आँखों वाले अंधे

संत गरीबदास जी ने इन तत्त्वज्ञान नेत्रहीन (अंधे) धर्म प्रचारकों गुरूओं के विषय में कहा है कि:-

गरीब, बेद पढ़ें पर भेद न जानें, पढ़ें पुराण अठारा। पत्थर की पूजा करें, विसरे सृजनहारा।।

अर्थात् ये गुरूजन चारों वेदों तथा अठारह पुराणों को पढ़ते हैं, परंतु गूढ़ रहस्यों को नहीं समझ सके। जो अध्यापक अपने पाठ्यक्रम (syllabus) की पुस्तकों के गूढ़ ज्ञान को नहीं जानकर पाठ्यक्रम से बाहर का (outer) ज्ञान विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो वह नालायक व्यक्ति है। विद्यार्थियों का जीवन नष्ट कर रहा है। यही दशा इन धर्म के नाम पर बने धर्म गुरूजनों की है। धर्म ग्रंथों को न समझकर उनसे बाहर की दंत कथा (लोक वेद) बता रहे हैं। संत गरीबदास जी ने फिर कहा है कि:-

गीता और भागौत पढ़ें, नहीं बूझें शब्द ठिकाने नूं। मन मथुरा दिल द्वारका नगरी, क्या करो बरसाने नूं।।
मोती मुक्ता दर्शत नांही, ये गुरू सब अंध रे। दीखत के तो नैन चिसम हैं, इनकै फिरा मोतिया बिंद रे।।

अर्थात् ये सब के सब गुरूजन श्रीमद्भगवत गीता तथा श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) को पढ़ते हैं। इनको आधार बताकर जनता को ज्ञान बताते हैं। संस्कृत बोलते हैं। श्रोता इनको परम विद्वान मानते हैं। गीता मनीषी की उपाधि श्रद्धालुओं ने इनको दे रखी है, परंतु इनको ग्रंथों का यथार्थ ज्ञान नहीं है। ये पढ़ते हैं गीता, इनको पता ही नहीं कि गीता का ज्ञान किस अदृश्य शक्ति ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके बोला था। गीता पढ़ते हैं, परंतु ’’नहीं बूझैं शब्द ठिकाने नूं‘‘ यानि जिस (ठिकाने के शब्द) यथार्थ नाम जाप से मोक्ष होना है, उसको जानना नहीं चाहते। जैसे गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता ने अपना जाप करने का मंत्र ओं (ॐ) बताया है तथा गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में अपने से अन्य परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) का जाप करने का मंत्र सांकेतिक शब्दों (code words) में बताया है:- ’’ॐ तत् सत्‘‘। इस ॐ तत् सत् मंत्र के (ठिकाने के शब्द) यथार्थ नाम अन्य हैं। उनको ये गुरूजन जानते नहीं और न जानना चाहते हैं। मोक्ष इन्हीं तीन मंत्रों से होना है। इन तीनों नामों के यथार्थ नामों का जाप न करके चाहे चारों वेदों व गीता आदि ग्रंथों को पढ़ते-पढ़ाते रहो, जीवन व्यर्थ हो जाएगा।

इसलिए कहा है कि इन गुरूओं को अज्ञान रूपी मोतियाबिंद हुआ है। मोतियाबिंद वाले की आँखें स्वस्थ दिखाई देती हैं, परंतु दिखाई कुछ नहीं देता। इसी प्रकार ये धर्मगुरू संस्कृत बोलते हैं तो श्रोताओं को लगता है कि ये बड़े विद्वान हैं। परंतु इनको सद्ग्रन्थों की कुछ भी समझ नहीं है। ये अज्ञानी हैं। यथार्थ ज्ञान नेत्रहीन (अंधे) हैं। गीता ज्ञान देने वाला अपने आपको नाशवान कहता आँखों वाले अंधे आँखों वाले अंधे आँखों वाले अंधे है। अपने से अन्य को अविनाशी कहता है। उसी की शरण में जाने को कहा है। ये श्री कृष्ण को ही अविनाशी जगत का कर्ता बताकर जनता के साथ धोखा कर रहे हैं। ये आँखों वाले अंधे हैं।

प्रश्न 2:- काल पुरूष कौन है?

उत्तर:- Annexure सृष्टि रचना जो पृष्ठ 389 पर लिखी है। उसमें विस्तारपूर्वक लिखा है।

प्रश्न 3: काल भगवान अर्थात् ब्रह्म अविनाशी है या जन्मता-मरता है?

उत्तर:- जन्मता-मरता है।

प्रश्न 4:- गीता में कहाँ प्रमाण है?

उत्तर: श्री मद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक 12, गीता अध्याय 4 श्लोक 5, गीता अध्याय 10 श्लोक 2 में गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि मेरी भी जन्म व मृत्यु होती है, मैं अविनाशी नहीं हूँ। कहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म हो चुके हैं, तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। तू, मैं और ये राजा लोग व सैनिक पहले भी थे, आगे भी होंगे, यह न जान कि हम केवल वर्तमान में ही हैं। मेरी उत्पत्ति को न तो देवता लोग जानते और न ही ऋषिजन क्योंकि यह सब मेरे से उत्पन्न हुए हैं।

इससे सिद्ध हुआ कि गीता ज्ञान दाता काल पुरूष अविनाशी नहीं है। इसलिए इसको क्षर पुरूष (नाशवान प्रभु) कहा जाता है। इन श्लोकों की फोटोकाॅपी पृष्ठ 46 से 47 पर लगी हैं।

प्रश्न 5: क्या ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव अविनाशी हैं?

उत्तर: नहीं। ये नाशवान हैं, इनकी भी जन्म-मृत्यु होती है, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव जी के माता-पिता भी हैं।

प्रश्न 6: कोई प्रमाण बताओ, माता-पिता का नाम भी बताओ।

उत्तर: श्री देवी महापुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी ने अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा है कि हे मातः! आप शुद्ध स्वरूपा हो, सारा संसार आप से ही उद्भाषित हो रहा है, हम आपकी कृपा से विद्यमान हैं, मैं, ब्रह्मा और शंकर तो जन्मते-मरते हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। तुम ही जगत जननी और सनातनी देवी हो और प्रकृति देवी हो। शंकर भगवान बोले, हे माता! विष्णु के बाद उत्पन्न होने वाला ब्रह्मा जब आपका पुत्र है तो क्या मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर तुम्हारी सन्तान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम ही हो। इस देवी महापुराण के उल्लेख से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शंकर जी को जन्म देने वाली माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है और तीनों नाशवान हैं।

पेश है श्रीमद् देवीभागवत (देवी पुराण) के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 से संबंधित प्रकरण की फोटोकाॅपी:-

Sankshipt Devi Bhagwat

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