गीता तेरा ज्ञान अमृत (Gita Tera Gyan Amrit)

Gita Tera Gyan Amrit (Bhagavad Gita by Sant Rampal Ji)

Book Title - गीता तेरा ज्ञान अमृत (Gita Tera Gyan Amrit)
Author - Sant Rampal Ji Maharaj
Language - Hindi
Publisher - Satlok Ashram, Barwala, Hisar
Genre - Spiritual, Tatvagyan
Subject - Bhagavad Gita
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Gita Tera Gyan Amrit

‘‘गीता’’ एक पवित्र सत्य ग्रन्थ है जो अध्यात्म ज्ञान का कोष है। इसे वर्तमान में हिन्दुओं के ग्रन्थ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में पवित्र गीता विश्व का ग्रन्थ है। इसकी उत्पत्ति आज सन् 2012 से लगभग 5550 (पाँच हजार पाँच सौ पचास) वर्ष पूर्व महाभारत के युद्ध के समय हुई थी। उस समय कोई धर्म नहीं था। एक सनातन पंथ था यानि मानव धर्म था। शब्द खण्ड नहीं होता। यह उन पुण्यात्माओं के मस्तिष्क रूपी वाॅट्सऐप (whatsapp) में पहुँच जाता है जिनका नेटवर्क सही होता है। यह महर्षि व्यास जी (श्री कृष्ण द्वैपायन) के मस्तिष्क रूपी whatsapp में लोड हो गया था। उसी से श्री वेद व्यास जी ने पवित्र ‘‘श्रीमद्भगवत गीता‘‘ को कागज पर लिखा या ताड़ वृक्ष के पत्तों पर खोदा जो आज अपने पास पवित्र गीता उपलब्ध है। गीता शास्त्र में कुल 18 (अठारह) अध्याय तथा 700 (सात सौ) श्लोक हैं। मैंने इस पवित्र पुस्तक से आवश्यकता अनुसार विवरण लेकर ग्रन्थ ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत‘‘ की रचना की है। जैसे वन (थ्वतमेज) में जड़ी-बूटियाँ होती हैं। वैद्य उस वन से आवश्यक जड़ी निकाल लेता है। उससे जीवनदायनी औषधि तैयार कर लेता है। वन फिर भी विद्यमान रहता है।

इसी प्रकार पुस्तक ‘‘गीता तेरा ज्ञान अमृत‘‘ एक औषधि जानें और इसको पढ़कर ज्ञान की घूँट पीकर अपना जरा-मरण का रोग नाश करायें। अध्यात्म ज्ञान के बिना मनुष्य जीवन अधूरा है। यदि किसी के पास अरबों-खरबों की सम्पत्ति है, फिर भी वह अपने जीवन में कुछ कमी महसूस करता है। उसकी पूर्ति के लिये मनुष्य पर्यटक स्थलों पर जाता है। उस समय उसको कुछ अच्छा लगता है परन्तु उससे पूरा जीवन अच्छा नहीं हो सकता, न ही इससे आत्मकल्याण हो सकता। दो-तीन दिन के पश्चात् पुनः वही दिनचर्या प्रारम्भ हो जाती है। फिर भी कुछ अधूरा-सा लगता है। वह कमी परमात्मा की भक्ति की है। उसकी पूर्ति के लिए विश्व का धार्मिक मानव अपनी परंपरागत साधना करता है। यदि उस साधक की वह साधना शास्त्रों के अनुकूल है तो लाभ होगा। यदि शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण अर्थात् मनमानी साधना करते हैं तो वह गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 के अनुसार व्यर्थ है। न साधक को सुख प्राप्त होता है, न सिद्धि प्राप्त होती है, न परम गति प्राप्त होती है अर्थात् व्यर्थ साधना है। कुछ श्रद्धालु किसी गुरू से दीक्षा लेकर भक्ति करते हैं। यदि गुरू पूर्ण है तो लाभ होगा नहीं तो वह साधना भी व्यर्थ है।

आप जी को इस पुस्तक ’’गीता तेरा ज्ञान अमृत’’ में जानने को मिलेगा कि प्रमाणित शास्त्र कौन से हैं जिनके अनुसार साधना करें? शास्त्रविधि अनुसार साधना कौन सी है? उस साधना को करने की विधि क्या है, किस महात्मा से प्राप्त होगी, पूर्ण गुरू की क्या पहचान है?, वह भी इसी पुस्तक में पढ़ेंगे। यह पुस्तक विश्व के मानव को एक करेगी जो धर्मों में बँटकर आपस में लड़-लड़कर मर रहा है। गीता शास्त्र किसी धर्म विशेष का नहीं है। यह तो मानव कल्याण के लिए उस समय प्रदान किया गया था जब कोई धर्म नहीं था, केवल ’’मानव’’ धर्म था। मेरा नारा है:-

जीव हमारी जाति है, मानव (mankind) धर्म हमारा।
हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

जैसे बाबा नानक जी का जन्म पवित्र हिन्दू धर्म में श्री कालूराम मेहता के घर खत्री (अरोड़ा) कुल में हुआ था। श्री ब्रजलाल पांडे से श्री नानक देव जी ने गीता का ज्ञान समझा और उनके द्वारा बताई भक्ति कर रहे थे। श्री विष्णु तथा श्री शंकर जी की पूजा करते थे। अन्य सर्व देवों की भी भक्ति करते थे जो हिन्दू धर्म में वर्तमान में चल रही है। श्री नानक जी सुल्तानपुर शहर में वहाँ के नवाब के यहाँ मोदीखाने में नौकरी करते थे। शहर से लगभग आधा-एक कि.मी. दूर बेई नदी बहती थी। प्रतिदिन श्री नानक देव साहेब जी उस दरिया में स्नान करने जाते थे। परमात्मा अच्छी आत्माओं को जो दृढ़ भक्त होते हैं, उनको मिलता है। अधिक प्रमाण आप जी इसी पुस्तक में पढ़ेंगे। उसी विधान अनुसार परमात्मा श्री नानक देव साहेब जी को मिले। उनको तत्वज्ञान बताया। सत्य साधना जो शास्त्रानुकूल है, उसका ज्ञान कराया। श्री नानक देव जी की संतुष्टि के लिए उनको अपने साथ ऊपर अपने शाश्वत् स्थान अर्थात् सच्चखण्ड में लेकर गए। सर्व ब्रह्माण्डों का भ्रमण कराकर यथार्थ भक्तिविधि बताकर “सनातन भक्ति” को पुनः स्थापित करने का आदेश दिया। तीन दिन पश्चात् श्री नानक जी को वापिस जमीन पर छोड़ा। उसके पश्चात् श्री नानक जी ने हिन्दू धर्म में चल रहा मनमाना आचरण बंद करके गीता (सप्तश्लोकी गीता) शास्त्र अनुसार साधना का प्रचार करके यथार्थ भक्ति का प्रचार किया।

परमात्मा की सत्य साधना करने के लिए सर्वप्रथम ’’गुरू’’ का होना अति अनिवार्य है। इसी का पालन करते हुए श्री नानक जी ने ’’शिष्य’’ बनाने शुरू किए, स्वयं वे गुरू पद पर विराजमान थे। श्री नानक जी के शिष्यों को (पंजाबी भाषा में) सिक्ख कहते हैं। जिस कारण से उनकी अलग पहचान बन गई और वर्तमान में उन अनुयाईयों के समूह ने धर्म का रूप ले लिया। हिन्दू तथा सिक्ख आपस में धर्म के नाम पर लड़-मरते हैं, यह विवेक की कमी है।

विवेचन:- भक्ति कोई करो, उसको गुरू बनाना आवश्यक है। गुरू भी वक्त गुरू हो जो अपने मुख कमल से तत्वज्ञान तथा साधना विधि बताए। गुरू शरीर का ही नाम नहीं है। उस शरीर में जो आत्मा है, वह गुरू है। शरीर पाँच तत्व का हो या इलैक्ट्रोनिक (video) का हो, वह वक्त गुरू कहा जाता है। हिन्दुओं में अधिकतर बिना गुरू के ही अपनी परंपरागत साधना करते हैं। उसी बिगड़े रूप को श्री नानक जी ने परमात्मा से प्राप्त ज्ञान से ठीक किया था। वर्तमान में सिक्खों में भी वक्त गुरू का अभाव है। जैसे सूक्ष्म वेद में कहा है (सूक्ष्म वेद क्या है, यह आप इसी पुस्तक से जानें) कि:-

राम-कृष्ण से कौन बड़ा, उन्होंने ने भी गुरू कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।

भावार्थ:- जो हिन्दू श्रद्धालु बिना गुरू के मनमाना आचरण करते हैं, उनको कहा है कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से बड़ा तो किसी को नहीं मानते हो। वे तीन लोक के धनी अर्थात् मालिक होते हुए भी गुरू धारण करके भक्ति किया करते थे तथा अपने-अपने गुरूदेव के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया करते थे। {श्री रामचन्द्र जी के गुरू जी ऋषि वशिष्ठ जी थे तथा श्री कृष्ण चन्द्र जी के गुरू जी ऋषि दुर्वासा जी थे। संदीपनी ऋषि तो अक्षर ज्ञान कराने वाले अध्यापक थे। ऋषि दुर्वासा जी आध्यात्मिक गुरू श्री कृष्ण जी के थे।} आप की क्या बुनियाद है, आप बिना गुरू के भक्ति करके कल्याण चाहते हैं। सूक्ष्मवेद में फिर कहा है:-

कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, भावें पूछो वेद पुराण।।

इस पुस्तक में आप जी को और भी अनेक भक्ति के गुर मिलेंगे तथा यथार्थ अध्यात्म ज्ञान व साधना की भी जानकारी होगी। मैं आशा करता हूँ कि यह पुस्तक मानव कल्याण करेगी। मेरी परमेश्वर से विनय है कि हे परमात्मा! मुझ दास के इस प्रयत्न को सफल करना। सर्व प्राणी आप जी के बच्चे हैं, आप जी की आत्मा हैं। इनको यथार्थ भक्ति मार्ग समझ में आए और सर्व मानव अपना जीवन धन्य बनाऐं। विश्व में शान्ति हो।

‘‘सत्य साहिब‘‘
दिनाँक - 08.09.2012 लेखक
संत रामपाल दास महाराज
सतलोक आश्रम बरवाला, हरियाणा (भारत)।

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