार करेंः- उपरोक्त विचार तो बिल्कुल अबोध बालक ही व्यक्त कर सकता है। जैसे कोई प्रश्न करे की सूर्य कैसा है? उत्तर मिले निराकार है। केवल उसका प्रकाश ही देखा जा सकता है। विचार करें सूर्य बिना प्रकाश किसका देखा? परमात्मा का प्रकाश अवर्णनीय कहा है तो परमात्मा बिना प्रकाश, किसका देखा? परमात्मा के रोम के प्रकाश की शोभा का वर्णन किया है इससे भी परमात्मा मनुष्य सदृश सिद्ध हुआ। रोम से मनुष्य जैसे आकार का प्रमाण है।

पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 264 पर भी श्री सावन सिंह जी महाराज(जो श्री कृपाल सिंह जी के गुरू जी थे) ने कहा है कि रानी इन्दुमति कबीर साहेब की शिष्या थी। पहले कबीर साहेब परमात्मा के नूर में समाए बाद में इन्द्रमति परमात्मा के नूर में समाई। इन्द्रमति ने कबीर साहेब को अकालपुरूष अर्थात सतपुरूष रूप में देखा तब कहा कि मुझे नहीं पता था कि आप ही सतपुरूष अर्थात पूर्ण परमात्मा है। आपने पहले क्यों नहीं बताया।

कृप्या देखें पुस्तक सन्तमत प्रकाश भाग-4 पृष्ठ 264 से फोटो कापी। इसी पुस्तक (सच्चखण्ड का संदेश) के पृष्ठ 124 पर ।

श्री सावन सिंह जी सच्चाई को छुपा नहीं सके। भले ही उन्होंने अपने विचारों की पुष्टि करने का भी प्रयत्न किया है कि सतलोक में परमात्मा निराकार है केवल प्रकाश ही प्रकाश है। यदि कबीर साहेब परमात्मा के नूर में समा गए होते तथा इन्द्रमति भी परमात्मा के नूर में(समुन्द्र में बूंद की तरह) समा गई होती तो एक दूसरे को सतलोक में कैसे देखते? वास्तव में परमात्मा साकार है। वह मानव सदृश शरीर युक्त है। उस का वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर देव) है। सतलोक में सतपुरूष वाली उपाधी वाले शरीर के एक रोम की रोशनी करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। यहाँ काल लोक में वही परमात्मा अपने तेजोमय शरीर पर हल्के प्रकाश का अन्य खोल (चोला) डाल कर आता है। जैसे बल्ब के ऊपर कोई प्लास्टिक का खोल चढा दिया जाए तो रोशनी नाम मात्र रह जाती है। ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कबीर जी की स्थिति है। वे सशरीर आते हैं सशरीर जाते हैं तथा सतलोक में व ऊपर के अन्य(अलख लोक, अगम लोक तथा अनामी लोक) लोकों में भी स्वयं ही अन्य तेजोमय शरीर धारण कर लेते हैं।

राधास्वामी पंथ तथा इसकी शाखाओं का ज्ञान बिल्कुल जीरो(शुन्य) है। करोड़ों व्यक्यिों के अनमोल मानव जीव को व्यर्थ कर डाला। अब भी समय है भक्त समाज सावधान हो कर विचार करें तथा सत्य साधना मुझ दास(रामपाल दास) के पास है अविलम्ब व निःशुल्क प्राप्त करें।

भक्त दया सिंह दास(राधास्वामी पंथी) की आत्मकथा:-
शेष अगले अंक में ----------------

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