भोजन खाने के बाद बोली जाने वाली वाणी
पाया प्रसाद मन भया थीर, रक्षा करैं सतगुरु रूप में सत कबीर।
(अन्नदेव की छोटी आरती)
आरती अन्न देव तुम्हारी, जासैं काया पलैं हमारी।
रोटी आदि रु रोटी अंत, रोटी ही कुं गावैं संत।1।
रोटी मध्य सिद्ध सब साध, रोटी देवा अगम अगाध।
रोटी ही के बाजैं तूर, रोटी अनन्त लोक भरपूर।2।
रोटी ही के राटा रंभ, रोटी ही के हैं रणखम्भ।
रावण मांगन गया चून, तातें लंक भई बेरून।3।
मांडी बाजी खेले जुवा, रोटी ही पर कैरों पांडो मूवा।
रोटी पूजा आत्म देव, रोटी ही परमात्म सेव।4।
रोटी ही के हैं सब रंग, रोटी बिना न जीते जंग।
रोटी मांगी गोरख नाथ, रोटी बिना न चलै जमात।5।
रोटी कृष्ण देव कुं पाई, संहस अठासी खुध्या मिटाई।
तंदुल विप्र कुं दिये देख, रची सुदाम पुरी अलेख।6।
आधीन विदुर घर भोजन पाई, कैरों बूडे मान बड़ाई।
मान बड़ाई से हरि दूर, आजिज के हरि सदा हजूर।7।
बूक बाकला दिये विचार, भये चकवे कईक बार।
बीठल हो कर रोटी पाई, नामदेव की कला बधाई।8।
धना भक्त कुं दिया बीज, जाका खेत निपाया रीझ।
दु्रपद सुता कुं दीन्हें लीर, जाके अनन्त बढ़ाये चीर।9।
रोटी चार भारिजा घाली, नरसीला की हुण्डी झाली।
सांवलशाह सदा का शाही, जाकी हुण्डी तत पर लही।10।
जड़ कुं दूध पिलाया जान, पूजा खाय गए पाषाण।
बलि कुं जग रची अश्वमेघ,बावना होकर आये उमेद।11।
तीन पैंड जग दिया दान, बावन कुं बलि छले निदान।
नित बुन कपड़ा देते भाई, जाकै नौलख बालद आई।12।
अबिगत केशो नाम कबीर, तातें टूटैं जम जंजीर।
रोटी तिमरलंग कुं दीन्हीं, तातैं सात बादशाही लीन्हीं।13।
रोटी ही के राज रू पाट, रोटी ही के हैं गज ठाठ।
रोटी माता रोटी पिता, रोटी काटैं सकल बिथा।
दास गरीब कहैं दरवेसा, रोटी बाटो सदा।।
गरीब बुढिया और बाजीद जी, सुनही के आनन्द।
रोटी चारों मुक्ति हैं, कटैं गले फंद।
एक दाने का निकास, सहंस्र दानों का प्रकास।
जिस भण्डारे से अन्न निकसा,
सो भण्डारा भरपूर, काल कंटक दूर।
सती अन्नदेव संतोषी पावै,
जाकी वासना तीन लोक में समावै।।