दो शब्द
अपने पूज्य ईष्ट देव के प्रति दृढ़ प्रेम श्रद्धा कहलाता है। अपने ईष्ट में श्रद्धा किस कारण से होती है? उत्तर यह है कि मानव (स्त्री-पुरूष) को पता चलता है कि परमात्मा सर्व सुख प्रदान करता है। संकट के समय श्रद्धालु की रक्षा करता है। मनोकामनाऐं पूर्ण करता है। रोगी को स्वस्थ करता है। परमात्मा भक्त/भक्तमति की आयु भी वृद्धि कर देता है। दुर्घटना से रक्षा करता है। निर्धन को धन, अंधे को आँखें, बांझ को संतान परमात्मा देता है।
श्रद्धालु का उद्देश्य परमात्मा की भक्ति करके उपरोक्त लाभ प्राप्ति का होता है। श्रद्धालु अपने धर्म के शास्त्रों को सत्य मानता है। यह भी मानता है कि हमारे धर्मगुरू हमें जो साधना जिस भी ईष्ट देव की करने को कह रहे हैं, वे साधना शास्त्रों से ही बता रहे हैं क्योंकि गुरू जी रह-रहकर कभी गीता को आधार बताकर, कभी शिव पुराण, विष्णु पुराण, देवी पुराण, कभी-कभी चारों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद) में से किसी एक या दो वेदों का हवाला देकर अपने द्वारा बताई भक्ति विधि को शास्त्रोक्त सिद्ध करते हैं। श्रद्धालुओं को पूर्ण विश्वास होता है कि जो साधना अपने धर्म के व्यक्ति (स्त्री-पुरूष) कर रहे हैं, यह सत्य है। जब बच्चा (लड़का-लड़की) समझ रखने योग्य बड़ा होता है तो वह अपने धर्म के व्यक्तियों को जैसी भी भक्ति-साधना करते देखता है, वह निसंशय होता है कि ये सब वर्षों से करते आ रहे हैं, यह साधना सत्य है। वह भी उसी पूजा-पाठ को करने लग जाता है। आयु बीत जाती है।
अंध श्रद्धा भक्ति:-
एक-दूसरे को देखकर की जा रही भक्ति यदि शास्त्रोक्त नहीं है तो वह अंध विश्वास यानि अंध श्रद्धा भक्ति मानी जाती है।
- यहाँ पर यह भी बताना अनिवार्य समझता हूँ कि कुछ व्यक्तियों ने मेरे विषय में भ्रम फैला रखा है कि ये देवी-देवताओं की भक्ति छुड़वाता है। यह बिल्कुल गलत है। मैं सर्व देवताओं की शास्त्रोक्त साधना करने की राय देता हूँ जिससे साधक को यथार्थ लाभ मिलता है तथा पूर्ण परमात्मा को ईष्ट रूप में पूजा करने की राय देता हूँ जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वर्तमान जीवन में भी अनेकों लाभ होते हैं जो परमात्मा से अपेक्षा की जाती है।
धार्मिक भावनाओं को ठेस:-
यदि कोई सज्जन पुरूष (स्त्री-पुरूष) उस अंध श्रद्धालु को कहे कि आप जिस देवी-देवता को ईष्ट मानकर जो साधना कर रहे हो, यह गलत है। इससे आपको कोई लाभ नहीं मिलेगा। आपका मानव जीवन नष्ट हो जाएगा। आप देवी-देवताओं की पूजा ईष्ट मानकर ना करो। आप मूर्ति की पूजा ना करो। आप धामों तथा तीर्थों पर मोक्ष उद्देश्य से ना जाओ। आप श्राद्ध न करो, पिण्डदान ना करो। तेरहवीं, सतरहवीं क्रिया या अस्थियाँ उठाकर गति कराने के लिए मत ले जाओ। आप व्रत न रखो। इसके स्थान पर अन्न-जल करने में संयम करो, न अधिक खाओ, न बिल्कुल भूखे रहो। आप अपने धर्म के शास्त्रों में बताए भक्ति मार्ग के अनुसार साधना करो। वह अंध श्रद्धावान यदि उस सज्जन पुरूष से कहे कि आप अच्छे व्यक्ति नहीं हो। आप ने हमारी धार्मिक भावनाऐं आहत की हैं। चला जा यहाँ से, वरना तेरी हड्डी-पसली एक कर दूँगा। जोर-जोर-से शोर मचाने लगता है। उसके शोर को सुनकर उसी क्षेत्र के उसी तरह उन्हीं देवी-देवताओं व तीर्थों-धामों के उपासकों का हुजूम इकठ्ठा हो जाता है। बात धर्मगुरूओं तक पहुँच जाती है। धर्मगुरू भी वही शास्त्रविरूद्ध मनमाना आचरण करने-कराने वाले होते हैं। उन धर्मगुरूओं की पहुँच उच्च पद पर विराजमान राजनेताओं तक होती है। उन धर्मगुरूओं के फोन मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों या स्थानीय नेताओं को जाते हैं। उच्च पद पर बैठे राजनेता स्थानीय प्रशासन को फोन करके धार्मिक भावनाऐं भड़काने का मुकदमा दर्ज करने को कहते हैं। उनके दबाव में प्रशासनिक अधिकारी तुरंत उस सज्जन पुरूष को गिरफ्तार करके मुकदमा बनाकर जेल भेज देते हैं।
जीवित उदाहरण:- सन् 2011 में मेरे (रामपाल दास-लेखक के) अनुयाई (जिनमें बेटियाँ भी शामिल थी) मध्यप्रदेश प्रान्त के शहर जबलपुर में पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ (जो मेरे सत्संग प्रवचनों का संग्रह करके तैयार कर रखी है) का प्रचार कर रहे थे। लागत 30 रूपये, परंतु 10 रूपये में बेच रहे थे। जिस कारण से हिन्दू श्रद्धालु उत्साह से लेकर जा रहे थे। जब उन्होंने घर जाकर पढ़ा तो लगा कि अनर्थ हो गया। देवी-देवताओं की पूजा गलत लिखी है। धामों-तीर्थों पर जाना व्यर्थ लिखा है। माता दुर्गा का पति बताया है। श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव का जन्म-मरण बताया है। इनके माता-पिता भी बताऐ हैं। हमारे देवताओं का अपमान किया है। मारो-मारो! उन अंध श्रद्धा वालों ने पहले तो प्रचार करने वाले स्त्री-पुरूषों को स्वयं पीटा, फिर थाने ले गए। हजारों अंध श्रद्धावान इकठ्ठे हो गए। जिला प्रशासन में बेचैनी हो गई क्योंकि राजनेताओं के फोन स्थानीय DC, SP, IG तथा कमिश्नर के पास आने लगे। हमारे एक अनुयाई ने बताया कि उपायुक्त महोदय (Deputy Commissioner) तथा पुलिस अधीक्षक महोदय थाने में आए। पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा’’ ली, उसको वहीं बैठकर पढ़ने लगे।
सुशिक्षित तथा दिमागदार अधिकारी होते हैं IPS तथा IAS, उनको समझते देर नहीं लगी कि इस पुस्तक में कुछ भी ऐसा नहीं लिखा है जिससे किसी की धार्मिक भावनाऐं आहत होती हों। सब विवरण शास्त्रों से प्रमाणित करके लिखा है। सुबह दस बजे से शाम के पाँच बजे तक अधिकारी-गण मुकदमा दर्ज करने से बचते रहे, परंतु उन अंध श्रद्धावानों ने मध्य प्रदेश के विधान सभा के अध्यक्ष ने पुनः फोन पर कहा तो प्रशासन ने मजबूरन धार्मिक भावनाओं को भड़काने का मुकदमा IPC की धारा 295.A के तहत दर्ज करके लगभग 35 स्त्री-पुरूषों को जेल भेज दिया। मुकदमा नं. 201 दिनाँक-08.05.2011, थाना-मदन महल (जबलपुर)।
विधान सभा अध्यक्ष ने अपने पद का दुरूपयोग करके पाप किया। {उसका फल भी परमात्मा ने उसे तुरंत दिया। वह विधान सभा अध्यक्ष दो महीने बाद ही मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसका नाम था ईश्वर दास रोहाणी।} इस मुकदमें को माननीय हाई कोर्ट जबलपुर में समाप्त (quash) करने की अर्जी (M.Cr.C. No. 13577-2013) लगाई जो माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर (मध्य प्रदेश) ने वह मुकदमा दिनाँक 20.07.2017 को खत्म कर दिया क्योंकि पुस्तक में सर्व ज्ञान शास्त्र प्रमाणित मिला। लेकिन सन् 2011 से सन् 2017 तक निचली अदालतों में तारीख पर तारीखें पड़ी। उन पर सर्व 35 अनुयाई अपना कार्य छोड़कर गए। किराया लगा, ध्याड़ी छोड़ी, वित्तीय नुक्सान तथा परेशानी उन अंध श्रद्धावानों के हित के लिए झेली कि वे इस पुस्तक में लिखे शास्त्रों के प्रमाणों को आँखों देखकर शास्त्रविधि रहित साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना करके अपने जीवन को धन्य बनाऐं क्योंकि श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में प्रमाण है। इन दोनों श्लोकों का वर्णन भूमिका में कर दिया है, वहाँ पढ़ें।
धार्मिक भावना:-
अपने धर्म की धार्मिक क्रियाओं तथा परमात्मा से संबन्धित पूजा पद्यति के प्रति गहरी आस्था को धार्मिक भावना कहते हैं।
धार्मिक भावनाओं को आहत करना:-
किसी के धर्म में चल रही पूजाओं तथा उनके परमात्मा के ऊपर बिना आधार के कटाक्ष या आलोचना करना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना है।
तर्क-वितर्क:-
किसी विषय पर अपनी-अपनी राय देना, अन्य की राय का खंडन करना व अपनी का मंडन करना, अन्य द्वारा अपने सिद्धांत का समर्थन करना, उसके विचारों को गलत बताना, यह तर्क-वितर्क है। इसमें किसी ग्रन्थ को आधार माना जाए तो समाधान है, अन्यथा झूठा झगड़ा है।
लेखक का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है, परंतु शास्त्रों को आधार मानकर तर्क-वितर्क किया है। सर्व शास्त्रों के प्रमाण को आधार रूप में देकर यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान तथा मोक्ष मार्ग को उद्धत (उजागर) किया है। यदि इसे धार्मिक भावनाओं का आहत होना माना तो दुःख होगा। मेरा (लेखक का) उद्देश्य विश्व के मानव को परमात्मा की खोज में इधर-उधर भटकने से बचाकर प्रमाणित तथा लाभदायक शास्त्रोक्त अध्यात्म ज्ञान व साधना बताऊँ। उनके मानव जीवन की रक्षा करूँ। यदि यह धार्मिक भावनाओं को आहत महसूस होगा तो कोई बात नहीं, फिर तो यह करना आवश्यक है।
उदाहरण:- एक समय एक लड़के ने कुछ बच्चों को पार्क में एक लकड़ी के खंभे पर चढ़ते-उतरते खेलते देखा। उसने गली में खड़े बिजली के खंभे पर चढ़ना प्रारम्भ किया। एक सज्जन पुरूष ने उसे देखा और दौड़कर उसे ऐसा करने से रोका। बच्चा रोने लगा। माता-पिता को बताया कि एक व्यक्ति ने मुझे खेलने से रोका। वह व्यक्ति उसी गली में रहता था। माता-पिता उस बच्चे को लेकर उस व्यक्ति के पास गए और कारण जाना तो पता चला कि उस व्यक्ति ने तो बच्चे के जीवन की रक्षा की है। बच्चे के माता-पिता गए तो थे झगड़ा करने के उद्देश्य से, परंतु उस व्यक्ति के उपकार का धन्यवाद करके आए।
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मेरा (लेखक का) यही उद्देश्य है कि हिन्दू धर्म के सब व्यक्ति लकड़ी के खम्बों पर खेलकर (शास्त्रोक्त साधना न करके) बिजली के खंभों पर चढ़कर मर रहे हैं यानि शास्त्रविरूद्ध मनमाना आचरण करके अनमोल मानव जीवन व्यर्थ कर रहे हैं, उनको शास्त्रोक्त साधना करने के लिए बाध्य करूँ क्योंकि वे मेरे बन्धु हैं। मेरे देश के वासी हैं। परमात्मा के अबोध (अध्यात्म ज्ञान में अनजान) बच्चे हैं। मुझे परमात्मा जी ने सर्व शास्त्रों का यथार्थ ज्ञान दिया है। वर्तमान में सब शिक्षित हैं। शास्त्रों के अध्याय, श्लोक व पृष्ठ तक पुस्तक में लिखे हैं। जाँच करें, फिर मानें।
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इस पुस्तक ‘‘अंध श्रद्धा भक्ति खतरा-ए-जान’’ के लिखने का उद्देश्य है कि आप और मैं हिन्दू धर्म में जन्में हैं। पहले यह दास (रामपाल दास) भी आप वाली साधना लोकवेद वाली ही किया करता था। परमात्मा की कृपा से एक तत्वदर्शी संत मिल गए। उन्होंने शास्त्रों से प्रमाण बताकर मेरी शास्त्र विरूद्ध साधना (जो वर्तमान में हिन्दू धर्म में प्रचलित है) को छुड़वाकर शास्त्रों में लिखी सत्य साधना का उपदेश देकर मेरे मानव जीवन को नष्ट होने से बचाया। उस महापुरूष यानि मेरे पूज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी महाराज की मेरी एक सौ एक पीढ़ी अहसानमंद रहेगी। सूक्ष्मवेद में कहा है कि:-
‘‘सत्य भक्ति करे जो हंसा, तारूं तास के इकोतर बंशा।’’
शब्दार्थ:- परमात्मा जी ने कहा है कि जो साधक शास्त्रोक्त सत्य साधना भक्ति करता है तो मैं उसकी एक सौ एक (101) पीढ़ी को संसार सागर से पार कर दूँगा यानि पूरे वंश का मोक्ष प्रदान कर दूँगा।
प्रिय पाठको! मेरी तो एकोतर पीढ़ी निःसंदेह पार होंगी। मेरे को दीक्षा देने का अधिकार उस महापुरूष ने दिया है। जो मेरे से दीक्षा लेकर शास्त्र विरूद्ध पुरानी साधना त्यागकर शास्त्रोक्त साधना अपनी आँखों से शास्त्रों में देखकर विश्वास के साथ आजीवन करेगा, वह तथा उसकी इकोतर (101) पीढ़ियाँ भवसागर से पार हो जाऐंगी।
- कृप्या विश्वास के लिए पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 282 पर ‘‘जान बची लाखों पाए‘‘ अध्याय में।
शास्त्रोक्त साधना तथा शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण (साधना) में क्या अंतर है?
उत्तर:- यह ऊपर बता दिया है कि जो शास्त्र विरूद्ध भक्ति साधना करता है, उसको कुछ भी आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। शास्त्र अनुकूल साधना करने से सर्व लाभ मिलते हैं।
शंका:- कुछ व्यक्ति कहते हैं कि रामपाल श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी की पूजा छुड़वाता है।
समाधान:- यह सरासर गलत है। मैं (लेखक) इन देवताओं को शास्त्रोक्त साधना करने के मूल मंत्र देता हूँ। जैसे श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1. 4 तथा 16-17 में कहा है कि यह संसार ऐसा जानों जैसे पीपल का वृक्ष उल्टा लटका है। ऊपर को मूल (जड़) तो परम अक्षर पुरूष है। तना अक्षर पुरूष है। उससे मोटी डार निकली है, वह क्षर पुरूष यानि काल ब्रह्म है जिसे ज्योति निरंजन भी कहते हैं। उस डार से तीनों गुण रूपी (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव रूपी) शाखाऐं निकली हैं तथा उन शाखाओं पर लगे पत्ते संसार का अंश जानो।
विचार करो पाठकजनो! हम आम का पौधा वन विभाग की नर्सरी से लाकर जमीन में गढ्ढ़ा बनाकर रोपेंगे। उसकी जड़ की सिंचाई करेंगे। उद्देश्य रहेगा कि यह पौधा पेड़ बने और शाखाओं को फल लगें और हम खाऐं और अन्य को खिलाऐं या बेचकर अपना निर्वाह चलाऐं। क्या हम पौधे की शाखाओं को तोड़ फैंकेंगे? उत्तर है कभी नहीं। इसी प्रकार तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) प्राणी को कर्मों का फल देते हैं। ये हमारी साधना के अभिन्न अंग हैं। इनको छोड़ नहीं सकते। इन तीनों देवताओं से लाभ लेने के विशेष मंत्र हैं जो सूक्ष्म वेद में बताए हैं जो मेरे पास हैं। विश्व में किसी के पास नहीं हैं।
जैसे भैंसा (झोटा) होता है। उस भैंसे का एक मूल मंत्र है। उससे उसको पुकारने से वह तुरंत सक्रिय हो जाता है। वह उस मंत्र के वश है। उसके बस की बात नहीं रहती। वह मंत्र हुर्र-हुर्र है जिसको सुनते ही भैंसे के कान खड़े हो जाते हैं। इस मंत्र का प्रयोग वह व्यक्ति करता है जिसने अपनी भैंस को भैंसे से गर्भ धारण करवाना होता है। यदि उस पशु को उसके प्रचलित नाम भैंसा-भैंसा करके पुकारें तो वह टस-से-मस नहीं होता।
ठीक इसी प्रकार इन तीनों देवताओं (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) के यथार्थ मंत्र साधना करने के हैं जिनके जाप से ये शीघ्र प्रभावित होते हैं तथा तुरंत कर्म फल देते हैं।
हमने पूजा मूल रूप परम अक्षर ब्रह्म यानि परमेश्वर को ईष्ट रूप मानकर करनी है। जैसे आम के पौधे की जड़ की सिंचाई (पूजा) करने से पौधे के सर्व अंग विकसित होते हैं यानि सर्व देवता प्रसन्न होते हैं। शास्त्रविधि विरूद्ध साधना वह है जिसमें संसार रूपी पौधे को शाखाओं की ओर से जमीन में गढ़ा खोदकर मिट्टी में गाड़कर इन शाखाओं की सिंचाई (पूजा) करते हैं, जड़ को ऊपर कर देते हैं जो व्यर्थ है। मूर्ख ही ऐसा कर सकते हैं, बुद्धिमान नहीं।
इस विषय में अधिक जानकारी आप जी ‘‘भक्ति किस प्रभु की करनी चाहिए गीता अनुसार’’ में इसी पुस्तक के पृष्ठ 147 पर पढ़ेंगे। कृपा देखें अगले पृष्ठों पर भी दो चित्र आम के पौधे के जिनमें शास्त्रविरूद्ध और शास्त्र अनुकूल साधना चित्रों द्वारा समझाई है।
शास्त्रविरूद्ध साधना रूपी पौधा
शास्त्र अनुकूल साधना रूपी पौधा
यह तत्वज्ञान परमेश्वर कबीर जी ने बताया है तथा मेरे पूज्य गुरूदेव स्वामी रामदेवानंद जी की कृपा व आशीर्वाद से मुझे समझ आया है। यह अटल सत्य ज्ञान है, परंतु जन-साधारण यानि वर्तमान सर्व मानव के लिए इतना जटिल है जितना चार सौ (400) वर्ष पूर्व वैज्ञानिक निकोडीन कोपरनिकस ने कहा था कि सूर्य के पृथ्वी के चारों ओर घूमने से दिन-रात नहीं बनते। पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है, जिस कारण से दिन-रात बनते हैं। उस समय सबकी धारणा थी कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। इस कारण दिन-रात बनते हैं। उस समय उस सच्चे वैज्ञानिक का धर्मांध व्यक्तियों ने जनता को भड़काकर इतना प्रबल विरोध किया था कि यह झूठ बोलता है। यह धर्म के विरूद्ध है। इसको फाँसी पर लटकाकर मार डालो। उस देश में गवर्नर को दण्ड देने व क्षमा करने का अधिकार था। कहते हैं कि गवर्नर ने वैज्ञानिक से कहा था कि आप एक बार जनता के सामने कह दें कि पृथ्वी नहीं घूमती। सूर्य घूमने से दिन-रात बनते हैं। मैं आपको क्षमा कर दूँगा। परंतु सत्य के पुजारी वैज्ञानिक ने कहा कि यह असत्य है, मैं कभी नहीं कहूँगा, जो करना है करो। उस सच्चे व्यक्ति को उस समय फाँसी पर लटका दिया गया था। बाद में चार सौ वर्ष पश्चात् उस दिवांगत वैज्ञानिक की आत्मा से विश्व ने क्षमा याचना की कि आपका बताया विधान सत्य था। हमको क्षमा करना। यही दशा मेरी है। मैं कहता हूँ कि ब्रह्मा-विष्णु-शिव नाशवान हैं। इनकी जन्म-मृत्यु होती है। इनके माता-पिता हैं। जिन पुराणों को आप सत्य मानते हो, उन्हीं में प्रमाण दिखा दिए हैं। धर्मांध संत-मण्डलेश्वर, अखाड़ों के महंत-जन मेरे सत्य ज्ञान का घोर विरोध कर तथा करवा रहे हैं। जिस कारण से मेरे ऊपर झूठे मुकदमें बनवाकर जेल में डाला जाता है। प्रचार बंद करवाया जाता है। परंतु वर्तमान में शिक्षित मानव है। सब प्रमाण ग्रन्थों में हैं। इसलिए मैं जीवित हूँ। यदि सौ वर्ष पूर्व यह ज्ञान बताता तो कब का परलोक चला गया होता।
आप जी से पुनः निवेदन है कि इस पुस्तक को दिल थामकर श्रद्धा के साथ पढ़कर समझकर मुझ दास (लेखक) के पास आऐं और शास्त्रोक्त साधना लेकर अपना तथा परिवार का निःशुल्क कल्याण करवाऐं।
।।सत साहेब।।
लेखक
(संत) रामपाल दास