मोहम्मद बोध

अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध’’ का सारांश

(मुसलमान धर्म की जानकारी)

कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ 14वां अध्याय पृष्ठ 6 पर है।

धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद को ज्ञान समझाने के बारे में प्रश्न किया कि हे बन्दी छोड़! क्या आप नबी मोहम्मद से भी मिले थे? उसने आपकी शरण ली या नहीं? यह जानने की मेरी इच्छा है। आप सबके मालिक हैं, जानीजान हैं। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को मोहम्मद धर्म की जानकारी इस प्रकार दी:- (लेखक रामपाल दास के शब्दों में।)

कबीर परमेश्वर जी ने अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को मुसलमान धर्म की जानकारी बताई जो इस प्रकार है। {पाठकों से निवेदन है कि कबीर सागर से बहुत सा प्रकरण कबीर पंथियों ने निकाल रखा है। कारण यह रहा है कि वे उस विवरण को समझ नहीं सके। उसको अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार गलत मानकर निकाल दिया। मेरे पास एक बहुत पुराना कबीर सागर है। उसके आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी ने अपने ज्ञान को संत गरीबदास जी को सन् 1727 (विक्रमी संवत् 1784) में प्रदान किया। संत गरीबदास जी उस समय 10 वर्ष के बालक थे। उनको कबीर परमेश्वर जी सत्यलोक लेकर गए। फिर वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् संत गरीबदास जी ने आँखों देखा वर्णन किया। फिर मैंने (रामपाल दास) ने सर्व धर्म ग्रन्थों का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया कि क्या यह प्रकरण पुरातन धर्मग्रन्थों में भी है। यदि पुराने धर्मग्रन्थों (पवित्र वेदों, पवित्र गीता, पवित्र पुराण, पवित्र कुरान तथा पवित्र बाईबल जो तीन पुस्तकों का योग है - तौरत, जबूर, इंजिल) में पवित्र कबीर सागर वाला प्रकरण है तो संसार की भोली-भाली और विभिन्न पंथों में धर्म के नाम से बंटी जनता को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है। अध्ययन से पता चला कि सर्व धर्मग्रन्थ जहाँ तक यानि जिस मंजिल तक का ज्ञान उनमें है, वह कबीर सागर से मिलता है। कबीर सागर में उन ग्रन्थों से आगे का ज्ञान भी है।

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि हे धर्मदास! मुसलमानों का मानना है कि बाबा आदम से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। यह इनका अधूरा ज्ञान है। आदम जी वाला जीव पूर्व जन्म में ऋषभ देव राजा था जिसको जैन धर्म का प्रवर्तक व प्रथम तीर्थकंर माना जाता है। मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) नबी मोहम्मद को यही समझाया था कि आप बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष मानते हो, उसी की संतान आप अपने को मानते हो। जिस समय बाबा आदम नहीं था। उस समय परमात्मा तो था। यह ज्ञान पवित्र बाईबल में उत्पत्ति ग्रन्थ में लिखा है। नबी मोहम्मद जी से पूर्व बाबा आदम की संतान में लाखों पैगम्बर हुए माने जाते हैं जिनमें से 1) दाऊद 2) मूसा 3) ईशा जी। दाऊद जी को जबूर किताब मिली, मूसा जी को तौरेत तथा ईशा जी को इंजिल पुस्तक मिली। प्रत्येक को एक ही बार में उपरोक्त पुस्तकें मिली। नबी मोहम्मद जी को कुरान शरीफ किताब मिली जो कई चरणों में कई प्रकार से प्राप्त हुई है।

जब किसी पंथ की शुरूआत होती है, किसी समुदाय के व्यक्ति द्वारा उसी समुदाय से होती है। कारण यह होता है कि परमात्मा किसी महापुरूष को इसी उद्देश्य से संसार में भेजता है कि वह मनुष्यों में फैली बुराई, कुरीतियों, शास्त्र विरूद्ध साधना को छुड़ाकर स्वच्छ तथा शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त तैयार करे। जिस कारण से उसको अपने ही समुदाय से शुरूआत करनी होती है। रूढ़िवादी तथा स्वार्थी पंथी गुरू उस सच्चे संत का जनता को भ्रमित करके बहुत विरोध कराते हैं। उसका जीना हराम कर देते हैं। परंतु वह प्रभु का भेजा हुआ अंश होता है। इस संसार में दो शक्ति अपना-अपना कार्य कर रही हैं।

एक काल ब्रह्म है जिसको ज्योति निरंजन भी कहते हैं। वेदांती उसको ब्रह्म कहते हैं और निराकार मानते हैं। मुसलमान उसी को बेचुन (निराकार) अल्लाह कहते हैं।

दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है जिसको गीता में परम अक्षर पुरूष, सच्चिदानंद घन ब्रह्म, दिव्य परमपुरूष, तत् ब्रह्म कहा है। (गीता अध्याय 7 श्लोक 29, अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 8 श्लोक 8, 9, 10)

काल ब्रह्म का राज्य इक्कीस ब्रह्माण्ड का क्षेत्र है जिसको काल लोक कहते हैं। काल ब्रह्म को एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का शाॅप लगा है। जिस कारण से यह अधूरा अध्यात्मिक ज्ञान तथा साथ में बुराई जैसे-शराब, माँस, तम्बाकू का सेवन करने तथा धाम-तीर्थ आदि पूजने का भी ज्ञान देता है। जिस कारण से साधक साधना करते हुए अन्य विषय-विकार तथा शास्त्र विरूद्ध साधना करके अपना जीवन व्यर्थ करते हैं और काल ब्रह्म के जाल में ही रह जाते हैं। काल ब्रह्म की यही कोशिश है। दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है। असँख्य ब्रह्माण्डों में जितने भी प्राणी हैं, ये सब सत्य पुरूष जी की आत्माऐं हैं जो सत्यलोक में रहते थे। वहाँ से अपनी अल्पबुद्धि के कारण काल ब्रह्म के साथ यहाँ आ गए। वहाँ पर सत्यलोक में प्रत्येक जीव का अपना घर-परिवार सर्व सामान था। प्रत्येक को काल ब्रह्म के देवताओं से भी अधिक सुविधाऐं थी। कोई वृद्ध नहीं होता था, कोई मरता नहीं था। सृष्टि ऐसी ही है। यह पाँच तत्त्व से बनी है। वहाँ एक नूर तत्त्व से बनी सृष्टि है। यह मिट्टी से निर्मित जानो, वहाँ की सोने से बनी मानो। यह नाशवान है। वह अविनाशी है। सत्य पुरूष स्वयं कबीर जी हैं। उनके शरीर का नाम कबीर है। वेदों में कविर्देव कहते हैं। कुरान में अल्लाह अकबर, अल्लाह कबीर कहते हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि सर्व जीव मेरे ज्ञान को समझें और मेरे द्वारा बताई भक्ति साधना करें। सर्व बुराई त्यागकर निर्मल होकर सत्यलोक में चले जाएंगे। वहाँ इनको कोई कष्ट नहीं है। न मरण है, न वृद्ध अवस्था। सर्व खाद्य पदार्थ सदा उपलब्ध हैं। कोई डाकू-बदमाश, चोर आदि नहीं है। स्त्री-बच्चे, पुरूष सब ऐसी ही सृष्टि है। काल ब्रह्म चाहता है कि सर्व प्राणी मेरे जाल में फंसे रहें। जन्मते-मरते रहें। बुराई करके पापग्रस्त होकर जन्मते-मरते रहें। किसी को सत्यलोक तथा सत्य पुरूष का ज्ञान न हो। मेरे तक ज्ञान को अंतिम मानें। इसलिए काल ब्रह्म परमेश्वर कबीर जी की आत्माओं में से अच्छी आत्मा को अपना पैगम्बर यानि संदेशवाहक ज्ञान देने के लिए भक्ति दूत बनाकर भेजता है। अपने काल जाल में रखने वाला ज्ञान देता है। उसी ने बाबा आदम, हजरत दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईशा, हजरत मोहम्मद को तथा अवतारों राम, कृष्ण, आदि शंकराचार्य, ऋषि-मुनियों द्वारा अपना प्रचार करा रखा है। सत्य पुरूष प्रत्येक युग के प्रारम्भ में स्वयं आते हैं। अपनी लीला करते हैं। अपना यथार्थ ज्ञान स्वयं प्रचार करते हैं। उसकी पुस्तकें बन जाती हैं। फिर परमेश्वर अपना पैगम्बर यानि भक्ति प्रचारक दूत भेजते हैं। सत्य पुरूष के पैगम्बर से पहले काल ब्रह्म अपने पैगम्बर भेज देता है। उनके द्वारा जनता को असत्य ज्ञान तथा अन्य बुराइयों पर आरूढ़ कर देता है। सर्व मानव समाज अपनी-अपनी साधना तथा अध्यात्म ज्ञान तथा परंपरा को सर्वश्रेष्ठ मानकर अडिग हो जाता है।

जब सत्यपुरूष आप आते हैं या अपना अंश भेजते हैं, तब सब मानव उनके द्वारा बताए गए सत्य ज्ञान को असत्य मानकर उनका घोर विरोध करते हैं। हे धर्मदास! आप यह प्रत्यक्ष देख भी रहे हो। आप भी तो काल के ज्ञान तथा साधना के ऊपर अडिग थे। ऐसे ही अनेकों श्रद्धालु काल प्रभु को दयाल, कृपावान प्रभु मानकर भक्ति कर रहे होते हैं। काल ब्रह्म भी परमात्मा की अच्छी-सच्ची निष्ठावान आत्माओं को अपना पैगम्बर बनाता है। बाबा आदम की संतान में 1 लाख 80 हजार पैगम्बर, हिन्दू धर्म के 88 हजार ऋषि तथा अन्य प्रचारक, ये अच्छी तथा सच्ची निष्ठा वाले थे जिनको काल ब्रह्म ने अपना प्रचारक बनाया। ऋषियों ने पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमद्भगवत गीता तथा पुराणों के आधार से स्वयं भी साधना की तथा अपने अनुयाईयों को भी वही साधना करने को कहा। वेदों तथा गीता में ज्ञान तो श्रेष्ठ है, परंतु अधूरा है। पुराण जो सँख्या में 18 हैं, ये ऋषियों का अपना अनुभव तथा कुछ-कुछ वेद ज्ञान है तथा देवी-देवताओं की जीवनी लिखी है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने दिया। चारों वेदों का सारांश अर्थात् संक्षिप्त रूप श्रीमद्भवगत गीता है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने सर्व प्रथम दिया था। उसके पश्चात् उसी काल ब्रह्म ने चार किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) का ज्ञान दिया है। भक्ति का मार्ग वेदों तथा गीता में बताया गया है। उसके पश्चात् दाऊद जी को जबूर किताब वाला ज्ञान दिया। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति का आंशिक ज्ञान दिया। इसके पश्चात् मूसा जी को तौरेत पुस्तक वाला ज्ञान दिया तथा इसके पश्चात् ईसा जी को इंजिल पुस्तक वाला ज्ञान दिया। फिर बाद में कुरान शरीफ वाला ज्ञान मोहम्मद जी को दिया। वेदों में भक्ति तथा भगवान का ज्ञान बताया है। वह ज्ञान अन्य पुस्तकों जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ में दोहराना उचित न जानकर सामान्य ज्ञान दिया है। इनमें कुछ वेद ज्ञान है तथा कुरान शरीफ में लगभग 40 प्रतिशत ज्ञान बाईबल वाला है। (बाईबल ग्रन्थ में तीन पुस्तक इकट्ठी की गई हैं, जबूर, तौरेत तथा इंजिल) मूसा जी के अनुयाई यहूदी कहलाते हैं। ईशा जी के अनुयाई ईसाई कहे जाते हैं। मोहम्मद जी के अनुयाई मुसलमान कहे जाते हैं। ये सब बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष अर्थात् सब आदमियों का पिता मानते हैं। ये अब मानते हैं कि जब तक सृष्टि चलेगी, तब तक सर्व मानव मरते रहेंगे। उनको कब्र में दबाते चलो। जिस समय कयामत (प्रलय) आएगी, उस समय सब व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) कब्रों से निकालकर मुर्दे जीवित किए जाएंगे। उनके कर्मों का हिसाब होगा जिन्होंने चारों कतेबों (पुस्तकों) में लिए अल्लाह के आदेशानुसार कर्म किए हैं। वे जन्नत (स्वर्ग) में रहेंगे। जिन्होंने चारों पुस्तकों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) के आदेश का पालन नहीं किया। वे सदा दोजिख (नरक) की आग में जलेंगे। इसके पश्चात् यहाँ की सृष्टि सदा के लिए नष्ट हो जाएगी। मुसलमानों का मानना है कि कयामत से पहले केवल निराकार प्रभु था। वर्तमान में जन्नत में कोई नहीं है। न ही दोजख में कोई है। मुसलमान नहीं मानते कि पुनर्जन्म होता है। वे केवल एक बार जन्म, फिर मरण, उसके पश्चात् कब्र में, फिर जब सृष्टि का विनाश होगा, तब कब्र से निकालकर कर्मानुसार स्वर्ग तथा नरक, फिर full stop यानि सृष्टि क्रम का पूर्ण विराम रहेगा। यदि उपरोक्त बात सत्य है तो हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में बाबा आदम, मुसा, ईशा, दाऊद आदि की मण्डली को देखा। उनको भी कब्र में रहना चाहिए था। इससे आप मुसलमानों का विधान गलत सिद्ध हुआ।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा कि हे धर्मदास! यह विचार तथा ज्ञान गलत है। वास्तविकता यह है कि जन्म-मरण, पुनर्जन्म उस समय तक चलता रहता है, जब तक जीव मेरी (कबीर जी की) शरण में नहीं आता। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मोहम्मद की जीवनी इस प्रकार है। ईशा मसीह के लगभग 600 वर्ष पश्चात् हजरत मोहम्मद जी का जन्म यहूदी समुदाय में हुआ। उस समय आध्यात्मिक अज्ञानता पूरी तरफ फैल चुकी थी। उस समुदाय के सब व्यक्ति मूर्ति पूजक थे। मोहम्मद जी के पिता का नाम अबदुल्ला था। दादा जी का नाम अब्दुल मुअतिल था। मोहम्मद का जन्म एक बिल्ला रहमान नामक फकीर (साधु) के सूक्ष्म मिलन से रहे गर्भ से हुआ था। इसको मोहम्मद की माता ने स्वपन दोष माना था। {इसी प्रकार ईशा जी की माता मर्यम को भी गर्भ एक फरिश्ते से रहा था। मर्यम ने भी इसे स्वपन दोष माना था, परंतु ईशा के पिता युसुफ ने इसे गलत कर्म मानकर मर्यम को तलाक देना चाहा था। उसी समय एक फरिश्ता (देवता) प्रकट हुआ। उसने कहा कि मर्यम को गर्भ मेरे से रहा है। इसको कुछ पता नहीं है। यह प्रभु की ओर से भेजा गया नबी है। संसार को भक्ति संदेश देने संसार में जन्म लेगा। युसुफ ने देवता की बात मानकर मर्यम को आदर के साथ रखा। महाभारत में भी प्रमाण है कि धृतराष्ट्र तथा पाण्डव दो भाई थे। राजा शान्तनु के पुत्र थे। पाण्डव छोटा था। वह रोगी था, संतानोत्पत्ति में असमर्थ था। उसकी दो पत्नियाँ थी। एक कुंती व दूसरी मादरी। कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जो तीन फरिश्तों (देवताओं) से गर्भ रहा था। युधिष्ठर का जन्म धर्मराज द्वारा कुंती से मिलन से हुआ था। अर्जुन का जन्म कुंती से इन्द्र देवता के भोग-विलास से हुआ था। भीम का जन्म पवन देवता द्वारा कुंती से मिलन करने से हुआ था। नकुल का जन्म स्रत देवता से मादरी से मिलन से तथा सहदेव का जन्म नासत्य देवता से मादरी से मिलन से हुआ था। पुराणों में कथा है कि एक समय सूर्य देव की पत्नी घर छोड़कर जंगल में चली गई। कारण यह था कि सूर्य देव के अधिक भोग-विलास (ैमग) से तंग आकर अपनी नौकरानी को अपने जैसे स्वरूप का आशीर्वाद दिया और उससे कहा कि तू मेरा भेद मत देना। मैं अपने पिता विश्वकर्मा के घर जाती हूँ। ऐसा कहकर उषा चली गई। नौकरानी का स्वरूप उषा जैसा हो गया। जब सूर्य देव को पता चला तो वह विश्वकर्मा के घर गए। विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री को वापिस घर जाने पर जोर दिया तो उषा जंगल में घोड़ी का रूप बनाकर तप करने लगी। उसने सोचा था कि यदि स्त्री रूप में तप करूँगी तो कोई इज्जत का दुश्मन हो जाएगा। सूर्य को पता चला कि उषा तो यहाँ से भी चली गई है तो ध्यान से दिव्य दृष्टि से देखा तो उषा घोड़ी रूप में तप कर रही है। सूर्य देव ने घोड़े का रूप धारण किया और उषा से भोग करने की तड़फ हुई। घोड़ी रूप में उषा ने घोड़े को गलत नीयत से अपनी ओर आता देख अपने पृष्ठ भाग (इन्द्री) को बचाने के लिए घोड़े की तरफ मुख करके साथ-साथ घूमती रही। वासनावश सूर्य रूपी घोड़ा मुख में ही भोग करने लगा। उसकी बीज शक्ति पृथ्वी के ऊपर गिर गई। उससे दो लड़के उत्पन्न हुए। वे अश्वनी (घोड़ी) कुमार कहलाए। उनका नाम स्रत तथा नासत्य रखा। वे अश्वनी कुमार देवता कहे जाते हैं।} अबदुल्ला जी अपनी पत्नी को ससुराल से लेकर आए।

{सूक्ष्मवेद में लिखा है कि:-

‘‘मुसलमान बिस्तार बिल्ला का। नौज उदर घर संजम जाका।।
जाके भोग मोहम्मद आया। जिसने यह धर्म चलाया।।

कुछ महीने बाद अबदुल्ला जी कुछ व्यापारियों के साथ रोजगार के लिए गए तो बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय मोहम्मद जी माता के गर्भ में थे। बाद में मोहम्मद जी का जन्म हुआ। छः वर्ष के हुए तो माता जी अपने पति की कब्र देखने के लिए गाँव के कुछ स्त्री-पुरूषों के साथ गई थी तो उनकी मृत्यु भी रास्ते में हो गई। नबी मोहम्मद अनाथ हो गए। दादा पालन-पोषण करने लगा। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा की भी मृत्यु हो गई। पूर्ण रूप से अनाथ हो गए। जैसे-तैसे 25 वर्ष के हुए, तब एक 40 वर्ष की खदिजा नामक विधवा से विवाह हुआ। {खदिजा का दो बार बड़े धनवान घरानों में विवाह हुआ था। दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी सब संपत्ति खदिजा के पास ही थी। वह बहुत रईस थी।} खदिजा से मोहम्मद जी के तीन पुत्र (कासिम, तयब, ताहिर) तथा चार पुत्री हुई। जिस समय मोहम्मद जी 40 वर्ष के हुए तो उनको जबरील नामक फरिश्ता मिला और कुरान शरीफ का ज्ञान देना प्रारम्भ किया। वे नबी बने। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मोहम्मद जी को कुरान शरीफ का ज्ञान सीधा बेचून (निराकार) अल्लाह की ओर से भेजा गया है। उसमें बिना किसी मिलावट किए जबरील फरिश्ते ने मोहम्मद जी को बताया है। कभी-कभी फरिश्ता मोहम्मद के शरीर में प्रवेश करके बोलता था। मोहम्मद जी चद्दर मुख पर ढ़ककर लेट जाते थे। ऊपर से अल्लाह के पास से वयह (संदेश) आती थी। उस ज्ञान को मोहम्मद जी मुख ढ़के-ढ़के बोलते थे, लिखी जाती थी। इस तरह आने वाला संदेश बहुत दुःखदायी होता था। मोहम्मद जी का सारा शरीर कांपता था। वास्तव में फरिश्ता अंदर प्रवेश करके बोलता था। कभी-कभी काल ब्रह्म भी स्वयं प्रवेश करके बोलता था। (काल ब्रह्म ने कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके गीता वाला ज्ञान बोला था।) एक दिन हजरत मोहम्मद जी ने अपनी ऊपर (स्वर्ग) की यात्रा का वर्णन बताया। एक गधे जैसा जानवर (जिसे बुराक नाम दिया) लेकर जबरील देवता आया और मोहम्मद जी को बैठाकर ऊपर के सातों आसमानों की सैर कराई। ऊपर जाकर एक मैराज यानि सीढ़ी ऊपर से नीचे की ओर खुली, उसके ऊपर बुराक चढ़ा। मोहम्मद जी भी उस पर बैठे थे। जबरील नीचे रहा। फिर एक पक्षी आया। उस पर बैठकर मोहम्मद जी अल्लाह के पास गए। पक्षी भी चला गया। मोहम्मद जी ने अल्लाह से सीधी वार्ता की। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला और 50 नमाज प्रतिदिन करने को कहा। फिर मूसा जी के कहने से वापिस जाकर 5 नमाज करने की आज्ञा अल्लाह से लेकर आए जो वर्तमान में मुसलमान करते हैं। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि मैंने जन्नत (स्वर्ग) में सब आदमियों के पिता बाबा आदम जी को देखा व उनके दांई और स्वर्ग था। स्वर्ग में उसकी नेक संतान थी जिन्होंने अल्लाह के आदेशानुसार भक्ति की थी। वे स्वर्ग (जन्नत) में सुखी थे। बाबा आदम के बांई ओर दोजख (नरक) था। उसमें बाबा आदम की निकम्मी संतान कष्ट भोग रही थी जिन्होंने अल्लाह की कतेबों के आदेशानुसार भक्ति न करके जीवन व्यर्थ किया था। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि बाबा आदम बांई ओर नरक में अपनी संतान को नरक में कष्ट उठाते देखकर रो रहे थे और दांई ओर स्वर्ग में नेक संतान को देखकर हँस रहे थे। जबरील देवता ने बताया कि ये बाबा आदम हैं। मोहम्मद साहब ने बताया कि ऊपर के लोकों में मुझे हजरत दाऊद, हजरत मूसा तथा हजरत ईशा जी तथा अन्य नबियों की जमात (मण्डली) मिली। मैंने उनको नमाज पढ़ाई। फिर नीचे लाकर बुराक छोड़कर चला गया। हजरत मुहम्मद जी के इस आँखों देखे प्रकरण को मुसलमान सत्य मानते हैं। इसलिए आपका वह सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ कि मृत्यु के पश्चात् प्रलय (कयामत) तक बाबा आदम, हजरत दाऊद, मूसा, ईशा आदि-आदि को जन्नत की बजाय कब्रों में होना चाहिए था जिनको हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में देखा तथा बाबा आदम की संतान भी कब्रों में रहनी चाहिए थी जो ऊपर स्वर्ग (जन्नत) तथा नरक (दोजख) में हजरत मुहम्मद जी ने देखी थी। आपका सिद्धांत गलत है। हजरत मोहम्मद जी को खदिजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटी प्राप्त हुई थी। तीनों बेटे मोहम्मद जी की आँखों के सामने अल्लाह को प्यारे हुए।

पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय

पहले दिन दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी का असाध्य जलन का रोग परमात्मा कबीर जी ने आशीर्वाद से समाप्त किया था तथा सिकंदर लोधी राजा ने क्रोधवश स्वामी रामानंद जी की गर्दन काटी थी। परमात्मा कबीर जी ने जीवित किया था। उस समय से शेखतकी पीर साथ नहीं था। अगले दिन पूज्य कबीर परमेश्वर राज दरबार में पहुँचे। काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने डण्डवत् प्रणाम (जमीन पर लम्बा लेटकर) किया तथा कबीर प्रभु जी को आसन पर बैठाया तथा स्वयं नीचे जमीन पर बिछे गलीचे पर विराजमान हो गए। बादशाह सिकंदर ने प्रार्थना की कि हे परवरदीगार ! मेरा रोग न तो हिन्दू संतों से शांत हुआ तथा न ही मुसलमान पीरों, काजी तथा मुल्लाओं से। क्या कारण था दीन दयाल आपके आशीर्वाद मात्र से ही मेरा जान लेवा रोग छू मंत्र हो गया। कल रात्रि में मैंने पेट भर कर खाना खाया। वर्षों से यह कष्ट मुझे सत्ता रहा था। आपकी कृप्या से मैं स्वस्थ हो गया हूँ।

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने बताया कि राजन् पूर्ण परमात्मा अल्लाहु अकबर(अल्लाहु कबीरू) ही सर्व पाप नाश (क्षमा) कर सकता है जिसका मेरे अतिरिक्त किसी को ज्ञान नहीं है। अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आपको पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य भगवान से ठीक नहीं हो सकता था। क्योंकि पाप नाशक (क्षमा करने वाले) पूर्ण परमात्मा कविर्देव/अल्लाहु अकबर (अल्लाहु कबीरू) के वास्तविक ज्ञान व भक्ति विधि को न तो हिन्दू संत, गुरुजन जानते हैं तथा न ही मुसलमान पीर, काजी तथा मुल्ला ही परिचित हैं। उस सर्व शक्तिमान परमेश्वर की पूजा विधि तथा पूर्ण ज्ञान केवल यह दास जानता है। न श्री राम तथा श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी जानते तथा न ही श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी, न ब्रह्म (जिसे आप निराकार प्रभु कहते हो) जानता। न हजरत मुहम्मद जानता था, न ही अन्य मुसलमान पीर व काजी तथा मुल्ला ही जानते हैं।

शेखतकी नामक मुसलमान पीर से वार्ता

परमेश्वर कबीर साहेब जी के मुख कमल से उपरोक्त वचन सुनकर शेखतकी व्यंगात्मक तरीके से बोला कि क्या तू ही जानता है सर्व ज्ञान को? हमारे हजरत मुहम्मद साहेब जी को भी अज्ञानी कह रहा है। बीच बचाव करते हुए बीरसिंह बघेल काशी नरेश ने कहा पीर जी इसमें नाराज होने की कौन-सी बात है, प्रेम पूर्वक शंका का समाधान करवाओ। काशी नरेश जानता था कि सर्व ज्ञान सम्पन्न पूज्य कबीर साहेब जी ज्ञान गोष्ठी करके पीर जी का भ्रम निवारण करना चाहते हैं। काशी नरेश ने शेखतकी से कहा कबीर जी ने किस कारण से हजरत मुहम्मद जी को पूर्ण ज्ञान से वंचित कहा है आप कारण पूछो। शेखतकी ने कहा प्रश्न ही तो पूछ रहा हूँ। कबीर जी कारण बताए किस आधार पर हमारे परम आदरणीय हजरत मुहम्मद जी को अज्ञानी कहा है?

पवित्र र्कुआन शरीफ ने प्रभु के विषय में क्या बताया है ?

परम पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहना प्रारम्भ किया। पवित्र र्कुआन शरीफ सुरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह पूर्ण परमात्मा है। जिसे अल्लाहु अकबर(अकबीरू) कहते हो। र्कुआन शरीफ का ज्ञान दाता अल्लाह किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान कर रहा है। आयत सं. 52 से 58 तथा 59 में हजरत मुहम्मद जी को र्कुआन शरीफ के ज्ञान दाता प्रभु ने कहा है कि हे नबी मुहम्मद ! जो कबीर नामक अल्लाह है उसने सर्व ब्रह्मण्डो की रचना की है। वही सर्व पाप नाश (क्षमा) करने वाला है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है(इबादही कबीरा अर्थात् पूजा के योग्य कबीर)। उसी ने जमीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा विराजा। काफिर लोग उस कबीर प्रभु (अल्लाहु अकबर) को सर्व शक्तिमान प्रभु नहीं मानते। आप उनकी बातों में मत आना। उनका कहा मत मानना। मेरे द्वारा दिए र्कुआन शरीफ की दलीलों पर विश्वास रखना तथा अहिंसा के साथ कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष (जिहाद) करना, लड़ाई नहीं करना (सूरत फुर्कानि आयत 52)। उस परमात्मा कबीर (अल्लाहु अकबर) की भक्ति विधि तथा उसके विषय में पूर्ण ज्ञान मुझे नहीं है। उस सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व पाप नाशक, सर्व के पूजा योग्य कबीर अल्लाह की पूजा के विषय में किसी तत्त्वदर्शी (बाखबर) संत से पूछो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी जी आपके अल्लाह को ही ज्ञान नहीं है तो आप के हजरत मुहम्मद साहेब जी को कैसे पूर्ण ज्ञान हो सकता है? तथा अन्य काजी, मुल्ला तथा पीर भी सत्य साधना तथा तत्त्वज्ञान से वंचित हैं। जिस कारण से साधक के कष्ट का निवारण नहीं होता। अन्य साधना जैसे पाँच समय निमाज, बंग आदि देने से मोक्ष तथा कष्ट निवारण नहीं होता। जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग-नरक तथा अन्य प्राणियों के शरीरों में भी किए कर्म के आधार से कष्ट भोगना पड़ता है। उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी ने तुरन्त र्कुआन शरीफ को खोला तथा सूरत फुर्कानि संख्या 25 आयत 52 से 59 को पढ़ा जिसमें उपरोक्त विवरण सही था। वास्तविकता को आँखों देखकर भी मान हानि के भय से कहा कि ऐसा कहीं नहीं लिखा है। यह काफिर झूठ बोल रहा है। उस समय शिक्षा का अभाव था। मुसलमान समाज अरबी भाषा से परिचित नहीं था। र्कुआन शरीफ अरबी भाषा में लिखी थी। बादशाह सिकंदर को भी शंका हो गई कि परमेश्वर कबीर साहेब जी भले ही शक्ति युक्त हैं परन्तु अशिक्षित होने के कारण र्कुआन शरीफ के विषय में नहीं जान सकते। शेखतकी ने जले-भुने वचन बोले क्या तूही है वह बाखबर ? फिर बता दे वह अल्लाहु अकबर कैसा है? यदि परमात्मा को साकार कहता है तो कौन है? कहाँ रहता है?

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा:- वह कबीर अल्लाह जिसे आप अल्लाहू अकबर कहते हो मैं ही हूँ। मैं ऊपर सतलोक में रहता हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की है। मैं हजरत मुहम्मद जी को भी जिन्दा संत का रूप धारण करके मिला था तथा उस प्यारी आत्मा को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा था। हजरत मुहम्मद से कहा था कि आप अब मेरी महिमा सर्व अनुयाईयों को सुनाओ। परन्तु जिबराईल फरिश्ते के भय के कारण तत्त्व ज्ञान का प्रचार नहीं किया तथा न मेरी बातों पर विश्वास किया। क्योंकि उससे पूर्व जिबराईल देवता हजरत मुहम्मद जी को पितर लोक में घुमा लाया था। जहाँ पर हजरत मुहम्मद जी ने अपने पूर्वज बाबा आदम को देखा जो दांई ओर मुंह करके हंस रहा था तथा बांई ओर मुंह करके रो रहा था। हजरत जिबराईल से हजरत मुहम्मद जी ने पूछा कि यह व्यक्ति कौन है, जो एक बार हंस रहा है एक बार रो रहा है ? जिबराईल ने बताया यह बाबा आदम है। दांई ओर स्वर्ग में इनकी पुण्य कर्मी संतान है तथा बांई ओर नरक में बुरी संतान कष्ट उठा रही है। इसलिए जब नेक संतान को स्वर्ग में सुखी देखता है तो हंसत्ता है। जब बांई ओर बुरी संतान को महा कष्ट से नरक में पीड़ित देखता है तो बुरी तरह रोता है। इसी लोक में अन्य स्थान पर हजरत मूसा तथा हजरत ईसा जी आदि को भी देखा। वहाँ पर नबियों की मण्डली देखी। उनसे हजरत मुहम्मद जी की वार्ता हुई। इस कारण से हजरत मुहम्मद काल के जाल को न समझकर उसी स्थान को वास्तविक ठिकाना मान चुका था क्योंकि वहाँ पितर लोक में पवित्र ईसाई तथा पवित्र मुसलमान धर्म के पूज्य बाबा आदम भी थे तथा अन्य नबी भी विराजमान थे।

माँस-मदिरा निषेध का उपदेश

हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके सीधे अनुयाईयों(एक लाख अस्सी हजार) ने माँस खाया। केवल रोजा व बंग तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल(हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।

भावार्थ:- नबी मोहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख अस्सी हजार को जो उनके अनुयाई थे उन्होंने भी कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद नहीं चलाया अर्थात् जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मोहम्मद, हजरत मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर(संदेशवाहक) तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ब्रह्म(ज्योति निरंजन/काल) के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर(सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर अर्थात् अल्लाह कबीर) है उस सृष्टि के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।

मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।

भावार्थ: एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो। आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्र बन रहे हो।

कबीर-माँस अहारी मानई, प्रत्यक्ष राक्षस जानि। ताकी संगति मति करै, होइ भक्ति में हानि।।1।।
कबीर-माँस खांय ते ढेड़ सब, मद पीवैं सो नीच। कुलकी दुरमति पर हरै, राम कहै सो ऊंच।।2।।
कबीर-माँस भखै औ मद पिये, धन वेश्या सों खाय। जुआ खेलि चोरी करै, अंत समूला जाय।।5।।
कबीर-माँस माँस सब एक है, मुरगी हिरनी गाय। आँखि देखि नर खात है, ते नर नरकहिं जाय।।6।।
कबीर-यह कूकर को भक्ष है, मनुष देह क्यों खाय। मुखमें आमिख मेलिके, नरक परंगे जाय।।7।।
कबीर-पापी पूजा बैठिकै, भखै माँस मद दोइ। तिनकी दीक्षा मुक्ति नहिं, कोटि नरक फल होइ।।10।।
कबीर-जीव हनै हिंसा करै, प्रगट पाप सिर होय। निगम पुनि ऐसे पाप तें, भिस्त गया नहिं कोय।।14।।
कबीर-तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दै दान। काशी करौंत ले मरै, तौ भी नरक निदान।।16।।
कबीर-बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल। जो बकरीको खात है, तिनका कौन हवाल।।18।।
कबीर-मुल्ला तुझै करीमका, कब आया फरमान। घट फोरा घर घर बांटा, साहबका नीसान।।21।।
कबीर-काजीका बेटा मुआ, उर में सालै पीर। वह साहब सबका पिता, भला न मानै बीर।।22।।
कबीर-पीर सबनको एकसी, मूरख जानैं नाहिं। अपना गला कटायकै, क्यों न बसो भिश्त के माहिं।।23।।
कबीर-मुरगी मुल्लासों कहै, जबह करत है मोहिं। साहब लेखा माँगसी, संकट परिहै तोहिं।।24।।
कबीर-जोर करि जबह करै, मुखसों कहै हलाल। साहब लेखा माँगसी, तब होसी कौन हवाल।।28।।
कबीर-जोर कीयां जुलूम है, मांगै ज्वाब खुदाय। खालिक दर खूनी खडा, मार मुहीं मुँह खाय।।29।।
कबीर-गला काटि कलमा भरै, कीया कहै हलाल। साहब लेखा माँगसी, तब होसी जबाब-सवाल।।30।।
कबीर-गला गुसाकों काटिये, मियां कहरकौ मार। जो पाँचू बिस्मिल करै, तब पावै दीदार।।31।।
कबीर-ये सब झूठी बंदगी, बेरिया पाँच निमाज। सांचहि मारै झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज।।32।।
कबीर-दिनको रोजा रहत हैं, रात हनत है गाय। यह खून वह बंदगी, कहुं क्यों खुशी खुदाय।।33।।
कबीर-कबीर तेई पीर हैं, जो जानै पर पीर। जो पर पीर न जानि है, सो काफिर बेपीर।।36।।
कबीर-खूब खाना है खीचड़ी, माँहीं परी टुक लौन। माँस पराया खायकै, गला कटावै कौन।।37।।
कबीर-कहता हूँ कहि जात हूँ, कहा जो मान हमार। जाका गला तुम काटि हो, सो फिर काटै तुम्हार।।38।।
कबीर-हिन्दू के दया नहीं, मिहर तुरकके नाहिं। कहै कबीर दोनूं गया, लख चैरासी माहिं।।39।।
कबीर-मुसलमान मारै करदसो, हिंदू मारे तरवार। कहै कबीर दोनूं मिलि, जैहैं यमके द्वार।।40।।

  • उपरोक्त अमृतवाणी में पूज्य कबीर परमेश्वर ने समझाया कि जो व्यक्ति माँस खाते हैं, शराब पीते हैं, सत्संग सुनकर भी बुराई नहीं त्यागते, उपदेश प्राप्त नहीं करते, उन्हें तो साक्षात राक्षस जानों। अनजाने में गलती न जाने किससे हो जाए। यदि वह बुराई करने वाला व्यक्ति सत्संग विचार सुनकर बुराई त्याग कर भगवान की भक्ति करने लग जाता है वह तो नेक आत्मा है, वह चाहे किसी जाति व धर्म का हो। जो माँस आहार तथा मदिरा पान त्यागकर प्रभु भक्ति नहीं करता वह तो ढेड(नीच) व्यक्ति है, चाहे किसी जाति या धर्म का हो। भावार्थ है कि उच्च कर्म करने वाला उच्च है तथा नीच कर्म करने वाला नीच है। जाति या धर्म विशेष में जन्म मात्र से उच्च-नीच नहीं होता। जिन साधकों ने उपदेश ले रखा है उन्हें उपरोक्त प्रकार के बुराई करने वालों के पास नहीं बैठना चाहिए, जिससे आपकी भक्ति में बाधा पड़ेगी (साखी 1-2)।

  • जो व्यक्ति माँस भक्षण करते हैं, शराब पीते हैं, जो स्त्राी वैश्यावृति करती है तथा जो व्यक्ति उससे व्यवसाय करवा कर वैश्या से धन प्राप्त करते हैं, जुआ खेलते हैं तथा चोरी करते है, समझाने से भी नहीं मानते, वह तो महापाप के भागी हैं तथा घोर नरक में गिरेंगे(साखी 5)।

  • माँस चाहे गाय, हिरनी तथा मुर्गी आदि किसी प्राणी का है जो व्यक्ति माँस खाते हैं वे नरक के भागी हैं। जो व्यक्ति अनजाने में माँस खाते हैं(जैसे आप किसी रिश्तेदारी में गए, आपको पता नहीं लगा कि सब्जी है या माँस, आपने खा लिया) तो आपको दोष नहीं, परन्तु आगे से अति सावधान रहना। जो व्यक्ति आँखों देखकर भी खा जाते हैं वे दोषी हैं। यह माँस तो कुत्ते का आहार है, मनुष्य शरीर धारी के लिए वर्जित है(साखी 6-7)।

  • जो गुरुजन माँस भक्षण करते हैं तथा शराब पीते हैं उनसे नाम दीक्षा प्राप्त करने वालों कीे मुक्ति नहीं होती अपितु महा नरक के भागी होंगे(साखी 10)।

  • जो व्यक्ति जीव हिंसा करते हैं (चाहे गाय, सूअर, बकरी, मुर्गी, मनुष्य, आदि किसी भी प्राणी को मारते हैं) वे महापापी हैं, (भले ही जिन्होंने पूर्ण संत से पूर्ण परमात्मा का उपदेश भी प्राप्त है) वे कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।(साखी-10-14)

  • जरा-सा (तिल के समान) भी माँस खाकर भक्ति करता है, चाहे करोड़ गाय दान भी करता है, उस साधक की साधना भी व्यर्थ है। माँस आहारी व्यक्ति चाहे काशी में करौंत से गर्दन छेदन भी करवा ले वह नरक ही जायेगा।(नोट - काशी/बनारस के हिन्दूओं के स्वार्थी गुरुओं ने भक्त समाज में भ्रम फैला रखा था कि जो काशी में मरता है वह स्वर्ग जाता है। अधिक भीड़ होने लगी तब एक और घातक योजना बनाई उसके तहत कहा कि जो शीघ्र स्वर्ग जाना चाहता है उसके लिए गंगा पर एक करौंत भगवान का भेजा आता है। उससे गर्दन कटवाने वालों के लिए स्वर्ग के कपाट खुले रहते हैं। उन स्वार्थी गुरुजनों ने मनुष्य हत्या के लिए एक हत्था खोल दिया। श्रद्धालु भक्तों ने आत्मकल्याण के लिए वहाँ गर्दन कटवाना भी स्वीकार कर लिया। परन्तु ज्ञानहीन गुरुओं के द्वारा बताई साधना से भी कोई लाभ नहीं होता)। इसलिए कहा है कि माँस खाने वाला चाहे कितना भी भक्ति तथा पुण्य व दान तथा बलिदान करे उसका कोई लाभ नहीं (साखी 16)।

  • बकरी जो आपने मार डाली वह तो घास-फूंस, पत्ते आदि खाकर पेट भर रही थी। इस काल लोक में ऐसे शाकाहारी पशु की भी हत्या हो गई तो जो बकरी का माँस खाते हैं उनका तो अधिक बुरा हाल होगा(साखी 18)।

  • पशु आदि को हलाल, बिस्मिल आदि करके माँस खाने व प्रसाद रूप में वितरित करने का आदेश दयालु (करीम) प्रभु का कब प्राप्त हुआ(क्योंकि पवित्र बाईबल उत्पत्ति ग्रन्थ में पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रची, सातवें दिन ऊपर तख्त पर जा बैठा तथा सर्व मनुष्यों के आहार के लिए आदेश किया था कि मैंने तुम्हारे खाने के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं। उस करीम (दयालु प्रभु पूर्ण परमात्मा) की ओर से आपको फिर से कब आदेश हुआ ? वह कौन-सी र्कुआन में लिखा है ? पूर्ण परमात्मा सर्व मनुष्यों आदि की सृष्टि रचकर ब्रह्म(जिसे अव्यक्त कहते हो, जो कभी सामने प्रकट नहीं होता, गुप्त कार्य करता तथा करवाता रहता है) को दे गया। बाद में पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन शरीफ आदि ग्रन्थों में जो विवरण है वह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का तथा उसके फरिश्तों का है, या भूतों-प्रेतों का है। करीम अर्थात् पूर्ण ब्रह्म दयालु अल्लाहु कबीरू का नहीं है। उस पूर्ण ब्रह्म के आदेश की अवहेलना किसी भी फरिश्ते व ब्रह्म आदि के कहने से करने की सजा भोगनी पड़ेगी।)

एक समय एक व्यक्ति की दोस्ती एक पुलिस थानेदार से हो गई। उस व्यक्ति ने अपने दोस्त थानेदार से कहा कि मेरा पड़ोसी मुझे बहुत परेशान करता है। थानेदार (S.H.O.) ने कहा कि मार लट्ठ, मैं आप निपट लूंगा। थानेदार दोस्त की आज्ञा का पालन करके उस व्यक्ति ने अपने पड़ोसी को लट्ठ मारा, सिर में चोट लगने के कारण पड़ोसी की मृत्यु हो गई। उसी क्षेत्र का अधिकारी होने के कारण वह थाना प्रभारी अपने दोस्त को पकड़ कर लाया, कैद में डाल दिया तथा उस व्यक्ति को मृत्यु दण्ड मिला। उसका दोस्त थानेदार कुछ मदद नहीं कर सका। क्योंकि राजा का संविधान है कि यदि कोई किसी की हत्या करेगा तो उसे मृत्यु दण्ड प्राप्त होगा। उस नादान व्यक्ति ने अपने मित्र दरोगा की आज्ञा मान कर राजा का संविधान भंग कर दिया। जिससे जीवन से हाथ धो बैठा।

ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा की आज्ञा की अवहेलना करने वाला पाप का भागी होगा। क्योंकि र्कुआन शरीफ (मजीद) का सारा ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन, जिसे आप अव्यक्त कहते हो) का दिया हुआ है। इसमें उसी का आदेश है तथा पवित्र बाईबल में केवल उत्पत्ति ग्रन्थ के प्रारम्भ में पूर्ण प्रभु का आदेश है। पवित्र बाईबल में हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को उस पूर्ण परमात्मा ने बनाया। बाबा आदम की वंशज संतान हजरत ईस्राईल, राजा दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईसा तथा हजरत मुहम्मद आदि को माना है। पूर्ण परमात्मा तो छः दिन में सृष्टि रचकर तख्त पर विराजमान हो गया। बाद का सर्व कतेबों (र्कुआन शरीफ आदि) का ज्ञान ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का प्रदान किया हुआ है। पवित्र र्कुआन का ज्ञान दाता स्वयं कहता है कि पूर्ण परमात्मा जिसे करीम, अल्लाह कहा जाता है उसका नाम कबीर है, वही पूजा के योग्य है। उसके तत्त्वज्ञान व भक्ति विधि को किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पता करो। इससे सिद्ध है कि जो ज्ञान र्कुआन शरीफ आदि का है वह पूर्ण प्रभु का नहीं है (साखी 21)।

  • जब काजी के पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो काजी को कितना कष्ट होता है। पूर्ण ब्रह्म(अल्लाह कबीर) सर्व का पिता है। उसके प्राणियों को मारने वाले से अल्लाह खुश नहीं होता। (साखी 22)

  • दर्द सर्व को एक जैसा ही होता है। यदि बकरे आदि का गला काट कर (हलाल करके) उसे स्वर्ग भेज देते हो तो काजी तथा मुल्ला अपना गला छेदन करके (हलाल करके) स्वर्ग प्राप्ति क्यों नहीं करते? (साखी 23)

  • जिस समय बकरी को मुल्ला मारता है तो वह बेजुबान प्राणी आँखों में आंसू भर कर म्यां-म्यां करके समझाना चाहता है कि हे मुल्ला मुझे मार कर पाप का भागी मत बन। जब परमेश्वर के न्याय अनुसार लेखा किया जाएगा उस समय तुझे बहुत संकट का सामना करना पड़ेगा। (साखी 24)

  • जबरदस्ती (बलात्) निर्दयता से बकरी आदि प्राणी को मारते हो, कहते हो हलाल कर रहे हैं। इस दोगली नीति का आपको महा कष्ट भोगना होगा। काजी तथा मुल्ला व कोई भी जीव हिंसा करने वाला पूर्ण प्रभु के कानून का उल्लंघन कर रहा है, जिस कारण वहाँ धर्मराज के दरबार में खड़ा-खड़ा पिटेगा। यदि हलाल ही करने का शौक है तो काम, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ आदि को करो।

  • पाँच समय निमाज भी पढ़ते हो व रोजों के समय रोजे (व्रत) भी रखते हो। शाम को गाय, बकरी, मुर्गी आदि को मार कर माँस खाते हो। एक तरफ तो परमात्मा की स्तुति करते हो, दूसरी ओर उसी के प्राणियों की हत्या करके पाप करते हो। ऐसे प्रभु कैसे खुश होगा? अर्थात् आप स्वयं भी पाप के भागी हो रहे हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह करने के दोषी होकर नरक में गिरोगे। (साखी 28 से 33)

  • कबीर परमेश्वर कह रहे हैं कि हे काजी, मुल्लाओं आप पीर (गुरु) भी कहलाते हो। पीर तो वह होता है जो दूसरे के दुःख को समझे उसे, संकट में गिरने से बचाए। किसी को कष्ट न पहुँचाए। जो दूसरे के दुःख में दुःखी नहीं होता वह तो काफिर (नीच) बेपीर (निर्दयी) है। वह पीर (गुरु) के योग्य नहीं है। (साखी 36)

  • उत्तम खाना नमकीन खिचड़ी है उसे खाओ। दूसरे का गला काटने वाले को उसका बदला देना पड़ता है। यह जान कर समझदार व्यक्ति प्रतिफल में अपना गला नहीं कटाता। दोनों ही धर्मों के मार्ग दर्शक निर्दयी हो चुके हैं। हिन्दूओं के गुरु कहते हैं कि हम तो एक झटके से बकरा आदि का गला छेदन करते हैं, जिससे प्राणी को कष्ट नहीं होता, इसलिए हम दोषी नहीं हैं तथा मुसलमान धर्म के मार्ग दर्शक कहते हैं हम धीरे-धीरे हलाल करते हैं जिस कारण हम दोषी नहीं। परमात्मा कबीर साहेब जी ने कहा यदि आपका तथा आपके परिवार के सदस्य का गला किसी भी विधि से काटा जाए तो आपको कैसा लगेगा ? (साखी 37 से 40)

बात करते हैं पुण्य की, करते हैं घोर अधर्म। दोनों नरक में पड़हीं, कुछ तो करो शर्म।।

कबीर परमेश्वर ने कहा -

हम मुहम्मद को सतलोक ले गया। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया, गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद को मैं(कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। नबी मुहम्मद जी ने रोजा (व्रत) बंग (ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा।

उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी पीर ने क्रोध करते हुए कहा कि तू क्या जाने र्कुआन शरीफ तथा हमारे नबी के विषय में तू तो अशिक्षित है। हमारे धर्म के विषय में झूठा प्रचार करके भ्रम फैला रहा है। मैं बताता हूँ पवित्र र्कुआन शरीफ की अमृत वाणी कैसे प्राप्त हुई। यह कोई बाद में लिखा ग्रंथ नहीं है। यह तो अल्लाह (प्रभु) द्वारा बोली वाणी साथ की साथ लिखी गई थी। शेखतकी ने (जो दिल्ली के महाराजा सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु तथा पूरे भारत के मुसलमान शेखतकी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करते थे) ने कहा कि सुन गंवार हमारे मुहम्मद नबी का जीवन वृतांत।

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