गीता अध्याय 1 दिव्य सारांश
गीता जी के अध्याय 1 के श्लोक 1 से 19 तक इन श्लोकों में संजय धृतराष्ट्र को सेना की स्थिति तथा सेना में आए गणमान्य योद्धाओं के बारे में जानकारी दे रहा है। गीता अध्याय 1 के श्लोक 20 से 23 श्लोकों में अर्जुन कह रहा है कि भगवन्! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में ले चलो ताकि देख लूं कि मेरे सामने टिकने वाले कौन-2 से योद्धा हैं।
गीता अध्याय 1 के श्लोक 24-25 में वर्णन है कि भगवान कृष्ण ने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा करके अर्जुन से कहा कि देख सामने खड़े राजाओं तथा कुरुवंशियों को। गीता अध्याय 1 के श्लोक 26 से 45 तक के श्लोकों में वर्णन है कि अर्जुन ने युद्ध के लिए तत्पर अपने ही सम्बन्धियों, पुत्रों व पौत्रों, साले तथा ससुरों को मरने-मारने के लिए आए हुए देखा तो श्री कृष्ण जी से विशेष विवेक से कहा कि सामने खड़े मासूम बच्चों, अपने साथी व चचेरे भाईयों व सम्बन्धियों को देखकर मेरा शरीर काँप रहा है। धनुष हाथ से गिर रहा है। मैं खड़ा भी नहीं रह पा रहा हूँ। अपने ही जनों को मारना अच्छा महसूस नहीं कर रहा हूँ। हे कृष्ण! न तो मैं विजय चाहता हूँ, न ही राज्य का सुख। चूंकि उनको जो स्वयं अपने राज्य व जान की परवाह (चिंता) न करके मरने को तैयार हैं उन्हें मार कर मैं राज्य नहीं चाहता। मैं बन्धुओं व पुत्र तथा पौत्रों को मारना नहीं चाहता। चाहे मुझे तीनों लोकों का राज्य भी क्यों न मिलता हो, फिर पृथ्वी के राज्य के लिए तो क्यों पाप करूँ? इनको मारने से तो पाप ही लगेगा। ऐसे कुकर्म करके हम कैसे सुखी हो सकते हैं? ये सामने खड़े राजा लोग तो मोह माया में अंधे हो रहे हैं। फिर हमें तो ज्ञान है। ऐसा क्यों करें कि कुल का नाश होने पर दूसरे दुष्कर्मी लोग हमारी स्त्रिायों को बलात तंग करेंगे। वर्णशंकर संतान हो जाएगी। पतिव्रता धर्म नष्ट हो जाएगा तथा धर्म कर्म न करने से नरक के भागी हो जाएंगे। वास्तव में हम बहुत पापी हैं जो अपने ही बन्धुओं को स्वार्थ वश मारने को तैयार हो गये हैं। गीता अध्याय 1 के श्लोक 46 में अर्जुन ने कहा कि भगवन इस पाप को बचाने के लिए यदि धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे को मार दें और युद्ध न हो, तो भी मैं स्वयं मरना बेहतर समझता हूँ कि एक मेरे मरने से लाखों बहन विधवा होने से बच जाएंगी तथा लाखों मासूम बच्चे अनाथ होने से बच जाएंगे। गीता अध्याय 1 के श्लोक 47 में यह कह कर अर्जुन दुःखी मन से रथ के बीच वाले हिस्से में बैठ गया तथा धनुष को रख दिया।
इस अध्याय में कुल 47 श्लोक हैं जिनमें से दो श्लोक (24-25) श्री कृष्ण ने बोले हैं। शेष संजय तथा अर्जुन ने कहे हैं।