अध्याय मोहम्मद बोध का सारांश (मुसलमान धर्म की जानकारी)

  1. कादर (समर्थ) अल्लाह कबीर
  2. सिकंदर लौधी बादशाह का असाध्य रोग ठीक करना
  3. स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना
  4. सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है वह अज्ञानी है
  5. पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय
  6. शेखतकी नामक मुसलमान पीर से वार्ता
  7. पवित्र कुरआन मजीद में प्रभु के विषय में क्या बताया है ?
  8. हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र
  9. पवित्र कबीर सागर ग्रन्थ से हजरत मुहम्मद जी के विषय में उल्लेख
  10. हजरत मुहम्मद जी को कुरआन पुस्तक का ज्ञान कैसे मिला
  11. पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्मों के अनुयाईयों को कर्माधार से लाभ-हानि करने वाले भी (श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) तीन ही देवता
  12. मामरे पर तीनों देवताओं के देखने का प्रमाण
  13. (इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा)
  14. बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान

अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध’’ का सारांश

(मुसलमान धर्म की जानकारी)

कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ 14वां अध्याय पृष्ठ 6 पर है।

धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद को ज्ञान समझाने के बारे में प्रश्न किया कि हे बन्दी छोड़! क्या आप नबी मोहम्मद से भी मिले थे? उसने आपकी शरण ली या नहीं? यह जानने की मेरी इच्छा है। आप सबके मालिक हैं, जानीजान हैं।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को मोहम्मद धर्म की जानकारी इस प्रकार दी:-

(लेखक रामपाल दास के शब्दों में।)

कबीर परमेश्वर जी ने अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को मुसलमान धर्म की जानकारी बताई जो इस प्रकार है। {पाठकों से निवेदन है कि कबीर सागर से बहुत सा प्रकरण कबीर पंथियों ने निकाल रखा है। कारण यह रहा है कि वे उस विवरण को समझ नहीं सके। उसको अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार गलत मानकर निकाल दिया। मेरे पास एक बहुत पुराना कबीर सागर है। उसके आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी ने अपने ज्ञान को संत गरीबदास जी को सन् 1727 (विक्रमी संवत् 1784) में प्रदान किया। संत गरीबदास जी उस समय 10 वर्ष के बालक थे। उनको कबीर परमेश्वर जी सत्यलोक लेकर गए। फिर वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् संत गरीबदास जी ने आँखों देखा वर्णन किया। फिर मैंने (रामपाल दास) ने सर्व धर्म ग्रन्थों का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया कि क्या यह प्रकरण पुरातन धर्मग्रन्थों में भी है। यदि पुराने धर्मग्रन्थों (पवित्र वेदों, पवित्र गीता, पवित्र पुराण, पवित्र कुरआन तथा पवित्र बाईबल जो तीन पुस्तकों का योग है - तौरत, जबूर, इंजिल) में पवित्र कबीर सागर वाला प्रकरण है तो संसार की भोली-भाली और विभिन्न पंथों में धर्म के नाम से बंटी जनता को एक सूत्र में बाँधा जा सकता है। अध्ययन से पता चला कि सर्व धर्मग्रन्थ जहाँ तक यानि जिस मंजिल तक का ज्ञान उनमें है, वह कबीर सागर से मिलता है। कबीर सागर में उन ग्रन्थों से आगे का ज्ञान भी है।

कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि हे धर्मदास! मुसलमानों का मानना है कि बाबा आदम से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। यह इनका अधूरा ज्ञान है। आदम जी वाला जीव पूर्व जन्म में ऋषभ देव राजा था जिसको जैन धर्म का प्रवर्तक व प्रथम तीर्थकंर माना जाता है। मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) नबी मोहम्मद को यही समझाया था कि आप बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष मानते हो, उसी की संतान आप अपने को मानते हो। जिस समय बाबा आदम नहीं था। उस समय परमात्मा तो था। यह ज्ञान पवित्र बाईबल में उत्पत्ति ग्रन्थ में लिखा है। नबी मोहम्मद जी से पूर्व बाबा आदम की संतान में लाखों पैगम्बर हुए माने जाते हैं जिनमें से 1) दाऊद 2) मूसा 3) ईसा जी। दाऊद जी को जबूर किताब मिली, मूसा जी को तौरेत तथा ईसा जी को इंजिल पुस्तक मिली। प्रत्येक को एक ही बार में उपरोक्त पुस्तकें मिली। नबी मोहम्मद जी को कुरआन शरीफ किताब मिली जो कई चरणों में कई प्रकार से प्राप्त हुई है।

जब किसी पंथ की शुरूआत होती है, किसी समुदाय के व्यक्ति द्वारा उसी समुदाय से होती है। कारण यह होता है कि परमात्मा किसी महापुरूष को इसी उद्देश्य से संसार में भेजता है कि वह मनुष्यों में फैली बुराई, कुरीतियों, शास्त्रा विरूद्ध साधना को छुड़ाकर स्वच्छ तथा शास्त्राविधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त तैयार करे। जिस कारण से उसको अपने ही समुदाय से शुरूआत करनी होती है। रूढ़िवादी तथा स्वार्थी पंथी गुरू उस सच्चे संत का जनता को भ्रमित करके बहुत विरोध कराते हैं। उसका जीना हराम कर देते हैं। परंतु वह प्रभु का भेजा हुआ अंश होता है। इस संसार में दो शक्ति अपना-अपना कार्य कर रही हैं। एक काल ब्रह्म है जिसको ज्योति निरंजन भी कहते हैं। वेदांती उसको ब्रह्म कहते हैं और निराकार मानते हैं। मुसलमान उसी को बेचुन (निराकार) अल्लाह कहते हैं। दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है जिसको गीता में परम अक्षर पुरूष, सच्चिदानंद घन ब्रह्म, दिव्य परमपुरूष, तत् ब्रह्म कहा है। (गीता अध्याय 7 श्लोक 29, अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 8 श्लोक 8, 9, 10) काल ब्रह्म का राज्य इक्कीस ब्रह्माण्ड का क्षेत्र है जिसको काल लोक कहते हैं। काल ब्रह्म को एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का शाॅप लगा है। जिस कारण से यह अधूरा अध्यात्मिक ज्ञान तथा साथ में बुराई जैसे-शराब, माँस, तम्बाकू का सेवन करने तथा धाम-तीर्थ आदि पूजने का भी ज्ञान देता है। जिस कारण से साधक साधना करते हुए अन्य विषय-विकार तथा शास्त्रा विरूद्ध साधना करके अपना जीवन व्यर्थ करते हैं और काल ब्रह्म के जाल में ही रह जाते हैं। काल ब्रह्म की यही कोशिश है। दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है। असँख्य ब्रह्माण्डों में जितने भी प्राणी हैं, ये सब सत्य पुरूष जी की आत्माऐं हैं जो सत्यलोक में रहते थे। वहाँ से अपनी अल्पबुद्धि के कारण काल ब्रह्म के साथ यहाँ आ गए। वहाँ पर सत्यलोक में प्रत्येक जीव का अपना घर-परिवार सर्व सामान था। प्रत्येक को काल ब्रह्म के देवताओं से भी अधिक सुविधाऐं थी। कोई वृद्ध नहीं होता था, कोई मरता नहीं था। सृष्टि ऐसी ही है। यह पाँच तत्त्व से बनी है। वहाँ एक नूर तत्त्व से बनी सृष्टि है। यह मिट्टी से निर्मित जानो, वहाँ की सोने से बनी मानो। यह नाशवान है। वह अविनाशी है। सत्य पुरूष स्वयं कबीर जी हैं। उनके शरीर का नाम कबीर है। वेदों में कविर्देव कहते हैं। कुरआन में अल्लाह अकबर, अल्लाह कबीर कहते हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि सर्व जीव मेरे ज्ञान को समझें और मेरे द्वारा बताई भक्ति साधना करें। सर्व बुराई त्यागकर निर्मल होकर सत्यलोक में चले जाएंगे। वहाँ इनको कोई कष्ट नहीं है। न मरण है, न वृद्ध अवस्था। सर्व खाद्य पदार्थ सदा उपलब्ध हैं। कोई डाकू-बदमाश, चोर आदि नहीं है। स्त्राी-बच्चे, पुरूष सब ऐसी ही सृष्टि है। काल ब्रह्म चाहता है कि सर्व प्राणी मेरे जाल में फंसे रहें। जन्मते-मरते रहें। बुराई करके पापग्रस्त होकर जन्मते-मरते रहें। किसी को सत्यलोक तथा सत्य पुरूष का ज्ञान न हो। मेरे तक ज्ञान को अंतिम मानें। इसलिए काल ब्रह्म परमेश्वर कबीर जी की आत्माओं में से अच्छी आत्मा को अपना पैगम्बर यानि संदेशवाहक ज्ञान देने के लिए भक्ति दूत बनाकर भेजता है। अपने काल जाल में रखने वाला ज्ञान देता है। उसी ने बाबा आदम, हजरत दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईशा, हजरत मोहम्मद को तथा अवतारों राम, कृष्ण, आदि शंकराचार्य, ऋषि-मुनियों द्वारा अपना प्रचार करा रखा है। सत्य पुरूष प्रत्येक युग के प्रारम्भ में स्वयं आते हैं। अपनी लीला करते हैं। अपना यथार्थ ज्ञान स्वयं प्रचार करते हैं। उसकी पुस्तकें बन जाती हैं। फिर परमेश्वर अपना पैगम्बर यानि भक्ति प्रचारक दूत भेजते हैं। सत्य पुरूष के पैगम्बर से पहले काल ब्रह्म अपने पैगम्बर भेज देता है। उनके द्वारा जनता को असत्य ज्ञान तथा अन्य बुराइयों पर आरूढ़ कर देता है। सर्व मानव समाज अपनी-अपनी साधना तथा अध्यात्म ज्ञान तथा परंपरा को सर्वश्रेष्ठ मानकर अडिग हो जाता है।

जब सत्यपुरूष आप आते हैं या अपना अंश भेजते हैं, तब सब मानव उनके द्वारा बताए गए सत्य ज्ञान को असत्य मानकर उनका घोर विरोध करते हैं। हे धर्मदास! आप यह प्रत्यक्ष देख भी रहे हो। आप भी तो काल के ज्ञान तथा साधना के ऊपर अडिग थे। ऐसे ही अनेकों श्रद्धालु काल प्रभु को दयाल, कृपावान प्रभु मानकर भक्ति कर रहे होते हैं। काल ब्रह्म भी परमात्मा की अच्छी-सच्ची निष्ठावान आत्माओं को अपना पैगम्बर बनाता है। बाबा आदम की संतान में 1 लाख 80 हजार पैगम्बर, हिन्दू धर्म के 88 हजार ऋषि तथा अन्य प्रचारक, ये अच्छी तथा सच्ची निष्ठा वाले थे जिनको काल ब्रह्म ने अपना प्रचारक बनाया। ऋषियों ने पवित्र वेदों, पवित्र श्रीमद्भगवत गीता तथा पुराणों के आधार से स्वयं भी साधना की तथा अपने अनुयाईयों को भी वही साधना करने को कहा। वेदों तथा गीता में ज्ञान तो श्रेष्ठ है, परंतु अधूरा है। पुराण जो सँख्या में 18 हैं, ये ऋषियों का अपना अनुभव तथा कुछ-कुछ वेद ज्ञान है तथा देवी-देवताओं की जीवनी लिखी है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने दिया। चारों वेदों का सारांश अर्थात् संक्षिप्त रूप श्रीमद्भवगत गीता है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने सर्व प्रथम दिया था। उसके पश्चात् उसी काल ब्रह्म ने चार किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन शरीफ) का ज्ञान दिया है। भक्ति का मार्ग वेदों तथा गीता में बताया गया है। उसके पश्चात् दाऊद जी को जबूर किताब वाला ज्ञान दिया। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति का आंशिक ज्ञान दिया। इसके पश्चात् मूसा जी को तौरेत पुस्तक वाला ज्ञान दिया तथा इसके पश्चात् ईसा जी को इंजिल पुस्तक वाला ज्ञान दिया। फिर बाद में कुरआन शरीफ वाला ज्ञान मोहम्मद जी को दिया। वेदों में भक्ति तथा भगवान का ज्ञान बताया है। वह ज्ञान अन्य पुस्तकों जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन शरीफ में दोहराना उचित न जानकर सामान्य ज्ञान दिया है। इनमें कुछ वेद ज्ञान है तथा कुरआन शरीफ में लगभग 40 प्रतिशत ज्ञान बाईबल वाला है। (बाईबल ग्रन्थ में तीन पुस्तक इकट्ठी की गई हैं, जबूर, तौरेत तथा इंजिल) मूसा जी के अनुयाई यहूदी कहलाते हैं। ईशा जी के अनुयाई ईसाई कहे जाते हैं। मोहम्मद जी के अनुयाई मुसलमान कहे जाते हैं। ये सब बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष अर्थात् सब आदमियों का पिता मानते हैं। ये अब मानते हैं कि जब तक सृष्टि चलेगी, तब तक सर्व मानव मरते रहेंगे। उनको कब्र में दबाते चलो। जिस समय कयामत (प्रलय) आएगी, उस समय सब व्यक्ति (स्त्राी-पुरूष) कब्रों से निकालकर मुर्दे जीवित किए जाएंगे। उनके कर्मों का हिसाब होगा जिन्होंने चारों कतेबों (पुस्तकों) में लिए अल्लाह के आदेशानुसार कर्म किए हैं। वे जन्नत (स्वर्ग) में रहेंगे। जिन्होंने चारों पुस्तकों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरआन शरीफ) के आदेश का पालन नहीं किया। वे सदा दोजिख (नरक) की आग में जलेंगे। इसके पश्चात् यहाँ की सृष्टि सदा के लिए नष्ट हो जाएगी। मुसलमानों का मानना है कि कयामत से पहले केवल निराकार प्रभु था। वर्तमान में जन्नत में कोई नहीं है। न ही दोजख में कोई है। मुसलमान नहीं मानते कि पुनर्जन्म होता है। वे केवल एक बार जन्म, फिर मरण, उसके पश्चात् कब्र में, फिर जब सृष्टि का विनाश होगा, तब कब्र से निकालकर कर्मानुसार स्वर्ग तथा नरक, फिर थ्नसस ेजवच यानि सृष्टि क्रम का पूर्ण विराम रहेगा। यदि उपरोक्त बात सत्य है तो हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में बाबा आदम, मुसा, ईशा, दाऊद आदि की मण्डली को देखा। उनको भी कब्र में रहना चाहिए था। इससे आप मुसलमानों का विधान गलत सिद्ध हुआ।

परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा कि हे धर्मदास! यह विचार तथा ज्ञान गलत है। वास्तविकता यह है कि जन्म-मरण, पुनर्जन्म उस समय तक चलता रहता है, जब तक जीव मेरी (कबीर जी की) शरण में नहीं आता। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मोहम्मद की जीवनी इस प्रकार है। ईसा मसीह के लगभग 600 वर्ष पश्चात् हजरत मोहम्मद जी का जन्म यहूदी समुदाय में हुआ। उस समय आध्यात्मिक अज्ञानता पूरी तरफ फैल चुकी थी। उस समुदाय के सब व्यक्ति मूर्ति पूजक थे। मोहम्मद जी के पिता का नाम अबदुल्ला था। दादा जी का नाम अब्दुल मुअतिल था। मोहम्मद का जन्म एक बिल्ला रहमान नामक फकीर (साधु) के सूक्ष्म मिलन से रहे गर्भ से हुआ था। इसको मोहम्मद की माता ने स्वपन दोष माना था। {इसी प्रकार ईसा जी की माता मर्यम को भी गर्भ एक फरिश्ते से रहा था। मर्यम ने भी इसे स्वपन दोष माना था, परंतु ईसा के पिता युसुफ ने इसे गलत कर्म मानकर मर्यम को तलाक देना चाहा था। उसी समय एक फरिश्ता (देवता) प्रकट हुआ। उसने कहा कि मर्यम को गर्भ मेरे से रहा है। इसको कुछ पता नहीं है। यह प्रभु की ओर से भेजा गया नबी है। संसार को भक्ति संदेश देने संसार में जन्म लेगा। युसुफ ने देवता की बात मानकर मर्यम को आदर के साथ रखा। महाभारत में भी प्रमाण है कि धृतराष्ट्र तथा पाण्डव दो भाई थे। राजा शान्तनु के पुत्र थे। पाण्डव छोटा था। वह रोगी था, संतानोत्पत्ति में असमर्थ था। उसकी दो पत्नियाँ थी। एक कुंती व दूसरी मादरी। कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जो तीन फरिश्तों (देवताओं) से गर्भ रहा था। युधिष्ठर का जन्म धर्मराज द्वारा कुंती से मिलन से हुआ था। अर्जुन का जन्म कुंती से इन्द्र देवता के भोग-विलास से हुआ था। भीम का जन्म पवन देवता द्वारा कुंती से मिलन करने से हुआ था। नकुल का जन्म स्रत देवता से मादरी से मिलन से तथा सहदेव का जन्म नासत्य देवता से मादरी से मिलन से हुआ था। पुराणों में कथा है कि एक समय सूर्य देव की पत्नी घर छोड़कर जंगल में चली गई। कारण यह था कि सूर्य देव के अधिक भोग-विलास (sex) से तंग आकर अपनी नौकरानी को अपने जैसे स्वरूप का आशीर्वाद दिया और उससे कहा कि तू मेरा भेद मत देना। मैं अपने पिता विश्वकर्मा के घर जाती हूँ। ऐसा कहकर उषा चली गई। नौकरानी का स्वरूप उषा जैसा हो गया। जब सूर्य देव को पता चला तो वह विश्वकर्मा के घर गए। विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री को वापिस घर जाने पर जोर दिया तो उषा जंगल में घोड़ी का रूप बनाकर तप करने लगी। उसने सोचा था कि यदि स्त्राी रूप में तप करूँगी तो कोई इज्जत का दुश्मन हो जाएगा। सूर्य को पता चला कि उषा तो यहाँ से भी चली गई है तो ध्यान से दिव्य दृष्टि से देखा तो उषा घोड़ी रूप में तप कर रही है। सूर्य देव ने घोड़े का रूप धारण किया और उषा से भोग करने की तड़फ हुई। घोड़ी रूप में उषा ने घोड़े को गलत नीयत से अपनी ओर आता देख अपने पृष्ठ भाग (इन्द्री) को बचाने के लिए घोड़े की तरफ मुख करके साथ-साथ घूमती रही। वासनावश सूर्य रूपी घोड़ा मुख में ही भोग करने लगा। उसकी बीज शक्ति पृथ्वी के ऊपर गिर गई। उससे दो लड़के उत्पन्न हुए। वे अश्वनी (घोड़ी) कुमार कहलाए। उनका नाम स्रत तथा नासत्य रखा। वे अश्वनी कुमार देवता कहे जाते हैं।} अबदुल्ला जी अपनी पत्नी को ससुराल से लेकर आए।

{सूक्ष्मवेद में लिखा है कि:-

‘‘मुसलमान बिस्तार बिल्ला का। नौज उदर घर संजम जाका।।
जाके भोग मोहम्मद आया। जिसने यह धर्म चलाया।।

कुछ महीने बाद अबदुल्ला जी कुछ व्यापारियों के साथ रोजगार के लिए गए तो बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय मोहम्मद जी माता के गर्भ में थे। बाद में मोहम्मद जी का जन्म हुआ। छः वर्ष के हुए तो माता जी अपने पति की कब्र देखने के लिए गाँव के कुछ स्त्राी-पुरूषों के साथ गई थी तो उनकी मृत्यु भी रास्ते में हो गई। नबी मोहम्मद अनाथ हो गए। दादा पालन-पोषण करने लगा। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा की भी मृत्यु हो गई। पूर्ण रूप से अनाथ हो गए। जैसे-तैसे 25 वर्ष के हुए, तब एक 40 वर्ष की खदीजा नामक विधवा से विवाह हुआ। {खदीजा का दो बार बड़े धनवान घरानों में विवाह हुआ था। दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी सब संपत्ति खदीजा के पास ही थी। वह बहुत रईस थी।}

खदीजा से मोहम्मद जी के तीन पुत्र (कासिम, तयब, ताहिर) तथा चार पुत्री हुई। जिस समय मोहम्मद जी 40 वर्ष के हुए तो उनको जबरील नामक फरिश्ता मिला और कुरआन शरीफ का ज्ञान देना प्रारम्भ किया। वे नबी बने। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मोहम्मद जी को कुरआन शरीफ का ज्ञान सीधा बेचून (निराकार) अल्लाह की ओर से भेजा गया है। उसमें बिना किसी मिलावट किए जबरील फरिश्ते ने मोहम्मद जी को बताया है। कभी-कभी फरिश्ता मोहम्मद के शरीर में प्रवेश करके बोलता था। मोहम्मद जी चद्दर मुख पर ढ़ककर लेट जाते थे। ऊपर से अल्लाह के पास से वयह (संदेश) आती थी। उस ज्ञान को मोहम्मद जी मुख ढ़के-ढ़के बोलते थे, लिखी जाती थी। इस तरह आने वाला संदेश बहुत दुःखदायी होता था। मोहम्मद जी का सारा शरीर कांपता था। वास्तव में फरिश्ता अंदर प्रवेश करके बोलता था। कभी-कभी काल ब्रह्म भी स्वयं प्रवेश करके बोलता था। (काल ब्रह्म ने कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके गीता वाला ज्ञान बोला था।) एक दिन हजरत मोहम्मद जी ने अपनी ऊपर (स्वर्ग) की यात्रा का वर्णन बताया। एक गधे जैसा जानवर (जिसे बुराक नाम दिया) लेकर जबरील देवता आया और मोहम्मद जी को बैठाकर ऊपर के सातों आसमानों की सैर कराई। ऊपर जाकर एक मैराज यानि सीढ़ी ऊपर से नीचे की ओर खुली, उसके ऊपर बुराक चढ़ा। मोहम्मद जी भी उस पर बैठे थे। जबरील नीचे रहा। फिर एक पक्षी आया। उस पर बैठकर मोहम्मद जी अल्लाह के पास गए। पक्षी भी चला गया। मोहम्मद जी ने अल्लाह से सीधी वार्ता की। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला और 50 नमाज प्रतिदिन करने को कहा। फिर मूसा जी के कहने से वापिस जाकर 5 नमाज करने की आज्ञा अल्लाह से लेकर आए जो वर्तमान में मुसलमान करते हैं। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि मैंने जन्नत (स्वर्ग) में सब आदमियों के पिता बाबा आदम जी को देखा व उनके दांई ओर स्वर्ग था। स्वर्ग में उसकी नेक संतान थी जिन्होंने अल्लाह के आदेशानुसार भक्ति की थी। वे स्वर्ग (जन्नत) में सुखी थे। बाबा आदम के बांई ओर दोजख (नरक) था। उसमें बाबा आदम की निकम्मी संतान कष्ट भोग रही थी जिन्होंने अल्लाह की कतेबों के आदेशानुसार भक्ति न करके जीवन व्यर्थ किया था। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि बाबा आदम बांई ओर नरक में अपनी संतान को नरक में कष्ट उठाते देखकर रो रहे थे और दांई ओर स्वर्ग में नेक संतान को देखकर हँस रहे थे। जबरील देवता ने बताया कि ये बाबा आदम हैं। मोहम्मद साहब ने बताया कि ऊपर के लोकों में मुझे हजरत दाऊद, हजरत मूसा तथा हजरत ईशा जी तथा अन्य नबियों की जमात (मण्डली) मिली। मैंने उनको नमाज पढ़ाई। फिर नीचे लाकर बुराक छोड़कर चला गया। हजरत मुहम्मद जी के इस आँखों देखे प्रकरण को मुसलमान सत्य मानते हैं। इसलिए आपका वह सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ कि मृत्यु के पश्चात् प्रलय (कयामत) तक बाबा आदम, हजरत दाऊद, मूसा, ईशा आदि-आदि को जन्नत की बजाय कब्रों में होना चाहिए था जिनको हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में देखा तथा बाबा आदम की संतान भी कब्रों में रहनी चाहिए थी जो ऊपर स्वर्ग (जन्नत) तथा नरक (दोजख) में हजरत मुहम्मद जी ने देखी थी। आपका सिद्धांत गलत है। हजरत मोहम्मद जी को खदिजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटी प्राप्त हुई थी। तीनों बेटे मोहम्मद जी की आँखों के सामने अल्लाह को प्यारे हुए।

“कादर (समर्थ) अल्लाह कबीर”

{अल्लाह कबीर कहा करते कि हिन्दू तथा मुसलमान, यहूदी तथा ईसाई सब एक प्रभु के बच्चे हो। तुम्हारे को काल शैतान ने भ्रमित करके बाँट रखा है।}

एक बार दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी मुसलमान को जलन का रोग हो गया। जलन का रोग ऐसा होता है जैसे किसी का आग में हाथ जल जाए उसमें पीड़ा बहुत होती है। जलन के रोग में कहीं से शरीर जला दिखाई नहीं देता है परन्तु पीड़ा अत्यधिक होती है। उसको जलन का रोग कहते हैं। जब प्राणी के पाप बढ़ जाते हैं तो औषधि भी बेअसर हो जाती हैं। दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लौधी के साथ भी वही हुआ। सभी प्रकार की औषधी सेवन की। बड़े-बड़े वैद्य बुला लिए और मुँह बोला इनाम रख दिया कि मुझे ठीक कर दो, जो माँगोगे वही दूँगा। दुःख में व्यक्ति पता नहीं क्या संकल्प कर लेता है ? सर्व उपाय निष्फल हुए। उसके बाद अपने धार्मिक काजी, मुल्ला, संतों आदि सबसे अपना आध्यात्मिक इलाज करवाया। परन्तु सब असफल रहा। {जब हम दुःखी हो जाते हैं तो हिन्दू और मुसलमान नहीं रहते। फिर तो कहीं पर रोग कट जाए, वही पर चले जाते हैं। वैसे तो हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान बुरे और मुसलमान कहते हैं कि हिन्दू बुरे और बीमारी हो जाए तो फिर हिन्दू व मुसलमान नहीं देखते। जब कष्ट आए तब तो कोई बुरा नहीं। जो मुसलमान बुरे हैं, वे बुरे हैं और जो हिन्दू बुरे हैं, वे बुरे भी हैं और दोनों में अच्छे भी हैं। हर मज़हब में अच्छे और बुरे व्यक्ति होते हैं। लेकिन हम जीव हैं। हमारी जीव जाति है हमारा धर्म मानव है-परमात्मा को पाना उद्देश्य है।} हिन्दू वैद्य तथा आध्यात्मिक संत भी बुलाए, स्वयं भी उनसे जाकर मिला और सबसे आशीर्वाद व जंत्र-मंत्र करवाऐं परन्तु सर्व चेष्टा निष्फल रही। किसी ने बताया कि काशी शहर में एक कबीर नाम का महापुरूष है। यदि वह कृपा कर दे तो आपका दुःख निवारण अवश्य हो जाएगा।

जब बादशाह सिकंदर ने सुना कि एक काशी के अन्दर महापुरूष रहता है तो उसको कुछ-कुछ याद आया कि वह तो नहीं है जिसने गाय को भी जीवित कर दिया था। हजारों अंगरक्षकों सहित दिल्ली से काशी के लिए चल पड़ा। बीरसिंह बघेला काशी नरेश पहले ही कबीर साहेब की महिमा और ज्ञान सुनकर कबीर साहेब के शिष्य हो चुके थे और पूर्ण रूप से अपने गुरुदेव में आस्था रखते थे। उनको कबीर साहेब की समर्थता का ज्ञान था क्योंकि कबीर परमेश्वर वहाँ पर बहुत लीलाएँ कर चुके थे।

जब सिकंदर लोधी बनारस(काशी) गया तथा बीरसिंह से कहा बीरसिंह मैं बहुत दुःखी हो गया हूँ। अब तो मरना ही शेष रह गया है। यहाँ काशी में कोई कबीर नाम का संत है? आप तो जानते होंगे कि वह कैसा है? इतनी बात सिकंदर बादशाह के मुख से सुनी थी। काशी नरेश बीरसिंह की आँखों में पानी भर आया और कहा कि अब आप ठीक स्थान पर आ गए हो। अब आपके दुःख का अंत हो जाएगा। बादशाह सिकंदर ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? बीरसिंह ने कहा कि वह कबीर जी स्वयं भगवान आए हुए हैं। परमेश्वर स्वरूप हैं। यदि उनकी दयादृष्टि हो गई तो आपका रोग ठीक हो जाएगा। राजा सिकंदर ने कहा कि जल्दी बुला दो। काशी नरेश बीरदेवसिंह बघेल ने विनम्रता से प्रार्थना की कि आपकी आज्ञा शिरोधार्य है, आदेश भिजवा देता हूँ। लेकिन ऐसा सुना है कि संतो को बुलाया नहीं करते। यदि वे आ भी गए और रजा नहीं बख्सी तो भी आने का कोई लाभ नहीं। बाकी आपकी इच्छा। सिकंदर ने कहा कि ठीक है मैं स्वयं ही चलता हूँ। इतनी दूर आ गया हूँ वहाँ पर भी अवश्य चलूँगा।

“सिकंदर लौधी बादशाह का असाध्य रोग ठीक करना”

शाम का समय हो गया था। बीरसिंह को पता था कि इस समय साहेब कबीर जी अपने औपचारिक गुरुदेव स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में ही होते हैं। यह समय परमेश्वर कबीर जी का वहाँ मिलने का है। बीरदेव सिंह बघेल काशी नरेश तथा सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह दोनों, स्वामी रामानन्द जी के आश्रम के सामने खड़े हो गए। वहाँ जाकर पता चला कि कबीर साहेब अभी नहीं आए हैं, आने ही वाले हैं। बीरसिंह अन्दर नहीं गए। बाहर सेवक खड़ा था उससे ही पूछा। सिकंदर ने कहा कि ‘‘तब तक आश्रम में विश्राम कर लेते हैं।’’ राजा बीरसिंह ने स्वामी रामानन्द जी के द्वारपाल सेवक से कहा कि स्वामी रामानन्द जी से प्रार्थना करो कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आपके दर्शन भी करना चाहते हैं और साहेब कबीर का इन्तजार भी आपके आश्रम में ही करना चाहते है। सेवक ने अन्दर जाकर रामानन्द जी को बताया कि दिल्ली के बादशाह सिकंदर लौधी आए हैं। रामानन्द जी मुसलमानों से घृणा करते थे। रामानन्द जी ने कहा कि मैं इन मलेच्छों की शक्ल भी नहीं देखता। कह दो कि बाहर बैठ जाएगा। जब सिकंदर लोधी ने यह सुना तो क्रोध में भरकर (क्योंकि राजा में अहंकार बहुत होता है और वह दिल्ली का सम्राट) कहा कि यह दो कोड़ी का महात्मा दिल्ली के बादशाह का अनादर कर सकता है तो साधारण मुसलमान के साथ यह कैसा व्यवहार करता होगा? इसको मज़ा चखा दूँ। स्वामी रामानन्द जी अलग आसन पर बैठे थे। सिकंदर लोधी ने जाकर रामानन्द जी की गर्दन तलवार से काट दी। वापिस चल पड़ा और फिर उसको याद आया कि मैं जिस कार्य के लिए आया था? वह काम अब पूरा नहीं होगा। कहा कि बीरसिंह देख मैं क्या जुल्म कर बैठा? मेरे बहुत बुरे दिन हैं। चाहता हूँ अच्छा करना और होता है बुरा। कबीर साहेब के गुरुदेव की हत्या कर दी। अब वे कभी भी मेरे ऊपर दयादृष्टि नहीं करेंगे। मुझे तो यह दुःख भोग कर ही मरना पड़ेगा। मैं बहुत पापी जीव हूँ। यह कहता हुआ आश्रम से बाहर की ओर चल पड़ा। बीरसिंह अपने बादशाह के आगे क्या बोलता। ज्यों ही आश्रम से बाहर आए, कबीर साहेब आते दिखाई दिए। बीर सिंह ने कहा कि हे राजन! मेरे गुरुदेव कबीर साहेब आ गए। ज्यों ही कबीर साहेब थोड़ी दूर रह गए बीरसिंह ने जमीन पर लेटकर उनको दण्डवत् प्रणाम किया। सिकंदर बहुत घबराया हुआ था। {अगर उसने यह जुल्म नहीं किया होता तो वह दण्डवत् नहीं करता और दण्डवत् नहीं करता तो साहेब उस पर रजा भी नहीं बकस पाते। क्योंकि यह नियम होता है।

‘अति आधीन दीन हो प्राणी, ताते कहिए ये अकथ कहानी।‘‘
उच्चे पात्र जल ना जाई, ताते नीचा हुजै भाई।

आधीनी के पास हैं पूर्ण ब्रह्म दयाल। मान बड़ाई मारिए बे अदबी सिर काल।। कबीर परमेश्वर ने यहाँ पर एक तीर से दो शिकार किए। स्वामी रामानंद जी में धर्म भेद-भाव की भावना शेष थी, वह भी निकालनी थी। रामानंद जी मुसलमानों को हिन्दूओं से अभी भी भिन्न तथा हेय मानते थे। सिकंदर में अहंकार की भावना थी। यदि वह नम्र नहीं होता तो कबीर साहेब कृपा नहीं करते तथा सिकंदर स्वस्थ नहीं होता} बीरसिंह को दंडवत करते देखकर तथा डरते हुए सिकंदर लौधी ने भी दण्डवत् प्रणाम किया। {मुसलमान कहते हैं कि हमारा सिर केवल अल्लाह के आगे झुकता है। अन्य के सामने मुसलमान का सिर नहीं झुकेगा। सामने अल्लाह अकबर खड़ा था। सिर अपने आप झुक गया।} कबीर परमेश्वर जी ने दोनों के सिर पर हाथ रखा और कहा कि दो-दो नरेश आज मुझ गरीब के पास कैसे आए हैं? मुझ गरीब को कैसे दर्शन दिए? परमेश्वर कबीर जी ने अपना हाथ उठाया भी नहीं था कि सिकंदर का जलन का रोग समाप्त हो गया। सिकंदर लौधी की आँखों में पानी आ गया।

(संत के सामने मन भाग जाता है और आत्मा ऊपर आ जाती है। क्योंकि परमात्मा आत्मा का साथी है। ‘‘अंतर्यामी एक तू आत्म के आधार।‘‘ आत्मा का आधार कबीर भगवान है।)

सिकंदर लौधी ने पैर पकड़ कर छोड़े नहीं और रोता ही रहा। जानीजान होते हुए भी कबीर साहेब ने सिकन्दर लोधी दिल्ली के बादशाह से पूछा क्या बात है?। सिकंदर ने कहा कि अल्लाह की जात! मैंने घोर अपराध कर दिया। आप मुझे क्षमा नहीं कर सकते। जिस काम के लिए मैं आया था वह असाध्य रोग तो आपके आशीर्वाद मात्र से ठीक हो गया। इस पापी को क्षमा कर दो। कबीर साहेब ने कहा क्षमा कर दिया। यह तो बता कि क्या हुआ? सिकंदर ने कहा कि आप क्षमा कर नहीं सकते। मैंने ऐसा पाप किया है। कबीर साहेब ने कहा कि क्षमा कर दिया। सिकंदर ने फिर कहा कि सच में माफ कर दिया? कबीर साहेब ने कहा कि हाँ क्षमा कर दिया। अब बता क्या कष्ट है? सिकंदर ने कहा कि दाता मुझ पापी ने गुस्से में आकर आपके गुरुदेव का कत्ल कर दिया और फिर सारी कहानी बताई। कबीर साहेब बोले कोई बात नहीं। जो हुआ प्रभु इच्छा से ही हुआ है आप स्वामी रामानन्द जी का अन्तिम संस्कार करवा कर जाना नहीं तो आप निंदा के पात्र बनोगे। परमेश्वर कबीर साहेब जी नाराज नहीं हुए। सिकंदर लोधी ने बीरसिंह के मुख की और देखा और कहा कि बीरसिंह यह तो वास्तव में अल्लाह है। देखिए मैंने इनके गुरुदेव का सिर काट दिया और कबीर जी को क्रोध भी नहीं आया। बीरसिंह चुप रहा और साथ-साथ हो लिया और मन ही मन में सोचता है कि अभी क्या है, अभी तो और देखना। यह तो शुरूआत है।

“स्वामी रामानन्द जी को जीवित करना”

परमेश्वर कबीर जी ने अन्दर जाकर देखा रामानंद जी का धड़ कहीं पर और सिर कहीं पर पड़ा था। शरीर पर चादर डाल रखी थी। कबीर साहेब ने अपने गुरुदेव के मृत शरीर को दण्डवत् प्रणाम किया और चरण छुए तथा कहा कि गुरुदेव उठो। दिल्ली के बादशाह आपके दर्शनार्थ आए हैं। एक बार उठना। दूसरी बार ही कहा था, सिर अपने आप उठकर धड़ पर लग गया और रामानन्द जी जीवित हो गए “बोलो सतगुरु देव की जय!”

“सर्व मनुष्य एक प्रभु के बच्चे हैं, जो दो मानता है, वह अज्ञानी है”

रामानंद जी के शरीर से आधा खून और आधा दूध निकला हुआ था। जब साहेब कबीर से स्वामी रामानन्द जी ने कारण पूछा, हे कबीर प्रभु! मेरे शरीर से आधा रक्त और आधा दूध कैसे निकला है? कबीर साहेब ने बताया कि स्वामी जी आपके अन्दर यह थोड़ी-सी कसर और रह रही है कि अभी तक आप हिन्दू और मुसलमान को दो समझते हो। इसलिए आधा खून और आधा दूध निकला है। आप अन्य जाति वालों को अपना साथी समझ चुके हो। परंतु हिन्दू तथा मुसलमान एक ही परमेश्वर के बच्चे हैं। जीव सभी एक हैं। आप तो जानीजान हो। आप तो लीला कर रहे हो अर्थात् गोल-मोल बात करके सब समझा गए।

कबीर-अलख इलाही एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।1।।
कबीर-राम रहीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।2।।
कबीर-कृष्ण करीमा एक है, नाम धराया दोय।
कहै कबीर दो नाम सुनि, भरम परो मति कोय।।3।।
कबीर-काशी काबा एक है, एकै राम रहीम।
मैदा एक पकवान बहु, बैठि कबीरा जीम।।4।।
कबीर-एक वस्तु के नाम बहु, लीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहीं कीजिये, सार तत्व ले जान।।5।।
कबीर-सब काहूका लीजिये, सांचा शब्द निहार।
पक्षपात ना कीजिये, कहै कबीर विचार।।6।।
कबीर-राम कबीरा एक है, दूजा कबहू ना होय।
अंतर टाटी कपट की, तातै दीखे दोय।।7।।
कबीर-राम कबीर एक है, कहन सुनन को दोय।
दो करि सोई जानई, सतगुरु मिला न होय।।8।।

रामानंद जी ने सिकंदर को सीने से लगाया तथा उसके बाद हिन्दू तथा मुसलमान को तथा सर्व जाति व धर्मों के व्यक्तियों को प्रभु के बच्चे जानकर प्यार देने लगे तथा अपने औपचारिक शिष्य वास्तव में परमेश्वर कबीर साहेब जी का धन्यवाद किया कि आपने मेरा अज्ञान पूर्ण रूप से दूर कर दिया। हम एक पिता प्रभु की संतान हैं, मुझे दृढ़ विश्वास हो गया। {दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी के साथ उनका धार्मिक गुरु शेखतकी भी बनारस गया था। वह रैस्ट हाऊस(विश्राम गृह) में ही रूका था। क्योंकि शेखतकी हिन्दू संतों से बहुत ईष्र्या करता था तथा उन्हें व उनके शिष्यों को काफिर कहता था। इसलिए स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में जाने से इंकार कर दिया था। राजा सिकंदर लोधी के साथ स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में नहीं गया था।}

शेखतकी पीर ने अल्लाह को नहीं पहचाना:- भारत के सम्राट सिकंदर ने विश्राम गृह में आकर परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा अपने असाध्य रोग का निवारण केवल आशीर्वाद मात्र से करने तथा स्वामी रामानन्द जी को पुनर् जीवित करने की अद्भुत करिश्मे की बात खुशी के साथ अपने धार्मिक पीर शेखतकी को बताई तथा कहा कि पीर जी मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ। मुझे कोई पीड़ा किसी अंग में नहीं है। {शाम का समय था। प्रभु कबीर साहेब जी सुबह आने की कहकर अपनी कुटिया पर चले गये थे।}

शेखतकी ने बादशाह के मुख से अन्य पीर की भूरि-भूरि प्रशंसा सुनी तो अंदर ही अंदर जल-भुन गया। रात भर करवटें बदलता रहा। परमेश्वर कबीर साहेब जी को नीचा दिखाने की योजना बनाता रहा।

“पवित्र मुसलमान धर्म का संक्षिप्त परिचय”

अगले दिन पूज्य कबीर परमेश्वर राज दरबार में पहुँचे। काशी नरेश बीरदेव सिंह बघेल तथा दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने डण्डवत् प्रणाम (जमीन पर लम्बा लेटकर) किया तथा कविर्देव को आसन पर बैठाया तथा दोनों राजा स्वयं नीचे जमीन पर बिछे गलीचे पर विराजमान हो गए। बादशाह सिकंदर ने प्रार्थना की कि हे परवरदीगार ! मेरा रोग न तो हिन्दू संतों से शांत हुआ तथा न ही मुसलमान पीरों, काजी तथा मुल्लाओं से। क्या कारण था दीन दयाल आपके आशीर्वाद मात्र से ही मेरा जान लेवा रोग छू मंत्र हो गया। कल रात्री में मैंने पेट भर कर खाना खाया। वर्षों से यह कष्ट मुझे सत्ता रहा था। आपकी कृप्या से मैं स्वस्थ हो गया हूँ।

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने बताया कि राजन् पूर्ण परमात्मा अल्लाहु अकबर(अल्लाहु कबीरू) ही सर्व पाप नाश (क्षमा) कर सकता है। अन्य प्रभु तो केवल किए कर्म का फल ही दे सकते हैं। जैसे प्राणी को दुःख तो पाप से होता है तथा सुख पुण्य से। आप को पाप कर्म के कारण कष्ट था। यह आपके प्रारब्ध में लिखा था। यह किसी भी अन्य देव या भगवान से ठीक नहीं हो सकता था क्योंकि पाप नाशक (क्षमा करने वाले) पूर्ण परमात्मा (अल्लाहु कबीरू) के वास्तविक ज्ञान व भक्ति विधि को न तो हिन्दू संत, गुरुजन जानते हैं तथा न ही मुसलमान पीर, काजी तथा मुल्ला ही परिचित हैं। उस सर्व शक्तिमान परमेश्वर की पूजा विधि तथा पूर्ण ज्ञान केवल यह दास (कबीर परमेश्वर) जानता है। न श्री राम तथा श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी जानते तथा न ही श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी, न ब्रह्म (जिसे आप निराकार प्रभु कहते हो) जानता। न हजरत मुहम्मद जानता था, न ही अन्य मुसलमान पीर व काजी तथा मुल्ला ही जानते हैं। उस कादर अल्लाह की इबादत (पूजा) के बिना कोई भी भाग्य में लिखा कष्ट समाप्त नहीं हो सकता। यही कारण है कि कोई भी हिन्दू या मुसलमान पीर आपको स्वस्थ नहीं कर सका।

“शेखतकी नामक मुसलमान पीर से वार्ता”

परमेश्वर कबीर साहेब जी के मुख कमल से उपरोक्त वचन सुनकर शेखतकी व्यंगात्मक तरीके से बोला कि तू ही जानता है सारे ज्ञान को। हमारे हजरत मुहम्मद जी को भी अज्ञानी कह रहा है। बीच बचाव करते हुए बीरदेव सिंह बघेल काशी नरेश ने कहा पीर जी इसमें नाराज होने की कौन-सी बात है, प्रेम पूर्वक शंका का समाधान करवाओ। काशी नरेश जानता था कि सर्व ज्ञान सम्पन्न पूज्य कबीर साहेब जी ज्ञान गोष्ठी करके पीर जी का भ्रम निवारण करना चाहते हैं। काशी नरेश ने शेखतकी से कहा कबीर जी ने किस कारण से हजरत मुहम्मद जी को पूर्ण ज्ञान से वंचित कहा है आप कारण पूछो। शेखतकी ने कहा प्रश्न ही तो पूछ रहा हूँ। कबीर जी कारण बताए किस आधार से हमारे हजरत मुहम्मद नबी जी को अज्ञानी कहा है?

“पवित्र कुरआन मजीद में प्रभु के विषय में क्या बताया है?”

परम पूज्य कबीर परमेश्वर ने कहना प्रारम्भ किया। पवित्र कुरआन शरीफ (सुरत फुर्कानि स. 25 आयत 52,58, 59) में जिस कबीर अल्लाह का विवरण है वह कादर खुदा है। जिसे अल्लाहु अकबर (अकबीरू) कहते हो। कुरआन शरीफ का ज्ञान दाता ने अपने से अन्य कबीर नामक अल्लाह की महिमा का गुणगान किया है। (आयत सं. 52 से 58 तथा 59 में) हजरत मुहम्मद जी को कुरआन शरीफ के ज्ञान दाता खुदा ने कहा है कि हे नबी मुहम्मद ! जो कबीर नामक अल्लाह है उसने सर्व ब्रह्मण्डो की रचना की है। वही सर्व पाप नाश (क्षमा) करने वाला है तथा सर्व के पूजा करने योग्य है। उसी ने जमीन तथा आसमान के मध्य जो कुछ भी है सर्व की रचना छः दिन में की है तथा सातवें दिन आसमान में तख्त पर जा विराजा। उस सर्व शक्तिमान, सर्व ब्रह्मण्डों के रचनहार, सर्व पाप नाशक, परमात्मा कबीर (अल्लाहु अकबर) की भक्ति विधि तथा उसके विषय में पूर्ण ज्ञान किसी तत्त्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी जी आपके अल्लाह को ही ज्ञान नहीं है तो आप के हजरत मुहम्मद जी को कैसे पूर्ण ज्ञान हो सकता है? तथा अन्य काजी, मुल्ला तथा पीर भी सत्य साधना तथा तत्वज्ञान से वंचित हैं। जिस कारण से अधूरे ज्ञान के आधार से इबादत करने वाले साधक के कष्ट का निवारण नहीं होता। अन्य साधना जैसे पाँच समय नमाज करना, रोजे (व्रत) रखना तथा बंग (अजान) देना आदि पूजा विधि से मोक्ष तथा कष्ट निवारण नहीं होता। जन्म-मृत्यु तथा स्वर्ग में बने पित्तर लोक में तथा नरक में तथा अन्य प्राणियों के शरीरों में भी कर्मों के आधार से कष्ट भोगने पड़ते हैं।

उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी ने तुरंत कुरआन शरीफ को खोला तथा सूरत फुर्कानि-25 आयत 52-59 को पढ़ा जिसमें उपरोक्त विवरण सही था। वास्तविकता को आँखों देखकर भी मान हानी के भय से कहा कि ऐसा कहीं नही ंलिखा है। यह काफिर झूठ बोल रहा है। उस समय शिक्षा का अभाव था। बादशाह सिकंदर को भी शंका हो गई कि परमेश्वर कबीर साहेब जी भले ही शक्ति युक्त हैं, परंतु अशिक्षित होने के कारण कुरआन के विषय में नहीं जान सकते।

शेखतकी ने जले-भुने वचन बोले क्या तू ही है वह बाखबर? फिर बता दे वह अल्लाहु अकबर कैसा है? यदि परमात्मा को साकार कहता है तो कौन है? कहाँ रहता है?

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा:- वह कबीर अल्लाह जिसे आप अल्लाहू अकबर कहते हो, वह मैं ही हूँ। मैं ऊपर सतलोक में रहता हूँ। मैंने ही सर्व ब्रह्मण्डों की रचना की है। मैं हजरत मुहम्मद जी को भी जिन्दा संत का रूप धारण करके मिला था तथा उस प्यारी आत्मा को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा था। हजरत मुहम्मद से कहा था कि आप अब मेरी महिमा सर्व अनुयाईयों को सुनाओ। मेरे द्वारा दी अन्य पुस्तक ‘कलामे कबीर’ अपने अनुयाईयों को दो। परन्तु मुहम्मद ने तत्त्वज्ञान का प्रचार नहीं किया तथा न मेरी बातों पर विश्वास किया।

हजरत मुहम्मद जी जिस साधना को करता था वही साधना अन्य मुसलमान समाज भी कर रहा है। वर्तमान में सर्व मुसलमान श्रद्धालु माँस भी खा रहे हैं। परन्तु नबी मुहम्मद जी ने कभी माँस नहीं खाया तथा न ही उनके अनुयाईयों ने जो लाखों की सँख्या में थे तथा न एक लाख अस्सी हजार नबियों ने माँस खाया। केवल रोजा व बंग (अजान) तथा नमाज किया करते थे। गाय आदि को बिस्मिल (हत्या) नहीं करते थे।

नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कूं सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगम्बर पाख पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।।

भावार्थ:- नबी मोहम्मद तो आदरणीय है जो प्रभु के अवतार कहलाए हैं। कसम है एक लाख अस्सी हजार को जो उनके अनुयाई थे, उन्होंने भी कभी बकरे, मुर्गे तथा गाय आदि पर करद नहीं चलाया अर्थात् कभी जीव हिंसा नहीं की तथा माँस भक्षण नहीं किया। वे हजरत मोहम्मद, हजरत मूसा, हरजत ईसा आदि पैगम्बर(संदेशवाहक) तो पवित्र व्यक्ति थे तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन/काल) के कृपा पात्र थे, परन्तु जो आसमान के अंतिम छोर (सतलोक) में पूर्ण परमात्मा(अल्लाहू अकबर अर्थात् अल्लाह कबीर) है। उस सृष्टि के मालिक की नजर से कोई नहीं बचा।

मारी गऊ शब्द के तीरं, ऐसे थे मोहम्मद पीरं।।
शब्दै फिर जिवाई, हंसा राख्या माँस नहीं भाख्या, एैसे पीर मुहम्मद भाई।।

भावार्थ: एक समय नबी मुहम्मद ने एक गाय को शब्द(वचन सिद्धि) से मार कर सर्व के सामने जीवित कर दिया था। उन्होंने गाय का माँस नहीं खाया। अब मुसलमान समाज वास्तविकता से परिचित नहीं है। जिस दिन गाय जीवित की थी उस दिन की याद बनाए रखने के लिए गऊ मार देते हो। आप जीवित नहीं कर सकते तो मारने के भी अधिकारी नहीं हो। आप माँस को प्रसाद रूप जान कर खाते तथा खिलाते हो। आप स्वयं भी पाप के भागी बनते हो तथा अनुयाईयों को भी गुमराह कर रहे हो। आप दोजख (नरक) के पात्र बन रहे हो।

कबीर परमेश्वर ने कहा:-

हम मुहम्मद को सतलोक ले गयो। इच्छा रूप वहाँ नहीं रहयो।।
उल्ट मुहम्मद महल पठाया। गुज बीरज एक कलमा लाया।।
रोजा, बंग, नमाज दई रे। बिसमिल की नहीं बात कही रे।।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद को मैं (कबीर परमेश्वर) सतलोक ले कर गया था परन्तु वहाँ न रहने की इच्छा व्यक्त की, वापिस मुहम्मद जी को शरीर में भेज दिया। पहले जबरील फरिस्ता काल ब्रह्म के पास हजरत मुहम्मद को लेकर गया था। उसने भी नबी मुहम्मद जी को रोजा(व्रत) बंग(ऊँची आवाज में प्रभु स्तुति करना) तथा पाँच समय की नमाज करना तो कहा था परन्तु गाय आदि प्राणियों को बिस्मिल करने(मारने) को नहीं कहा।

उपरोक्त वार्ता सुनकर शेखतकी पीर ने क्रोध करते हुए कहा कि तू क्या जाने कुरआन शरीफ तथा हमारे नबी के विषय में तू तो अशिक्षित है। हमारे धर्म के विषय में झूठा प्रचार करके भ्रम फैला रहा है। मैं बताता हूँ पवित्र कुरआन मजीद (शरीफ) की अमृत वाणी कैसे प्राप्त हुई। शेखतकी ने (जो दिल्ली के महाराजा सिकंदर लौधी का धार्मिक गुरु तथा पूरे भारत के मुसलमान शेखतकी की प्रत्येक आज्ञा का पालन करते थे) कहा कि सुन हे कबीर! हमारे मुहम्मद नबी का जीवन वृतांत।

‘‘हजरत मुहम्मद जी का जीवन चरित्र‘‘

हजरत मुहम्मद के बारे में श्री मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी के विचार
जीवनी हजरत मुहम्मद(सल्लाहु अलैहि वसल्लम)
लेखक हैं - मुहम्मद इनायतुल्लाह सुब्हानी,
मूल किताब - मुहम्मदे(अर्बी) से,
अनुवादक - नसीम गाजी फलाही,

प्रकाशक - इस्लामी साहित्य ट्रस्ट प्रकाशन नं. 81 के आदेश से प्रकाशन कार्य किया है।
मर्कजी मक्तबा इस्लामी पब्लिशर्स, डी-307, दावत नगर, अबुल फज्ल इन्कलेव जामिया नगर, नई दिल्ली-1110025,

(निम्न प्रकरण उपरोक्त लेखक व प्रकाशन की पुस्तक से लिया है।)

श्री हाशिम के पुत्र शौबा थे। उन्हीं का नाम अब्दुल मुत्तलिब पड़ा। जब मुत्तलिब अपने भतीजे शौबा को अपने गाँव लाया तो लोगों ने सोचा कि मुत्तलिब कोई दास लाया है। इसलिए श्री शौबा को श्री अब्दुल मुत्तलिब के उर्फ नाम से अधिक जाना जाने लगा। श्री अब्दुल मुत्तलिब को दस पुत्र प्राप्त हुए। किसी कारण से अब्दुल मुत्तलिब ने अपने दस बेटों में से एक बेटे की कुर्बानी अल्लाह के निमित्त देने का प्रण लिया।

देवता को दस बेटों में से कौन सा बेटा कुर्बानी के लिए पसंद है। इस के लिए एक मन्दिर(काबा) में रखी मूर्तियों में से बड़े देव की मूर्ति के सामने दस तीर रख दिए तथा प्रत्येक पर एक पुत्र का नाम लिख दिया। जिस तीर पर सबसे छोटे पुत्र अब्दुल्ला का नाम लिखा था वह तीर मूर्ति की तरफ हो गया। माना गया कि देवता को यही पुत्र कुर्बानी के लिए स्वीकार है। श्री अब्दुल्ला(नबी मुहम्मद के पिता) की कुर्बानी देने की तैयारी होने लगी। पूरे क्षेत्र के धार्मिक लोगों ने अब्दुल मुत्तल्लिब से कहा ऐसा न करो। हा-हा कार मच गया। एक पुजारी में कोई अन्य आत्मा बोली। उसने कहा कि ऊंटों की कुर्बानी देने से भी काम चलेगा। इससे राहत की स्वांस मिली। उसी शक्ति ने उसके लिए एक अन्य गाँव में एक औरत जो अन्य मन्दिरों के पुजारियों की दलाल थी के विषय में बताया कि वह फैसला करेगी कि कितने ऊंटों की कुर्बानी से अब्दुल्ला की जान अल्लाह क्षमा करेगा। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते हो अन्य दस और जोड़ कर तथा अब्दुल्ला के नाम की पर्ची तथा दस ऊंटों की पर्ची डाल कर जाँच करते रहो। जब तक ऊंटों वाली पर्ची न निकले, तब तक करते रहो। इस प्रकार दस.2 ऊंटों की संख्या बढ़ाते रहे तब सौ ऊंटों के बाद ऊंटों की पर्ची निकली, उस से पहले अब्दुल्ला की पर्ची निकलती रही। इस प्रकार सौ ऊटों की कुर्बानी(हत्या) करके बेटे अब्दुल्ला की जान बचाई। जवान होने पर श्री अब्दुल्ला का विवाह भक्तमति आमिनी देवी से हुआ। जब हजरत मुहम्मद माता आमिनी जी के गृभ में थे पिता श्री अब्दुल्ला जी की मृत्यु किसी दूर स्थान पर हो गई। वहीं पर उनकी कबर बनवा दी। जिस समय बालक मुहम्मद की आयु छः वर्ष हुई तो माता आमिनी देवी अपने पति की कबर देखने गई थी। उसकी भी मृत्यु रास्ते में हो गई। छः वर्षिय बालक मुहम्मद जी यतीम (अनाथ) हो गए। (उपरोक्त विवरण पूर्वोक्त पुस्तक ‘जीवनी हजरत मुहम्मद‘ पृष्ठ 21 से 29 तथा 33-34 पर लिखा है)।

हजरत मुहम्मद जी जब 25 वर्ष के हुए तो एक चालीस वर्षिय विधवा खदीजा नामक स्त्राी से विवाह हुआ। खदीजा पहले दो बार विधवा हो चुकी थी। दोनों पूर्व पतियों की अच्छी-खासी सम्पत्ति थी जो खदीजा के पास थी। तीसरी बार हजरत मुहम्मद से विवाह हुआ। वह बहुत बड़ें धनवान घराने की औरत थी। (यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 46, 51-52 पर लिखा है।)

हजरत मुहम्मद जी को संतान रूप में खदीजा जी से तीन पुत्र तथा चार बेटियाँ प्राप्त हुई। परंतु ये मुबारक घड़ी ज्यादा समय नहीं रही। आँखों के तारे तीनों पुत्र 1. कासिम, 2. तय्यब 3. ताहिर आप (हजरत मुहम्मद जी) की आँखों के सामने मृत्यु को प्राप्त हुए। केवल चार लड़कियां (जैनब, रूकय्या, उम्मे कुसूम और फातिमा) शेष रहीं। (पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 64 पर यह उपरोक्त विवरण लिखा है)।

एक समय प्रभु प्राप्ति की तड़फ में हजरत मुहम्मद जी नगर से बाहर एक गुफा में साधना कर रहे थे। एक जिबराईल नामक फरिश्ते ने हजरत मुहम्मद जी का गला घोंट-2 कर बलात् कुरआन शरीफ का ज्ञान समझाया। (हजरत मुहम्मद जी को डरा धमका कर अव्यक्त माना जाने वाले प्रभु का ज्ञान दिया गया।) उस जिबराईल देवता के डर से हजरत मुहम्मद जी ने वह ज्ञान याद किया। इस प्रकार मुहम्मद साहेब जी को फरिश्ते ने कुरआन मजीद का ज्ञान दिया। हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा जी को बताया कि मैं जब गुफा में बैठा था तो एक फरिश्ता आया। उसके हाथ में एक रेशम का रूमाल था। उस पर कुछ लिखा था। फरिश्ते ने मेरा गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे प्राण निकलने वाले हैं। पूरे शरीर को भींच कर जबरदस्ती मुझे पढ़ाना चाहा। ऐसा दो बार किया। तीसरी बार फिर कहा पढ़ो, मैं अशिक्षित होने के कारण नहीं पढ़ पाया। अब की बार मुझे लगा कि यह और ज्यादा पीड़ा देगा। मैंने कहा क्या पढूं। तब उसने मुझे कुरआन की एक आयत पढ़ाई। (यह विवरण पूर्वोक्त पुस्तक के पृष्ठ 67 से 75 तक लिखा है तथा पृष्ठ 157 से 165 तक लिखा है)।

फरिश्ते जिबराईल ने नबी मुहम्मद जी का सीना चाक किया उसमें शक्ति उड़ेल दी और फिर सील दिया तथा एक खच्चर जैसे जानवर (बुराक) पर बैठा कर ऊपर ले गया। वहाँ नबियों की जमात आई, उनमें हजरत मुसा जी, ईसा जी और इब्राहीम जी आदि भी थे। जिनको हजरत मुहम्मद जी ने नमाज पढ़ाई।

वहाँ हजरत आदम जी भी थे जो कभी हँस रहे थे और कभी रो रहे थे। फरिश्ते जिबराईल ने हजरत मुहम्मद जी को बताया यह बाबा आदम जी हैं। रोने तथा हँसने का कारण था कि दाईं ओर स्वर्ग में नेक संतान थी जो सुखी थी जिसे देख कर बाबा आदम हँस रहे थे तथा बाईं ओर निकम्मी संतान नरक में कष्ट भोग रही थी, जिसे देखकर रो रहे थे।

{यहाँ पर कुछ तथ्य छुपाए हैं लेखक ने। लिखा है कि हजरत आदम दायीं ओर मुख करके इसलिए हँस रहे थे क्योंकि दायीं ओर उसकी नेक संतान के कर्म थे। उनको देखकर हँस रहे थे। बायीं ओर निकम्मी संतान के कर्म थे। उन्हें देखकर रो रहे थे। विचार करें पाठकजन! क्या वे कर्म जन्नत में किसी दीवार पर लिखे थे जबकि बाबा आदम तो अशिक्षित थे। वास्तविकता जो है, वह ऊपर लिखी है।}

फिर सातवें आसमान पर गए। पर्दे के पीछे से आवाज आई की प्रति दिन पचास नमाज किया करे। नबी मूसा के कहने पर पचास नमाजों से कम करवाकर केवल पाँच नमाज ही अल्लाह से प्राप्त करके नबी मुहम्मद वापिस आ गए।

(पृष्ठ नं. 307 से 315) हजरत मुहम्मद जी द्वारा मुसलमानों को कहा कि खून-खराबा मत करना, ब्याज तक भी नहीं लेना तथा 63 वर्ष की आयु में सख्त बीमार होकर तड़पते-2 भी नमाज की तथा घर पर आकर असहनीय पीड़ा में सारी रात तड़फ कर प्राण त्याग दिए।

(पृष्ठ नं. 319) बाद में उत्तराधिकारी का झगड़ा पड़ा। फिर हजरत अबू बक्र को खलीफा चुना गया।

  • शेखतकी से उपरोक्त वर्णन सुनकर परमेश्वर कबीर जी ने तर्क दिए:- शेख तकी पीर जी! आपने बताया कि अल्लाह तो सातवें आसमान पर रहता है वह तो निराकार है। कबीर जी ने कहा शेख जी एक ओर तो आप भगवान को निराकार कह रहे हो। दूसरी ओर प्रभु को सातवें आसमान पर एक देशीय सिद्ध कर रहे हो। जब परमात्मा सातवें आसमान पर रहता है तो वह साकार हुआ।

परमेश्वर कबीर साहेब जी ने कहा शेखतकी जी आपने बताया कि हजरत मुहम्मद जी जब माता के गर्भ में थे उस समय उनके पिता श्री अब्दुल्लाह जी की मृत्यु हो गई, छः वर्ष के हुए तो माता जी की मृत्यु। आठ वर्ष के हुए तो दादा अब्दुल मुत्तलिब चल बसा। यतीमी का जीवन जीते हुए हजरत मुहम्मद जी की 25 वर्ष की आयु में शादी दो बार पहले विधवा हो चुकी 40 वर्षिय खदीजा से हुई। तीन पुत्र तथा चार पुत्रियाँ संतान रूप में हुई। हजरत मुहम्मद जी को जिबराईल नामक फरिश्ते ने गला घोंट-घोंट कर जबरदस्ती डरा धमका कर कुरआन शरीफ (मजीद) का ज्ञान तथा भक्ति विधि (नमाज आदि) बताई जो तुम्हारे अल्लाह द्वारा बताई गई थी। हजरत मुहम्मद जी ने जी-जान से वह साधना की। फिर भी हजरत मुहम्मद जी के आँखों के तारे तीनों पुत्र (कासिम, तय्यब तथा ताहिर) चल बसे। विचार करें जिस अल्लाह के भेजे रसूल (नबी) के जीवन में कहर ही कहर (महान कष्ट) रहा। तो अन्य अनुयाईयों को कुरआन शरीफ व मजीद में वर्णित साधना से क्या लाभ हो सकता है ? हजरत मुहम्मद 63 वर्ष की आयु में दो दिन असहाय पीड़ा के कारण दर्द से बेहाल होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। जिस पिता के सामने तीनों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो जाऐं, उस पिता को आजीवन सुख नहीं होता। प्रभु की भक्ति इसीलिए करते हैं कि परिवार में सुख रहे तथा कोई पाप कर्म दण्ड भोग्य हो, वह भी टल जाए। आप के अल्लाह द्वारा दिया भक्ति ज्ञान अधूरा है। इसीलिए सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 तक में कहा है कि जो गुनाहों को क्षमा करने वाला कबीर नामक अल्लाह है उसकी पूजा विधि किसी तत्वदर्शी (बाखबर) से पूछ देखो। कबीर परमेश्वर ने कहा शेखतकी मैं स्वयं वही कबीर अल्लाह हूँ। मेरे पास पूर्ण मोक्ष दायक, सर्व पाप नाशक भक्ति विधि है। इसीलिए आप के समक्ष बादशाह सिकंदर लोधी जी पाप के कारण भोग रहे कष्ट से मुक्त होकर सुख की सांस ले रहे हैं। जो आपकी भक्ति पद्धति से नहीं हो पाया।

जैसा कि शेखतकी जी आपने बताया कि सब मनुष्यों का पिता हजरत आदम ऊपर आसमान पर (जहाँ जिस लोक में जिबराईल फरिश्ता हजरत मुहम्मद को लेकर गया था) कभी रो रहा था, कभी हंस रहा था। क्योंकि उसकी निकम्मी संतान नरक में कष्ट उठा रही थी। उन्हें देखकर रो रहा था तथा अच्छी संतान जो स्वर्ग में सुखी थी, उन्हें देखकर जोर-जोर से हंस रहा था।

विचारणीय विषय है कि ईसाई धर्म तथा मुसलमान धर्म के प्रमुख बाबा आदम ने जो साधना की उसके प्रतिफल में जिस लोक में पहुँचा है वहाँ पर भी चैन से नहीं रह रहा। इस लोक में भी बाबा आदम जैसे नेक नबी के दोनों पुत्रों में राग-द्वेष भरा था जिस कारण बड़े भाई ने छोटे की हत्या कर दी। यहाँ पृथ्वी पर भी बाबा आदम महादुःखी ही रहे क्योंकि बड़े भाई ने छोटे को मार दिया, बड़ा घर त्याग कर चला गया। सैंकड़ों वर्षों पश्चात् बाबा आदम को एक सेत नाम का पुत्र हुआ। सेत का पुत्र एैनोश हुआ जिससे भक्ति मार्ग चला है। जिस किसी के दोनों पुत्र ही बिछुड़ जाए, वह पिता सुखी नहीं हो सकता। यही दशा बाबा आदम जी की हुई थी। सैकड़ों वर्ष दुःख झेलने के पश्चात् एक नेक पुत्र प्राप्त हुआ। फिर बाबा आदम उस लोक में भी इसी कष्ट को झेल रहे हैं।

सर्व नबी जो पहले पृथ्वी पर अल्लाह के भेजे आए थे, वे (हजरत ईसा, हजरत अब्राहिम, हजरत मूसा आदि) भी उसी स्थान (लोक) में अपनी साधना से पहुँचे। वास्तव में वह पित्तर लोक है। उसमें अपने-अपने पूर्वजों के पास चले जाते हैं। इसी प्रकार हिन्दूओं का भी ऊपर वही पित्तर लोक है। जिनका संस्कार पित्तर बनने का होता है वह पित्तर योनीधारण करके उस पित्तर लोक में रहता है। फिर पित्तर वाला जीवन भोग कर फिर भूत तथा अन्य पशु व पक्षियों की योनियों को भी भोगता है। यह तो पूर्ण मोक्ष तथा सुख प्राप्ति नहीं हुई। वही भक्ति करने वाले साधकों को क्या उपलब्धि होगी?

“पवित्र कबीर सागर ग्रन्थ से हजरत मुहम्मद जी के विषय में उल्लेख‘‘

कृपया पढ़ें कबीर सागर के अध्याय ‘‘मुहम्मद बोध‘‘ से वाणी:-

धर्मदास वचन

साखी - धर्मदास बीनती करे, कृपा करो गुरूदेव।
नबी मुहम्मद जस भये, सोसब कहियों भेव।।

कबीर वचन

धर्मदास तुम पूछो भल बानी। सो सब कथा कहूँ सहिदानी।।
मिले हम मुहम्मद कूँ जाई। सलाम वालेकम कह सुनाई।। मुहम्मद बोले वालेकम सलामा। हमें बताओ गाम रूनामा।।
साखी - कहाँ ते आये पीर तुम, क्यों कर किया पयान।
कौन शक्सका हुक्म है, किसका है फरमान।।

मुहम्मद वचन

रमैनी

पीर मुहम्मद सखुन जो खोला। अल्ला हमसे परदै बोला।।
हम अहदी अल्ला फरमाना। वतन लाहूत मोर अस्थाना।।
उन भेजे रूह बारह हजारा। उम्मत के हम हैं सरदारा।।
तिस कारण जो हम चलि आये। सोवत थे सब जीव जगाये।।
जीव ख्वाब में परो भुलाये। तिस कारन फरमान ले आये।।
तमु बूझो सो कौन हो भाई। अपनो इस्म कहो समुझाई।।
साखी - दूर की बाते जो करौ, करते रोजा नमाज।।
सो पहुँचे लाहूत को, खोवे कुल की लाज।।

कबीर वचन

कहैं कबीर सुनो हो पीर। तुम लाहूत करो तागीरा।।
तुम भूले सो मरम न पाया। दे फरमान तुम्हें भरमाया।।
फिर फिर आव फिर फिर जाई। बद अमली किसने फरमाई।।
लाहूत मुकाम बीच को भाई। बिन तहकीक असल ठहराई।।
तुम जैसे उनके बहुतेरे। लै फरमान जाव तुम डेरे।।
साखी - खोजत खोजत खोजियाँ, हुवा सो गूना गून।
खोजत खोजत ना मिला, तब हार कहा बेचून।।
बेचूँन जग राँचिया, साई नूर निनार।
आखिर करे वक्त में, किसकी करो दिदार।।

रमैनी

तुम लाहूंत रचे हो भाई। अगम गम्य तुम कैसे पाई।।
यह तो एक आदि विसरामा। आगे पाँच आदि निज धामा।।
तहाँ ते हम फरमान ले आये। सब बदफेल को अमल मिटाये।।
उन फरमान जो हमको दीना। तिनका नाम बेचून तुम लीना।।
साखी - साहब का घर दूर है, जासु असल फरमान।
उनको कहो जो पीर तुम, सोइ अमर अस्थान।।

मुहम्मद वचन

कहै मुहम्मद सुनो कबीरा। तुम कैसे पायो अस्थीरा।।
लाहूत मेटि जो अगम बतायो। खुद खुदाय हमहूँ नहिं पायो।।
हम जानैं खुद आपै आही। तुम कुदरत कर थापो ताही।।
हम तो अर्श हाजिरी आयो। तुम तो कुदरत से ठहराये।।
तुम्हरे कहे भरम मोहि आयो। खुद खुदाय तुम दूर बतायो।।
आप सुनाओ खुदकी बानी। आलम दुनियाँ कहो बखानी।।
लाहूत मुकाम हम निजकर जाना। सो तो तुम कुदरत कर ठाना।।
हलकी मुलकी बासरी भाई। तीन हुक्म अल्ला फरमाई।।
साखी - साई मुरशिद पीर है, साँचा जिस फरमान।
हलकी मुलकी बासरी, तीन हुकुम कर मान।।

कबीर वचन

सुन मुहम्मद कहूं खुदवाणी। खुद खोदाय की कहूँ निशानी।।
कादिर थे तब कुदरत नाहीं। कुदरत थी कादिर के माहीं।।
ख्वार सभी को चीन्हो भाई। असल रूह को देउँ बताई।।
असल रूह की दीदार जो पावे। पावे निज मुसलमान कहावे।।
हो आवाज जहां परदा पोशी। है वह मर्द कि है वह जोशी।।
जब लग तख्त नजर नहीं आवे। दिल विश्वास कौन विधि पावे।।
जब खुद की खबर न पावे। तब लग कुदरत भ्रम ठहरावे।।
हाल माशूक नजर जो आवै। एक निगाह दीदार जो पावै।।
जो तुम कहा हमारा मानो। तो हम तुमते निर्णय ठानो।।
साखी - यह प्रपंच बेचून का, तुमते कहा न भेव।।
आप गुप्त होइ बैठा, तुम चार करत हो सेव।।

मुहम्मद बोध

कहैं मुहम्मद सुन खुद अहदी। इल्म लद्दुनी कहु बुनियादी।।
जब नहिं पिण्ड ब्रह्माण्ड अस्थूला। तब ना हतो सृष्टि को मूला।।
तादिन की कहिय उपतानी। आदि अंत और मध्य निशानी।।

साखी - बुजरूग हकीकत सब कहो, किस विधि भया प्रकाश।
जब हम जाने आदि को, तो हमहूँ बाँधे आश।।

कबीर वचन

सुनो मुहम्मद सांचे पीरा। समरथ हुकुम खुद आदि कबीरा।।
अब हम कहें सुनो चितलायी। आदि अन्त सब कहों बुझायी।।
प्रथम समरथ आदि अकेला। उनके संग हता नहिं चेला।।
साखी - वाहिदन थे तब आप में, सकल हतो तेहि माँह।
ज्यौं तरूवर के बीज में, पुष्प पात फल छाँह।।

चौपाई

निरंजन भये राज अधिकारी। तिनके चार अंश सेवकारी।।
चार ज्ञानते चारो वेदा। तिनते चारो भये कतेबा।।
मूल कुरान वेद की वानी। सो कुरान तुम जग में आनी।।
हक्क कुरान जो तुमको दीना। हद हुक्म तुम आपन कीना।।
चार कतेब के चारों अंशा। तिनते कहो भिन्न-भिन्न बंशा।।
वेद पढावत ब्रह्मा आये। ऋग वेद को नाम लखाये।।
दूसर यजुरवेद की वानी। भक्ति ज्ञान सो कीन बखानी।।
तीसर सामवेद की वानी। यज्ञ होम तिन कीन बखानी।।
चैथ अथर्बन गुप्त छपाये। तौन हुक्म तुम जगमें आये।।
ऐकै मूल कुरान में चारी। चार बीर तुम हो सरदारी।।
जब्बूर किताब दाऊद ने पाई। नासूत मोकाम रहै ठहराई।।
तौरेत कीताब मूसाने पाई। मलकूत मोकाम रहै ठहराई।।
इंजील किताब ईशा ने पाई। जबरूत मोकाम रहै ठहराई।।
फुरकान किताब नबी तुम पाई। लाहूत मोकाम रहै लौलाई।।
कुरान बेहद को मरम न पावै। बिन देखे विश्वास क्या आवै।।
चार मोकाम किताब है चारी। पंचयें नाम अचिंत सँवारी।।
तहँते आइ रूह बारह हजारी। तहां अचिंत गुप्त व्योहारी।।
साखी - पीर औलिया थाकिया, यह सब उरले पीर।।
समरथ का घर दूर है, तिनको खोजो बीर।।

मारफत
चौपाई

ओवल मोकाम नासूत ठेकाना। दूजा मोकाम मलकूत जो जाना।।
सेउम मोकाम जबरूत ठेकाना। चहारूम मोकाम लाहूत बखाना।।
पंचये मोकाम हाहूत अस्थाना। छठे मोकाम सोहं जो माना।।
हफतुम मोकाम बानी अस्थाना। अठयें मोकाम अंकूर ठेकाना।।
नवयें मुकाम आहूत निशानी। दसयें मोकाम पुरूष रजधानी।।

बेतुक

औवल शरी अत्।1। तरीकत् 2। हकीकत् 3। मरफत् 4। मरौवत् 5। ध्यान दोरहिअत् 6। जुलफकार चन्द्र गेटा 7। हुकुममुरतद 8। देयना कासो यही अंत् 9। सच पावे समरथ काय 10। अंकार ओंकार कलिमा नवी सचुपावै देखा हद बैहद

मुहम्मद वचन

तुम कबीर भेद अधिकाये। खुद समरथ की खबरि जो ल्याये।।
अब तुमको हम बूझैं अंतू। सो कहिये खुद अहदी संतू।।
को तुम आहु कहांते आये। क्यों तुम अपना बर्ण छिपाये।।
सात सुरति समरथ निमाई। यह अस्थान रहो की जाई।।
यती मारफत कहु दुरवेशा। हम मानैं तुमरो उपदेशा।।
सात सुरति केहि माहि समाई। जिव बोधे सो कह चलि जाई।।
समरथ गम तुमु साँच कबीरा। समरथ भेद कहो मति धीरा।।
साखी - मेरे शंका बाढिया, थाके वेद कुरान।
वाहिद कैसे पाइये, समरथ को मक्कान।।

सत्य कबीर वचन

सुनो मुहम्मद कहों बुझाई। जो खुद आदि अस्थान है भाई।।
जो जो हुकुम समरथ फरमाई। सो सो हुकुम हम आनि चलाई।।
सुर नर मुनि को टेरि सुनाये। तुमको बहुत बार समुझाये।।
तुम पर मोह क्षर ने डारा। तेहि कारण आये संसारा।।
सोलह असंख जुग जबै सिराई। सोलह असंख उत्पत्ति मिटि जाई।।
सात सुरति तब लोकहि जाई। जिव बोधो तेहि माह समाई।।
सात सुन्य तजि ते अस्थाना। ते सब मिटे होय घमसाना।।
वेद कतेब कि छोड़ो आशा। वेद कतेब में क्षर प्रकाशा।।
तीन बार तुम जग में आये। फिर फिर क्षर ने भरमाये।।
क्षर चीन्हिके छोडो भाई। तीन अंश क्षर निरमाई।।
ब्रह्मादिका सृष्टि आपको कीना। जीव वृष्टि तीरथ व्रत दीना।।
माया वृष्टि ईश्वरी जानो। सबमें आतम एक समानो।।
साखी-खोजो खुद समरत्थको, जिन किया सब फरमान।
पीर मुहम्मद तहँ चलो, सोई अमर अस्थान।।

मुहम्मद वचन

पीर मुहम्मद मुख तब मोरा। कछु नहिं चलै तुम्हारी जोरा।।
क्षर हुक्म को मेटनहारा। चार वेद जिन कीन पसारा।।

कबीर वचन

सुनिये सखुन मुहम्मद पीरा। हम खुद अहदी आदि कबीरा।।
मेटों क्षरको बिस्तारा। मेटो निरंजन सकल पसारा।।
मेटो अचिंतकी रजधानी। मेटो ब्रह्मा वेद निशानी।।
चैदह जमको बांधि नचावों। मृतु अंधा मगहर ले आवों।।
धर्मरायते झगर पसारा। निरंजन बांधि रसातल डारा।।
बेद कतेब को अमल मिटावों। घर घर सार शब्द फैलावों।।
समरथ हुक्म चलै सब माही। ब्यापै सत्य असत्य उठि जाही।।

मुहम्मद वचन

पीर मुहम्मद बोले बानी। अगम भेद काहू नहिं जानी।।
सुनाकान नहिं आखिन देखा। बिन देखे को करे विवेखा।।
जो नहिं देखो अपने नैना। कैसे मानो गुरूको बैना।।
जो तुम खुद अहदी ह्नै आये। हुक्म हजूर फरमान ले आये।।
जौन राह से तुम चलि आवो। सोई राह मोकहँ बतलावो।।
हँसन को अस्थान चिन्हावो। समरथ को मोहि लोक देखावो।।
साखी - हंसन को अस्थान लखि, तब मानुँ फरमान।।
जो समरथ को हुक्म है, सो मेरे परवान्।।

कबीर वचन

सुनो मुहम्मद कहों बुझाई। साहेब तुमको देउँ बताई।।
चलै सैल को दोनों पीरा। एक मुहम्मद एक कबीरा।।

(नासूत) मोकाम 1

भूमि से चले जहाँ पहुँचे जाई। मानसरोवर तहां कहाई।।
तहँ नासूत आहि मोकामा। नबी कबीर पहुँच तेहि धामा।।
तहँ दाऊद पयंबर होई। जब्बूर किताब पढे तहँ सोई।।
तहाँ सलामालेक सोई कीना। दस्तावोस उनहु उठि लीना।।

(मलकूत) मोकाम 2

तहवाँते पुनि कीन पयाना। दूसरा मुकाम वैकुंठ प्रमाना।।
तहवाँ पहुँच बैठे ऋषि दुर्बासा। देव सबै बैठे तेहि पासा।।
वह वैकुंठ इन्द्र अस्थाना। मलकूत मोकाम मूसाको जाना।।
मूसा पैगम्बर पढै किताबा। उसका नाम तौरेत किताबा।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठि लीना।।

(जबरूत) मोकाम 3

वैकुण्ठ ते आगे लायो डोरी। सुमेरते सुन्य अठारह करोरी।।
येतो अधर सुन्य अस्थाना। जबरूत मोकाम ईसाको जाना।।
ईसा पैगम्बर पढै किताबा। उसका नाम इंजील किताबा।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ता बोस उनहु उठि लीना।।
तहँवा बैठि विस्वंभर राई। वही पीर तो वही खुदाई।।
यह विष्णुपुरी है भाई। यामें भी एक बैकुण्ठ बनाई।।
विष्णु है यहाँ का प्रधाना। सुन मुहम्मद ज्ञान विज्ञाना।।
उहँते अधर सून्य है भाई। ताकी शोभा कही न जाई।।

(लाहूत) मोकाम 4

महाशून्यको लागी डोरी। ग्यारह पालँग तहाँ ते सोरी।।
लाहूत मोकाम कहावै सोई। जो देखे बहुतै सुख होई।।
रह महादेव पार्बति संगा। लाहुत मुकाम देख मन चंगा।।
यह मुहम्मद तुम्हरो डेरा। गण गंधर्व सब यहाँ चेरा।।
मुस्तफा पैगंबर बैठे तहाँ। फुरकान किताब पढत थे जहाँ।।
सलामालेक तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठि लीना।।
देखत हौ मुहम्मद अस्थाना। तुम बेचून कहो यही ठेकाना।।
सब फिरिश्ते सलामालेक कीना। तब हम आगे का पग दीना।।

(हाहूत) मोकाम 5

तहँते चले अचिंत ठेकाना। एक असंख्य सुन्य परमाना।।
ब्रह्मापुरी है हाहूत मोकामा। आदम का यहाँ विश्रामा।।
हाहूत मोकाम को वही ठेकाना। आगे है सोहं बंधाना।।

(बाहूत) मोकाम 6

तीन असंख्य शून्य परमानी। बाहूत मोकाम सो कहो बखानी।।
यह देवी का अस्थाना। गुप्तभेद कोई ना जाना।।
नबी कबीर चले तेहि आगे। मूल सुरति बैठे अनुरागे।।

(फाहूत) मोकाम 7

पांच असंख सुन्न विचआही। सप्तम मोकाम कहत है ताही।।
संगम धाम दुर्गा के आगे। यको तुम फाहूत अनुरागे।।
फाहूत मोकाम तोहे बताया। भिन्न भेद कह समझाया।।

(राहूत) मोकाम 8

इच्छा सुरति के पहुँचे द्वीपा। चार असंख है लोक समीपा।।
सतगुरू रूप काल दयाला। एक बुगा और एक काला।।
ताको नाम राहूत मोकामा। नबी कबीर पहुँचे तेहि ठामा।।

(आहूत) मोकाम 9

तहाँते सहज द्वीप परमाना। दोय असंख तहाँते जाना।।
आहूत मुकाम निरंजन धामा। आप गुप्त ज्योति प्रगटाना।।
ताहि मोकाम नाम आहूता। सोभा ताकी देख बहूता।।

(जाहूत) मोकाम 10

साखी - पहुँचे जायके लोक जहँ, सन्त असंख दस लाख।।
अक्षर धाम जाहूत मुकामा। सप्त शंख लोक अकाना।।
सो मोकाम जाहूत का, दस मोकाम यह भाख।।

चौपाई

सलामवालेकम तहाँ हम कीना। दस्ताबोस उनहु उठिलीना।।
तहँते अमरलोकको छोरा। नबी कवीर पहुँच तेहि ठौरा।।
अमरलोक के हंस सब आये। तिनकी सोभा कही न जाये।।
भरि भरि अंक मिले तहँ आये। देखि मुहम्मद रहे भुलाये।।
सब मिलि हंस गये पुनि तहँवा। साहेब तखत पै बैठे जहँवा।।
जगर मगर छतर उजियारा। आम धनी का कहो बिहारा।।
असंख भानु पुरूष उजियारा। अमरलोक को कहो विस्तारा।।
सकल हंस तहँ दरशन पाई। तिनकी सोभा बरनि न जाई।।
तहँवा जाय बंदगी कीना। नबी भये जो बहुत अधीना।।

मुहम्मद वचन

चूक हमार बकस कर दीजै। जो तुम कहो सोई हम कीजै।।

“हजरत मुहम्मद जी को कुरआन पुस्तक का ज्ञान कैसे मिला”

कुरआन शरीफ अर्थात् कुरआन मजीद की प्राप्ति कैसे हुई? (कुरआन शरीफ वाला ज्यों का त्यों विवरण कुरआन मजीद में है)।

कुरआन मजीद - तर्जुमा, फतेह मुहम्मद खां साहब जालंधरी, प्रकाशक: महमूद एण्ड कम्पनी, मरोल पाईप लाईन, बम्बई-59, सोल एजेंट, फरीद बुक डिपो, देहली-6

उपरोक्त पुस्तक के: मुकदमा के पृष्ठ 6-7 पर लिखा है:-

‘‘कुरआन मजीद के उतरने और संग्रह व संकलन करने के हालात‘‘

उपरोक्त पुस्तक कुरआन मजीद के मुकदमा पृष्ठ 6-7 पर लिखें लेखक के लेख का निष्कर्ष:-

कुरआन मजीद (शरीफ) 23 वर्षों में पूरी लिखी गई। जब हजरत मुहम्मद जी की आयु 40 वर्ष थी उस समय से प्रारम्भ हुई तथा अन्तिम समय 63 वर्ष की आयु तक 23 वर्ष लगातार कभी एक आयत, कभी आधी, कभी दो आयत, कभी 10 आयत, कभी पूरी सूरतें उतरी हैं। इसी को शरीअत में ‘‘बह्य‘‘ कहते हैं।

विद्वानों ने लिखा है ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ उतरने के भिन्न-भिन्न तरीके हदीसों में पेश किए हैं।

  1. फरिश्ता ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ ले कर आता था तो घंटियाँ सी बजती थी। नबी मुहम्मद जी की जान निकलने को हो जाती थी। यह तरीका ज्यादा कष्ट दायक नबी मुहम्मद जी के लिए होता था।

यह भी लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी नुबूबत के बाद (चालीस वर्ष की आयु से नबी बनने के बाद) रमजान के दिनों में पूरा कुरआन मजीद (शरीफ) अल्लाह के पास से उस आसमान से जिसे हम देख नहीं सकते हैं अल्लाह (प्रभु) के हुकम (आज्ञा) से उतारा गया अर्थात् उसी अल्लाह के द्वारा बोला गया। इसके बाद हजरत जिबराईल को जिस समय, जिस कदर हुकम (आज्ञा) हुआ, उन्होंने पवित्र कलाम को बिल्कुल वैसा ही बिना किसी परिवर्तन के नबी मुहम्मद जी तक पहुँचाया।

  1. कभी फरिश्ता दिल में कोई बात डाल दे।

  2. फरिश्ता आदमी के रूप में आकर बात करे। {नोट - हजरत मुहम्म्द जी की जीवनी में लिखा है कि जिस समय जिब्राईल फरिश्ता प्रथम बार वह्य (वह्य) लेकर आया मनुष्य रूप में दिखाई दिया, तो उसने मुहम्मद जी का गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। हजरत मुहम्मद जी ने बताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे, वह मेरा गला घोंट रहा हो। मेरे शरीर को दबा रहा हो। ऐसा दो बार किया फिर तीसरी बार फिर कहा पढ़ो। मुझे ऐसा लगा कि वह फिर गला घोटेंगा, इस बार और जोर से भींचेगा, मैं बोला क्या पढ़ूं ? कुरआन की प्रथम आयत पढ़ाई, वह मुझे याद हो गई। फिर फरिश्ता चला गया, मैं घबरा गया। दिल बैठता जा रहा था। पूरा शरीर थर-थर कांपने लगा। गुफा के बाहर आकर सोचा यह कौन था। फिर वही फरिश्ता आदमी की सूरत में दिखाई दिया, जहाँ देखूं वही दिखाई देने लगा। ऊपर, नीचे, दांए, बांए सब ओर। घर आकर चादर ओढ़कर लेट गया। सारा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। मुझे डर है कि खदीजा कहीं मर न जाऊँ। फिर हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा को सारी बात बताई, फिर एक ‘बरका‘ नामक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद जी से सारी बातें सुन कर कहा आप ‘नबी‘ बनोगे। यही फरिश्ता मूसा जी के पास भी आता था। उपरोक्त विवरण से तो सिद्ध होता है कि फरिश्ता आदमी रूप में वह्य लाता था तो भी हजरत मुहम्मद जी को बहुत कष्ट हुआ करता।}

  3. अल्लाह तआला जागते में नबी मुहम्मद (सल्ल) से कलाम फरमाए। भावार्थ है कि आकाशवाणी करके ब्रह्म स्वयं बोलता था।

  4. अल्लाह तआला सपने की हालत में कलाम फरमाए।

  5. फरिश्ता सपने की हालत में आकर कलाम करे(इस छठी व पाँचवी प्रकार पर विवाद है, शेष उपरोक्त कुरआन मजीद(शरीफ) के उतरने की 4 सही हैं।) पृष्ठ 29 पर लिखा है कि कभी स्वयं ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ आती थी। भावार्थ है कि जैसे कोई प्रेत प्रवेश करके बोलता है। कभी नबी मुहम्मद चादर लपेट कर लेट जाते थे, फिर चादर के अन्दर से बोलते थे। पवित्र कुरआन मजीद(शरीफ) के मुकदमा के पृष्ठ 6-7 के लिखे लेख से स्पष्ट है कि कुरआन का ज्ञान पर्दे के पीछे रहने वाले अल्लाह ने दिया है। जिबराईल नामक फरिश्ते ने तो केवल संदेश वाहक का कार्य किया है। कुरआन ज्ञान देने वाला अपने से अन्य कादर सृष्टि की रचना करने वाले अल्लाह की महिमा बताता है। अपनी भी बताता है।

“पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्मों के अनुयाईयों को कर्माधार से लाभ-हानि करने वाले भी (श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) तीन ही देवता”

हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा तथा अन्य प्राणियों व सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति करके कुरआन व बाईबल बोलने वाले प्रभु को सौंप गया। बाईबल के उत्पत्ति ग्रंथ से भी सिद्ध होता है कि परमात्मा मनुष्य जैसा है। क्योंकि प्रभु ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया तथा सात दिन के बाद का वर्णन कुरआन शरीफ व बाईबल ज्ञान दाता(काल/ज्योति निरंजन) की लीला का है। पवित्र बाईबल में लिखा है कि ‘फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे। परमेश्वर ने उसे अदन के उ़द्यान से निकाल दिया।

उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध होता है कि जो आदम का प्रभु है ऐसा कोई और भी है तथा साकार है। इसीलिए तो कहा है कि मनुष्य को भले-बुरे का ज्ञान करवाने वाले वृक्ष के फल को खाकर हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ में ही लिखा है कि आदम ने भले-बुरे के ज्ञान वाला फल तोड़ कर खा लिया तो उसे पता चला वह नंगा है। यहोवा परमेश्वर टहलते हुए आ गया। उसने आदम को पुकारा तू कहाँ है? तब आदम ने कहा मैं तेरी आवाज सुनकर छुप गया हूँ, क्योंकि मैं नंगा हूँ। फिर परमेश्वर ने आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा के चमड़े के अंगरखे (वस्त्रा) बनवाए।

विचार करें उपरोक्त विवरण स्वयं सिद्ध कर रहा है कि पूर्ण परमात्मा (ब्वउचसमजम ळवक) भी सशरीर मनुष्य जैसे आकार का है तथा अन्य छोटे प्रभु (ैउंसस हवके) भी मनुष्य जैसे आकार के हैं, जिसे पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्म के व्यक्ति निराकार मानते हैं। वास्तव में परमेश्वर तथा अन्य देव नराकार में साकार हैं तथा प्रभु एक से अधिक भी हैं। यह बाईबल से भी प्रमाणित हुआ।

क्योंकि काल ब्रह्म स्वयं सामने नहीं आता, उसने अपने तीनों पुत्रों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) के द्वारा एक ब्रह्मण्ड का कार्य चला रखा है। हजरत आदम जी भगवान ब्रह्मा के अवतार हैं। हजरत आदम को श्री ब्रह्मा जी ने बहका कर रखा था, उसी ने उसको वहाँ से निकाला था। इसीलिए कहा है कि भले बुरे के ज्ञान वाला फल खाकर आदम हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देव हैं, हजरत ईसा के अवतार धारण करने के विषय में पवित्र बाईबल में लिखा है कि प्रभु ईश्वर ने पृथ्वी पर बढ़ रहे पाप के अंत के लिए अपने पुत्र को भेजा था क्योंकि हजरत ईसा जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। विष्णु लोक से कोई देव आत्मा का जन्म मरयम के गर्भ से फरिस्ते (देव) द्वारा हुआ था।

“मामरे पर तीनों देवताओं के देखने का प्रमाण”

(इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा)

इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा नामक अध्याय नं. 18 श्लोक नं. 1-5 में लिखा है कि अब्राहम मम्रे (मामरे) के बांजों के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा था, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया और उसने आँख उठाकर देखा तो तीन पुरुष उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने अब्राहम की प्रार्थना पर खाना खाया तथा वृद्ध अवस्था में पुत्र होने का आशीर्वाद देकर चले गए तथा जाते समय कहा कि हम सदोम आदि नगरों का नाश करने जा रहे हैं। वहाँ के लोग अधर्मी हो गए हैं। अब्राहम ने पूछा क्या आप अधर्मियों के साथ धर्मियों को भी मार डालोगे। प्रभु ने कहा यदि 100 व्यक्ति भी धर्मी होंगे तो भी हम उस नगरी का नाश नहीं करेंगे। ‘‘सदोम आदि नगरों का विनाश‘‘ नामक विषय में लिखा है कि उनमें से दो दूत ‘‘सदोम‘‘ में पहुँचे।सदोम में लूत (लोट) नामक व्यक्ति रहता था। उस गाँव के व्यक्ति बहुत निकम्मे थे। लूत (लोट) ने उन्हें आदर पूर्वक रोका। गाँव वालों ने उन फरिश्तों को आम व्यक्ति जान कर उनके साथ कुकर्म (नर से नर बलात्कार करना) करने के लिए बाहर निकलने को कहा। परन्तु लूत(लोट) ने कहा यह मेरे अतिथि हैं, मैं इन्हें आपको नहीं दे सकता। आप मेरी दो लड़कियाँ हैं, उनको ले लो। इस बात से प्रसन्न फरिश्तों ने सभी निकम्मे व्यक्तियों को अंधा कर दिया तथा लूत(लोट) को उसके परिवार सहित उस गाँव से निकाल कर पूरे गाँव को नष्ट कर दिया। इससे सिद्ध हुआ कि तीनों देवता हैं, जो ब्रह्म के आदेश से सबको किए कर्म का फल देते हैं।

उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि तीन देवता हैं। उनमें से कभी दो कभी एक अपने-अपने साधक के पास जाते हैं। यदि कोई तीनों का साधक है तो तीनों भी एक साथ जाते हैं, यदि कोई दो का साधक है तो दो भी दर्शन देते हैं। उपरोक्त प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ही अपने पिता ब्रह्म के आदेशानुसार एक ब्रह्मण्ड में सर्व कार्य करते हैं। भक्ति भाव के व्यक्तियों की कर्म अनुसार रक्षा तथा दुष्कर्म करने वालों का कर्म अनुसार नाश करते हैं। ब्रह्म (अव्यक्त कभी सामने दर्शन न देने वाला) उपरोक्त तीनों फरिश्तों (देवताओं) द्वारा अपना आदेश नबियों के पास भिजवाता है तथा आकाशवाणी द्वारा या प्रेतवत प्रवेश करके स्वयं भी आदेश देता है। फरिश्ते तो उसका ज्यों का त्यों आदेश सुनाते हैं। आदेश में कोई परिवर्तन नहीं करते। इससे स्पष्ट हुआ कि पवित्र बाईबल तथा पवित्र कुरआन सहित चारों कतेबों का ज्ञान दाता प्रभु किसी अन्य कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है।

विशेष:- कुरआन शरीफ (मजीद) शूरः अल् बकरा 2 आयत 21 से 33 तक उस पूर्ण परमात्मा की महिमा के विषय में वर्णन है तथा आयत 34 से अंत तक कुरआन का ज्ञान देने वाले ने अपनी महिमा बताई है तथा अपने ज्ञान अनुसार पूजा विधि बताई है।

  • यह भी स्पष्ट किया है कि मैंने (कुरआन ज्ञान दाता ने) आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को स्वर्ग की वाटिका में ठहराया तथा उनको बीच वाले वृक्षों के फल छोड़ कर शेष वृक्षों के फल खाने को कहा। परन्तु उन्होंने सर्प के बहकाने से बीच वाले वृक्षों के फल खा लिये। मैंने उनको जमीन पर दुःखी होने के लिये भेज दिया। (सूरः अल बकरा-2 आयत 35 से 39 तक।)

  • कुरआन ज्ञान दाता अल्लाह ने स्पष्ट किया है कि मैंने ही हजरत मुसा को ‘‘तौरत‘‘ किताब उतारी थी तथा मूसा के लिए पत्थर से पानी के झरने निकाले थे। (सूरः अल् बकरा-2 आयत 41, 53, 60)

  • हम ही मुसा के बाद एक के बाद दूसरा पैगम्बर भेजते रहे तथा ईसा बिन मरियम को खुली निशानियाँ बख्शी तथा रूहुल कुदस (यानि जिब्रील) से उनको मदद दी। (सूरः अल् बकरा-2 आयत 87)

सार विचार:- उपरोक्त पवित्र कुरआन शरीफ के विवरण से स्पष्ट हुआ कि बाबा आदम से लेकर हजरत ईसा, हजरत अब्राहम, हजरत दाऊद, हजरत मुसा, हजरत मुहम्मद साहेब तक को पैगम्बर बना कर भेजने वाला खुदा(अल्लाह/प्रभु) एक ही है। उसी ने कुरआन शरीफ अर्थात् मजीद का ज्ञान वह्य के द्वारा स्वयं प्रेतवत प्रवेश करके या आकाशवाणी करके कहा है या फरिश्तों के माध्यम से हजरत मुहम्मद तक ज्यों का त्यों पहुँचाया है। वही खुदा सूरत फुर्कानि-25 आयत 52 से 58 तथा 59 में कह रहा है कि हे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद) पूर्ण परमात्मा कबीर है, परन्तु काफिर लोग मेरी इस बात पर विश्वास नहीं करते। आप उनकी कही बातों को मत मानना मेरे द्वारा दिया यह कुरआन शरीफ वाले ज्ञान की दलीलों पर विश्वास करना की कबीर अल्लाह उसी को अल्लाह अक्बरू कहते हैं। इस ज्ञान के समर्थन में काफिरों के साथ संघर्ष करना भावार्थ है कि काफिर लोग कहते हैं कि कबीर अल्लाह नहीं है। आप (हजरत मुहम्मद) कहना कि कबीर अल्लाह है। लड़ना नहीं है। उनकी बातों में नहीं आना है।(आयत 52) वह कबीर अल्लाह वही है जिसने छः दिन में सर्व ब्रह्मण्डों को रचा तथा सातवें दिन तख्त पर विराजा। वास्तव में वह अल्लाह कबीर रहमान(क्षमा शील) है। उसके विषय में मैं (कुरआन शरीफ/मजीद का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसकी खबर अर्थात् पूर्ण ज्ञान व भक्ति की विधि किसी बाखबर(तत्वदर्शी संत) से पूछो। (आयत 59)

उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध हुआ कि प्रभु एक नहीं अनेक हैं तथा तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी) ही तीनों लोकों के प्राणियों को संस्कारवश लाभ व हानि तथा उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार के कारण हैं तथा ब्रह्म(काल) सर्व को धोखा देकर रखता है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही सर्व सुखदायक, सर्व के पूजा के योग्य तथा पूर्ण मोक्ष दायक है।

पूज्य कबीर परमेश्वर बता रहे हैं कि मैंने उस मुल्ला जी से कहा कि जिस बाखबर (तत्त्वदृष्टा) संत के लिये आपका अल्लाह संकेत कर रहा है। उस तत्वदृष्टा संत द्वारा दिया ज्ञान ही पूर्ण मोक्ष दायक है। वह वास्तविक भक्ति मार्ग न तो हजरत मुहम्मद जी को प्राप्त हुआ, न आप मुल्ला, काजियों व पीरों को। इसलिए आज तक जो भी साधना आप कर रहे हो वह अधूरी है। केवल ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का फैलाया भ्रम जाल है। यह नहीं चाहता कि साधक मेरे जाल से निकल जाए। पूज्य कबीर परमेश्वर ने बताया वह बाखबर (अर्थात् तत्वदर्शी संत) मैं हूँ। आप मेरे से उपदेश लो तथा यह तत्व ज्ञान जो मैं आपको बताऊंगा अन्य भक्ति चाहने वालों को भी समझाओ। यह तो काल है जिसे वेदों में ब्रह्म(क्षर पुरुष/ज्योति निरंजन) कहा जाता है। पूर्ण परमात्मा कोई और है जिसे वेदों में कविर्देव कहा है तथा कुरआन शरीफ(मजीद) में कबीरन्, कबीरा आदि कहा है तथा जिसे हजरत मुहम्मद जी ने अल्लाहु अकबर कहा है। वह कबीर अल्लाह मैं हूँ। आप सर्व मेरी आत्मा हो। आपको काल(ब्रह्म) ने भ्रमित किया है।

बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर ने आगे बताया - यह वार्ता सुनकर वह मुल्ला मुझसे अति नाराज हो गया तथा आगे से उसकी कथा में न आने को कहा। पूज्य कबीर परमेश्वर से उपरोक्त विवरण जानकर बादशाह सिंकदर लोधी मुसलमान ने अपने धार्मिक गुरू शेखतकी से कहा ‘‘पीर जी, क्या कुरआन शरीफ में महाराज कबीर साहेब जी द्वारा बताया विवरण है?’’ शेखतकी ने कुरआन शरीफ में सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 को ध्यान से पढ़ा तथा सत्य को जाना परन्तु मान वश कह दिया कि कबीर जी तो झूठा है। यह क्या जाने पवित्र कुरआन शरीफ के गूढ रहस्य को। यह तो अनपढ़ है। यह कहकर अति नाराजगी व्यक्त करता हुआ उठ कर अपने कमरे में चला गया। बादशाह सिकंदर लौधी भी कुरआन शरीफ को सुना करता था तो उसे याद आया कि ऐसा वर्णन अवश्य आता है। फिर भी भक्ति मार्ग तथा अरबी भाषा का ज्ञान न होने के कारण पूर्ण विश्वास नहीं हुआ। परन्तु हजरत मुहम्मद जी के जीवन चरित्र से पूर्ण परिचित था। उससे बहुत प्रभावित हुआ तथा कहा कि सच-मुच हजरत मुहम्मद जी के जीवन में कष्ट ही कष्ट रहे हैं।

‘‘बादशाह सिकंदर की शंकाओं का समाधान‘‘

प्रश्न - बादशाह सिकंदर लोधी ने कबीर अल्लाह से पूछा, हे परवरदिगार!

  • (क). यह ब्रह्म(काल) कौन शक्ति है?

  • (ख). यह सभी के सामने क्यों नहीं आता?

उत्तर - परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सिकंदर लोधी बादशाह के प्रश्न ‘क-ख‘ के उत्तर में सृष्टि रचना सुनाई। कृपया देखें सृष्टि रचना इसी पुस्तक के पृष्ठ 263 से 321 पर

(ग). क्या बाबा आदम जैसे महापुरुष भी इसी के जाल में फंसे थे?

'ग' के उत्तर में बताया कि पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा मनुष्यों तथा अन्य प्राणियों की रचना छः दिन में करके तख्त अर्थात् सिंहासन पर चला गया। उसके बाद इस लोक की बाग डोर ब्रह्म ने संभाल ली। इसने कसम खाई है कि मैं सब के सामने कभी नहीं आऊँगा। इसलिए सभी कार्य अपने तीनों पुत्रों (ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) के द्वारा करवाता रहता है या स्वयं किसी के शरीर में प्रवेश करके प्रेत की तरह बोलता है या आकाशवाणी करके आदेश देता है। प्रेत, पित्तर तथा अन्य देवों (फरिश्तों) की आत्माऐं भी किसी के शरीर में प्रवेश करके अपना आदेश करती हैं। परन्तु श्रद्धालुओं को पता नहंीं चलता कि यह कौन शक्ति बोल रही है। पूर्ण परमात्मा ने माँस खाने का आदेश नहीं दिया। पवित्र बाईबल उत्पत्ति विषय में सर्व प्राणियों के खाने के विषय में पूर्ण परमात्मा का प्रथम तथा अन्तिम आदेश है कि मनुष्यों के लिए फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए हैं जो तुम्हारे खाने के लिए हैं तथा अन्य प्राणियों को जिनमें जीवन के प्राण हैं उनके लिए छोटे-छोटे पेड़ अर्थात् घास, झाड़ियाँ आदि खाने को दिए हैं। इसके बाद पूर्ण प्रभु का आदेश न पवित्र बाईबल में है तथा न किसी कतेब (तौरत, इंजिल, जबूर तथा कुरआन शरीफ) में है। इन कतेबों में ब्रह्म तथा उसके फरिश्तों तथा पित्तरों व प्रेतों का मिला-जुला आदेश रूप ज्ञान है।

(घ). क्या बाबा आदम से पहले भी सृष्टि थी?

उत्तर - सूर्यवंश में राजा नाभिराज हुआ। उसका पुत्र राजा ऋषभदेव हुआ जो जैन धर्म का प्रवर्तक तथा प्रथम तीर्थकर माना जाता है। वही ऋषभदेव ही बाबा आदम हुआ।(यह विवरण जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जानें‘‘ के पृष्ठ 154 पर लिखा है।)

इससे स्पष्ट है कि बाबा आदम से भी पूर्व सृष्टि थी। पृथ्वी का अधिक क्षेत्र निर्जन था। एक दूसरे क्षेत्र के व्यक्ति भी आपस में नहीं जानते थे कि कौन कहाँ रहता है। ऐसे स्थान पर ब्रह्म ने फिर से मनुष्य आदि की सृष्टि की। उत्पत्ति ऐसे स्थान पर की जो अन्य व्यक्तियों से कटा हुआ था। काल के पुत्र ब्रह्मा के लोक से यह पुण्यात्मा (बाबा आदम) अपना कर्म संस्कार भोगने आया था। फिर शास्त्रा अनुकूल साधना न मिलने के कारण पित्तर योनी को प्राप्त होकर पित्तर लोक में चला गया। बाबा आदम से पूर्व फरिश्ते थे। पवित्र बाईबल ग्रन्थ में लिखा है।

(ड़). यदि अल्लाह का आदेश मनुष्यों को माँस न खाने का है तो बाईबल तथा कुरआन शरीफ में कैसे लिखा गया?

उत्तर - पवित्र बाईबल में उत्पत्ति विषय में लिखा है कि पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रचकर सातवें दिन विश्राम किया। उसके बाद बाबा आदम तथा अन्य नबियों को अव्यक्त अल्लाह (काल) के फरिश्ते तथा पित्तर आदि ने अपने आदेश दिए हैं। जो बाद में कुरआन शरीफ तथा बाईबल में लिखे गए हैं।

(च). अव्यक्त प्रभु काल ने यह सर्व वास्तविक ज्ञान छुपाया है तो पूर्ण परमात्मा का संकेत किसलिए किया?

उत्तर - ज्योति निरंजन (अव्यक्त माना जाने वाला प्रभु) पूर्ण परमात्मा के डर से यह नहीं छुपा सकता कि पूर्ण परमात्मा कोई अन्य है। यह पूर्ण प्रभु की वास्तविक पूजा की विधि से अपरिचित है। इसलिए यह केवल अपनी साधना का ज्ञान ही प्रदान करता है तथा महिमा गाता है पूर्ण प्रभु की भी।

दिल्ली के सम्राट सिकंदर ने सोचा कि ऐसे भगवान को दिल्ली में ले चलता हूँ और हो सकता है वहाँ के व्यक्ति भी इस परमात्मा के चरणों में आकर एक हो जाऐं। यह हिन्दू और मुसलमान का झगड़ा समाप्त हो जाएँ। कबीर साहेब के विचार कोई सुनेगा तो उसका भी उद्धार होगा। बादशाह सिकंदर लोधी ने प्रार्थना की कि ’’हे अल्लाह की जात! हे परवरदिगार! एक बार हमारे साथ दिल्ली चलने की कृपा करो।’’ कबीर साहेब ने सिकंदर लौधी से कहा कि पहले आप मेरे से उपदेश लो फिर आपके साथ चल सकता हूँ। ऐसे नहीं जाऊँगा। सिकंदर ने कहा कि दाता जैसे आप कहोगे वैसे ही करूँगा। कबीर साहेब ने कहा कि एक तो हिन्दू से मुसलमान नहीं बनाएगा। सिकंदर ने कहा कि नहीं बनाऊँगा। कोई जीव हिंसा नहीं करवाएगा। सिकंदर ने कहा प्रभु मैं जीव हिंसा नहीं करूंगा तथा न किसी को जीव हिंसा करने के लिए कहूँगा। परन्तु ये मुल्ला तथा काजी मेरे बस से बाहर हैं। कबीर साहेब ने कहा ठीक है आप अपने मुँख से नहीं कहोगे। सिकंदर ने कहा कि ठीक है दाता अर्थात् सारे नियम बता दिए और सिकंदर ने सारे स्वीकार कर लिए। परमेश्वर कबीर साहेब जी से दीक्षा ग्रहण कर ली तथा सर्व नियमों को आजीवन पालन करने का प्रण किया।

तब सतगुरुदेव सिकंदर लौधी को प्रथम मंत्रा प्रदान करके वहाँ से उसके साथ दिल्ली को रवाना हुए। बादशाह सिकंदर ने परमेश्वर कबीर साहेब को अपने साथ हाथी पर अम्बारी में बैठाया। उसमें राजा के अतिरिक्त कोई बैठ नहीं सकता था। परन्तु सिकंदर को अल्लाह दिखाई दिया जिसने उसकी असाध्य बिमारी से रक्षा की। उसके सामने मुर्दा (स्वामी रामानन्द) जीवित कर दिया।

जब सिकंदर लौधी के धार्मिक गुरु शेखतकी को पता चला कि राजा स्वस्थ हो गया और इसके सामने कबीर परमेश्वर ने स्वामी रामानन्द जी का कटा शिश जोड़ कर जीवित कर दिया। उसने सोचा कि अब मेरे नम्बर कटेंगे अर्थात् मेरी महिमा कम हो जाएगी। मेरी कमाई तथा प्रभुता गई। शेखतकी को साहेब कबीर से ईष्र्या हो गई। वह विचार करने लगा कि किसी प्रकार इसको नीचा दिखाऊँ ताकि सिकंदर के हृदय से यह उतर जाए। मेरी प्रभुता बनी रह जाए। राजा के साथ सभी वहाँ से दिल्ली के लिए चल पड़े। रास्ते में रात्री में एक दरिया के किनारे रूक गए। सोचा कि रात्रि में विश्राम करेंगे। सुबह चलने का इरादा करके वहाँ पर पड़ाव लगा दिया।

© Kabir Parmeshwar Bhakti Trust (Regd) - All Rights Reserved